सुप्रीम कोर्ट ने फिर बताया कब लागू होंगें एससी-एसटी एक्ट के कठोर प्रावधान?
Supreme Court Verdict Said Insult Without Mention Of Caste Not An Offence In Sc St Act
जाति का जिक्र किए बिना अपमान एससी-एसटी ऐक्ट की परिधि में नहीं, सुप्रीम कोर्ट ने बताया कब किस अपराध में लागू होगा कानून
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि किसी व्यक्ति का अपमान या धमकी बिना जाति, जनजाति या अस्पृश्यता का संकेत दिए एससी/एसटी अधिनियम, 1989 में अपराध नहीं होगा। यह निर्णय शाजन सकारिया को जमानत देते हुए दिया गया, जिन्होंने सीपीएम विधायक पी वी श्रीनिजन को ‘माफिया डॉन’ कहा था।
नई दिल्ली 25 अगस्त 2024 : सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को एससी या एसटी समुदाय से संबंधित मामले में महत्वपूर्ण फैसला सुनाया। शीर्ष अदालत ने कहा कि किसी व्यक्ति का अपमान या अपमान करना, बिना उसकी जाति, जनजाति या अस्पृश्यता की अवधारणा के बारे में संकेत दिए बिना, एससी/एसटी (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 के कड़े प्रावधानों में अपराध नहीं होगा।
जस्टिस जे बी पारदीवाला और मनोज मिश्रा की पीठ ने यह फैसला ऑनलाइन मलयालम समाचार चैनल के संपादक शाजन सकारिया को अंतरिम जमानत देते हुए दिया। सकारिया को एससी/एसटी समुदाय के सीपीएम विधायक पी वी श्रीनिजन को ‘माफिया डॉन’ कहने पर एससी/एसटी अधिनियम में बुक किया गया था। साथ ही उन्हें ट्रायल कोर्ट और केरल हाई कोर्ट ने पूर्व गिरफ्तारी जमानत से वंचित कर दिया था।
सुप्रीम कोर्ट ने मानें तर्क
सुप्रीम कोर्ट ने संपादक की ओर से सीनियर एडवोकेट सिद्धार्थ लूथरा और गौरव अग्रवाल के तर्क स्वीकार करते हुए कहा कि एससी/एसटी समुदाय के किसी सदस्य का हर कथन जानबूझकर अपमान या डराना जाति-आधारित अपमान की भावना पैदा नहीं करता। हमारे विचार में, यहां तक कि प्रथम दृष्टया भी कुछ भी ऐसा नहीं है जो इंगित करता हो कि अपीलकर्ता (सकारिया) ने यूट्यूब पर वीडियो प्रकाशित करके, अनुसूचित जातियों या अनुसूचित जनजातियों के सदस्यों के खिलाफ दुश्मनी, घृणा या बुरी मानस भावनाओं को बढ़ावा दिया या बढ़ाने का प्रयास किया। वीडियो का सामान्य तौर पर एससी या एसटी के सदस्यों से कोई लेना-देना नहीं है। उनका लक्ष्य सिर्फ शिकायतकर्ता (श्रीनिजन) अकेले थे।
फैसले में क्या लिखा?
जस्टिस पारदीवाला ने 70 पेज के फैसले में कहा कि यह केवल उन मामलों में होता है जहां जानबूझकर अपमान या डराना अस्पृश्यता की प्रचलित प्रथा के कारण या ‘ऊंची जातियों’ की ‘निचली जातियों/अछूतों’ पर श्रेष्ठता के ऐतिहासिक रूप से स्थापित विचार मजबूत करने को होता है। इनमें ‘प्यूरीटी’ और ‘पॉल्यूशन’ आदि की धारणाएं शामिल हैं। यह कहा जा सकता है कि यह 1989 अधिनियम में परिकल्पित अपमान या डराना है।
पीठ ने कहा कि अपमान करने का इरादा उस व्यापक संदर्भ में समझा जाना चाहिए जिसमें हाशिए के समूहों के अपमान की अवधारणा को विभिन्न विद्वानों ने समझा है। पीठ ने कहा कि यह सामान्य अपमान या डराना नहीं है जो ‘अपमान’ के बराबर होगा, जिसे 1989 अधिनियम में दंडनीय बनाया जाना चाहता है।
दंडनीय मानहानि का अपराध
‘माफिया डॉन’ संदर्भ का उल्लेख करते हुए, पीठ ने कहा कि अपमानजनक आचरण और किए गए अपमानजनक बयानों की प्रकृति को ध्यान में रखते हुए, ज्यादा से ज्यादा यह कहा जा सकता है कि अपीलकर्ता सकारिया ने प्रथम दृष्टया भारतीय दंड संहिता की धारा 500 में दंडनीय मानहानि का अपराध किया है। यदि ऐसा है, तो शिकायतकर्ता के लिए इसी अनुसार अपीलकर्ता का मुकदमा चलाना हमेशा खुला होता है।
हालांकि, शिकायतकर्ता (श्रीनिजन) केवल इस आधार पर 1989 के अधिनियम के प्रावधानों का आह्वान नहीं कर सकता था कि वह अनुसूचित जाति का सदस्य है, और अधिक तो, जब वीडियो के ट्रांसक्रिप्ट और शिकायत के एक प्रथम दृष्टया संयुक्त पढ़ने से यह प्रकट नहीं होता है कि अपीलकर्ता के कार्य शिकायतकर्ता की जाति पहचान से प्रेरित थे।
Supreme Court Said Strong Facts In Sc St Act Can Only Hold Anticipatory Bail In You Tuber Case
SC/ST एक्ट में फैक्ट मजबूत, तभी अग्रिम जमानत पर रोक, यूट्यूब चैनल एडिटर के बेल मामले में सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी
सुप्रीम कोर्ट ने एससी एसटी ऐक्ट में अग्रिम जमानत देने पर रोक तभी मान्य बताया जब पहली नजर में केस बनता हो। जस्टिस जेबी पारदीवाला की बेंच ने यूट्यूब एडिटर को जमानत देते हुए कहा कि केस के आधार पर ही जमानत पर निर्णय होगा। इससे कानून के दुरुपयोग पर अंकुश लगेगा।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि एससी एससी ऐक्ट में अग्रिम जमानत देने पर रोक तभी है, जब पहली नजर में आरोपित के खिलाफ केस बनता हो। सुप्रीम कोर्ट ने धारा-18 का हवाला देकर स्पष्ट किया और कहा है कि जब तक पहली नजर में केस नहीं बनेगा, तब तक अग्रिम जमानत देने में कोई रोक नहीं है। एक यूट्यूब चैनल के एडिटर को अग्रिम जमानत देते हुए शीर्ष अदालत ने यह व्यवस्था दी।
क्या है मामला?
सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस जेबी पारदीवाला की अगुवाई वाली बेंच ने अपने फैसले में कहा कि मामले की शिकायत में जो तथ्य दिए गए हैं उसे पढ़ने के बाद यह साफ होता है कि जो मटेरियल एससी एसटी ऐक्ट में केस के लिए होने चाहिए वह पहली नजर में नहीं दिखता है। ऐसे में ऐक्ट की धारा-18 लागू नहीं होगी। अदालत के लिए यह ओपन होगा कि वह केस की मेरिट के आधार पर ऐसे मामले में अग्रिम जमानत के लिए दाखिल याचिका पर विचार करे। दरअसल एससी/एसटी अत्याचार निवारण अधिनियम की धारा-18 में प्रावधान किया गया है कि इस मामले में अग्रिम जमानत नहीं दी जा सकती है। यूट्यूब चैनल के एडिटर के खिलाफ एससी/एसटी ऐक्ट में केस कराया गया था। इस मामले में आरोपित ने पहले केरल हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था, लेकिन हाई कोर्ट ने अग्रिम जमानत देने से मना कर दिया था। सुप्रीम कोर्ट ने केरल हाई कोर्ट के फैसले को खारिज कर दिया।
एससी/एसटी अत्याचार निवारण अधिनियम की धारा-18 के मुताबिक अग्रिम जमानत का प्रावधान इस मामले में दर्ज केस में नहीं है। सीआरपीसी की धारा-438 में अग्रिम जमानत का प्रावधान किया गया है। लेकिन एससी एसटी ऐक्ट की धारा-18 कहती है कि सीआरपीसी की धारा-438 इस मामले में लागू नहीं होता है। ऐक्ट की धारा-18ए कहता है कि इस मामले में दर्ज होने वाले एफआईआर में किसी भी पूर्व जांच की जरूरत नहीं है। इसके साथ ही आरोपित को गिरफ्तार करने से पहले एप्रूवल की जरूरत नहीं है।
सुप्रीम कोर्ट की व्यवस्था से कानून के दुरुपयोग पर लगाम
एससी/एसटी अत्याचार निवारण अधिनियम मामले में केस तब होता है जब एससी व एसटी समुदाय के लोगों को जातिसूचक शब्द से संबोधित किया जाता है या फिर ऐसे लोगों को फिजिकल असॉल्ट करना या उनके साथ ऐसी हरकत करना जो ह्मयूनिटी के खिलाफ हो। इस ऐक्ट में दर्ज केस में अग्रिम जमानत नहीं मिलती और यह गैर जमानती अपराध है। लेकिन समय-समय पर सुप्रीम कोर्ट ने इससे संबंधित मामले में कुछ महत्वपूर्ण फैसले दिए हैं जिसमें कानून की व्याख्या हुई है। मई में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि जातिसूचक शब्द से संबंधित एससी एसटी ऐक्ट में लगाए गए आरोप के मामले में केस तभी बनेगा जब आपत्तिजनक जातिसूचक टिप्पणी सार्वजनिक (पब्लिक के सामने) तौर पर किया गया हो। मौजूदा फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि मैटेरियल में पहली नजर में तथ्य होंगे तभी अग्रिम जमानत पर रोक है। इस तरह की व्यवस्था से इस कानून के दुरुपयोग पर रोक लगेगी और असल दोषी शिकंजे में होगा।