PIB फैक्ट चैक यूनिट अधिसूचना पर SC की रोक
सुप्रीम कोर्ट बोला- PIB फैक्ट चेक यूनिट बंद करें:ये अभिव्यक्ति की आजादी का मामला;केंद्र ने इसे एक दिन पहले बनाया था
नई दिल्ली 21 मार्च 2024। सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को प्रेस इन्फॉर्मेशन ब्यूरो (PIB) में फैक्ट चेक यूनिट बनाने की केंद्र की अधिसूचना पर रोक लगा दी है। कोर्ट ने कहा कि यह अभिव्यक्ति की आजादी के खिलाफ है। इस फैक्ट चेक यूनिट को केंद्र सरकार के बारे में फर्जी खबरों की पहचान करने और उसे रोकने को बनाया गया था।
CJI चंद्रचूड़,जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की बेंच ने बॉम्बे हाईकोर्ट के 11 मार्च के आदेश को भी रद्द कर दिया,जिसमें फैक्ट चेकिंग यूनिट बनाने पर रोक लगाने वाली याचिका को खारिज कर दिया गया था।
Supreme Court Banned Central Government Fact Checking Unit Gave This Reason Full Details
केंद्र सरकार की फैक्ट चेकिंग यूनिट पर लगी रोक, सुप्रीम कोर्ट ने बताई यह वजह
केंद्र सरकार की फैक्ट चेकिंग यूनिट पर रोक लगा दी गई है। यह रोक सुप्रीम कोर्ट ने लगाई है। हाल ही में बदले गए आईटी नियमों में,केंद्र सरकार ने सोशल मीडिया पर अपने काम से जुड़े कंटेंट देखने को ये फैक्ट चेकिंग यूनिट बनाई थी।
नई दिल्ली 21 मार्च 2024: केंद्र सरकार की फैक्ट चेकिंग यूनिट पर सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगा दी है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इसे लेकर पहले से ही बॉम्बे हाई कोर्ट में मामला लंबित है। फैक्ट चेकिंग यूनिट पर यह रोक तब तक रहेगी, जब तक बॉम्बे हाईकोर्ट 2023 के आईटी नियमों में संशोधन को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर अंतिम फैसला नहीं ले लेता। केंद्र सरकार के इलेक्ट्रॉनिक्स और आईटी मंत्रालय ने बुधवार को सूचना और प्रसारण ब्यूरो के तहत एक फैक्ट चेकिंग यूनिट (FCU) को अधिसूचित किया था। इस यूनिट की मदद से केंद्र सरकार की कोशिश फर्जी खबरों पर लगाम लगाना था।
भारत के मुख्य न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़, जस्टिस जे.बी. पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की पीठ ने कहा कि ये मामला अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता से जुड़ा हुआ है। हालांकि, अदालत ने ये भी कहा कि वो मामले के मुख्य मुद्दों पर अभी कोई टिप्पणी नहीं करेगी। स्टैंड-अप कॉमेडियन कुणाल कामरा और एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया ने बॉम्बे हाईकोर्ट में याचिका दायर कर केंद्र सरकार को फैक्ट चेकिंग यूनिट की अधिसूचना रोकने का आदेश देने की मांग की थी।
पिछले साल अप्रैल 2023 में लागू हुए बदले हुए आईटी नियमों में, फैक्ट चेकिंग यूनिट को सोशल मीडिया पर कंटेंट को देखने और केंद्र सरकार के काम से जुड़ी झूठी खबरों को चिह्नित करने का अधिकार मिलता है। इससे पहले, बॉम्बे हाईकोर्ट ने इस मामले पर दो अलग-अलग फैसले सुनाए थे। एक जज ने इस यूनिट को रोकने का आदेश दिया था, जबकि दूसरे जज ने इसे बनाए रखने का समर्थन किया था। इन दोनों फैसलों के बाद, मामले को तीसरे जज जस्टिस ए.एस. चंदुरकर के पास भेजा गया। जस्टिस चंदुरकर ने अभी तक अपना अंतिम फैसला नहीं सुनाया है। हालांकि, उन्होंने 11 मार्च को फैक्ट चेकिंग यूनिट को शुरू करने पर रोक लगाने से इनकार कर दिया था। इसके बाद, 13 मार्च को जजों के एक दूसरे से सहमत न होने के बावजूद 2:1 बहुमत के साथ फैसला सुनाया गया कि फिलहाल यूनिट को रोका नहीं जाएगा.
इलेक्ट्रॉनिक्स और आईटी मंत्रालय (Meity) ने 20 मार्च को सूचना प्रौद्योगिकी नियम,2021 में फैक्ट चेक यूनिट को अधिसूचित किया था। 2023 अप्रैल में सूचना प्रौद्योगिकी नियम,2021 में संशोधन किए गए थे।
नए नियमों में अगर फैक्ट चेक यूनिट को ऐसे किसी भी पोस्ट के बारे में पता चलता है,जो फर्जी या गलत है या जिसमें सरकार के कामकाज को लेकर भ्रामक तथ्य हैं,तो वह इसे सोशल मीडिया मध्यस्थों के पास भेज देगा। इसके बाद ऑनलाइन मध्यस्थों को ऐसे कंटेंट हटाने होंगे।
PIB की फैक्ट चेक यूनिट सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X पर भ्रामक दावों को लेकर अक्सर पोस्ट करती रहती है।
याचिकाकर्ताओं ने नियमों को असंवैधानिक बताया
याचिकाकर्ताओं में शामिल स्टैंड-अप कॉमेडियन कुणाल कामरा,एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया,न्यूज ब्रॉडकास्टर्स एंड डिजिटल एसोसिएशन और एसोसिएशन ऑफ इंडियन मैगजीन्स और अन्य ने फैक्ट चेक यूनिट के नियमों को मनमाना, असंवैधानिक और मौलिक अधिकारों का उल्लंघन बताते हुए चुनौती दी थी।
याचिकाकर्ताओं ने कोर्ट में 3 दलीलें रखीं
सबके के लिए एक स्वतंत्र फैक्ट चेक यूनिट रहनी चाहिए, जबकि केंद्र सरकार इसे सिर्फ अपने लिए ला रही है,जो मनमाना है।
क्या गलत है या क्या नहीं,यह तय करने को फैक्ट चेक यूनिट केंद्र के फैसले पर निर्भर नहीं हो सकता।
चुनाव नजदीक हैं,ऐसे में फैक्ट चेक यूनिट केंद्र के लिए एक हथियार बन जाएगा,जिससे वे तय करेंगे कि मतदाताओं को कौन सी जानकारी दी जाए।
बॉम्बे हाईकोर्ट ने IT Rules Amendment की वैधता पर फैसला टाला; सरकार तब तक फैक्ट चेक यूनिट को अधिसूचित नहीं करेगी
बॉम्बे हाईकोर्ट ने आईटी संशोधन नियम, 2023 (IT Rules Amendment) के नियम 3(i)(II)(ए) और (सी) को चुनौती पर अपना फैसला टाल दिया,जो ‘एक्स’ जैसे सोशल मीडिया मीडिएटर को रोकथाम के लिए “उचित प्रयास” करने का आदेश देता है। सरकारी काम-काज के बारे में जानकारी प्रकाशित करने वाले यूजर्स की पहचान फैक्ट चेक यूनिट ने नकली,गलत या भ्रामक के रूप में की है।
जस्टिस गौतम पटेल और जस्टिस नीला गोखले की खंडपीठ ने राजनीतिक व्यंग्यकार कुणाल कामरा, एसोसिएशन ऑफ इंडियन मैगजीन्स,न्यूज ब्रॉडकास्टर्स ऑफ डिजिटल एसोसिएशन और एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया की याचिकाओं पर विचार किया।
याचिकाकर्ताओं ने दावा किया कि दोनों नियम आईटी अधिनियम 2000 की धारा 79 और 87(2)(जेड) और (जेडजी) के विपरीत हैं और भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14, 19(1)(ए) और 19(1)(जी) के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करते हैं।
याचिकाकर्ता कुणाल कामरा ने दावा किया कि वह राजनीतिक व्यंग्यकार हैं,जो अपना कंटेंट शेयर करने के लिए सोशल मीडिया प्लेटफार्मों पर निर्भर हैं और नियमों के कारण उनकी सामग्री को मनमाने ढंग से अवरुद्ध किया जा सकता है, हटाया जा सकता है,या उनके सोशल मीडिया अकाउंट को निलंबित या निष्क्रिय किया जा सकता है।
खंडपीठ ने पहले देखा था कि आईटी नियम 2023 में नए संशोधन में प्रथम दृष्टया व्यंग्य की रक्षा के आवश्यक सुरक्षा उपायों का अभाव है।
हालांकि,सूचना और प्रौद्योगिकी मंत्रालय ने दावा किया कि सरकारी एजेंसी (FCU) के तथ्य जांच के बाद “प्रामाणिक जानकारी” का पता लगाया जाना और प्रसारित किया जाना सार्वजनिक हित में होगा,जिससे बड़े पैमाने पर जनता को संभावित नुकसान से बचाया जा सके।”
कार्यवाही में,सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने स्पष्ट किया कि फेसबुक,एक्स,इंस्टाग्राम आदि जैसे मीडिएटर फैक्ट चेक यूनिट के नकली,गलत या भ्रामक रूप में चिह्नित सामग्री के बारे में “कुछ नहीं” करने को स्वतंत्र नहीं हैं। यदि कोई सोशल मीडिया या समाचार वेबसाइट उस जानकारी को होस्ट करना जारी रखती है,जिसे सरकार के FCU ने ‘झूठा’ या ‘भ्रामक’ के रूप में चिह्नित किया है तो कार्रवाई होने पर उसे अदालत के समक्ष अपना बचाव करना होगा। मीडिएटर आईटी एक्टर की धारा 79 में परिभाषित सुरक्षित आश्रय खो सकता है। लेकिन अंतिम मीडिएटर कोर्ट है।
हालांकि,याचिकाकर्ताओं ने अपने प्रत्युत्तर में दावा किया कि सरकार के किसी चीज़ को चिह्नित किए जाने पर ही बिचौलियों को पसंद का “भ्रम” होता है।
एडवोकेट गौतम भाटिया ने तर्क दिया,क्योंकि सामग्री को हटाने से लेकर कुछ भी कम करने,यहां तक कि अस्वीकरण लगाने से भी मीडिएठर पर मुकदमा चलाया जा सकता है।
कामरा के लिए सीनियर एडवोकेट नवरोज़ सीरवई ने यूजर्स के लिए उपलब्ध उपायों की कमी की ओर इशारा किया,यदि उनका कंटेंट FCU ने नकली,गलत या भ्रामक के रूप में चिह्नित किया है और तर्क दिया कि केंद्र सरकार ऐसे मामलों में एकमात्र मीडिएटर है तो ऐसे में यूजर्स के लिए एकमात्र सहारा रिट याचिका ही है।
कार्यवाही में, एसजी ने कहा कि नियमों में ‘सूचना’ शब्द “तथ्यों” तक ही सीमित रहेगा। हालांकि,सीरवई ने तर्क दिया कि यह अनिवार्य रूप से अदालत से कानून को फिर से लिखने को कह रहा है,जो उसकी भूमिका नहीं है।
उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि “फर्जी,””तथ्य,” और “भ्रामक” जैसे शब्द अतिश्योक्तिपूर्ण हैं। इसके परिणामस्वरूप मनमानी और भेदभाव होता है,जो संविधान के अनुच्छेद 14 और 19 का उल्लंघन है।
नियम के “सरकार के व्यवसाय” तक सीमित होने के संबंध में सीरवई ने तर्क दिया कि इसमें गतिविधियों की विस्तृत श्रृंखला शामिल है,जिसमें संविधान की समवर्ती सूची में सूचीबद्ध गतिविधियां भी शामिल हैं। इसमें अवशिष्ट प्रविष्टि 97 भी शामिल है,जो इसे असाधारण रूप से व्यापक बनाती है।
सीरवई ने तर्क दिया,”प्रविष्टि 97 में सूची II में 66 वस्तुओं को छोड़कर सभी चीजें शामिल हैं।”
सीनियर वकील ने दृढ़तापूर्वक तर्क दिया कि श्रेया सिंघल के फैसले में उल्लिखित अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर कानून को नजरअंदाज क्यों नहीं किया जा सकता है। सीरवई ने ऐसे उदाहरण प्रस्तुत किए,जहां प्रेस सूचना ब्यूरो (पीआईबी) को गलत जानकारी देने के लिए बुलाया गया,जिससे यह संकेत दिया जा सके कि सरकार हमेशा सही तथ्य प्रसारित नहीं कर सकती।
उन्होंने कहा,”यह कैसे सरकार को शर्मिंदा करने वाली जानकारी का गला घोंट देता है।”
इसका उदाहरण देते हुए सीरवई ने कहा,“डब्ल्यूएचओ कह सकता है कि 50 लाख लोग COVID-19 से मर गए। भारत का कहना है कि केवल 5 लाख मरे। एफसीयू का कहना है कि डब्ल्यूएचओ का दावा गलत है। देखिए कैसे सरकारों का बचाव किया जाएगा? ”
न्यूज ब्रॉडकास्टर्स एंड डिजिटल एसोसिएशन के सीनियर एडवोकेट अरविंद दातार ने सरकार के इस दावे का विरोध किया कि एफसीयू सलाहकार क्षमता में कार्य करता है।
उन्होंने कहा,“एसजी ने यह तर्क देने की कोशिश की कि एफसीयू सलाहकार क्षमता है। यह कोई यात्रा परामर्श नहीं है। यह बाध्यकारी हुक्म और आदेश है।”
उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा,“राष्ट्रीय न्यूजपेपर कुछ प्रकाशित करता है,क्या सरकार उनसे यह कहलवा सकती है कि यह नकली है और इसे हटा सकती है? तो फिर किसी मीडिएटर को कैसे बताया जा सकता है कि यह नकली,झूठा और भ्रामक है,इसे हटा दें।”
दातार ने तर्क दिया कि यदि टीवी समाचार और ऑनलाइन चैनलों को इस तरह से विनियमित नहीं किया जा सकता है तो सोशल मीडिया मीडिएटर पर भी यही सिद्धांत लागू होना चाहिए।
जस्टिस पटेल ने आश्चर्य जताया कि अदालत से आईटी एक्ट में परिभाषित ‘सूचना’ शब्द के दायरे को सीमित करने की उम्मीद कैसे की जा सकती है, 3(1)(बी)(5) में ‘सूचना’ का दायरा वास्तव में क्या है और इसे कैसे सीमित किया जाए तथ्यों को?
दातार ने अंततः कहा,“नियम को पढ़ा नहीं जा सकता, इसे रद्द करना होगा। इस ट्यूमर को काटकर निकालना पड़ेगा। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता सबसे प्रिय अधिकार है, कृपया इसकी रक्षा करें।”
एडिटर्स गिल्ड की ओर से पेश वकील शादान फरासत ने कहा,”सरकार की इस प्रक्रिया के बारे में ‘तथ्यों’ की बहुत सारी व्याख्याएं हैं, भले ही वे संकीर्ण रूप से संरचित हों। COVID-19 से होने वाली मौतों की संख्या, ऑक्सीजन की पर्याप्तता, किसानों की मौत पर सरकार और अन्य लोगों की अलग-अलग व्याख्याएं हैं।
केस नंबर – WP(L)/9792/2023
Tags : कुणाल कामरा बनाम भारत संघ
Tags:IT Act Center Govt SC PIB fact check unit