पलायन चिंतित सरकार के पास नहीं हैं रिवर्स पलायन के आंकड़े

रिवर्स पलायन शुरू तो हुआ लेकिन सरकार के पास ना उनके लिए कोई योजना है,ना आंकड़े। यानि पलायन आयोग भी आई वाश से ज्यादा कुछ नहीं है।

Deserted houses become inhabited, six families of Bhitarkot in Almora return to light lamps at the doorstep
सूने घर हुए आबाद, देहरी पर दीये जलाने लौटे भिटारकोट के छह परिवार

भिटारकोट गांव में रिवर्स पलायन के कारण लौटे लोग।

अल्मोड़ा 31 अक्टूबर 2024 । पलायन की मार झेल रहे उत्तराखंड के पर्वतीय जिलों में हजारों घर सूने पड़े हैं कई मकान देखरेख के अभाव में जर्जर हाल हैं लेकिन कुछ जगह अब आशा की किरण भी जगने लगी है। इस दिवाली यहां ज्यादा रौनक रही।

रानीखेत तहसील की भिटारकोट गांव में बीते कुछ समय से सात परिवार ऐसे हैं जिनके मुखिया अलग-अलग विभागों में कार्यरत थे लेकिन अपनी सेवाएं पूरी होने के बाद अपने जर्जर हो चुके घरों में लौट आए हैं। भिटारकोट की बीच की बाखली में इस साल दिवाली की रौनक पिछले वर्षो की अपेक्षा अधिक दिखाई दी।

भिटारकोट करीब 20-25 साल पहले फलता फूलता सुख , समृद्ध और हंसत, खेलता गांव था लेकिन कम होते संसाधन, रोजगार की कमी और बच्चों के भविष्य की चिंता से यहां ऐसा पलायन हुआ कि कभी 300 परिवार वाला ये गांव आधे से अधिक खाली हो गया है। वे मकान जहां हर रोज खुशियां नाचती थीं, धीरे-धीरे खंडहर में तब्दील हो गए।

भिटारकोट में बीच की बाखली में 20 साल पहले 60-70 लोग रहा करते थे लेकिन अब यहां चार परिवार ही बचे हैं। ये चार परिवार भी ऐसे हैं जो कुछ समय पूर्व रिवर्स पलायन कर लौटे हैं। जल निगम नैनीताल में करीब 34 साल नौकरी करके लौटे कुंदन सिंह स्यूनरी का परिवार नैनीताल में रहता था। उनके पास विकल्प था कि वह वहीं बस सकते थे लेकिन सेवानिवृत्ति के बाद उन्होंने अपने गांव के खंडहर होते मकान को ही गुलजार करने का मन मनाया। कुंदन सिंह इसी साल मार्च में सेवानिवृत्त हुए और मई में घर लौट आए। कुंदन सिंह ने बताया कि पत्नी के अलावा उनके 93 वर्ष के पिता भी उनके साथ रहते हैं।

बच्चे नौकरी के लिए बाहर चले गए हैं। उनका कहना है कि पलायन कर चले तो गए थे लेकिन अब गांव में ही बस गए हैं। वन विभाग से सेवानिवृत्त दीवान सिंह नेगी भी अपनी पुरानी बाखली में लौट आए हैं जहां उनका बचपन बीता था। इस तरह कुल सात परिवार लौटे हैं। इससे उम्मीद जगी है कि रिवर्स पलायन की यह रौनक भूतिया होते हुए गांव को फिर रोशन करेगी। भिटारकोट में उनके आने से उल्लास है। उन्हें उम्मीद है कि कुछ और लोग भी यहां लौट आएंगे।
ग्रामीण पुष्कर सिंह नेगी, भगवत सिंह, राजेंद्र सिंह आदि लोग सरकार से मांग कर रहे हैं कि गांव में जन सुविधाएं बढ़ाएं ताकि फिर से ये खंडहर होते गांव आबाद हो सकें।

कई और गांवों में लौट रही रौनक, प्रशासन के पास आंकड़ा नहीं

ऐसा नहीं है कि रिवर्स पलायन केवल भिटारकोट में ही दिख रहा है। सूत्रों की मानें तो जागेश्वर, दन्यां और सोमेश्वर क्षेत्र में भी कई गांवों में रिवर्स पलायन हुआ है लेकिन प्रशासन के पास इनका कोई आंकड़ा नहीं है।

जिला विकास अधिकारी संतोष पंत बताते हैं कि रिवर्स पलायन का अभी कोई आधिकारिक आंकड़ा प्रशासन के पास उपलब्ध नही है। जल्द ही इसका अधिकृत आंकड़ा भी संकलित कराया जाएगा।

पौड़ी गढ़वाल में रिटायर्ड इंजीनियर ने पत्नी संग बंजर भूमि में उगाया ‘सोना’, रिवर्स पलायन का बने उदाहरण 
शहर की दौड़ लगाने वाले युवाओं को पौड़ी के खंडूड़ी दंपति से सीख लेनी चाहिए, जिन्होंने पैतृक गांव आकर बंजर भूमि को उपजाऊ बनाया है.
Naresh Khanduri Vegetables Farming
खंडूड़ी दंपति का कमाल

श्रीनगर: जहां एक ओर पहाड़ से लोग अपनी जल, जंगल और जमीन को छोड़कर रोजगार की तलाश में शहरों की तरफ भाग रहे हैं, वहीं दूसरी ओर कुछ ऐसे लोग भी हैं, जो वापस आकर अपनी भूमि को आबाद कर रहे हैं. इनमें एक दंपति भी शामिल है, जो गांव लौटा और करीब 80 नाली बंजर पड़ी भूमि को उपजाऊ बना दिया है

खंडूड़ी दंपति ने 80 नाली बंजर जमीन को बनाया उपजाऊ : दरअसल, पौड़ी जिले के क्युराली गांव के रिटायर्ड इंजीनियर नरेश खंडूड़ी और उनकी अध्यापिका पत्नी पद्मा खंडूड़ी अपने पैतृक गांव लौटे हैं. नरेश खंडूड़ी हाल ही में हेमवती नंदन बहुगुणा केंद्रीय गढ़वाल विश्वविद्यालय श्रीनगर से सहायक अभियंता के पद से सेवानिवृत्त हुए हैं. जबकि, उनकी पत्नी पदमा खंडूड़ी पेशे से शिक्षिका हैं. जिन्होंने गांव पहुंचकर करीब 80 नाली बंजर पड़ी पहाड़ की भूमि को उपजाऊ बना दिया है.

पौड़ी में खंडूड़ी दंपति बने मिसाल

कई प्रकार के फलदार और बहूमूल्य पेड़ लगाए, सब्जियों का कर रहे उत्पादन:यह जमीन पूरी तरह से बिखरी हुई जोत और पहाड़ी पर थी. उन्होंने मेहनत से खोदकर खेती लायक और उपजाऊ बनाया है. उन्होंने यहां आम, लीची, कटहल, आड़ू, केला, चीकू, आंवला, लौंग, नींबू, सेब, नाशपाती, कागजी नींबू, पपीता, सफेद चंदन, लाल चंदन लगाए हैं. इसके अलावा मौसमी सब्जियों की भी खेती कर रहे हैं. उनके खून पसीने ने बंजर भूमि को हरा भरा कर दिया है.

अपने खेतों में काम करते नरेश खंडूड़ी और पद्मा

सहायक अभियंता के पद से रिटायर्ड होने के बाद किया रिवर्स पलायन:नरेश खंडूड़ी ने बताया कि गढ़वाल विश्वविद्यालय से असिस्टेंट इंजीनियर के पद से रिटायर होने के बाद उन्हें लगा कि अब समाज के लिए भी कुछ करना चाहिए और अपना योगदान देना चाहिए. उनके पिता देवेश्वर प्रसाद खंडूड़ी और माता शकुंतला देवी के साथ ही उनकी पत्नी ने उन्हें समाज के लिए कुछ करने को लेकर प्रोत्साहित किया.
फल तोड़तीं पदमा खंडूड़ी
उनका मन था कि कुछ ऐसा काम करना चाहिए, जिससे गांव के कुछ लोगों को रोजगार दिया जा सके. उन्होंने बताया कि उनका सपना था कि नौकरी से रिटायर होने के बाद रिवर्स पलायन करेंगे और गांव में खेती बाड़ी करेंगे. आज उन्होंने बंजर भूमि को अपने खून पसीने से सींचकर आबाद कर दिया है. साथ ही कहा कि किसी भी काम को मेहनत से करो तो उसका फल मिल ही जाता है.

नरेश खंडूड़ी के खेत में लगे पपीता

नहीं भाया शहर, अब गांव में कर रहे खेती किसानी: पद्मा खंडूड़ी ने बताया कि उनके गांव में कुछ जमीन बंजर पड़ी हुई थी. कोरोना काल में उन्होंने उस जमीन को आबाद करने का सोची. क्योंकि, गांव में ही शुद्ध हवा और पानी मिल सकते हैं. वे पेशे से एक शिक्षिका हैं, इसलिए छुट्टी के दिनों में ही वे खेती को समय दे पाती हैं, लेकिन उनके पति रिटायर हो चुके हैं. ऐसे में वे ही ज्यादातर काम देखते हैं. उन्होंने कहा कि वे ग्रामीण परिवेश से आती हैं और शहरों का वातावरण उन्हें नहीं भाता है. इसलिए उन्होंने गांव में रहकर खेती-किसानी करने का निश्चय किया.
नरेश खंडूड़ी

बंजर जमीन पर लगा दिए कई प्रकार के पेड़:नरेश खंडूड़ी बताते हैं कि उन्होंने यहां 250 से ज्यादा विभिन्न प्रकार के पेड़ लगाए हैं. अब उन्हें खेती और किसानी करने में आनंद आने लगा है. वे सुबह 9 बजे अपने घर से निकलते हैं और अपने बगीचे में 4 से 5 घंटे तक काम करते हैं. साथ ही उन्होंने एक रेस्ट हाउस का भी निर्माण किया है, जहां वे रहते हैं. उनका रेस्ट हाउस गोबर, पत्थर और मिट्टी से बना है.
खंडूड़ी दंपति के बगीचे में लगे फल

उन्होंने बताया कि पहाड़ों में अक्सर पानी की समस्या होती है, इसलिए उन्होंने बरसात के समय, जब किसी को पानी की आवश्यकता नहीं होती, तब पानी को इकट्ठा करने का इंतजाम किया है. उन्होंने पेड़ों और पौधों को पानी देने के लिए 10 पांच सौ लीटर और हजार लीटर के दो टैंक रखे हैं. साथ ही 10 हजार लीटर का एक टैंक भी बनाया है, जिससे बगीचे में पानी की आपूर्ति होती है. वे गांव के दो अन्य लोगों को भी रोजगार दे रहे हैं.

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