मत: कीड़ा जड़ी के लिए भी अरुणाचल में घुसपैठ चीन की विवशता
कीड़ा-जड़ी के लिए अरुणाचल में घुसपैठ करते हैं चीनी सैनिक:सेक्स पावर बढ़ाने वाली सोने से भी महंगी जड़ी, इसे चुराना चीन की मजबूरी
अरुणाचल प्रदेश में चीनी सैनिकों की हालिया घुसपैठों की वजह एक जड़ी है। इंडियन थिंक टैंक IPCSC ने हाल ही में जारी रिपोर्ट में यह दावा किया है। चीनी सैनिक कॉर्डिसेप्स चुराने की फिराक में भारतीय क्षेत्र में दाखिल हो जाते हैं। कॉर्डिसेप्स को हिंदी में कीड़ा जड़ी और आम भाषा में हिमालयन वियाग्रा भी कहते हैं।
आखिर क्यों चीन बार-बार भारतीय सीमा में कर रहा घुसपैठ की कोशिश, कहीं इसकी वजह कीड़ा जड़ी तो नहीं?
कीड़ा जड़ी मुख्य रूप से भारतीय हिमालय और दक्षिण-पश्चिम चीन में किंघई-तिब्बती पठार के काफी ऊंचाई पर पाया जाता है। वैश्विक स्तर पर 2022 में कीड़ा जड़ी की बाजार में कीमत 1,072.50 मिलियन अमेरिकी डॉलर आंकी गई है।
चीन ने कीड़ा जड़ी को इकट्ठा करने के लिए भारतीय क्षेत्र में घुसपैठ के कई प्रयास किए। कीड़ा जड़ी को कैटरपिलर फंगस या हिमालयी सोना भी कहा जाता है। पड़ोसी देश में यह एक महंगी हर्बल दवा है। इंडो-पैसिफिक सेंटर फॉर स्ट्रैटेजिक कम्युनिकेशंस (आईपीसीएससी) ने यह दावा किया है।
चीन कीड़ा जड़ी का सबसे बड़ा उत्पादक और निर्यातक
आईपीसीएससी ने आरोप लगाया है कि कीड़ा जड़ी की तलाश में चीनी सैनिकों ने अवैध रूप से अरुणाचल प्रदेश में प्रवेश किया। यह चीन में सोने से भी महंगा है। कीड़ा जड़ी मुख्य रूप से भारतीय हिमालय और दक्षिण-पश्चिम चीन में किंघई-तिब्बती पठार में काफी ऊंचाई पर पाया जाता है। वैश्विक स्तर पर 2022 में कीड़ा जड़ी की बाजार में कीमत 1,072.50 मिलियन अमेरिकी डॉलर आंकी गई है। चीन कीड़ा जड़ी का सबसे बड़ा उत्पादक और निर्यातक है।
किंघई में कम हुआ कीड़ा जड़ी की फसल का उत्पादन
इसके मुताबिक, पिछले दो वर्षों में चीन के सबसे बड़े उत्पादक क्षेत्र किंघई में कीड़ा जड़ी की फसल कम हुई है। पिछले दिनों में इस अत्यधिक बेशकीमती दवा की मांग तेजी से बढ़ी है। चीन का मध्यम वर्ग वैज्ञानिक प्रमाणों की कमी के बावजूद किडनी विकारों से लेकर नपुंसकता तक की समस्या सबकुछ ठीक करने के लिए इसकी मांग करता है।
एक साल में 5.2 प्रतिशत उत्पादन में गिरावट
विशेषज्ञों का कहना है कि उच्च मांग और सीमित संसाधनों के कारण इसकी अत्यधिक कटाई हुई है। आईपीसीएससी के मुताबिक, ब्यूरो के आंकड़ो से पता चला कि 2018 में 41 हजार 200 किलोग्राम तक उत्पादन हुआ। इससे एक साल पहले 43 हजार 500 किलोग्राम तक उत्पादन हुआ था। यानी 5.2 प्रतिशत तक की गिरावट हुई। प्रांतीय मीडिया ने साल 2010 और 2011 के लिए इसका उत्पादन 150,000 किलोग्राम रिपोर्ट किया था।
कीड़ा जड़ी की बिक्री से लाखों युआन का भुगतान प्राप्त कर रहीं कंपनियां
किंघई में चीनी कीड़ा जड़ी (कॉर्डिसेप्स) कंपनियां हाल के वर्षों में स्थानीय लोगों से इसके लिए लाखों युआन का भुगतान प्राप्त कर रही है, ताकि सभी पहाड़ों पर इसकी कटाई को बंद किया जा सके। सर्वेक्षणों से पता चलता है कि कीड़ा जड़ी की वार्षिक फसल में गिरावट आई है। विशेषज्ञों के मुताबिक, अत्यधिक कटाई को इसके लिए जिम्मेदार ठहराया जा सकता है।
कीड़ा जड़ी से तिब्बती पठार और हिमालय में 80 प्रतिशत तक घरेलू आय
आईपीसीएससी के मुताबिक, हिमालय के कुछ शहरों में लोग आजीविका के लिए कीड़ा जड़ी को इकट्ठा करने और बेचने का काम करते हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि तिब्बती पठार और हिमालय में अस्सी फीसदी तक घरेलू आय कीड़ा जड़ी को बेचने से आती है।
आखिर ये कीड़ा जड़ी क्या बला है, जिसके लिए चीनी सैनिक घुसपैठ तक करने को तैयार हैं…
कॉर्डियोसेप्स फंगस या कीड़ा जड़ी क्या होता है?
कीड़ा जड़ी मिलता कहां पर है?
कीड़ा जड़ी मुख्य रूप से भारतीय हिमालय और दक्षिण-पश्चिम चीन में किंघई-तिब्बती पठार में काफी ऊंचाई पर पाया जाता है। नेशनल लाइब्रेरी ऑफ मेडिसिन के मुताबिक यह सिक्किम में 4500 मीटर से अधिक ऊंचाई पर भी पाया जाता है। इतनी ऊंचाई पर ट्रीलाइन खत्म हो जाती है यानी जहां के बाद पेड़ उगने बंद हो जाते हैं।
मई से जुलाई में जब बर्फ पिघलती है तो इसके उगने या पनपने का चक्र शुरू जाता है। यह भारत, नेपाल और भूटान के अन्य भागों में भी पाया जाता है। न्यूज मैगजीन द वीक के मुताबिक, इसे नेपाल और तिब्बत में यारशागुंबा कहते हैं। यह एक पोएटिक नाम है, जिसका अर्थ उत्तराखंड में गर्मियों की घास, सर्दियों का कीड़ा और कीड़ा जड़ी है।
कीड़ा जड़ी की कीमत कितनी है?
चीन, भारत, भूटान और नेपाल के कई इलाकों में कीड़ा जड़ी की काफी ज्यादा डिमांड है। द वीक के मुताबिक, इंटरनेशनल मार्केट में 1 किलोग्राम कीड़ा जड़ी की कीमत 65 लाख रुपए तक है। यानी यह सोने से भी महंगा है। 2009 तक इसकी कीमत 10 लाख रुपए के करीब थी। 2022 में कीड़ा जड़ी की मार्केट वैल्यू करीब 1,072.50 मिलियन डॉलर, यानी 107 करोड़ रुपए आंकी गई है।
कीड़ा जड़ी का इस्तेमाल क्या है?
चीन और भारतीय हिमालय वाले इलाकों में पारंपरिक चिकित्सक किडनी और नपुंसकता जैसी बीमारियों में इसका इस्तेमाल करते हैं। द वीक के मुताबिक, कीड़ा जड़ी के फायदे के बारे में सबसे पहले 15वीं शताब्दी के तिब्बती औषधीय ग्रंथ ‘एन ओशन ऑफ एफ्रोडिसियाकल क्वालिटीज’ में किया गया है।
सिक्किम में पारंपरिक चिकित्सक और स्थानीय लोग 21 अलग-अलग बीमारियों में कीड़ा जड़ी का उपयोग करने के लिए कहते हैं। हेल्थ वेबसाइट वेरी वेल हेल्थ कीड़ा जड़ी को सप्लीमेंट के रूप में लेने के कई फायदे बताए हैं। नीचे की स्लाइड में इसे देख सकते हैं…
हालांकि, हेल्थ एक्सपर्ट इसके फायदे के बारे में बहुत कुछ नहीं कहते हैं। लेकिन वैज्ञानिकों को कॉर्डिसेप्स में पाए जाने वाले बायोएक्टिव मॉलिक्यूल कॉर्डिसेपिन से बहुत उम्मीद है। वैज्ञानिक कहते हैं कि इसमें बड़ी चिकित्सीय क्षमता है और यह एक दिन एक प्रभावी नए एंटीवायरल और एंटी-कैंसर उपचार में बदल सकता है।
चीन में प्राकृतिक स्टेरॉयड की तरह एथलीट इसका इस्तेमाल करते हैं
हेल्थ वेबसाइट हेल्थलाइन के मुताबिक, चीन में पारंपरिक चिकित्सा में सदियों से थकान, बीमारी, किडनी इंफेक्शन और सेक्स पावर को बढ़ाने के लिए कीट और फंगस के अवशेषों के प्रयोग की सिफारिश की गई है।
चीन में कीड़ा जड़ी का इस्तेमाल प्राकृतिक स्टेरॉयड की तरह किया जाता है। फौरी तौर पर शरीर की एनर्जी बढ़ाने की क्षमता की वजह से चीन में ये जड़ी खिलाड़ियों खासकर एथलीटों को दी जाती है। ये करामाती जड़ी 2009 में स्टुअटगार्ड वर्ल्ड चैंपियनशिप के दौरान भी सुर्खियों में आई थी। चैंपियनशिप में 1500 मीटर, 3000 मीटर और 10 हजार मीटर वर्ग में चीन की महिला एथलीटों के रिकॉर्ड तोड़ प्रदर्शन किया था।
इसके बाद उनकी ट्रेनर मा जुनरेन ने मीडिया में बयान दिया था कि उन्हें यारशागुंबा यानी कीड़ा जड़ी को नियमित रूप से खिलाया गया था। इसी वजह से महिला एथलीटों ने रिकॉर्ड तोड़ प्रदर्शन किया। हेल्थलाइन के मुताबिक, इस फंगस में प्रोटीन, पेपटाइड्स, अमीनो एसिड, विटामिन B-1, B-2 और B-12 जैसे पोषक तत्व बहुतायत में पाए जाते हैं। ये फौरन ताकत देते हैं और खिलाड़ियों का जो डोपिंग टेस्ट किया जाता है उसमें ये पकड़ा नहीं जाता।
कीड़ा जड़ी के लिए चीन को घुसपैठ क्यों करनी पड़ी?
चीन कीड़ा जड़ी का सबसे बड़ा उत्पादक और निर्यातक है। इंडो पैसिफिक सेंटर फॉर स्ट्रैटेजिक कम्युनिकेशन्स के मुताबिक, पिछले दो सालों में चीन के सबसे बड़े उत्पादक क्षेत्र किंघाई में फंगस की कमी से कीड़ा जड़ी की फसल में काफी कमी देखी गई है। हालांकि, इसी दौरान बेशकीमती कॉर्डिसेप्स की मांग पिछले एक दशक में तेजी से बढ़ी है।
एक्सपर्ट का कहना है कि ज्यादा डिमांड और लिमिटेड रिसोर्स की वजह से कीड़ा जड़ी की अधिक कटाई हुई है। इसकी वजह से चीन में 2018 से ही इसके उत्पादन में कमी देखने को मिली। इस दौरान 41,200 किलोग्राम कीड़ा जड़ी का उत्पादन हुआ जो 2017 के मुकाबले 5.2% कम है। 2017 में कीड़ा जड़ी का 43,500 किलोग्राम उत्पादन हुआ था। IPCSC के मुताबिक, 2010 और 2011 में चीन की प्रोविंशियल मीडिया इसका उत्पादन 1.5 लाख किलोग्राम बताया गया था।
किंघाई में चीनी कॉर्डिसेप्स कंपनियां हाल के सालों में स्थानीय लोगों को लाखों युआन का भुगतान कर रही हैं, ताकि कीड़ा जड़ी की कटाई के लिए पूरे पहाड़ों को बंद कर दिया जा सके। सर्वे से पता चलता है कि कीड़ा जड़ी की सालाना होने वाली फसल में गिरावट आई है। ज्यादा कटाई को इसके लिए जिम्मेदार माना जा रहा है।
IPCSC के मुताबिक हिमालय रीजन के कुछ क्षेत्रों में लोगों की जीविका का साधन ही कीड़ा जड़ी है। ये लोग पहले इसे इकट्ठा करते हैं और फिर बेचते हैं। हिमालय और तिब्बती पठार में घरेलू आय का 80% सोर्स कीड़ा जड़ी है।
जंगल में कीड़ा जड़ी काफी दुर्लभ हैं। वहीं अब तक लेबोरेट्री में हेल्दी कीड़ा जड़ी उगाना सफल नहीं रहा है, इससे रिसर्च में काफी बाधा आ रही है। हालांकि, चुंगबुक नेशनल यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर मी क्योंग ली और डॉ. अयमन तुर्क समेत उनकी टीम ने ऐसी जगह पर इसे उगाया है, जहां पर वातावरण को कंट्रोल नहीं किया गया। इससे कीड़ा जड़ी की रिसर्च को लेकर एक उम्मीद जगी है। इस रिसर्च के निष्कर्ष को फ्रंटलाइन इन माइक्रोबायोलॉजी में प्रकाशित किया गया था।