पोक्सो एक्ट में दीपक चौरसिया,सैयद सुहेल,चित्रा त्रिपाठी,अजीत अंजुम समेत आठ एंकरों पर आरोपपत्र
गलत खबर दिखाने के आरोपित कई बड़े पत्रकारों को कोर्ट में पेश होना पड़ा, सैयद सोहेल ने अदालत को गुमराह किया
नई दिल्ली 03 जून। जनजागरण मंच की ओर से दिल्ली प्रेस क्लब ऑफ इंडिया में प्रेस वार्ता का आयोजन किया गया। प्रेस वार्ता में पीड़ित पक्ष के सीनियर वकील श्री धर्मेंद कुमार मिश्रा, नीरज देसवाल, जन जागरण मंच की प्रवक्ता कोमल मल्होत्रा, राष्ट्र निर्माण की अध्यक्ष रागिनी तिवारी ने पत्रकारों को संबोधित करते हुए बताया कि एक नाबालिग बच्ची की वीडियो को तोड़-मरोडक़र प्रसारित करने में बीते गत 6 जून को अतिरिक्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश शशि चौहान की अदालत में सुनवाई हुई।
इस मामले के 8 में से 7 आरोपित दीपक चौरसिया, अजीत अंजुम, चित्रा त्रिपाठी, राशिद, ललित सिंह, सुनील दत्त और अभिनव राज अदालत में पेश हुए। इन सभी आरोपितों को चार्जशीट की प्रतियां भी उपलब्ध कराई गई। एक आरोपित वर्तमान में रिपब्लिक टीवी के सीनियर ऐंकर सैयद सोहेल अदालत में पेश नहीं हुए। अदालत ने सैयद सोहेल के खिलाफ गैर जमानती वारंट जारी करते हुए आदेश दिया कि वह 20 जुलाई को अदालत में पेश हों। साथ ही न्यायालय से झूठ बोलकर गुमराह किये जाने के आशय से गलत बयान दिए जाने को लेकर पीड़ित पक्ष की दाखिल अर्जी पर सुनवाई करते हुए न्यायालय ने नोटिस भी जारी किया है।
दरअसल गत 7 जून को सैयद सोहेल को न्यायालय में पेश होना था लेकिन मोहम्मद सैयद सोहेल ने न्यायालय में पेश न होकर अपने वकील के माध्यम से एक अर्जी के माध्यम से बीमारी का हवाला देकर अगली तारीख में पेश होने का वक़्त मांगा था, जिस पर न्यायालय में आरोपित सैयद शोहेल को अगली तारीख में पेश होने का वक्त दिया। लेकिन उसी 7 जून दोपहर करीब 3 बजे व रात्रि 9 बजे उन्हें लाइव में देखा गया। इसके बाद पीड़ित पक्ष के वकील ने मोहम्मद सोहेल के विरूद्ध झूठ बोलकर न्यायालय को ग़ुमराह किये जाने को लेकर दायर याचिका के माध्यम से कार्यवाही की मांग की।
याचिका में पीड़ित पक्ष के वकील ने यह आरोप लगाया है कि सैयद सोहेल 6-7-8 जून को लाइव कार्यक्रम में देखा गया जिसकी फुटेज भी न्यायालय को दी गयी है। साथ ही पीड़ित पक्ष के अधिवक्ता धर्मेन्द्र कुमार मिश्रा ने बताया कि इस मामले में नामित अन्य व्यक्तियों को आरोपित न बनाने का मामला भी अदालत में उठाया। अदालत ने आरोप पत्र दाखिल करनेवाले अनुसंधान अधिकारी को नोटिस भी जारी किया और अगली सुनवाई जो कि 20 जुलाई को होनी है, उस पर उपस्थित होने का आदेश भी दिया।
इस मामले की पैरवी कर रहे जन जागरण मंच की प्रवक्ता कोमल मल्होत्रा ने कहा कि अब कुछ उम्मीद बंधी है कि पीड़िता को अदालत से न्याय मिल सकेगा।
गौरतलब है कि वर्ष 2013 की 2 जुलाई को पालम विहार क्षेत्र के सतीश कुमार (काल्पनिक नाम) के घर संत आसाराम बापू आए थे। बापू ने परिवार के सदस्यों सहित उनकी 10 वर्षीय भतीजी को भी आशीर्वाद दिया था। उस समय सतीश के घर के कार्यक्रम की वीडियो आदि भी बनाई गई थी। बापू आसाराम प्रकरण के बाद न्यूज़ 24, न्यूज़ नेशन, इंडिया न्यूज टीवी चैनलों ने बनाई गई वीडियो को प्रसारित किया था।
परिजनों ने आरोप लगाए थे कि उनकी व आसाराम बापू की छवि धूमिल करने के लिए वीडियो को तोड़-मरोडक़र अश्लील अभद्र तरीके से प्रसारित किया गया था। साथ ही पीड़िता व उनके परिवार को दलाल, लड़की सप्लायर बताकर साथ ही उनके घर को गुफा कांड, अश्लीलता का अड्डा बताकर पेश किया था। इससे परिवार व मासूम बालिका को मानसिक व सामाजिक रुप से कष्ट झेलना पड़ा था। आहत होकर परिजनों ने पालम विहार पुलिस थाना में 2013 में ज़ीरो FIR दर्ज कराई थी।
ज़ीरो एफआईआर से पूर्ण एफआईआर दर्ज होने में दो वर्ष लग गए। उसके बाद भी पुलिस द्वारा 2 साल तक कार्यवाही नहीं कर मामले को बंद कर दिया गया था। इस मामले में आरोपियों को बचाने हेतु गुरूग्राम पुलिस द्वारा भरसक प्रयास किया गया। लेकिन जब यह मामला हाइकोर्ट पहुँचा और हाइकोर्ट ने संज्ञान लेकर अपनी निगरानी में रखते हुए पुलिस को आदेशित किया तो मजबूरन पुलिस को कार्यवाही हेतु बाध्य होना पड़ा। इसके बाद दीपक चौरसिया, चित्रा त्रिपाठी, अजित अंजुम, अभिनव राज, सुनील दत्त, ललित सिंह आदि के विरुद्ध 2020- 21 में दाखिल की गई चार्जशीट में विभिन्न धाराओं 120b, 469, 471,आईटी एक्ट 67 b, पोक्सों एक्ट 13c, 14(1) 180 में 10 साल की बच्ची और उनके परिवार के ‘संपादित’ व ‘अश्लील’ वीडियो दिखाने, और उन्हें आसाराम बापू के यौन उत्पीड़न मामले से जोड़ने को नामित किया गया.
दाखिल चार्जशीट में पुलिस ने दावा किया कि आरोपितों को गिरफ्तार करने से “कानून व्यवस्था” बिगड़ सकती है। जिस पोक्सो में पुलिस को आरोपितों की गिरफ्तारी कर बाद में चार्जशीट पेश करनी चाहिए थी, ऐसे मामले में पुलिस ने बगैर गिरफ्तार किये ही चार्जशीट पेश की, जबकि दीपक चौरसिया ने पुलिस को जाँच में सहयोग भी नही किया है।
पीड़ित परिवार को सेशन कोर्ट से सुप्रीम कोर्ट तक संघर्ष करना पड़ा है क्योंकि पुलिस ने जानबूझकर मामले को करीब तीन बार बंद कर दिया था। आरोपितों ने मामला दबाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। वर्तमान में मामला न्यायालय में है।