रामसेतु में शुरू हुई मोरारी बापू की रामकथा
रामसेतु की आध्यात्मिक नींव व्यासपीठ रख रही है,ऐतिहासिक नींव राजपीठ कर दें,ऐसी धनुषकोडी में ठाकुरजी से प्रार्थना ।*
2 जनवरी 2021:-रामायण कालीन धार्मिक एवं पौराणिक महत्त्व रखता हुआ स्थल धनुषकोड़ी,राम-सेतु रामेश्वरम् में आज से लोक-विश्रुत मोरारीबापू की रामकथा का शुभारंभ हुआ। कोरोना संबंधित प्रशासन के नियमों का पूर्ण रूप से अनुपालन करते हुए सीमित संख्या में निमंत्रित श्रोताओं के साथ ईशु की नई साल की यह पहली रामकथा है।
‘मानस रामसेतु’ विषय के साथ आज की कथा के प्रारंभ में बापू ने ‘मानस’ के लंकाकांड के मंगलाचरण अंतर्गत दूसरे श्लोक का विवरण करते हुए कहा कि इसमें दो-दो वस्तु का मिलान करके तुलसीदास जी ने सेतुबंध का संदेश दिया है। बापू ने इस श्लोक के प्रत्येक चरण में अध्यात्म और इतिहास का सेतु का सुचारु रूप से दर्शन कराया। शंकर को सर्व वरदाता कहते हुए बापू ने कहा कि याचना करनी हो तो महादेव से करो। वह देते देते दिगंबर हो जाता था, वास्तव में, वह दिगंबर नहीं था।
भौगोलिक सेतु की बात करते हुए बापू ने कहा कि नासा ने सिद्ध कर दिया है कि यहां पर सेतु था और आंशिक है भी। विश्वकर्मा के औरस पुत्र नल में भी विश्वकर्मा के जैसी ही सर्जन कुशलता उतरी थी। कुछ ही दिनों में उसने सौ योजन का सेतु बना दिया था। इसी संदर्भ में बापू ने भावात्मक शैली से अपना स्पष्ट मनोरथ जाहिर किया कि मेरी व्यासपीठ चाहती है, यहां से श्रीलंका तक फाॅर-वे रामसेतु बन जाएं। बापू ने कहा कि वैसे तो मैंने रामेश्वर की कथा में संकल्प से सेतु की नींव डाल ही दी है। रामसेतु की अध्यात्मिक नींव व्यासपीठ रख रही है, ऐतिहासिक नींव राजपीठ कर दें, ऐसी धनुषकोडी में ठाकुरजी से प्रार्थना है। आज के हिंदुस्तान में यह अवसर है। बापू ने आगे कहा कि आज की टेक्नोलॉजी और संसाधनों के उपयोग से बीस-इक्कीस किलोमीटर के सेतु में ज्यादा समय भी तो नहीं लगेगा। परमात्मा के प्रताप की छाया में हम पुरुषार्थ करें तो पारिवारिक, पारमार्थिक, राष्ट्रीय कोई भी कार्य सफल हो ही जाता है। फिर, यहां से हमारे यशस्वी आदरणीय प्रधानमंत्री श्री भूमि-पूजन करें और वहां लंका से जो हो वो करें। और फिर, वहां जाकर मोरारीबापू कथा करें।
वाल्मीकीय रामायण का मत प्रकट करते हुए कहा कि श्रीराम ने यहां जटायु, शबरी और वाली को तिलांजलि दी थी क्योंकि सागर समग्र तीर्थों का संग्रह है। युद्ध और शस्त्र के संदर्भ में बापू ने अपनी राय देते हुए कहा कि मैं,शास्त्र और शस्त्र दोनों से डिस्टेंस रख कर बैठा हूं क्योंकि हर बात आज के संदर्भ में स्वीकार नहीं की जाती। राम युद्धवादी नहीं है। युद्धवादी कभी लोकाभिरामं, रणरंगधीरं और राजीवनेत्रं नहीं हो सकता।
ईशु के इस नई साल की बधाई देते हुए बापू ने कहा कि इस दिन को आप खूब मनाओ लेकिन हम अपनी भारतीय तिथियों को न भूलें। रामनवमी, शिवरात्रि, जन्माष्टमी और नवरात्रि भी मनाओ। क्रिसमस ट्री को जरूर आदर दें लेकिन तुलसी के पौधे को न भूला जाए।
बापू ने इस कथा के आयोजन, स्थल-चुनाव और कोरोना प्रोटोकॉल के चलते, प्रसाद के रूप में गांव के प्रत्येक घर जाकर कुछ राशि देने का मदनभैया के मनोरथ की भूरिशः सराहना की। अंत में, ‘मानस’ में वंदना प्रकरण की सुंदर आध्यात्मिक चर्चा में पंचदेव के सत्व-तत्त्व का स्वीकार ही पंच देवों की पूजा है, ऐसा कहा। और ‘मानस’ से साधन पंचक के नित्य पाठ की चर्चा के साथ आज की रामकथा को विराम दिया गया।