धार्मिक अवमानना पर ईसाई सैन्य अफसर की सेवामुक्ति पर सुको की मुहर

Cji Surya Kant Bench Upholds Dismissal Of Christian Army Officer Over Refusal To Enter Temple
मंदिर में घुसने से किया था इनकार, ईसाई आर्मी ऑफिसर की गई नौकरी, CJI सूर्यकांत का पहला बड़ा फैसला
सुप्रीम कोर्ट में सीजेआई सूर्यकांत की अगुवाई वाली एक बेंच ने एक ईसाई आर्मी ऑफिसर की सेवामुक्ति पर मुहर लगा दी है। ईसाई आर्मी ऑफिसर पर आरोप है कि उन्होंने अपनी रेजिमेंट की एक स्थापित धार्मिक परंपरा को ठुकरा कर अनुशासनहीनता की।

नई दिल्ली 25 नवंबर 2025 ।  सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को एक ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए एक ईसाई आर्मी ऑफिसर की सेवामुक्ति सही बताई है। सैमुअल कमलेसन नाम के एक सैन्य अधिकारी ने अपनी रेजिमेंट के साप्ताहिक धार्मिक परेड में भाग लेने से मना कर दिया था, जिसके आधार पर उनकी सेवाएं समाप्त कर दी गई थी। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में दिल्ली हाई कोर्ट के फैसले को चुनौती दी थी, जिसे भारत के चीफ जस्टिस (सीजेआई) सूर्यकांत की बेंच ने निरस्त कर दिया है।

धार्मिक अहंकार इतना ज्यादा है कि…’
लाइवलॉ की एक रिपोर्ट के अनुसार सीजेआई सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाला बागची की बेंच ने आर्मी ऑफिसर की बर्खास्तगी वाले दिल्ली हाई कोर्ट के आदेश को बरकरार रखते हुए, उनकी याचिका खारिज कर दी है। इस दौरान सीजेआई सूर्यकांत की अगुवाई वाली बेंच ने याचिकाकर्ता सैमुअल कमलेसन से कहा, ‘आप अपने जवानों की भावनाओं का सम्मान करने में नाकाम रहे हैं। धार्मिक अहंकार इतना ज्यादा है कि आपको दूसरों की कोई परवाह नहीं है।’

भारतीय सेना एक धर्मनिरपेक्ष संस्था’
ईसाई ऑफिसर ने अपने खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई को यह कहकर अदालत में चुनौती दी थी कि मंदिर में घुसने के लिए बाध्य किया जाना, उनकी धार्मिक आजादी का उल्लंघन होगा। लेकिन, अदालत ने पाया कि उनका आचरण एक वैध आदेश को ठुकराने जैसा था। कोर्ट ने अपनी टिप्पणी में कहा कि भारतीय सेना एक धर्मनिरपेक्ष संस्था है और इसकी अनुशासन से समझौता नहीं किया जा सकता।

मंदिर में जाना ईसाई धर्म के खिलाफ’
इस केस में याचिकाकर्ता के वकील सीनियर एडवोकेट गोपाल संकरनारायणन ने दलील दी कि उनके क्लाइंट ने सिर्फ एक मौके पर अपनी पोस्टिंग वाली जगह पर मंदिर के गर्भगृह में घुसने से मना किया था। उनकी सफाई थी कि वे ‘सर्व धर्म स्थल’ पर जाते रहे हैं। वकील की दलील थी कि जिस जगह पर वे तैनात थे, वहां कोई सर्व धर्म स्थल नहीं था। सिर्फ एक मंदिर और एक गुरुद्वारा था। उन्होंने सफाई दी कि याचिकाकर्ता मंदिर के बाहर खड़े थे और पवित्र स्थान में इसलिए जाने से मना किया, क्योंकि वे एकेश्वरवादी हैं, और ऐसा करना ईसाई धर्म के खिलाफ होता। इनके मुताबिक ‘वो झगड़ालू व्यक्ति नहीं हैं। बाकी सभी मामलों में वे एक अनुशासित इंसान हैं।’

आर्मी के लिए सबसे बड़ी अनुशासनहीनता’
इस दौरान सीजेआई सूर्यकांत ने कहा कि ‘वह किस तरह का मैसेज दे रहे हैं…उन्हें सिर्फ इसी बात के लिए निकाल दिया जाना चाहिए था…एक आर्मी ऑफिसर के लिए यह सबसे बड़ी अनुशासनहीनता है।’ इसपर वकील ने जवाब दिया कि सिर्फ आर्मी ऑफिसर होने की वजह से उनका यह मौलिक अधिकार नहीं छिन जाता, जो उन्हें संविधान के आर्टिकल 25 से मिलता है। इसपर जस्टिस बागची ने कहा कि एक पादरी ने कहा था कि पवित्र स्थल पर जाने से ईसाई धर्म का उल्लंघन नहीं होता। तब वकील ने कहा कि यह सर्व धर्म स्थल के संदर्भ में था, मंदिर को लेकर नहीं।

अन्य धर्मों का अपमान नहीं कर रहे हैं?’
वहीं सीजेआई ने कहा कि वहां एक गुरुद्वारा भी है, क्योंकि रेजिमेंट में सिख जवान भी हैं। वे बोले, ‘गुरुद्वारा सबसे सेक्युलर स्थान है। जिस तरीके से वह बर्ताव कर रहे हैं, क्या वे अन्य धर्मों का अपमान नहीं कर रहे हैं? धार्मिक अहंकार इतना ज्यादा है कि उन्हें दूसरों की चिंता नहीं है?’

ईसाई आर्मी ऑफिसर से जुड़ा पूरा मामला
कमलेसन को मार्च 2017 में भारतीय सेना में लेफ्टिनेंट के पद पर तीसरी कैवलरी रेजिमेंट में कमीशन मिला था, जिसमें सिख, जाट और राजपूत सैन्यकर्मियों के 3 स्क्वाड्रन शामिल हैं। उन्हें स्क्वाड्रन बी का ट्रूप लीडर बनाया गया था जिसमें सिख जवान शामिल थे। कमलेसन का कहना था कि उनकी रेजिमेंट में धार्मिक परेड के लिए सिर्फ एक मंदिर और एक गुरुद्वारा था,न कि कोई सर्व धर्म स्थल जो सभी धर्मों के लोगों के लिए हो। उन्होंने हाई कोर्ट में कहा था कि उस जगह पर कोई चर्च नहीं था। यह भी तर्क दिया कि वे अपने सैनिकों के साथ हर हफ्ते होने वाली धार्मिक परेड और त्योहारों के लिए मंदिर और गुरुद्वारा जाते थे, लेकिन जब पूजा या हवन या आरती वगैरह होती थी, तब वह मंदिर के सबसे अंदर गर्भगृह वाले हिस्से में जाने से छूट चाहते थे।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *