धर्मांतरण से विद्रोह कर बना भारत का रोबिनहुड सुल्ताना डाकू, खुद को मानता था प्रताप का वंशज
*आज़ादी के दीवाने को इतिहास में नहीं मिली जगह*
*भारत का रॉबिनहुड था सुल्ताना डाकू*
स्वतंत्रता दिवस पर हम प्रायः एक स्वातंत्र्य वीर को भूल जाते हैं। इसलिए कि इतिहास के पन्नों में उसे जगह नहीं मिली। वह नाम है सुल्ताना डाकू, जो अंग्रेजों की दहशत का पर्याय था। उस हीरो को विलेन ही माना गया। जबकि सच यह है कि सुल्ताना डाकू भी अपनी तरह से आज़ादी की लड़ाई लड़ रहा था। उसने अंग्रेज़ो के छक्के छुड़ा दिए थे।
उसके बारे में प्रचलित किंवदंतियों, मिथ के आधार पर नौटंकी और स्वांग का मंचन होता रहा। दरअसल, साधु के भेष में डाकू तो मिल जाएंगे, पर वह बिरला डाकू के भेष में साधु था। वह गरीबों का मसीहा था। सही मायने में उसने समाज में साम्यवाद लागू करके दिखाया। उसे जिम कार्बेट ने भारत का रॉबिनहुड कहा।
प्रसिद्ध शिकारी जिम कार्बेट ने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक ‘माय इंडिया’ के ‘सुल्ताना:रॉबिनहुड’ अध्याय में लिखा-एक डाकू के रूप में पूरे जीवन में सुल्ताना ने किसी गरीब आदमी से एक कौड़ी भी नहीं लूटी। सभी गरीबों के लिए उसके दिल में एक खास जगह थी। जब-जब उससे चंदा मांगा जाता, उसने कभी इनकार नहीं किया। दुकानदारों से उसने जो भी खरीदा, उसने उस सामान का दोगुना दाम चुकाया। सुल्ताना डाकू को जिम कॉर्बेट ने इसलिए रॉबिनहुड की संज्ञा दी कि वह भी रॉबिनहुड की तरह अमीरों व अंग्रेजों के खजाने को लूटकर गरीबों में बांट देता था। बताते चलें कि 14वीं सदी का नायक रॉबिनहुड ब्रिटेन काउंटी नॉटिंघमशायर में शेरवुड के जंगलों में रहता था। सुल्ताना डाकू की कहानी भी लगभग ऐसी ही है। सुल्ताना डाकू की लोकप्रियता का अंदाज़ा इस घटना से लगाया जा सकता है कि उसकी बहादुरी, दिलेरी और गरीबों की मदद से प्रभावित होकर एक युवा अंग्रेज़ महिला उससे प्यार करने लगी थी। बतौर हनी ट्रैप अंग्रेजों अफसरों ने इस महिला को सुल्ताना को पकड़वाने के लिए लगाया था।
अंग्रेजों की नाक में दम करने वाला सुल्ताना खुद को महाराणा प्रताप का वंशज मानता था। उसने अपने घोड़े का नाम चेतक रखा था। कुत्ते को राय बहादुर (अंग्रेज़ यह पदवी अपने पिट्ठुओं को देते थे) बुलाता था। उसका जन्म भांतू कबीले में हुआ था। यह घुमंतू, बंजारा समाज बिजनौर-मुरादाबाद इलाके में रहता था। माना जाता है कि महाराणा प्रताप और अकबर के हल्दीघाटी युद्ध के बाद भाँतु समाज देश के अलग-अलग हिस्सों में बिखर गए। अंग्रेजों ने भाँतु समाज को अपराधी जाति घोषित कर दिया था। वह गरीब परिवार से था। उसे नजीबाबाद स्थित साल्वेशन आर्मी कैम्प में भेज दिया गया। घुमन्तु परिवारों के बच्चों के सुधार के लिए इस कैम्प में रखा जाता था। 1898 में इंग्लैंड में इस तरह कैम्प लगाए जाते थे। अंग्रेज पादरियों ने सुल्ताना पर धर्म बदल कर ईसाई धर्म अपनाने का दबाव बनाया। उसने स्वीकार नहीं किया। यहीं से उसके मन में अंग्रेजों के प्रति घृणा पैदा हुई। वह भाग गया। अंग्रेजों की गुलामी से मुक्त होने के लिए नौजवानों का एक समूह इकट्ठा किया।
1920 के दौर में वह गरीबों का मसीहा बनकर उभरा। जिस अंग्रेज़ अफसर फ्रेडी यंग ने सुल्ताना डाकू को पकड़ने के लिए अपने जान की बाज़ी लगा दी थी, उसे जब उसकी कहानी पता चली तो उसे फांसी के फंदे से बचाने के लिए भरसक प्रयास किया।
सुल्ताना ने अंग्रेजों की नाक में दम कर दिया था। उसे पकड़ने के लिए 300 जवानों और 50 घुड़सवारों का दस्ता बनाया गया।जब उसे पकड़ पाने में कामयाबी नहीं मिली, तब इंग्लैंड से तेजतर्रार अफसर फ्रेडी यंग को बुलाया गया। गोरखपुर से देहरादून की तराई बेल्ट में लगातार तलाश होती रही। पूरे इलाके में लोग उसे पूजते थे। अमीरों और अंग्रेजों का खजाना लूटकर गरीबों में बांट देता था। महिलाओं का सम्मान करता था। अंत मे, अंग्रेजों ने प्रलोभन देकर उसके कुछ साथियो को तोड़ लिया और उसे कोटद्वार के जंगल से गिरफ्तार किया गया। नैनीताल में मुकदमा चला। फांसी की सजा सुनाई गई। 7 जुलाई 1924 में आगरा की जेल में उसे फांसी दी गई।
जिम कॉर्बेट ने अपनी पुस्तक में फेडी यंग को उधृत किया- इस छोटे से आदमी के लिए मेरे मन में बहुत सम्मान है। उसने तीन साल तक ब्रिटिश सरकार का डटकर मुकाबला किया। उसने जेल की कोठरी में पहरेदारों तक का दिल जीत लिया था। कॉर्बेट ने यह भी लिखा कि एसपी फ्रेडी यंग सुल्ताना से इतना प्रभावित हुआ कि उसके आग्रह पर बेटे को अपना नाम दिया। विलायत पढ़ने भेजा। विलायत से वापस आकर सुल्ताना के बेटे ने आईसीएस की परीक्षा पास की। इंस्पेक्टर जनरल के पद से रिटायर हुआ।
बिजनौर के धामपुर में स्थित उसका किला अब खंडहर बन गया है। हालांकि, पुरातत्त्व विभाग ने किले को संरक्षित करने के लिए अधिग्रहण कर लिया है। देहरादून के गुच्चू पानी का राबर्स केव भी उसकी पनाहगाह थी।
इतिहास तो नहीं,जनस्मृतियों ने लोकनायक के रूप में किया डाकू सुल्ताना का सम्मान,भारत ही नहीं, पाकिस्तान तक में बनी उन पर नाटक,संगीत नाटिकाएं और फिल्में
डकैत की कहानी 15:अंग्रेज सबको ईसाई बना रहे थे, सुल्ताना को पसंद नहीं आया; उसके भय से अंग्रेज रास्ता बदलने लगे
साल 1901 में उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद जिले के हरथला गांव में एक बच्चा पैदा हुआ। मां-बाप ने उसका नाम सुल्तान रखा। लड़का भांतु जाति से था। भांतु मतलब, वो जाति जिनका कोई ठिकाना नहीं होता, भोजन की तलाश में यहां-वहां भटकती जाति। देश में अंग्रेजों की हुकूमत थी। उन्नीसवीं सदी की शुरुआत में ही अंग्रेजों ने देश में धर्मांतरण तेज कर दिया था। अंग्रेजी सैनिक लोगों को पकड़ उन्हें ईसाई बना रहे थे।
सुल्तान के नाना ने उसे अंग्रेजी कैम्प में भेज दिया। सुल्ताना ने देखा, वहां अंग्रेज लोगों पर जुल्म ढा रहे हैं। लोगों को पीट-पीट कर उनसे धर्म बदलने को कह रहे हैं। सुल्तान को ये पसंद नहीं आया और वो मां बाप की मर्जी के खिलाफ कैम्प छोड़ कर भाग गया। 17 साल के सुल्तान के दिल में अंग्रेजों के खिलाफ नफरत हो गई और वो नजीबाबाद के जंगल की तरफ चला गया।
आज कहानी उसी लड़के सुल्तान की जो बाद में सुल्ताना डाकू बना। वही सुल्ताना डाकू जिसने अंग्रेजों की नाक में दम कर रखा था। अंग्रेजी मेम उस पर फिदा क्यों हो गई थीं? जानते हैं…
सफेद कपड़ों में टोपी पहने सुल्ताना डाकू है।
जंगल के रास्ते जाने में अंग्रेजों की रूह कांपने लगी
अंग्रेजों के कैंप से भाग कर सुल्तान नजीबाबाद के जंगलों की तरफ गया। कुछ दिन वहीं बिताए फिर धीरे-धीरे उसने अपना एक गैंग तैयार कर लिया। गैंग तैयार होने पर उसने अंग्रेजों को अपना निशाना बनाना शुरू कर दिया।
उन दिनों उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड एक हुआ करते थे। देहरादून में अंग्रेजी गवर्नर बैठता था और देहरादून पहुंचने का सिर्फ एक ही रास्ता था- नजीबाबाद के जंगल। अंग्रेजी सेना का कारवां अक्सर उस जंगल से होकर ही गुजरता था। जब भी अंग्रेजी सेना खजाने से भरी गाड़ियां लेकर वहां से निकलती सुलतान उन्हें लूट लेता। इसके अलावा सुलतान ने उन सभी जमींदारों और व्यापारियों को चुन-चुन कर लूटना शुरू कर दिया जो अंग्रेजों का साथ देते थे।
कुछ ही दिनों में सुल्ताना अंग्रेजों के लिए सिरदर्द बन चुका था। जंगल से निकलने में उनकी रूह कांपने लगी थी। लूट और मारपीट की दर्जनों घटनाओं के बाद जमींदार और अंग्रेज उसे सुल्ताना डाकू बुलाने लगे थे।
सुल्ताना इसी किले में अपना खजाना छिपाता था। नजीबाबाद का ये किला सुल्ताना का किला के नाम से जाना जाता है।
100 लोगों की गैंग खड़ी कर दी, सुल्ताना मुंह में चाकू छिपाए रखता था
लूट की कई वारदातों के बाद उसके पास अच्छी खासी रकम थी। धीरे-धीरे उसका गैंग बड़ा होता गया। उसके गैंग में 100 से ज्यादा डाकू हो गए। जानकार बताते हैं, “सुल्ताना के अंदर मुंह में चाकू छिपाने की कला थी। वो अपने मुंह में चाकू रखे रहता था और सबसे सहज बातचीत करता रहता था। वक्त आने पर वो मुंह से चाकू निकालकर गला रेत सकता था।”
अमीरों को लूटकर गरीबों में बांटता, खरीदी चीज की दोगुनी कीमत चुकाता
सुल्ताना अंग्रेजों, जमींदारों और व्यापारियों से लुटे हुए माल का बड़ा हिस्सा गरीबों में बांटने लगा था। ये गरीब नजीबाबाद जंगल के आस-पास बसे गांवों के लोग होते थे। इसके साथ ही सुल्ताना और उसकी गैंग के लोग जिस भी दुकानदार से अपनी जरूरत का सामान खरीदते उन्हें उसका डबल पैसा देते थे। सुल्ताना गरीबों को परेशान करने वालों को बहुत ज्यादा टॉर्चर भी करता था।
यही कारण था कि लोग उसके दीवाने होते चले गए। अंग्रेजों को लूट कर पैसा बांटने वाली बात देश के अलग-अलग हिस्सों तक पहुंच गई। लोग सुल्ताना की इज्जत करने लगे। इधर अंग्रेजी पुलिस सुल्ताना को ढूंढने में लगी थी। दिन-रात मेहनत पर भी उन्हें सुल्ताना का कोई सूत्र नहीं मिल रहा था। कोई भी व्यक्ति उसके खिलाफ बोलने को तैयार ही नहीं था। लोग सुल्ताना की ढाल बन चुके थे।
अब सुल्ताना अंग्रेजों की पूरी की पूरी ट्रेन तक लूटने लगा । देश के कोने-कोने में उसकी दिलेरी के चर्चे होने लगे। साल 1920 तक नजीबाबाद से लेकर कोटद्वार और बिजनौर से लेकर कुमाऊं तक सुल्ताना राज चलने लगा था।
लूट से पहले भेज देता था अल्टीमेटम
सुल्ताना जिसके भी घर में लूट की योजना बनाता,उसको पहले ही चिट्ठी भिजवा दिया करता था। उस चिट्ठी में लूट की तारीख और समय लिखा होता था। सुल्ताना तय तारीख और समय पर उसको लूटता ही लूटता था।
इससे जुड़ा एक वाकया काफी चर्चित है, एक बार सुल्ताना ने एक जमींदार उमराव सिंह को लूट करने की जानकारी देते हुए चिट्ठी भेजी। जमींदार खीझ गया। उसने अपने एक नौकर को वो चिट्ठी देकर पुलिस को शिकायत करने भेजा। जमींदार का नौकर जंगल के रास्ते पुलिस के पास जा रहा था तभी उसे पुलिस वेश में सुल्ताना की गैंग के कुछ लोग मिले। उस आदमी ने पुलिस जान कर वो चिट्ठी उन्हें ही दे दी।
सुल्ताना तय वक्त पर जाकर जमींदार का सारा पैसा लूटता है और उसे गोली मार देता है। गोली मार कर कहता है, “ऐसी गलती न करता तो जिंदा बच जाता।”
सुल्ताना को पकड़ने के लिए बनाई गई अंग्रेजी टीम के कुछ सदस्य।
सुल्ताना के प्यार में डूबी गोरी मेम
सुल्ताना के किस्से इतने मशहूर हो गए कि अंग्रेजों की महफिलों में भी उसकी चर्चाएं होने लगी थीं। एक अंग्रेजी अफसर की पत्नी पहली बार हिंदुस्तान आई थी। सुल्ताना के बारे में सुन उसे उससे प्यार हो गया। उसने सुल्ताना से मिलने की कई बार कोशिश की लेकिन सुल्ताना ने कोई इंटरेस्ट नहीं लिया। सुल्ताना पहले ही सुंदर नर्तकी गायिका पुतली बाई को दिल दे बैठा था। उसने पुतली से शादी कर ली और उसका एक बच्चा भी था। सुल्ताना की मौत बाद उसकी बीवी पुतली बाई बीहड़ की पहली और सबसे खूबसूरत महिला डाकू भी रही। अंग्रेजी मेम के प्यार वाला ये किस्सा ऑन रिकॉर्ड अंकित है।
अब अंग्रेज 10 गुना ज्यादा सुरक्षा से निकलने लगे थे
वक्त के साथ सुल्ताना ने अंग्रेजों को लूटना तेज कर दिया । इसी भय से अब अंग्रेज 10 गुना ज्यादा सुरक्षा के साथ उस जंगल से गुजरने लगे थे। बावजूद इसके सुल्ताना ने उन्हें लूटा और बेरहमी से पीटा भी।
शेर का शिकार करने वाले जिम कार्बेट को बुलाया गया
सुल्ताना का आतंक अत्यधिक बढ़ने पर, अंग्रेजी हुकूमत दबाव में आ गई। बडे अंग्रेजी अफसरों ने कुमाऊं मंडल के पुलिस कमिश्नर परसी विंधम पर सुल्ताना को पकड़ने का दबाव बनाया। उन्होंने तमाम कोशिशें की लेकिन सुल्ताना को पकड़ पाने में विफल रहे।
मशहूर शिकारी जिम कार्बेट की तस्वीर।
इसके बाद अंग्रेजी सरकार ने जंगल के ज्ञानी तेज तर्रार जिम कार्बेट बुलाया। वही जिम कार्बेट, जिनके नाम पर रामपुर, उत्तराखंड में नेशनल पार्क बना है। जिम कार्बेट ने भी तमाम प्रयास किए लेकिन सुल्ताना था कि हाथ ही नहीं आ रहा था। एक बार उल्टा सुल्ताना ने ही जिम कार्बेट को घेर लिया था। चाहता तो मार देता लेकिन उसने कार्बेट को जिंदा छोड़ दिया। दरअसल सुल्ताना हत्या में विश्वास नहीं रखता था। अब तक उसने केवल एक जमींदार की ही हत्या की थी। हालांकि, उसकी गैंग ने कई अंग्रेजों की हत्याएं कीं।
50 घुड़सवारों के साथ 300 जवानों की टीम हुई तैयार
जब जिम कार्बेट भी सुल्ताना को पकड़ पाने में असफल रहे तो अंग्रेजी हुकूमत ने अपने सबसे जांबाज अफसर फ्रेडी यंग को बुलाया। 300 जवानों की एक स्पेशल टीम तैयार की गई। एक डाकू मात्र को पकड़ने के लिए अंग्रेजों द्वारा बनाई गई ये पहली इतनी बड़ी टीम थे। टीम को नई तकनीक के हथियार सौंपे गए। 300 की इस टीम में 50 खास घुड़सवारों को भी रखा गया।
दरअसल, सुल्ताना डाकू भी अपनी गैंग के साथ घोड़े पर ही चलता था। उसने महाराणा प्रताप की ही तरह अपने घोड़े का नाम भी चेतक रखा था। सुल्ताना का चेतक भी बहुत तेज भागता था। छोटे कद और सांवले रंग का सुल्ताना खुद को महाराणा प्रताप का वंशज बताता था। ठाकुरों की इज्जत भी करता था। उसकी गैंग के पास भी नई तकनीक के हथियारों की कोई कमी नहीं थी क्योंकि उसने ये हथियार अंग्रेजी सैनिकों से ही लूटे थे।
फ्रेडी यंग और जिम कार्बेट एक फ्रेम में।
फ्रेडी यंग से भी सुल्ताना की मुठभेड़ हुई लेकिन फ्रेडी यंग ही सुल्ताना के घेरे में फंस गया। चाहता तो मार देता लेकिन जिम कार्बेट की ही तरह सुल्ताना ने उसे भी जिंदा छोड़ दिया। इसका फायदा सुल्ताना को बाद में मिला।
जमींदार के यहां डाका डाला, सुल्ताना के करीबी मुनीम अब्दुल ने भेद दिया अंग्रेजों को
उधर अंग्रेजी सेना सुल्ताना को घेरने की तैयारी कर रही थी इधर सुलताना ने जाने-माने जमींदार खड़कसिंह के यहां लूट कर दी। अंग्रेजों की मदद करने पर खड़कसिंह की जमकर सुताई भी की। इससे खड़क सिंह उसका कट्टर दुश्मन बन चुका था।
पहले की मुठभेड़ों में पुलिस ने सुल्ताना के कुछ डाकुओं को गिरफ्तार किया था। पुलिस ने उन डाकुओं को सजा माफ करने और इनाम का लालच दिया। कुछ मान गए तो उन्हें पुलिस ने छोड़ दिया। कुछ दिनों बाद सुल्ताना के करीबी मुनीम अब्दुल ने जमींदार खड़कसिंह को जानकारी दी कि सुल्ताना नजीबाबाद के कजली वन में है।
लोकेशन मिलते ही फ्रेडी यंग ने जिम कार्बेट और 300 जवानों के साथ सुल्ताना को घेर लिया। सुल्ताना तैयार नहीं था। 14 दिसंबर, 1923 को फ्रेडी यंग की टीम ने सुल्ताना को उसके 14 साथियों समेत गिरफ्तार कर लिया।
सुल्ताना को पकड़ने ने जिम कार्बेट ने अहम भूमिका निभाई थी।
सुल्ताना को उसके 14 साथियों के साथ फांसी पर लटका दिया गया
सुल्ताना को गिरफ्तार करने के बाद उसे नैनीताल जेल ले जाया गया। कुछ दिनों बाद उसे आगरा जेल शिफ्ट कर दिया गया। करीब 7 महीने मुकदमा चला फिर उसे फांसी की सजा सुना दी गई। 7 जुलाई 1924 को सुल्ताना और उसके 14 साथियों को फांसी पर लटका दिया गया। उसे शरण देने वाले 40 लोगों को कालापानी की सजा दी गई।
फ्रेडी यंग और जिम कार्बेट, दोनों ने सुल्ताना को दी जाने वाली फांसी का विरोध भी किया था। फ्रेडी ने जज से फांसी रोकने की अपील भी की थी। अंग्रेजी हुकूमत मानी नहीं। बड़े अफसरों ने उस पर झूठी हत्याओं के मुक़दमे लगा उसे फांसी पर लटकवा दिया। फ्रेडी यंग और जिम कार्बेट सुल्ताना के व्यक्तित्व से परिचित हो चुके थे और सुल्ताना ने एक-एक बार दोनों को जीवन दान भी दिया था इसलिए वे उसे बचाने की कोशिश कर रहे थे।
“मेरा बेटा मुझसे घृणा न करे”, फ्रेडी यंग ने अपना नाम दिया; बेटा आईपीएस बना
सुल्ताना की फांसी से एक दिन पहले, 6 जुलाई 1924 को फ्रेडी यंग उससे मिलने जेल भी गए थे। तब सुल्ताना ने उनसे कहा, मैं नहीं चाहता कि मेरा 7 साल का बेटा मेरी तरह डाकू बने या फिर बड़ा होने पर कोई उसको बाप के नाम से गाली दे। मेरे बेटे की नजर में मेरे लिए घृणा न हो।” फ्रेडी यंग ने सुल्ताना से वादा किया, “मैं ऐसा कभी नहीं होने दूंगा।”
सुल्ताना को पकड़ने के लिए फ्रेडी को प्रमोशन मिला। उन्हें भोपाल पोस्टिंग दे दी गई। फ्रेडी ने सुल्ताना की अंतिम इच्छा का सम्मान करते हुए उसका बेटा और बीवी भोपाल में अपनी निगरानी में रखे। बेटे को अपना नाम दिया, उसे पढ़ाया। बाद में आगे की पढ़ाई को उसे इंग्लैंड भेज दिया। जानकार बताते हैं, पढ़ाई पूरी कर वो बेटा भारत वापस आया और आईसीएस का एग्जाम पास करने के बाद आईपीएस ऑफिसर बना। अंत में इंस्पेक्टर जनरल पद से रिटायर हुआ।
दो किताबें लिखी गईं, एक जिम कार्बेट ने लिखी
जिम कार्बेट ने अपनी किताब ‘माय इंडिया’ के एक चैप्टर ‘सुल्ताना: इंडियाज रॉबिन हुड’ में लिखा है, “सुल्ताना को मौत की सजा नहीं मिलनी चाहिए थी। कोर्ट उसे उम्र कैद तक की सजा दे सकता था। वो इंडिया का रॉबिनहुड था। उसने अपनी जिंदगी में एक भी गरीब नहीं लूटा। वो हमेशा गरीबों का सहारा बना। मेरे मन में उस छोटे से आदमी के लिए बहुत सम्मान है।”
जिम कार्बेट की किताब का कवर।
साल 2009 में लेखक सुजीत सराफ ने भी सुल्ताना पर एक किताब लिखी। पेंग्विन इंडिया से छपी किताब ‘कन्फेशन ऑफ सुल्ताना डाकू’ की शुरुआत में सुल्ताना की फांसी से ठीक पिछली रात का जिक्र किया है।
हॉलीवुड और पाकिस्तान में भी सुल्ताना पर बनी फिल्म, लोकगीत लिखे गए
सुल्ताना के जीवन पर हॉलीवुड, बॉलीवुड से लेकर पाकिस्तान के लॉलीवुड तक में फिल्में बन चुकी हैं। साल 1972 में डायरेक्टर मुहम्मद हुसैन ने ‘सुल्ताना डाकू’ नाम की एक सुपरहिट फिल्म बनाई थी। इस फिल्म में अभिनेता दारा सिंह ने सुल्ताना का किरदार निभाया था।
सुल्ताना डाकू पर बनी बॉलीवुड फिल्म का पोस्टर।
हॉलीवुड में सुल्ताना के जीवन पर जो फिल्म बनी उसका नाम ‘द लॉन्ग ड्यूएल’ था। इस फिल्म में सुल्ताना का किरदार युल ब्रेनर ने निभाया था। साल 1975 में पाकिस्तान में भी सुल्ताना पर पंजाबी भाषा में फिल्म बनाई गई। फिल्म में सुल्ताना का किरदार अभिनेता सुधीर ने निभाया था। इनके अलावा भी सुल्ताना पर कई फिल्में बन चुकी हैं।
हॉलीवुड में सुल्ताना के जीवन पर बनी फिल्म का पोस्टर।
उत्तराखंड और यूपी में उसके जीवन का चित्रण करते हुए कई लोकगीत और नाटक-नौटंकी भी लिखे गए जो आज भी प्रचलित हैं।