भारत की पहली महिला शिक्षिका सावित्री बाई फुले? वाकई ?
सावित्री बाई फुले: भारत की प्रथम शिक्षिका: क्या वास्तव में? क्या यह समृद्ध इतिहास से छल नहीं है? अन्याय नहीं है?
सावित्री बाई फुले को लेकर यह दावा किया जाता है कि वह भारत की प्रथम शिक्षिका थीं और उन्होंने बालिकाओं के लिए विद्यालय खोला। क्या यह सत्य है? भारत जैसे देश में जहाँ पर विदुषियों का एक समृद्ध इतिहास रहा है, क्या वहां पर यह कल्पना भी की जा सकती है कि वर्ष 1848 में प्रथम विद्यालय खुला होगा? यह एक ऐसी बात है जिस पर विश्वास करना असम्भव है क्योंकि तथ्यों के आलोक में यह प्रथम दृष्टया ही झूठ दिखता है।
यह कहा जा सकता है कि वह समाज सेविका थीं और उन्होंने अंग्रेजी शिक्षा वाला पहला विद्यालय खोला होगा, जिससे लड़कियां अंग्रेजी शिक्षा प्राप्त कर सकें, परन्तु लड़कियों के लिए प्रथम विद्यालय? यह कुछ गड़बड़ ही लगता है!
हमने हिन्दूपोस्ट में कई बार वैदिक कालीन विदुषियों से लेकर भक्तिकालीन विदुषियों तक एक लम्बी श्रृंखला लिखी है, जिससे पाठकों को यह बोध हो कि हमारी समृद्ध धरोहर वास्तव में कितनी अनमोल है और कितना समृद्ध विमर्श भरा है उनमें! फिर अचानक से ही यह कहाँ से कहा जाने लगा कि सावित्री बाई फुले भारत की प्रथम शिक्षिका हैं? क्या यह हिन्दुओं को और हिन्दू स्त्रियों को उनकी चेतना से ही काट देना नहीं है? और क्या यह उन तमाम पुरुषों को अत्याचारी और तानाशाह एवं क्रूर ठहराने का कुत्सित प्रयास नहीं हैं, जिन्होनें अपनी स्त्रियों के लिए मुगलों से युद्ध लड़कर वीरगति प्राप्त की? क्या यह उन तमाम पुरुषों को दुराचारी प्रमाणित करने का कुप्रयास नहीं है जो खेल गए थे अपने प्राणों पर अपने मंदिरों और धर्म की रक्षा के लिए?
यह कैसा विमर्श है जो अपने ही समाज के पुरुषों के विरुद्ध गढ़ा गया? और वह भी झूठ! वैसे तो वैदिक काल से लेकर लक्ष्मीबाई तक इस पूरे झूठ की पोल खोल देती हैं फिर भी कुछ और तथ्यों पर गौर करते हैं। जब यह कहा जाता है कि बालिकाओं के लिए प्रथम विद्यालय 1848 में सावित्री बाई फुले ने खोला तो धर्मपाल कैसे ऐसी स्त्री का उल्लेख अपनी पुस्तक ब्यूटीफुल ट्री में कर सकते हैं जो पथरी का ऑपरेशन कर रही थीं?
जब कौटिल्य के अर्थशास्त्र में परिचारिका अर्थात नर्स का उल्लेख है तो ऐसा कहा जा सकता है कि लड़कियों के लिए स्कूल 1848 में खोला गया? क्या तब लड़कियां शिक्षित नहीं थीं? जब सरकार की ओर से भी यही कहा जा रहा है कि वह प्रथम शिक्षिका थीं और विमर्श में भी यही आ रहा है तो कहीं न कहीं तथ्यों को प्रस्तुत करना अनिवार्य हो जाता है।
धर्मपाल जी ने अपनी पुस्तक द ब्यूटीफुल ट्री में ऐसी एक महिला का उल्लेख किया है जो सर्जरी किया करती थीं और यह बात Dr Buchanan के अनुभव से कही गयी है। उसमें लिखा है कि
“Dr Buchanan heard of about 450 of them, but they seemed to be chiefly confined to the Hindoo divisions of the district, and they are held in very low estimation।There is also a class of persons who profess to treat sores, but they are totally illiterate and destitute of science, nor do they perform any operation।They deal chiefly in oils।The only practitioner in surgery was an old woman, who had become reputed for extracting the stone from the bladder, which she performed after the manner of the ancients”
अर्थात Dr Buchanan ने एक ऐसी बूढ़ी महिला को गॉल ब्लेडर की पथरी की सर्जरी करते हुए देखा जो प्राचीन चिकित्सा से सर्जरी कर रही थी और पथरियों को निकाल रही थीं!
अर्थात यह सत्य है कि स्त्रियाँ सर्जरी करती थीं और धर्मपाल जी की पुस्तक द ब्यूटीफुल ट्री में यह बताया गया है कि लड़कियों को शिक्षा प्रदान की जाती थी और लड़कियों को घर पर पढ़ाने के लिए शिक्षक आते थे। और कई लड़कियां स्कूलों में भी पढ़ती थीं। फिर ऐसा क्यों भ्रमजाल रचा जा रहा है कि जैसे सब कुछ 1848 के बाद ही आरम्भ हुआ? जबकि तथ्य इसे पूरी तरह से झुठलाते हैं।
होती विद्यालंकार, बंगाल की एक विधवा स्त्री थीं और वह संस्कृत काव्य, क़ानून, गणित एवं आयुर्वेद में विद्वान थीं। उन्होंने वाराणसी में महिलाओं के लिए एक विद्यालय की स्थापना की थी और उन्हें काशी के पंडितों द्वारा विद्यालंकार की उपाधि दी गयी थी और उनकी मृत्यु वर्ष 1810 में हो गयी थी, जब सावित्री बाई फुले का जन्म भी शायद नहीं हुआ था।
गुजरात में हरकुंवर बाई सेठानी ने कन्या शाला की स्थापना की थी। उन्होंने यह वर्ष 1847 में बनवाना आरम्भ किया था और यह वर्ष 1850 में पूर्ण हुआ था। ऐसी एक नहीं कई स्त्रियाँ हैं जिन्होनें शिक्षा के क्षेत्र में, चिकित्सा के क्षेत्र में एवं सैन्य वीरता के क्षेत्र में अपना एक नाम एवं उपलब्धि धारण की थी, जिनकी तमाम उपलब्धियां मात्र एक कथन से नेपथ्य में चली जाती हैं कि सावित्री बाई फुले प्रथम शिक्षिका थीं।
एक और बात बहुत गौर करने योग्य है और वह उनका अंग्रेजी भाषा से प्रेम एवं अंग्रेजी भाषा को उद्धारक समझना! उन्होंने अंग्रेजी भाषा का महिमामंडन करते हुए लिखा है कि अंग्रेजी शूद्रों का उद्धार करने वाली भाषा है।
परन्तु क्या कोई भी भाषा कभी भी सेक्युलर हो सकती है? क्या कोई भी भाषा अपने परिवेश की संस्कृति से रहित हो सकती है? देखते हैं मिशनरी डफ का क्या कहना था और अंग्रेजी शिक्षा का उद्देश्य दरअसल क्या था?
और अंग्रेजी शिक्षा के विषय में सीएफ एंड्रयूज़ अपनी पुस्तक THE RENAISSANCE IN INDIA ITS MISSIONARY ASPECT में लिखते हैं कि डफ ने ईसाई धर्म को फ़ैलाने के लिए अंग्रेजी भाषा को जरूरी बताया था। इस पुस्तक के पृष्ठ संख्या ३३ पर लिखा है कि डफ का सिद्धांत था कि ईसाइयत केवल कुछ सिद्धांत ही नहीं है बल्कि हाडमांस में लिपटी हुई जीवंत स्प्रिट है। और भारत में ईसाई सिविलाइजेशन एवं ईसाई मत का विस्तार करना है। अंग्रेजी शिक्षा जो उस सिविलाइजेशन को बताती है वह केवल सेक्युलर चीज नहीं है बल्कि वह ईसाई रिलिजन में रची पगी है। अंग्रेजी भाषा, साहित्य, अंग्रेजी साहित्य एवं अर्थशास्त्र, अंग्रेजी दर्शन ईसाइयत की आवश्यक अवधारणा को समेटे हुए है क्योंकि वह जिस परिवेश में गढ़े गए हैं, वह ईसाई है।
इसके बाद वह लिखते हैं कि यह प्रमाणित हुआ कि जब हिन्दुओं को सेक्युलर विषय पढ़ाया जाता है तो उनके लिए ईसाई सिद्धांत लिए हुए होता है। पश्चिमी विज्ञान भी एक प्रकार का ईसाइयत का प्रचार ही है।
यह बात जब खुद सीएफ एंड्रूज़ अपनी पुस्तक में स्वीकार करते हैं कि अंग्रेजी भाषा दरअसल ईसाइयत में ही रची पगी है तो वह उद्धारक किसके लिए हो सकती है यह समझा जा सकता है?
ऐसे तमाम तथ्य हैं जो न केवल दावे पर प्रश्न उठाते हैं कि वह प्रथम स्त्री शिक्षिका थीं और उनका उद्देश्य सुधार था! हाँ, यह कहा जा सकता है कि वह सेवा करना चाहती होंगी एवं उनमें काव्य प्रतिभा थी परन्तु जब मिशनरी का एजेंडा स्पष्ट था कि अंग्रेजी शिक्षा उन्हें ईसाई शिक्षा के प्रचार के लिए चाहिए तो फिर उस भाषा को उद्धारक बताकर वह कहीं उनका ही एजेंडा ही अनजाने में आगे तो नहीं बढ़ा रही थीं? यह भी प्रश्न कई तथ्यों के आलोक में उठते हैं एवं यह भी कहा जा सकता है कि हो सकता है कि उन्हें यह एजेंडा नहीं पता हो, परन्तु अब जब सब कुछ स्पष्ट है तो क्या इस पर बात भी नहीं होनी चाहिए?
भारत मे राजा राम मोहन राय के समय तक महिला गुरुकुल विद्यमान थे। ये आंकड़े खुद अंग्रेजों के लिखे हुए आज भी सुरक्षित रखे हैं।