फटी जींस : अपनी सभ्यता-संस्कृति को बढ़ावा देना कैसे ग़लत हो गया: डॉ. रश्मि
मुख्यमंत्री तीरथ के फटी जींस वाले बयान को राजनीतिक कारणों से विवादित कर दिए जाने के बाद सामने आई पत्नी डॉक्टर श्रीमती रश्मि त्यागी रावत, जाने क्या बात कहकर किया बचाव
मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत की पत्नी डॉक्टर रश्मि त्यागी रावत ने मुख्यमंत्री के विवादित बयान पर उनका बचाव किया है।
उन्होंने कहा कि उत्तराखंड की संस्कृति संस्कार व नैतिक मूल्यों को बच्चों के सम्मुख रखते हुए कुछ उदाहरण देकर मुख्यमंत्री अपने विचार व्यक्त किए इसमें विरोधाभास कहां है।
देहरादून 18 मार्च: मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत की पत्नी डॉक्टर रश्मि त्यागी रावत ने मुख्यमंत्री के विवादित बयान पर उनका बचाव किया। उन्होंने कहा कि उत्तराखंड की संस्कृति, संस्कार व नैतिक मूल्यों को बच्चों के सम्मुख रखते हुए कुछ उदाहरण देकर मुख्यमंत्री अपने विचार व्यक्त किए इसमें विरोधाभास कहां है। परिवार के मुखिया यदि अपने बच्चों को देश व राज्य की संस्कृति व भारतीयता होने के बारे में प्रेरित करते हैं तो इसमें बुराई क्या है।
मुख्यमंत्री की पत्नी व डीएवी कॉलेज की शिक्षक डॉक्टर रश्मि त्यागी रावत ने मुख्यमंत्री के कथन पर हो रहे विवाद पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि मीडिया में उनके विचारों को नकारात्मक रूप में लिया गया।जबकि उन्होंने युवाओं के आधुनिक फैशन के रूझान की व्याख्या की वह सकारात्मक प्रभाव में थी। मुख्यमंत्री खुद साधारण परिवार से रहे हैं। वह आज भी जमीनी हकीकत से वास्ता रखते हैं लेकिन संस्कृति व संस्कारों के मामले में उच्च सोच रखते हैं। डॉक्टर रश्मि ने कहा कि मुख्यमंत्री बनने के कुछ ही घण्टों में मुख्यमंत्री ने जनभावनाओं को ध्यान में रखकर ऐतिहासिक फैसले लिए। उत्तराखंड में अभी भी कई समस्याओं को मिटाना चाहते हैं।
इस प्रकार की छोटी बातों पर यदि उलझे रहंगे तो विकास प्रभावित हो सकता है। मुख्यमंत्री मातृशक्ति का शुरू से ही बेहद सम्मान करते हैं। उनके विचार आधुनिक फैशन ले प्रचलन पर थे । इसे उनके (मुख्यमंत्री) विरोधी विचार कैसे मान लिया गया है। संघ में लंबे समय से रहकर देश व प्रदेश की संस्कृति, सभ्यता व सुसंस्कार की बात करना गलत कैसे हो सकता है।
डॉक्टर रश्मि रावत ने कहा कि युवाओं को अपने नैतिक मूल्यों, अपनी भेषभूषा के बारे में बताना अभिभावकों का कर्तव्य बनता है। मुख्यमंत्री ने कार्यक्रम में इसी नाते अपने विचार रखे थे। उनके विचारों की आलोचना के बजाय उन पर समालोचनात्मक चर्चा होती तो बेहतर होता और उसके बेहतर परिणाम निकलते।