मत-विमत:अमेरिकी अर्थ व्यवस्था में मंदी भारत का नया संकट? फर्क ना भी पड़े तो हैरानी नहीं
टॉप ट्रेडिंग पाटर्नर और पक्का दोस्त… अमेरिकी अर्थ व्यवस्था में हिचकोले क्यों भारत के लिए नहीं है अच्छी खबर?
अमेरिका की अर्थव्यवस्था मुश्किल में है। मंदी ने वहां दस्तक दे दी है। पिछली दो तिमाहियों में ग्रोथ लगातार घटी है।
नई दिल्ली06अगस्त: अमेरिकी अर्थव्यवस्था (American Economy) हिचकोले मार रही है। लगातार दो तिमाहियों में उसकी ग्रोथ घटी है। तकनीकी तौर पर दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था में मंदी (Recession) दस्तक दे चुकी है। इसका दुनियाभर की अर्थव्यवस्थाओं पर असर पड़ सकता है। भारत भी इससे अछूता नहीं रहेगा। कारण है कि वह दुनिया से करीब से जुड़ा है। दिक्कत एक और है। अमेरिका और चीन (America-China Tension) के बीच कड़वाहट दोबारा बढ़ी है। इस बार केंद्र में ताइवान है। कुछ साल पहले अमेरिका और चीन के बीच छिड़ी ट्रेड वॉर (Trade War) ने दुनियाभर के बाजारों को हिलाकर रख दिया था। बीते कुछ सालों में चीन की आक्रामकता अमेरिका को भी अखर रही है। अमेरिकी संसद की अध्यक्ष नैंसी पेलोसी ने बुधवार को ताइवान का दौरा किया था। इसके बाद से दोनों देशों में नए सिरे से तनातनी बढ़ी है। बहरहाल, अमेरिकी अर्थव्यवस्था का दिक्कतों में फंसना भारत के लिए अच्छी खबर नहीं है। आइए, इस बात को समझने की कोशिश करते हैं।
भारतीय वस्तुओं का सबसे बड़ा इम्पोर्टर है अमेरिका
भारतीय वस्तुओं के लिए अमेरिका सबसे बड़ा मार्केट है। वह टॉप ट्रेडिंग पार्टनरों में से एक है। अमेरिका एकमात्र पार्टनर है जो भारत को निर्यात से ज्यादा आयात करता है। यही कारण है कि अमेरिका की मंदी भारत पर असर डालेगी। डिमांड घटने से ऐसा होगा। अगर भारत में मांग घटती है तो हमें आयात के मुकाबले ज्यादा निर्यात करने वालों पर असर पड़ेगा।
2007-2008 में भारतीय निर्यात में अमेरिका की हिस्सेदारी 13 फीसदी थी। यह 2020-21 में बढ़कर 21 फीसदी हो गई थी। 2008 की ग्लोबल मंदी अमेरिका से शुरू हुई थी। इसका मवाद दूसरे देशों तक पहुंचा था। भारत का अमेरिका को एक्सपोर्ट तब 1 अरब डॉलर तक घट गया था। उस वक्त अमेरिका ने भारत के निर्यात का 11-13 फीसदी वहन कर लिया था। यह अब 18 फीसदी है। ऐसे में अमेरिकी मंदी इस बार भारतीय निर्यात को ज्यादा प्रभावित कर सकती है।
निवेशकों के सेंटिमेंट को समझिए
अमेरिका से जुड़े हर घटनाक्रम भारत के लिए अहमियत रखता है। इसे घरेलू शेयर बाजार के पैटर्न से समझ सकते हैं। तनातनी की खबरें आते ही गुरुवार को बंबई शेयर बाजार का सेंसेक्स एक समय 1,100 अंक से ज्यादा लुढ़क गया था। बाजार अनिश्चितता से चिढ़ता है। अमेरिकी मुद्रा के मुकाबले रुपया पहले ही हाफ रहा है। इसके चलते निवेशक भारत से पैसा निकाल सकते हैं। क्रूड की कीमतों पर भी दबाव बढ़ सकता है। व्यापार के अलावा प्रत्यक्ष विदेशी निवेश और विदेशी पोर्टफोलियो निवेश भी ग्लोबलाइजेशन के पैरामीटर हैं। 2008 में जब मंदी आई थी तब एफडीआई की रफ्तार घट गई थी। एफडीआई ने भारतीय बाजारों से पैसा निकालना शुरू कर दिया था। इसके चलते घरेलू बाजारों में गिरावट दर्ज की गई थी। मार्केट गिरने का उद्योगों से सीधा संबंध है। यह बाजार से पैसा उठाने की उनकी ताकत को घटा देता है।
पिछले पांच साल में एफडीआई (अरब डॉलर)
2017- 18 30
2018- 19 31
2019- 20 43
2020- 21 44
2021- 22 39
पिछले 5 साल में एफपीआई (अरब डॉलर)
2017- 18 22
2018- 19 -1
2019- 20 1
2020- 21 36
2021- 22 -17
अमेरिका की स्थिति कितनी है नाजुक?
अमेरिका कई देशों का सबसे बड़ा ट्रेडिंग पार्टनर हैं। इसके बावजूद उसका व्यापार के मुकाबले जीडीपी रेशियो 23.4 प्रतिशत है। इसका कारण उसके बड़े घरेलू बाजार का होना है। तेल सहित ज्यादातर अमेरिकी वस्तुएं देश के भीतर खप जाती हैं। यह और बात है कि पश्चिमी यूरोप को ग्लोबल मंदी से खतरा है।
ये हैं दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाएं (ट्रिलियन डॉलर)
देश जीडीपी
अमेरिका 25.35
चीन 19.91
जापान 4.91
जर्मनी 4.26
भारत 3.53
ब्रिटेन 3.38
फ्रांस 2.94
कनाडा 2.22
इटली 2.06
Us Economy In Trouble Why Should India Worry
गोदरेज इंडस्ट्रीज के MD नादिर गोदरेज का खास इंटरव्यू:अमेरिका में मंदी आई तो भी भारत पर ज्यादा असर नहीं, आने वाले दिनों में महंगाई कम होगी
अमेरिका में मंदी आई तो भी भारत पर ज्यादा असर नहीं, आने वाले दिनों में महंगाई कम होगी: नादिर गोदरेज
पूरी दुनिया महंगाई का सामना कर रही है, जिसके चलते मंदी की आशंका बनी हुई है। लेकिन गोदरेज इंडस्ट्रीज के प्रबंध निदेशक नादिर गोदरेज का कहना है कि ये चुनौतियां क्षणिक हैं। इनसे जल्द पार पा लिया जाएगा। पेश है उनसे बातचीत के अंश
अमेरिका में मंदी की आशंका जताई जा रही है। इसका भारत पर क्या असर होगा?
मुझे नहीं लगता है कि अमेरिका में लंबे समय तक की मंदी का कोई बड़ा खतरा है। मेटल और खाने की चीजों के दाम कम हो गए हैं। कच्चे तेल में भी गिरावट शुरू हो गई है। ऐसे में महंगाई घटेगी और मंदी की आशंका कमजोर होगी। वैसे अमेरिका में मंदी आती भी है तो भारतीय अर्थव्यवस्था और निर्यात पर ज्यादा असर नहीं होगा।
भारत में स्टैगफ्लेशन आने की कितनी आशंका है?
आगामी महीनों में देश में महंगाई तेजी से घटेगी। ऐसे में स्टैगफ्लेशन की आशंका कम है। चूंकि कमोडिटी के दाम अब नीचे आने लगे हैं, लिहाजा RBI को ब्याज दरें ज्यादा बढ़ाने की जरूरत भी नहीं रह जाएगी। फिर भी नीतिगत दरों में अब तक की तेज बढ़ोतरी और आगे हल्के इजाफा के कारण आर्थिक विकास में मामूली गिरावट आ सकती है।
रूस-यूक्रेन युद्ध का भारत पर क्या असर हुआ है?
कमोडिटी की ऊंची कीमतों से कुछ उद्योग बुरी तरह प्रभावित हुए हैं, लेकिन कुछ को फायदा भी हुआ है। केमिकल इंडस्ट्री को सबसे ज्यादा लाभ हुआ है। एस्टेक लाइफ साइंसेज और गोदरेज इंडस्ट्रीज के ओलियो केमिकल व स्पेशलिटी केमिकल बिजनेस, दोनों को फायदा हुआ है। एफएमसीजी बिजनेस थोड़ा प्रभावित हुआ है, लेकिन लागत में कटौती और बेहतर फोकस का मतलब निकट भविष्य में सुधार है। रियल एस्टेट पर ज्यादा असर नहीं हुआ है। फूड बिजनेस महंगाई से प्रभावित हुए हैं, लेकिन स्थिति में जल्द सुधार की संभावना है।
भारत को मैन्युफैक्चरिंग हब बनाने का आइडिया कितना व्यवहारिक है?
हमें मैन्युफैक्चरिंग और सर्विसेज, दोनों को प्रोत्साहित करने की जरूरत है। यदि हमें विकसित देश बनना है तो रिसर्च और क्वालिटी एजुकेशन पर फोकस करना होगा। मेरे मित्र नौशाद फोर्ब्स ने अपनी किताब ‘द स्ट्रगल एंड द प्रॉमिस’ में लिखा है कि तेज आर्थिक विकास के लिए न सिर्फ सरकारी स्तर पर, बल्कि उद्योग जगत के साथ-साथ विश्वविद्यालयों को भी आरएंडडी पर ध्यान केंद्रित करना होगा।
चालू वित्त वर्ष में अर्थव्यवस्था का प्रदर्शन कैसा रह सकता है?
महंगाई पर लगाम कसने के लिए ब्याज दरें बढ़ाई जा रही हैं। इससे ग्रोथ प्रभावित हो सकती है। लेकिन महंगाई की चुनौती कम हो रही है और इस बीच चीन में लॉकडाउन भारतीय इंडस्ट्री को नए मौके दे रहा है। आर्थिक प्रगति के मामले में पूरी दुनिया भारत की तरफ उम्मीद से देख रही है। हम इस उम्मीद पर खरे उतर सकते हैं। ऊर्जा के पारंपरिक स्रोतों की ऊंची कीमतों के चलते स्वदेशी ग्रीन एनर्जी, सोलर पावर और पवन ऊर्जा के विकास को रफ्तार मिलनी चाहिए।