जादू नहीं है रेमडेसिविर, खुद डॉक्टर मत बनों,दवायें और भी हैं

एक्सप्लेनर:रेमडेसिविर के पीछे मत दौड़ो! और भी दवाएं हैं जो शुरुआत में देने पर ठीक हो रहा है कोरोना, जानिए एक्सपर्ट क्या कह रहे हैं
+++लेखक: रवींद्र भजनी

कोरोना वायरस की दूसरी लहर और खतरनाक होती जा रही है। वायरस को रोकने के लिए कोई दवा नहीं होने की वजह से डॉक्टर भी बहुत-सी दवाएं और थैरेपी आजमा रहे हैं। पर लोगों को लग रहा है कि रेमडेसिविर कोई जादुई दवा है, जिससे कोरोना ठीक हो जाएगा। ऐसा है नहीं। इसके अलावा भी कई सारी दवाओं का इस्तेमाल हो रहा है, जो इन्फेक्शन के लक्षणों के अनुसार इलाज करने या वायरस को रोकने में काम आ रही हैं।

सरकार की ओर से कहा गया है कि रेमडेसिविर जादुई दवा नहीं है। इस पर हमने चंडीगढ़ के पोस्टग्रेजुएट इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल एजुकेशन एंड रिसर्च (PGIMER) के पल्मोनरी मेडिसिन के सीनियर प्रोफेसर और 2020 में पद्मश्री से सम्मानित डॉक्टर दिगंबर बेहरा, मुंबई के खार स्थित पीडी हिंदुजा हॉस्पिटल एंड मेडिकल रिसर्स सेंटर के इंटरनल मेडिसिन कंसल्टेंट डॉक्टर राजेश जरिया और मुंबई के ही जसलोक हॉस्पिटल एंड रिसर्च सेंटर मुंबई क्रिटिकल केयर कंसल्टेंट डॉ. पिनांक पांड्या से बातचीत की।

आइए, आसान सवाल-जवाब से समझते हैं कि इन विशेषज्ञ डॉक्टरों का कोरोना के इलाज पर क्या कहना है…

सबसे पहले, क्या रेमडेसिविर जीवनरक्षक है?

नहीं। यह एक एंटी-वायरल दवा है। चार साल पहले इबोला महामारी में इस दवा का इस्तेमाल हुआ था। अब कोविड-19 में भी हो रहा है। पिछले साल मई में अमेरिकी ड्रग रेगुलेटर US-FDA ने इसे कोविड-19 के इलाज में इमरजेंसी यूज की इजाजत दी थी। तब से ही इसका इस्तेमाल कोरोना वायरस इन्फेक्शन को रोकने में हो रहा है।
2020 में पद्मश्री से सम्मानित डॉ. बेहरा कहते हैं कि WHO ने इस दवा के ट्रायल्स किए, पर उसमें इससे फायदा होने की पुष्टि नहीं हुई है। वहीं, डॉक्टर जरिया कहते हैं कि रेमडेसिविर वायरस के जीनोमिक रेप्लिकेशन यानी उसे बढ़ने से कुछ हद तक रोकती है। पर इसका फायदा लक्षणों के शुरुआत में ही है। वायरल लोड कम होता है तो शरीर को वायरस के खिलाफ एंटीबॉडी बनाने में समय मिल जाता है। जरूरी नहीं कि सबको इसका लाभ मिले।
वहीं, डॉ. पांड्या के मुताबिक इससे सिर्फ हॉस्पिटल स्टे कम होता है। कोई अगर दावा करे कि इस दवा से कोरोना वायरस ठीक हो जाता है, तो वह गलत है। यह कोई नहीं कह सकता। रेमडेसिविर बनाने वाली कंपनी का प्रतिनिधि भी नहीं।

…तो क्या रेमेडसिविर नुकसान पहुंचा रही है?

हां। कुछ हद तक। यह ड्रग हर किसी को नहीं दी जा सकती। जिनका इलाज घर पर चल रहा है, उन्हें तो बिल्कुल नहीं। जिन्हें ऑक्सीजन दी जा रही है, उन्हें ही इसे देने की सिफारिश सरकार और डॉक्टर कर रहे हैं। वह भी लक्षणों के उभरने के पांच-सात दिन में। यह पांच दिन का डोज है, जिसे डॉक्टर प्रिस्क्राइब कर रहे हैं।
डॉक्टर बेहरा कहते हैं कि मध्यम से गंभीर लक्षणों वाले मरीजों को ही रेमडेसिविर दी जा रही है। पर उनमें किडनी या लीवर से जुड़ी कोई बीमारी नहीं होनी चाहिए। वहीं, डॉक्टर पांड्या का कहना है कि रेमडेसिविर देने से पहले कई जांचें की जाती हैं। किडनी, लीवर अगर ठीक तरीके से काम कर रहे हैं तो ही रेमडेसिविर की सिफारिश की जाती है।
रेमडेसिविर के अलावा किस दवा का इस्तेमाल हो रहा है?

डॉक्टर बेहरा कहते हैं कि कोविड-19 का ट्रीटमेंट सपोर्टिव है। इसकी कोई निश्चित थैरेपी या दवा उपलब्ध नहीं है, जिसका इस्तेमाल किया जा सके। कोविड-19 निमोनिया का कोई शर्तिया इलाज है तो वह है ऑक्सीजन। सेचुरेशन लेवल अगर 90 से कम है तो सप्लीमेंटल ऑक्सीजन दी जाती है। क्रॉनिक लंग डिसीज में सेचुरेशन 80 से कम हो सकता है। कम मामलों में वेंटिलेटर सपोर्ट और बहुत ही कम मामलों में लंग ट्रांसप्लांटेशन हो रहा है।
टोसीलुजुमाब, प्लाज्मा थैरेपी और स्टेरॉइड भी इस्तेमाल हो रहे हैं। टोसीलुजुमाब भी एक एंटी-IL6 ड्रग है। वायरल इन्फेक्शन रोकने में भी इस्तेमाल हो रहा है। इसका लाभ शुरुआत में यानी 48-72 घंटे में देने पर है। बाद में देने पर इसका कोई लाभ नहीं होता है। इसका भी कोई सबूत नहीं है कि यह दवा पूरी तरह से इन्फेक्शन रोक देगी। डॉक्टर ही बता सकते हैं कि किस लक्षण के लिए क्या दवा दी जानी सही है।

स्टेरॉइड्स की भी बात हो रही है, क्या यह कोरोना पर कारगर है?

हां। कुछ हद तक। पर यह हर एक व्यक्ति के शरीर, उसकी क्षमता और डॉक्टरों की सिफारिश पर निर्भर करता है। हिंदुजा हॉस्पिटल के डॉक्टर जरिया के मुताबिक हमारा शरीर एक केमिकल फैक्टरी है। जब कोई इन्फेक्शन होता है तो शरीर में अनियंत्रित तरीके से केमिकल बनते हैं। मेडिकल टर्म में इनफ्लेमेशन भी कह सकते है, जिसे नियंत्रित करने के लिए स्टेरॉइड्स का इस्तेमाल होता है। पर यह इनफ्लेमेशन ही वायरस को नष्ट करने में मदद करती है, यह ध्यान देना जरूरी है।
जब डॉक्टर तय करते हैं कि इनफ्लेमेशन फेफड़ों को नुकसान पहुंचा रही है, तब ही वे स्टेरॉइड्स का इस्तेमाल करते हैं। यह फैसला डॉक्टरों पर ही छोड़ें, खुद न लें। अगर सही समय पर डेक्सामेथाजोन दिया जाता है तो मरीज को ऑक्सीजन लेने में मदद मिलती है। मरीज को वायरस से लड़ने के लिए अतिरिक्त समय मिल जाता है।
ज्यादातर मरीजों को स्टेरॉइड्स की जरूरत नहीं होती और उनका इलाज इन दवाओं के बिना भी हो सकता है। अगर स्टेरॉइड्स को गलत वक्त पर दिया जाए (यानी जब ऑक्सीजन का स्तर 91-92 हों) तब रिकवरी में देर लग सकती है। जब ऑक्सीजन लेवल 88-89 के बीच ऊपर-नीचे हो रहा हो, तब ही स्टेरॉइड्स की सलाह दी जाती है।
वहीं, डॉ. बेहरा के मुताबिक स्टेरॉइड डेक्सामेथाजोन 10 दिन तक रोज 6 मिग्री दिया जाता है। इसके अलावा प्रेडनीसोन और मिथाइल प्रेडनीसोन भी दिए जा रहे हैं। पर यह उन्हें ही दिया जा सकता है, जो पेशेंट्स अस्पताल में भर्ती हैं। यह दवा देने से पहले कई जांच करनी आवश्यक होती है। स्टेरॉइड से शुगर लेवल बढ़ सकता है। हाइपरटेंशन या डाइबिटीज के रोगियों में काफी कुछ चीजें देखनी होती हैं। उन्हें और भी समस्याएं सामने आ सकती हैं, जिसे लेकर डॉक्टरों को सतर्क रहना होता है।

क्या ब्लड थिनर का इस्तेमाल भी इलाज में हो रहा है?

हां। पर यह पूरी तरह से लक्षणों पर निर्भर करता है। डॉ. जरिया कहते हैं कि कई मरीज ब्लड क्लॉट्स की शिकायत कर रहे हैं। खून एक ऐसा इकलौता तरल पदार्थ है जो शरीर से बाहर आते ही जम जाता है। इन्फेक्शन होने पर शरीर की आंतरिक व्यवस्था गड़बड़ा जाती है। पर हर मरीज में ब्लड क्लॉट नहीं होते।
जिन मरीजों में क्लॉट्स होते हैं, उनकी हालत देखकर डॉक्टर तय करता है कि एंटीकोगुलेंट्स देना है या नहीं। यह एंटीकोगुलेंट्स ही क्लॉट्स की वजह से पैदा होने वाली जटिलताओं को दूर करते हैं और शरीर में ऑक्सीजन फ्लो को बनाए रखने में मदद करते हैं।
वहीं, डॉक्टर. पांड्या कहते हैं कि इन्फेक्टेड मरीजों के ब्लड टेस्ट में मार्कर बताते हैं कि क्लॉटिंग हो रही है या नहीं। यह क्लॉटिंग फेफड़ों में या नसों में, कहीं भी हो सकती है। ऐसे मरीजों को ब्लड थिनर दिया जाता है, सबको नहीं। कितने समय तक देना है, यह कई बातों पर निर्भर करता है।

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