धामी के सीएम बनते ही झूमे लखनऊ विवि के साथी छात्र

Uttrakhand Politics: लखनऊ विवि की राजनीति में सक्रिय रहे पुष्कर सिंह धामी, पूर्व छात्रों ने साझा की यादें लखनऊ विवि की राजनीति में सक्रिय रहे पुष्कर सिंह धामी, पूर्व छात्रों ने साझा की यादें
मेस में खत्म हुआ खाना तो कमरे में बनाते थे दाल-चावल। छात्रों की समस्याओं को हमेशा उठाया।
लविवि के पूर्व छात्र रामकुमार सिंह बताते हैं कि पुष्कर सिंह धामी ने विद्यार्थी परिषद से राजनीति शुरू की। सन 1994 में बीए में प्रवेश लेने के बाद वह एबीवीपी में काफी सक्रिय रहे। वह नरेंद्र देव छात्रावास में रहते थे और हम स्वर्ण जयंती छात्रावास में
लखनऊ, 03 जुलाई(अख‍िल सक्‍सेना)। पुष्कर सिंह धामी के उत्तराखंड का मुख्यमंत्री बनते ही लखनऊ विश्वविद्यालय की उनकी मित्र मंडली खुशी से गदगद दिखी। सबने पुष्कर के संघर्ष, सज्जनता और सादगी के किस्से सुनाए। पुष्कर सिंह धामी लखनऊ विश्वविद्यालय के छात्र होने के साथ ही अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) के इकाई अध्यक्ष भी थे। पढ़ाई के साथ-साथ वह लविवि की छात्र राजनीति में काफी सक्रिय रहे। छात्रों की छोटी-छोटी समस्याओं को उठाने वाले धामी दोस्तों के काफी प्रिय रहे। लविवि के बाद उत्तराखंड में उनकी सक्रियता को देखते हुए 10 साल पहले पूर्व मंत्री (वर्तमान में सांसद) लल्लू सिंह ने भी कहा था कि धामी एक दिन उत्तराखंड के मुख्यमंत्री बनेंगे। विश्वविद्यालय के पूर्व छात्रों ने पुष्कर सिंह धामी के साथ बिताई यादें दैनिक जागरण से साझा कीं।

छोला-चावल था पसंद :

लविवि के पूर्व छात्र रामकुमार सिंह बताते हैं कि पुष्कर सिंह धामी ने अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से राजनीति शुरू की। सन 1994 में बीए में प्रवेश लेने के बाद वह एबीवीपी में काफी सक्रिय रहे। वह नरेंद्र देव छात्रावास में रहते थे और हम स्वर्ण जयंती छात्रावास में। कभी मेस तो कभी कमरे में ही दाल-चावल बना लेते थे। अशोक वाटिका के पास एक कैंटीन होती थी, वहां का छोला-चावल उन्हें बहुत पसंद था। दोस्तों संग अक्सर पहुंच जाते थे। छात्रों की पढ़ाई, फीस से लेकर हर समस्या को उन्होंने प्रमुखता से उठाया। उनकी सक्रियता की वजह से उत्तराखंड के पूर्व सि‍ंचाई मंत्री भगत सिंह कोश्यारी ने उन्हें अपना सलाहकार नियुक्त किया था। बाद में जब भगत सिंह मुख्यमंत्री बने तो धामीजी को ओएसडी बना दिया था।

लविवि में लगाते थे शाखा :

लविवि के पूर्व छात्र संघ अध्यक्ष और महामंत्री रहे दयाशंकर सिंह बताते हैं कि पुष्कर सिंह अपने स्वभाव से सबके प्रिय रहे। एनडी हास्टल के कमरा नंबर 119 में रहते थे। अक्सर मेस में खाना खत्म हो जाने पर हम सब खुद ही दाल-चावल और चोखा बना लेते थे। इसको लेकर रोज झगड़ा भी होता था। विवेकानंद हास्पिटल के पास पप्पू का ढाबा भी बहुत मशहूर था। कई बार पैसा न होने पर वह खाना खिला देते थे। शाम को हास्टल में बैठकर राजनीति पर चर्चा जरूर होती थी। उन्होंने कभी चुनाव नहीं लड़ा, लेकिन हम सबको चुनाव लड़ाने में पूरी ताकत लगा देते थे। विश्वविद्यालय में ही संघ की शाखा लगाते थे।

कार्यालय पर होती थी बाटी चोखा की पार्टी

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दयाशंकर सिंह बताते हैं कि कैसरबाग में एबीवीपी के कार्यालय पर रविवार या छुट्टी के दिन कई बार बाटी-चोखा की पार्टी होती थी और सब मिलजुलकर व्यवस्था करते थे।

आइटी चौराहे पर लल्ला की चाय :


चश्मा और माथे पर सफेद पट्टी बांधे घुटनों के बल बैठे पुष्कर सिंह धामी

विश्वविद्यालय के पूर्व छात्र अनुभव बताते हैं कि धामी ने 1994 से 1997 तक स्नातक, फिर एमबीए एचआर की पढ़ाई पूरी की। उसके बाद 1997 में एलएलबी में प्रवेश लिया। उसी समय हम साथ में थे। सबसे ज्यादा समस्या खाने की थी। बीरबल साहनी हास्टल में रहने वाले चंद्रमौलि हम लोगों के खाने का ख्याल रखते थे। चाय पीने के लिए आइटी चौराहे पर लल्ला के यहां ही जाते थे। अक्सर होता था कि चाय और स्कूटर के पेट्रोल के लिए पैसे नहीं होते थे तो आपस में जुगाड़ करके काम चलता था।

पढाई और राजनीति साथ-साथ :

पूर्व छात्र संजय कुमार दुबे के मुताबिक पुष्कर लविवि के आचार्य नरेंद्र देव हास्टल के कमरा नंबर 119 में रहते थे। वहीं से पढ़ाई और छात्र राजनीति साथ-साथ करते थे। एबीवीपी को बढ़ाने और छात्र हित के लिए लगे रहते थे। पूर्व छात्र अनिल सिंह वीरू बताते हैं कि पुष्कर सिंह धामी ने जब 1994 में बीए प्रथम वर्ष में प्रवेश लिया। उस समय नागेंद्र मोहन एबीवीपी का प्रभार देखते थे। उस समय सपा और एबीवीपी ही छात्र संघ की सक्रिय राजनीति में थी।

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