पांच साल में 377 मौतें:निरोधक कानून, फिर भी मानवों से मल-मूत्र साफ़ क्यों कराता है भारत?

गटर में उतरे 3 मजदूरों की मौत:सीवर सफाई से 5 साल में 377 मौतें; मानव मल उठवाने पर कानून का पालन क्यों नहीं?

राजस्थान के सीकर में फतेहपुर के सरदारपुरा इलाके में पिछले हफ्ते सीवरेज टैंक की सफाई करने उतरे तीन मजदूरों की मौत हो गई।

एक मजदूर 20 फीट गहरे सेप्टिक टैंक में नीचे उतरकर सफाई कर रहा था। बेहोश हो गया। उसके दो साथी बचाने अंदर गए, लेकिन वे भी बेहोश हो गए। तीनों मजदूर बाहर निकालकर हॉस्पिटल ले जाये गये, जहां डॉक्टरों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया।

बिजनेस स्टैंडर्ड के मुताबिक, सीवर और सेप्टिक टैंकों की सफाई करते साल 2019 से 2023 के बीच 377 मौतें हो चुकी है।

उन दलित बस्तियों से, जहां लोग मैनुअल स्कैवेंजिंग आश्रित हैं…

1.बोल रहे थे कि ड्यूटी है, जाना जरूरी है। ठेकेदार उन्हें फोन कर रहा था कि सीवर ओवरफ्लो हो गया है। पानी सड़क पर आ गया है। उनके पास काम पर जाने को भी पैसे नहीं थे। मुझसे सौ रुपया लेकर गए थे, यह कहकर कि शाम तक कुछ कमा कर लौटूंगा। शाम को फोन आया कि एक्सीडेंट हुआ है, हॉस्पिटल जल्दी आओ। हम दौड़ते-भागते गए तो सामने मट्टी (लाश) रखी थी। हमको झटका लगा। ठेकेदार ने बताया कि इसे गैस लग गया है।बस्ती का दुर्भाग्य है यहां कोई बड़ा-बुजुर्ग मर्द नहीं है। सीवर साफ करने वाले पुरुषों की 50 की उम्र यहां अधिकतम है।ससुर भी सीवर-सफाई करते थे। वो भी जवानी में ही चल बसे।

– पिंकी, 27 साल

2. हम पांच लोग उस दिन काम करने गए थे। बनारस चौक में ठेकेदार एक लड़के को सीवर में उतरने का 500 रुपया दे रहा था। लड़का पैसे के लालच में सीवर में उतरने को मान गया। हमने दस मिनट गैस निकलने का इंतजार किया। तब वो लड़का नीचे गया। हमें लगा कि काम खत्म होते ही रस्सी ऊपर खींचने का सिग्नल देगा। कुछ देर हमने इंतजार किया और फिर रस्सी खींची तो देखा कि मर चुका था।  लाश निकाली तो पता चला कि उस सीवर में पहले से एक आदमी मरा हुआ था।

– किशन, 25 साल

3. बिना दारू पिए सीवर का काम हो ही नहीं सकता है। आपको नहीं न पता भइया, इतनी तेज गंध रहती है और अंदर से आंच निकलती है कि बिना दारू पिए एक इंसान क्या जानवर भी अंदर घुस ही नहीं सकता। जिस दिन सीवर साफ कर आते हैं, पूरी देह गंधाती (बदबू आना) है। कितना भी साबुन से नहा लो, दो दिन तक उनके पास से सड़ी बदबू आती रहती है।

– वीणा, 60 साल

2013 से ही अपराध है मैनुअल स्कैवेंजिंग

प्रोहिबिशन ऑफ एम्प्लॉयमेंट ऑफ मैनुअल स्कैवेंजर्स एंड देयर रिहैबिलिटेशन बिल 2012 में लोकसभा में लाया गया था। इसके बाद सितंबर 2013 में ये लोकसभा और राज्यसभा दोनों सदनों में पास हुआ। इसके अनुसार किसी से मैनुअल स्‍कैवेंजिंग कराने पर 5 साल तक की सजा का प्रावधान है। ​​​​एक्ट के अनुसार इनसैनिटरी टॉयलेट्स बनवाना अब गैर-कानूनी है। इनसैनिटरी टॉयलेट्स वो टॉयलेट्स होते हैं, जिसमें मानव मल हाथ से साफ करने की जरूरत पड़ती है। ऐसे टॉयलेट्स में मानव मल या तो एक खुले गड्ढे या एक टैंक में इकट्ठा होता है जिसे बाद में मैनुअली साफ किया जाता है।

एक्‍ट के अनुसार, डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट और लोकल अथॉरिटी  एक्ट लागू करेंगी। इसका उल्लंघन करने वालों के खिलाफ एक्शन लिया जाएगा और ये एक नॉन-बेलेबल ऑफेंस होगा।

मानव मल ढोना इंसान नहीं, मशीनों का काम है

मैनुअल स्कैवेंजिंग एक्ट 2013 के सेक्शन 33 के अनुसार, सीवर और सेप्टिक टैंक की सफाई को टेक्नोलॉजिकल एप्लायंस इस्तेमाल होने चाहिए। सरकार इसको आर्थिक मदद भी करती है। भारत में सेप्टिक टैंक और सीवर की सफाई के लिए दो तरह की मशीनों का इस्तेमाल किया जाता है…

ऑटोमेटेड सीवर क्लीनिंग रोबोट्स- बंदीकूट, होमोसेप एटम जैसे कई सीवर क्लीनिंग रोबोट्स डेवलप हो चुके हैं जिन्हें मैनुअल स्कैवेंजिंग के विकल्प के रूप में देखा जा सकता है। इस तरह के कई रोबोट्स अब देश के कंपनियां भी बना रही हैं।
रॉटरी कटर्स- ये कटर्स मैनहोल में घुसकर वहां फंसा सिल्ट काटकर साफ करते हैं। इन्हें ट्रैक्टर्स, JCB या अर्थ मूवर्स के साथ अटैच करके मेनहोल क्लीनिंग को इस्तेमाल किया जा सकता है।
इसके अलावा टॉयलेट्स जिनमें पहले मानव मल को ट्रीट करने के बाद सीवेज सिस्टम में रिलीज किया जाए, तो मैनुअल क्लीनिंग की जरूरत नहीं पड़ती है। इस तरह के टॉयलेट्स को सैनिटरी टॉयलेट कहा जाता है।

पाकिस्तान, बांग्लादेश में भी बुरा हाल

पाकिस्तान में भी मैनुअल स्कैवेंजिंग का भारत जैसा ही हाल है। 2017 में सेप्टिक टैंक में घुसकर सफाई करते हुए एक वर्कर बेहोश हो गया था। उसे तुरंत हॉस्पिटल ले जाया गया। लेकिन वहां डॉक्टर ने ये कहते हुए उसे छूने तक से मना कर दिया कि ‘बॉडी गंदी है’।  वर्कर की मौत हो गई।

बांग्लादेश में भी सेप्टिक टैंक और सीवर की सफाई मैनुअली होती है यानी इंसानों को सेप्टिक टैंक और सीवर में उतरकर  सफाई करनी पड़ती है। ढाका वाटर सप्लाई एंड सीवरेज अथॉरिटी के अनुसार, शहर के सिर्फ 20% हिस्से में पाइप्ड सीवर नेटवर्क है। इसी से शहर के सेप्टिक टैंक और सीवर की सफाई मैनुअली होती है।

मैक्सिको– यहां इकोलॉजिकल सैनिटेशन मॉडल अपनाया गया है। इस वेस्ट मैनेजमेंट मॉडल में मानव मल, यूरिन और पानी को ट्रीट कर उसे खेती में इस्तेमाल किया जाता है।
अमेरिका- यहां सीवेज को टनल्स बनाएं गए हैं जिनकी सफाई के लिए प्रॉपर मशीनरी और इक्विपमेंट इस्तेमाल किए जाते हैं।
मलेशिया– 1950 को दौर में यहां चीन से आए प्रवासी मैनुअल स्कैवेंजिंग का काम करते थे। धीरे-धीरे देश की सरकार ने इस काम को पूरी तरह से मशीन आधारित बना दिया। देश की सरकार मलेशिया को टूरिस्ट डेस्टिनेशन बनाना चाहती थी। सीवेज प्लांट्स बनाने और मेंटेन करने को अनुदान दिया जाने लगा । लोगों को सेप्टिक टैंक की सफाई को लेकर जागरूक किया गया।
अछूतों में भी अछूत हैं मैनुअल स्कैवेंजर्स

सोशियो इकोनॉमिक और कास्ट सेन्सस 2011 के अनुसार, देश के 1.8 लाख परिवार मैनुअल स्कैवेंजिंग से रोटी कमा रहे हैं। देशभर में कुल 7,94,390 ड्राय लैट्रीन्स हैं जहां मैनुअल स्कैवेंजिंग से ही सफाई हो पाती है। वहीं 1,314, 652 टॉयलेट्स ऐसे हैं जहां मानव मल खुली नालियों में फ्लश होता है। इसके बाद खास कम्यूनिटी के ही लोग इनकी सफाई करते हैं।

मिनिस्ट्री ऑफ सोशल जस्टिस एंड एम्पॉवरमेंट 2018 में मैनुअल स्कैवेंजर्स का एक नेशनल सर्वे किया। ये सर्वे 18 राज्यों के 170 जिलों में किया गया था। इन राज्यों में मैनुअल स्कैवेंजर्स की संख्या 42,303 पाई गई।

कानून बनने पर भी मैनुअल स्कैवेंजिंग पर पूरी तरह से रोक नहीं लगी। सेंटर फॉर पॉलिसी रिसर्च के अम्बरीश करुणानिथी के अनुसार, ‘आज तक सरकार यह रोक नहीं पाई क्योंकि देश में ऐसे लोग हैं जो ये काम करने को मजबूर हैं। अगर ये करने को कोई नहीं होता, तब जरूर दिमाग लगाकर इसका सॉल्यूशन ढूंढते।’

सफाई कर्मचारी आंदोलन की ओर से सुप्रीम कोर्ट में कई केस लड़ी वकील शोमोना खन्ना कहती हैं कि सरकार मैनुअल स्कैवेंजिंग को लेकर पूर्णतः उदासीन है।

-उत्कर्षा त्यागी

सीवर सफाई में मौत पर 30 लाख मुआवजा मिलेगा:स्थाई दिव्यांग होने पर 20 लाख देना होगा; सुप्रीम कोर्ट का निर्देश
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि केंद्र-राज्य सरकारों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि हाथ से मैला ढोने की प्रथा पूरी तरह खत्म हो जाए।
देश में सीवर सफाई में मौत की घटनाओं पर सुप्रीम कोर्ट ने 20 अक्टूबर 2023 को कहा कि सरकारी अधिकारियों को मरने वालों के परिजन को 30 लाख रुपए मुआवजा देना होगा।

सीवर की सफाई में कोई सफाईकर्मी ​​​​​​स्थायी दिव्यांग होता है तो उसे न्यूनतम मुआवजा 20 लाख रुपए दिया जाएगा। वहीं, अन्य दिव्यांगता पर अफसर उसे 10 लाख रुपए तक का भुगतान करेंगे।

जस्टिस एस रवींद्र भट और जस्टिस अरविंद कुमार की बेंच ने सीवर सफाई में होने वाली मौतों को लेकर दायर एक जनहित याचिका की सुनवाई में यह फैसला सुनाया।

हाथ से मैला ढोने की प्रथा खत्म करें केंद्र-राज्य सरकार

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि केंद्र और राज्य सरकारों को सुनिश्चित करना चाहिए कि हाथ से मैला ढोने की प्रथा पूरी तरह खत्म हो। सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट्स को सीवर से होने वाली मौतों से संबंधित मामलों की निगरानी करने से ना रोके जाने का निर्देश दिया।

पांच साल में सीवर सफाई में 347 लोगों की मौत हुई जुलाई 2022 में लोकसभा में पेश सरकारी आंकड़ों के अनुसार, पांच सालों (2017 से) में भारत में सीवर और सेप्टिक टैंक की सफाई के दौरान कम से कम 347 लोगों की मौत हुई, जिनमें से 40 प्रतिशत मौतें उत्तर प्रदेश, तमिलनाडु और दिल्ली में हुईं।

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