RSS कार्यकर्त्ता ने बलिदान दे कैसे दिया, सैकुलरों के फैक्ट चैक का जवाब दिया बेटी ने

RSS कार्यकर्ता की मौत को लेकर ‘लोकसत्ता’ और ‘इंडियन एक्सप्रेस’ ने किया फैक्टचेक, बेटी ने वीडियो के जरिए दिया जवाब
नारायण भाऊराव दाभाडकर अपने परिवार के साथ (फाइल फोटो)

नागपुर के 85 वर्षीय RSS स्वयंसेवक नारायण भाऊराव दाभाडकर के निधन के बाद जहाँ परिवार शोक में है, वहीं कुछ मीडिया संस्थानों ने उनके बलिदान को फेक न्यूज़ साबित करने की कोशिश की है। उन्होंने अस्पताल में अपना बेड किसी अन्य कोविड मरीज को दे दिया था और वापस घर आ गए थे। 3 दिन बाद उनकी मृत्यु हो गई थी। उन्होंने ये बलिदान दिया, ताकि उनसे लगभग आधी उम्र के एक व्यक्ति की जान बच जाए।

जब सोशल मीडिया पर उनके इस बलिदान की खूब चर्चा हुई और लोगों ने सराहना करते हुए उन्हें नमन किया तो एक मराठी मीडिया संस्थान ने इस खबर को झूठा साबित करने का प्रयास किया। ‘लोकसत्ता’ ने एक ‘फैक्टचेक’ कर इस खबर को गलत बता दिया, लेकिन उसने गलत अस्पताल से संपर्क कर लिया। नारायण भाऊराव को उन्हें जानने वाले लोग ‘दाभाडकर काका’ कह कर सम्बोधित करते थे।

‘लोकसत्ता’ का कथित फैक्टचेक नागपुर के एक तथाकथित समाजसेवक शिवम थावरे की इंदिरा गाँधी हॉस्पिटल के सुपरिटेंडेंट अजय प्रसाद से हुई बातचीत पर आधारित है। इंदिरा गाँधी हॉस्पिटल ने कहा कि उनके यहाँ नारायण भाऊराव दाभाडकर नाम का कोई मरीज भर्ती ही नहीं हुआ था। ये स्पष्ट नहीं है कि उसने सरकारी इंदिरा गाँधी हॉस्पिटल से संपर्क किया या नागपुर म्युनिसिपल कॉर्पोरेशन के इंदिरा गाँधी रुग्णालय में।

इंदिरा गाँधी रुग्णालय में नारायण भाऊराव दाभाडकर भर्ती थे। उनकी बेटी ने अब एक वीडियो जारी कर चीजें साफ़ की हैं। लेखिका शेफाली वैद्य ने नारायण भाऊराव की बेटी आश्वारी दाभाडकर का वीडियो शेयर किया, जिसमें उन्होंने बताया है कि उनके पिता इंदिरा गाँधी म्युनिसिपल हॉस्पिटल में एडमिट थे और उनकी हालत दिनोंदिन बिगड़ती ही जा रही थी। डॉक्टरों ने उन्हें उनकी हालत के बारे में बताया भी था।
बेटी के अनुसार, जब उनके पिता अस्पताल में भर्ती थे तो उन्होंने बाहर बेड के लिए हंगामा सुना। तभी उन्होंने फैसला किया कि वे तो अपनी ज़िंदगी जी चुके है, इसलिए उनके द्वारा लिए गए बेड के कारण कहीं किसी युवा की जान न चली जाए। ये बताते-बताते आश्वारी दाभाडकर रो पड़ीं। उधर इंदिरा गाँधी रुग्णालय ने भी इस बात की पुष्टि की है कि नारायण भाऊराव दाभाडकर वहाँ भर्ती थे और उनका इलाज हो रहा था।

‘इंडियन एक्सप्रेस’ की शीलू चिमुरकर को दिए गए एक बयान में हॉस्पिटल के इंचार्ज डॉक्टर ने कहा, “दाभाडकर को अप्रैल 22 को शाम 5:55 में एडमिट किया गया था। उन्हें कैजुअल्टी वॉर्ड में एक ऑक्सीजन बेड पर रखा गया था। हमने परिजनों से कहा था कि अगर स्थिति बिगड़ती रही तो उन्हें किसी बेहतर अस्पताल में ले जाना पड़ेगा। वे तैयार भी हो गए थे। शाम को 7:55 में उन्होंने डिस्चार्ज होने की अनुमति माँगी।”

हॉस्पिटल के इंचार्ज डॉक्टर ने कहा कि उन्हें कारण तो नहीं पता, लेकिन उन्हें बेहतर अस्पताल में ले जाने के लिए ज़रूर कहा गया था। उनके दामाद अमोल पाचपोर ने डिस्चार्ज लेटर पर हस्ताक्षर किए, जिसके बाद उन्हें डिस्चार्ज किया गया। ‘इंडियन एक्सप्रेस’ की भी इस खबर में हॉस्पिटल के बयान के बावजूद भ्रम फैलाया गया और दाभाडकर के एक परिजन से बयान के लिए दबाव बनाया गया, जबकि वो खुद कोरोना संक्रमित हैं।

जिसके ट्ववीट पर किया ‘फैक्टचेक’, उसने गलत वीडियो के लिए माँगी माफी: ‘लोकसत्ता’ ने चुपके से एडिट की रिपोर्ट


दिवंगत RSS कार्यकर्ता के बलिदान पर ‘लोकसत्ता’ ने फैलाया था झूठ, अब एडिट किया लेख

मराठी मीडिया संस्थान ‘लोकसत्ता’ ने नागपुर के 85 वर्षीय RSS स्वयंसेवक नारायण भाऊराव दाभाडकर के बलिदान को झूठा बताने की कोशिश की थी। अब उसने एक अपुष्ट ट्वीट पर आधारित अपनी तथाकथित ‘फैक्टचेक’ रिपोर्ट को चुपके से एडिट कर दिया है। ‘लोकसत्ता’ ने दाभाडकर और उनके परिवार को बदनाम करने के लिए rohanrtweets नामक ट्विटर हैंडल के एक अपुष्ट वीडियो के आधार पर झूठ फैलाया था।
अब उस वीडियो को डिलीट कर दिया गया है। इस रिपोर्ट में दावा किया गया था कि नारायण भाऊराव को नागपुर के इंदिरा गाँधी अस्पताल में भर्ती नहीं कराया गया था। सच्चाई ये है कि उन्हें इंदिरा गाँधी रुग्णालय में भर्ती कराया गया था। ‘लोकसत्ता’ ने एक दूसरे इंदिरा गाँधी सरकारी अस्पताल से बातचीत कर रिपोर्ट बना दी थी। सोशल मीडिया पर लोगों ने इस रिपोर्ट में हुई गलतियों की तरफ ध्यान दिलाया।

‘लोकसत्ता’ ने चुपचाप इस रिपोर्ट को एडिट कर दिया और इसमें ‘राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS)’ के विदर्भ प्रान्त के कैम्पेन चीफ अनिल साम्ब्रे का बयान जोड़ दिया। साम्ब्रे ने स्पष्ट कहा कि ये घटना सच्ची है। उन्होंने बताया कि नारायण भाऊराव ने अस्पताल से विनती की कि उनका बेड किसी और को दे दिया जाए और अस्पताल ने ऐसा किया। उन्होंने ये भी कहा कि मीडिया का एक हिस्सा इसे गलत रूप में पेश कर रहा है।

‘लोकसत्ता’ द्वारा की गई एडिटिंग

‘लोकसत्ता’ ने इस दौरान उस ट्वीट का भी जिक्र किया, जिसके आधार पर ये रिपोर्ट बनाई गई थी। ये ट्वीट अब डिलीट कर दिया गया है और यूजर ने ग़लतफ़हमी फैलाने के आरोपों पर माफ़ी भी माँगी है। यूजर रोहन ने कहा कि उनका ट्वीट अपुष्ट था, जिसके आधार पर ‘लोकसत्ता’ ने खबर बनाई। उन्होंने कहा कि वो इस प्रकरण से दुःखी हैं। उन्होंने नारायण भाऊराव दाभाडकर की बेटी के बयान का जिक्र करते हुए कहा कि उन्होंने सारे तथ्य साफ़ कर दिए हैं।

यूजर ने ट्वीट डिलीट कर माँगी माफ़ी

रोहन ने लिखा, “ऐसे कठिन समय में इस तरह का बलिदान देने के लिए अनंत साहस चाहिए होता है। मैंने इस अपुष्ट वीडियो को देखा था और इसे सही समझा। लेकिन, आश्वारी मैम का वीडियो देखने के बाद मैं खेद व्यक्त करता हूँ कि मैंने बिना सच्चाई जाने इस वीडियो को शेयर किया। मैं दाभाडकर परिवार के दुःख को समझ सकता हूँ।” उन्होंने ये भी बताया कि कई लोग गलत दावा कर रहे हैं कि दाभाडकर ज़िंदा हैं।

बता दें कि ‘लोकसत्ता’ का कथित फैक्टचेक नागपुर के एक तथाकथित समाजसेवक शिवम थावरे की इंदिरा गाँधी हॉस्पिटल के सुपरिटेंडेंट अजय प्रसाद से हुई बातचीत पर आधारित था। दाभाडकर की बेटी आश्वारी के अनुसार, जब उनके पिता अस्पताल में भर्ती थे तो उन्होंने बाहर बेड के लिए हंगामा सुना। तभी उन्होंने फैसला किया कि वे तो अपनी ज़िंदगी जी चुके है, इसलिए उनके द्वारा लिए गए बेड के कारण कहीं किसी युवा की जान न चली जाए। ये बताते-बताते आश्वारी दाभाडकर रो पड़ी थीं।

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