सज़ा: राहुल झेल सकते हैं चुनाव अयोग्यता सजा,2024 ही नहीं 2029 से भी जायेंगें

 

Rahul Gandhi May Loose Membership Of Lok Sabha Even Be Ineligible For Contesting 2024 Election What Says Expert
तो 2024 का चुनाव भी नहीं लड़ पाएंगे राहुल गांधी… किस हालत में बचेगी संसद सदस्यता, एक्सपर्ट से जानिए

राहुल गांधी की संसद सदस्यता पर खतरा तो है ही, 2024 के लोकसभा चुनाव में उनके लड़ने पर भी संदेह के बादल मंडरा रहे हैं
आपराधिक मानहानि मामले में राहुल गांधी को 2 साल की सजा होने के बाद सवाल उठ रहा है कि क्या उनकी संसद सदस्यता भी जाएगी। इतना ही नहीं, वह 2024 और 2029 के लोकसभा चुनाव में भी लड़ने के लिए अयोग्य हो सकते हैं। हालांकि, एक्सपर्ट के मुताबिक, राहुल गांधी की सदस्यता बच सकती है बशर्ते उनकी दोष सिद्धि पर स्टे लग जाए।

हाइलाइट्स
1-सूरत की अदालत ने आपराधिक मानहानि मामले में राहुल गांधी को सुनाई 2 साल की सजा
2-सुप्रीम कोर्ट के 2013 और 2018 के ऐतिहासिक फैसलों से बुरे फंस सकते हैं राहुल गांधी
3-राहुल गांधी की न सिर्फ संसद सदस्यता जा सकती है बल्कि 2024 का चुनाव भी नहीं लड़ पाएंगे

नई दिल्ली 23 मार्च: कांग्रेस नेता राहुल गांधी को सूरत की अदालत ने आपराधिक मानहानि का दोषी ठहराते हुए 2 साल कैद की सजा सुनाई है। हालांकि, कोर्ट ने उन्हें जमानत देते हुए सजा को 30 दिनों के लिए सस्पेंड कर दिया है ताकि वह इसके खिलाफ हाई कोर्ट में अपील कर सकें। राहुल गांधी को ये सजा ‘मोदी’ सरनेम को लेकर की गई उनकी टिप्पणी पर 2019 में दायर आपराधिक मानहानि केस में सुनाई गई है। चूंकि, जनप्रतिनिधित्व कानून के मुताबिक 2 साल या उससे ज्यादा सजा पर सांसद या विधायक की तत्काल सदस्यता चली जाती है तो सबसे बड़ा सवाल ये है कि क्या वायनाड से सांसद राहुल गांधी की सांसदी भी जाएगी? एक्सपर्ट के मुताबिक, एक सूरत में उनकी सदस्यता बच सकती है। किस स्थिति में बचेगी राहुल गांधी की लोकसभा सदस्यता, कानूनी विशेषज्ञों का क्या कहना है, आइए जानते हैं।

कानूनी विशेषज्ञों का कहना है कि अगर अपीलीय अदालत उनकी दोष सिद्धि और दो साल की सजा को निलंबित कर देती है तो वह लोकसभा की सदस्यता के लिए अयोग्य नहीं होंगे। सीनियर ऐडवोकेट और संवैधानिक कानून के विशेषज्ञ राकेश द्विवेदी ने लिली थॉमस और लोक प्रहरी मामलों में सुप्रीम कोर्ट के 2013 और 2018 के फैसलों का हवाला दिया। उन्होंने कहा कि सांसदों/विधायकों के लिए जनप्रतिनिधित्व कानून में अयोग्यता से बचने के वास्ते सजा का निलंबन और दोषी करार दिए जाने के फैसले पर स्थगनादेश यानी स्टे जरूरी है।

द्विवेदी ने कहा, ‘अपीलीय अदालत दोष सिद्धि और सजा को निलंबित कर सकती है और उन्हें जमानत दे सकती है। ऐसी स्थिति में उन्हें अयोग्य घोषित नहीं किया जाएगा।’ उन्होंने हालांकि यह भी कहा, ‘लेकिन राजनेताओं को कानूनी पचड़े में फंसने से बचने के लिए अपने शब्दों का सावधानी से चयन करना चाहिए।’ द्विवेदी ने कहा कि सांसद के रूप में राहुल गांधी को अयोग्य घोषित किए जाने की संभावनाओं पर चर्चा में उच्चतम न्यायालय के फैसलों में कही गई बातों के कानूनी अर्थ और जनप्रतिनिधित्व कानून के संबंधित प्रावधानों को ध्यान में रखा जाए।

इस बीच, सूत्रों ने बताया कि लोकसभा सचिवालय अदालत के आदेश का अध्ययन करने के बाद राहुल गांधी को अयोग्य करार देने के बारे में फैसला करेगा और अधिसूचना जारी करके संसद के निचले सदन में रिक्ति की जानकारी देगा।

निर्वाचन आयोग के एक पूर्व वरिष्ठ अधिकारी व चुनावी कानून विशेषज्ञ का मानना है कि राहुल गांधी को अपनी दोष सिद्धि पर भी स्थगनादेश (स्टे ऑर्डर) की जरूरत होगी। विशेषज्ञ अपनी पहचान सार्वजनिक करने के इच्छुक नहीं हैं। उन्होंने कहा कि सजा का निलंबन दोष सिद्धि के निलंबन से अलग है।

विशेषज्ञ ने कहा, ‘लिली थॉमस फैसले के अनुसार, ऐसी दोष सिद्धि जिसमें दो साल या ज्यादा की सजा सुनाई जाती है, उसमें जनप्रतिनिधि स्वत: अयोग्य हो जाएगा। बाद में लोक प्रहरी मामले में उच्चतम न्यायालय ने कहा कि अगर अपील करने पर दोष सिद्धि निलंबित हो जाती है, तो अयोग्यता भी स्वत: निलंबित हो जाएगी।’ उन्होंने कहा कि कांग्रेस नेता को ऊपरी अदालत से दोष सिद्धि पर भी स्टे ऑर्डर लेना होगा।

लोकसभा के पूर्व महासचिव व संविधान विशेषज्ञ पी. डी. टी. आचारी ने कहा कि सजा का ऐलान होने के साथ ही अयोग्यता प्रभावी हो जाती है। उन्होंने कहा कि राहुल गांधी अपील करने के लिए स्वतंत्र हैं और अगर अपीलीय अदालत दोष सिद्धि और सजा पर रोक लगा देती है, तो अयोग्यता भी निलंबित हो जाएगी।

लोकप्रतिनिधित्व कानून के मुताबिक, 2 साल या उससे ज्यादा सजा पर न सिर्फ सदस्यता जाएगी बल्कि सजा पूरी होने या सजा काटने के बाद 6 साल तक संबंधित व्यक्ति चुनाव भी नहीं लड़ सकेगा। वह सजा काटने के बाद भी 6 साल तक अयोग्य रहेगा।

आचारी ने कहा, ‘(अगर वह अयोग्य घोषित कर दिए गए तो) अयोग्यता 8 साल की अवधि के लिए होगी।’ उन्होंने कहा कि अयोग्य घोषित किया गया व्यक्ति न तो चुनाव लड़ सकता है और न ही उस समयावधि में मतदान कर सकता है। आचारी ने कहा कि अयोग्यता अकेले दोष सिद्धि से नहीं, बल्कि सजा के कारण भी होती है। उन्होंने कहा, ‘इसलिए, अगर निचली अदालत द्वारा ही सजा को निलंबित कर दिया जाता है, तो इसका अर्थ है कि उनकी सदस्यता पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा। अयोग्यता प्रभावी नहीं होगी।’

लोक प्रहरी मामले में उच्चतम न्यायालय के तीन न्यायाधीशों की पीठ ने 2018 में कहा था कि अपीलीय अदालत द्वारा अगर सांसद की दोष सिद्धि निलंबित कर दी जाती है, तो अयोग्यता ‘अपुष्ट’ मानी जाएगी। इस पीठ में भारत के वर्तमान प्रधान न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ भी थे।

2018 के फैसले के मुताबिक, ‘यह समर्थन योग्य नहीं है कि दोष सिद्धि के कारण हुई अयोग्यता अपीलीय अदालत द्वारा दोष सिद्धि पर रोक लगाए जाने के बाद भी जारी रहेगी। दोष सिद्धि पर रोक लगाने की अपीलीय अदालत को प्राप्त शक्ति सुनिश्चित करती है कि अपुष्ट या हल्के (जो गंभीर नहीं हैं) आधार पर हुई दोष सिद्धि कोई गंभीर दुराग्रह पैदा ना करे। लिली थॉमस फैसले में जिस प्रकार से स्पष्ट किया गया है, दोष सिद्धि पर स्थगन व्यक्ति को जनप्रतिनिधित्व कानून के प्रावधान 8 के उप-प्रावधान 1, 2 और 3 के प्रावधानों में अयोग्यता के परिणाम भुगतने से राहत देता है।’

2013 के लिली थॉमस मामले में उच्चतम न्यायालय ने अपने फैसले में जनप्रतिनिधित्व कानून के प्रावधान 8(4) को खारिज कर दिया था, जो दोषी सांसद/विधायक को इस आधार पर पद पर बने रहने का अधिकार देता था कि अपील तीन महीने के भीतर दाखिल कर दी गई है।

कांग्रेस की अगुआई वाली संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यूपीए) सरकार ने 2013 में जनप्रतिनिधित्व कानून के एक प्रावधान को दरकिनार करने के लिए उच्चतम न्यायालय के इस फैसले को पलटने का प्रयास किया था। लेकिन उस दौरान राहुल गांधी ने ही संवाददाता सम्मेलन में इस अध्यादेश का विरोध किया था और विरोध स्वरूप इसकी प्रति फाड़ दी थी।

जनप्रतिनिधित्व कानून के प्रावधान के मुताबिक, दो साल या उससे ज्यादा की सजा पाने वाला व्यक्ति ‘दोष सिद्धि की तिथि’ से अयोग्य हो जाता है और सजा पूरी होने के छह साल बाद तक अयोग्य रहता है। जनप्रतिनिधित्व कानून के प्रावधान 8 में उन अपराधों का जिक्र है, जिनमें दोष सिद्धि पर सांसद/विधायक अयोग्य हो जाएंगे।

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