रॉबर्ट वाड्रा को संसद पहुंचने की इतनी हड़बड़ाहट? प्रियंका के भी पहले?
प्रियंका गांधी से पहले रॉबर्ट वाड्रा क्यों संसद पहुंचना चाहते हैं?
रॉबर्ट वाड्रा (Robert Vadra) ऐसे वक्त में संसद पहुंचने की हड़बड़ी दिखा रहे हैं, जब राहुल गांधी (Rahul Gandhi) कांग्रेस अध्यक्ष की कुर्सी पर बैठने को लेकर भी दुविधा में हैं, लेकिन प्रियंका गांधी (Prinka Gandhi Vadra) से पहले वाड्रा ऐसा क्यों चाहते हैं?
मृगांक शेखरमृगांक शेखर @mstalkieshindi
रॉबर्ट वाड्रा (Robert Vadra) इस बार थोड़ा ज्यादा सीरियस हैं, लेकिन थोड़े हड़बड़ी में भी लगते हैं. राजनीति में आने रॉबर्ट वाड्रा की ख्वाहिश तो नयी नहीं है, लेकिन अब तो सीधे वो संसद पहुंचने की बातें करने लगे हैं. प्रियंका गांधी वाड्रा (Prinka Gandhi Vadra) को राजनीति की औपचारिक पारी शुरू किये दो साल होने जा रहे हैं, लेकिन कांग्रेस कार्यकर्ताओं के साथ बातचीत के दौरान हुई एक चर्चा छोड़ दी जाये तो प्रियंका गांधी वाड्रा के मुंह से संसद जाने को लेकर शायद ही कभी कुछ सुनने को मिला हो. 2019 के आम चुनाव के दौरान जब कार्यकर्ताओं ने चुनाव लड़ने को कहा तो तपाक से प्रियंका गांधी ने पूछ डाला था – ‘बनारस से क्यों नहीं?’
वाराणसी से, दरअसल, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दोबारा चुनाव मैदान में थे – और काफी दिनों तक प्रियंका गांधी वाड्रा के आम चुनाव लड़ने की चर्चा रही. बाद में जब भी पूछा गया तो एक ही जवाब मिलता – कांग्रेस पार्टी ही फैसला लेगी. राहुल गांधी का भी यही जवाब होता था. लेकिन क्या कहा जाये, स्मृति ईरानी ने पूरे पांच साल जो जोर लगाये रखा, अमेठी के लोगों ने राहुल गांधी (Rahul Gandhi) को वायनाड और स्मृति ईरानी को राज्य सभा लोक सभा भेज दिया. वैसे वाड्रा की हड़बड़ी थोड़ी अजीब लगती है क्योंकि वो ऐसे वक्त संसद में जाने की बात कर रहे हैं, जब उनके साले राहुल गांधी कांग्रेस अध्यक्ष की कुर्सी संभालने को लेकर भारी दुविधा के दौर से गुजर रहे हैं. तभी तो कांग्रेस के स्थापना दिवस समारोह को छोड़ एक दिन पहले ही विदेश दौरे पर निकल गये.
न राजनीति रक्षा कवच है, न संसद!
प्रियंका गांधी वाड्रा को जब दलगत राजनीति में औपचारिक एंट्री मिली तब वो देश से बाहर थीं. बच्चों की पढ़ाई के सिलसिले में – और राहुल गांधी ने उनके बड़ी देर लगाने की वजह भी यही समझायी. राहुल गांधी ने बताया कि प्रियंका को लेकर कांग्रेस पार्टी में फैसला पहले ही हो चुका था, लेकिन बच्चों की पढ़ाई की फिक्र के चलते वो ऐसा नहीं कर सकीं. जब बच्चे कॉलेज पहुंच गये तो कांग्रेस ने प्रियंका गांधी वाड्रा को महासचिव बना दिया.
प्रियंका गांधी जब तक विदेश दौरे से लौटीं, रॉबर्ट वाड्रा को प्रवर्तन निदेशालय से पूछताछ के लिए पेश होने का नोटिस मिल चुका था. बच्चे तो बड़े हो चुके थे, लेकिन प्रियंका गांधी वाड्रा के सामने एक नयी चुनौती आ खड़ी हुई थी – एक तरफ परिवार और दूसरी तरफ राजनीति. प्रियंका गांधी ने एक भारतीय बहू की तरह पहले परिवार को चुना और फिर राजनीति को.
प्रियंका गांधी ने गाड़ी में बिठा कर रॉबर्ट वाड्रा को पहले ED के दफ्तर तक छोड़ा. वहां थोड़ी देर के लिए रुकी रहीं और पति के अंदर जाते ही प्रियंका ने गाड़ी घुमा दी – और सीधे कांग्रेस मुख्यालय 24, अकबर रोड का रुख किया. दफ्तर पहुंचते ही प्रियंका गांधी ने कामकाज संभाल लिया और मीडिया के सवालों का जवाब देते हुए कहा – मैं अपने परिवार के साथ हूं.
क्या प्रियंका गांधी की राजनीति में रॉबर्ट वाड्रा बड़ी कमजोरी हैं?
रॉबर्ट वाड्रा से जांच एजेंसियों के पूछताछ का सिलसिला आगे भी चलता रहा. कभी दिल्ली तो कभी जयपुर. नोटिस आते रहे और रॉबर्ट वाड्रा पेशी पर हाजिरी लगाते रहे. अभी अभी आयकर विभाग के अफसरों ने रॉबर्ट वाड्रा से 9 घंटे तक पूछताछ की तो वो बिफर पड़े.
रॉबर्ट वाड्रा ने बताया जितने कागज उनके पास नहीं हैं उससे ज्यादा IT और ED जांच अधिकारी अपने साथ ले जा चुके हैं – 23 हजार डॉक्युमेंट. रॉबर्ट वाड्रा का कहना है कि जांच अधिकारियों ने जो भी सवाल पूछे, मैंने उनका जवाब दिया. हालांकि, आयकर विभाग के अधिकारियों के हवाले से आई खबर में वो लोग असंतोष ही जता रहे हैं.
2019 के आम चुनाव के दौरान ही टाइम्स ऑफ इंडिया ने रॉबर्ट वाड्रा का इंटरव्यू प्रकाशित किया था. इंटरव्यू के दौरान रॉबर्ट वाड्रा से एक खास सवाल भी पूछा गया था – आपके अंदर ऐसी क्या बात है जिससे माना जाये कि आप एक अच्छे राजनेता बन सकते हैं?
रॉबर्ट वाड्रा ने बड़ी ही सहजता से स्वाभाविक जवाब ही दिया, ‘मेरी शादी भारत की राजनीति के पहले परिवार में हुई है.’
बिलकुल सही जवाब – अब इतनी साफगोई से,इससे ज्यादा अबोधता भरा जवाब आखिर क्या हो सकता है.मालूम नहीं कैसे आयकर अधिकारियों को संतोषजनक जवाब नहीं मिल पा रहा है.
तब रॉबर्ट वाड्रा ने एक और खासियत बतायी थी, ‘मैं सीखने के मामले में बहुत अच्छा हूं.”
भला अब क्या चाहिये? मुश्किल तो यही है कि लोग मान कर बैठ जाते हैं कि सब कुछ सीख डाला है.बचा ही क्या है सीखने को. सोचते हैं बोलने से ही भूकंप आ जाएगा. मानना पड़ेगा, रॉबर्ट वाड्रा शुरू से तो स्मार्ट थे ही, अब भी वो दमखम बरकरार है.
2016 में कांग्रेस ने प्रजातंत्र बचाओ मार्च का आयोजन किया था – और जिस एक बात ने सबका ध्यान खींचा वो था कार्यक्रम के पोस्टर में राहुल गांधी के साथ साथ रॉबर्ट वाड्रा की भी तस्वीर. 2019 में भी दिल्ली में ही, कांग्रेस मुख्यालय के पास कुछ पोस्टर लोगों का ध्यान खींच रहे थे राहुल गांधी के साथ प्रियंका गांधी और रॉबर्ट वाड्रा दोनों की ही तस्वीर लगी हुई थी – और तो और मुराबाद में तो आम चुनाव के दौरान रॉबर्ट वाड्रा से चुनाव मैदान में उतरने की अपील वाले पोस्टर भी देखे गये. अब ये पोस्टर कुछ उत्साही कांग्रेस समर्थक लगाते हैं या कांग्रेस पार्टी ही फीडबैक लेने के मकसद से लगवाती है – या फिर राजनीतिक विरोधियों की तरफ से कांग्रेस नेताओं को निशाना बनाया जाता है, कभी सामने नहीं आ पाता.
रॉबर्ट वाड्रा का सेंस ऑफ ह्यूमर भी अच्छा है. कम से कम एक टीवी चैनल से बातचीत में जो मिसाल रॉबर्ट वाड्रा ने पेश की, वो तो वाकई बेमिसाल है. रॉबर्ट वाड्रा का कहना रहा, ‘अगर मैं ताज महल भी घूमने गया तो वे सोचेंगे खरीदने ही पहुंचा होगा.’
शुक्र है, संसद को लेकर रॉबर्ट वाड्रा ने कुछ ऐसा वैसा नहीं कहा है.
अपने खिलाफ जारी जांच पड़ताल को लेकर रॉबर्ट वाड्रा कहते हैं, ‘साफ तौर पर अब मुझे लगता है कि मैंने बहुत लंबे समय तक बाहर से लड़ाई लड़ी है… मैंने खुद को समझाया है, लेकिन ये लगातार हो रहा है कि वे मुझे परेशान करते हैं – क्योंकि मैं राजनीति में नहीं हूं.’
अब ये क्या बात हुई? ये तो बहुत पहले ही समझ लेना चाहिये था कि सारी परेशानियों की जड़ तो राजनीति ही है. जिसे रॉबर्ट वाड्रा अपनी सबसे बड़ी योग्यता या खासियत बता रहे हैं, कांग्रेस नेतृत्व तो यही समझता है और बचाव में मोर्चे परे आने वाले कांग्रेस नेता भी यही दलील देते रहे हैं. खुद प्रियंका गांधी भी ऐसा ही महसूस करती हैं.
बाकी बातें अपनी जगह है, वैसे रॉबर्ट वाड्रा को ऐसा क्यों लगता है कि राजनीति में आकर वो सबको जवाब दे देंगे?
कहीं ऐसा तो नहीं कि मामला कहीं पे निगाहें, कहीं पे निशाने जैसा है? कहीं ऐसा तो नहीं कि वो राहुल गांधी से भी कहीं ज्यादा दूरगामी सोच रखते हैं? कहीं ऐसा तो नहीं कि बात संसद की कर रहे हैं और नजर कहीं और है?
ऐसी पूछताछ तो संसद पहुंच जाने के बाद भी होता रह सकता है. संसद में होने के नाते कुछ विशेषाधिकार होते हैं, लेकिन उसकी भी एक प्रक्रिया है. सबूत और दलीलों में दम हो तो वहां से भी बाकायदा अनुमति मिल ही जाती है.
और वैसे भी पी. चिदंबरम भी तो राज्य सभा सांसद ही थे जब सीबीआई वाले दीवार फांद कर उठा ले गये.24 घंटे की लुकाछिपी और एक प्रेस कांफ्रेंस में अपना पक्ष रखने के बाद भारत सरकार के गृह मंत्री रहे पी. चिदंबरम को सीबीआई के लॉक अप से लेकर तिहाड़ तक का सफर पूरा करना पड़ा और जब जमानत मंजूर हुई तो बाहर निकल पाये.
वैसे भी संसद पहुंच जाना कोई जांच एजेंसियों के खिलाफ वैक्सीन तो है नहीं?
महज सांसद कौन कहे – लालू प्रसाद यादव, बीएस येदियुरप्पा और जे. जयललिता – ये तीनों तो मुख्यमंत्री के पद पर रहते इस्तीफा देकर जेल गये.जेल ही क्या, लालू प्रसाद यादव की तो छह साल से ज्यादा की सजा होने के चलते संसद की सदस्या भी चली गयी.हां,ऐसे सांसदों को बचाने के लिए एक ऑर्डिनेंस जरूर लाया गया था,जिसे राहुल गांधी के साथ जोड़ कर याद किया जाता है.कांग्रेस के नेतृत्व वाली मनमोहन सिंह सरकार के कैबिनेट में मंजूर अध्यादेश की कॉपी को राहुल गांधी ने एक प्रेस कांफ्रेंस में फाड़ दिया था.
सारी चीजें अपनी जगह हैं और देश के संविधान से जैसे सबको बराबर हक हासिल है, ठीक वैसे ही सभी के लिए कानून भी बराबर है – और हां, न तो राजनीति रक्षा कवच है और न ही संसद ही ऐसी कोई व्यवस्था मुहैया कराती है – बेहतर होगा रॉबर्ट वाड्रा ऐसे किसी मुगालते में न रहें.
वाड्रा ने तो प्रियंका से ही होड़ लगा ली
एक लंबे अरसे तक प्रत्यक्ष दलगत राजनीति से प्रियंका गांधी के दूरी बनाये रखने के पीछे भी यही धारणा रही है. आम चुनाव के वक्त कुछ मीडिया रिपोर्ट में बताया गया कि प्रियंका गांधी ने काफी सोच समझ कर ही, कांग्रेस में पद लेने का फैसला किया. ये कांग्रेस नेतृत्व के बीच आम राय से हुआ फैसला था. एक रिपोर्ट के मुताबिक, 2014 में बीजेपी के केंद्र की सत्ता में आने के बाद से ही प्रियंका गांधी ही नहीं, बाकी लोगों को भी लगता रहा कि सरकार रॉबर्ट वाड्रा को जेल में डाल देगी – और ये सोच कर ही प्रियंका गांधी ने आगे बढ़ कर अपनी लड़ाई लड़ने का फैसला किया. अब से आगे जो भी हो देखी जाएगी, लेकिन अब डरने से नहीं चलेगा.
सोनिया गांधी को भी पूरी उम्मीद रही कि वो बीजेपी को सत्ता में दोबारा नहीं आने देंगी. रायबरेली में एक जगह बोला भी था – अटल बिहारी वाजपेयी भी अजेय माने जाते रहे, लेकिन 2004 में क्या हुआ? बिलकुल इसी लहजे में पूछा भी था.
आम चुनाव के ठीक बाद हुए दो विधानसभा चुनावों में प्रचार से प्रियंका गांधी वाड्रा दूर रहीं – एक, हरियाणा और दूसरा महाराष्ट्र. ये दोनों ही चुनाव साथ हुए थे. कांग्रेस के स्टार प्रचारकों की सूची में भी प्रियंका गांधी वाड्रा का नाम शामिल था. फिर बताया गया कि वो यूपी चुनाव पर फोकस कर रही हैं इसलिए ध्यान नहीं भटकाना चाहती हैं. हालांकि, बाद में देखा गया कि झारखंड और दिल्ली दोनों ही जगह प्रियंका गांधी ने चुनाव प्रचार किया. बिहार चुनाव के दौरान आरजेडी के साथ सीटों की डील में तो शामिल रहीं, लेकिन चुनाव प्रचार में नहीं गयीं.
कभी कभी ऐसा भी लगता है जैसे रॉबर्ट वाड्रा की ख्वाहिशें कांग्रेस में ही दबा दी जा रही हैं – क्या इसके पीछे प्रियंका गांधी वाड्रा की भी कोई भूमिका हो सकती है? फिर भी एक बात समझ में नहीं आती, आखिर रॉबर्ट वाड्रा को प्रियंका गांधी से भी पहले संसद पहुंचने की हड़बड़ी क्यों है?
लेखक
मृगांक शेखर @mstalkieshindi
जीने के लिए खुशी-और जीने देने के लिए पत्रकारिता बेमिसाल लगे,सो-अपना लिया-एक रोटी तो दूसरा रोजी बन गया.तभी से शब्दों को महसूस कर सकूं और सही मायने में तरतीबवार रख पाऊं-बस,इतनी सी कोशिश रहती है.