सात गुण जिन्होंने टाटा को बनाया भारतीयों की आंखों का तारा

वे 7 खूबियां जिनके कारण उद्योगपति रतन टाटा हर भारतीय के दिल में बसे रहेंगे
रतन टाटा के जीवन में सात खूबियां रही हैं- लीडरशिप, साहसिक फैसले, समय के साथ चलना, परोपकार और सामाजिक दायित्व, गरिमा, सादगी और देश के लिए समर्पण.

देहरादून 10 अक्टूबर 2024.भारत के रतन कहे जाने वाले दिग्गज उद्योगपति रतन टाटा (Ratan Tata) का गुरुवार को मुंबई में राजकीय सम्मान के साथ अंतिम संस्कार कर दिया गया. रतन टाटा सिर्फ एक बिजनेसमैन नहीं, बल्कि सादगी से भरे नेक और दरियादिल इंसान थे. वे लोगों के लिए आदर्श और प्रेरणास्रोत भी थे. रतन टाटा का 86 साल का जीवन कई खूबियों से भरा रहा है.

रतन टाटा के जीवन में सात खूबियां रही हैं- लीडरशिप, साहसिक फैसले, समय के साथ चलना, परोपकार और सामाजिक दायित्व, गरिमा, सादगी और देश के लिए समर्पण.

1.लीडरशिप
1-पूरी रणनीति के साथ नए प्रोजेक्ट में उतरना
2-हर स्थिति में टीम का उत्साह बढ़ाना
3-फैसले लेना और उन्हें सही साबित करना
4-नाकामी से घबराना नहीं सबक सीखना

2.साहसिक फैसले
1-रिस्क लेने को हमेशा तत्पर
2-नैनो कार प्रोजेक्ट की शुरुआत
3-लैंड रोवर और जगुआर का अधिग्रहण
4-एयर इंडिया को खरीदना
5-अन्य कई विदेशी कंपनियों का अधिग्रहण
6-रिस्क लिया और टाटा को ग्लोबल बनाया

3. समय के साथ का चलना
1-TCS जैसी बड़ी आईटी सर्विस कंपनी खड़ी करना
2-बिग बास्केट के जरिए ई-कॉमर्स में एंट्री
3-1mg के जरिए ऑनलाइन मेडिसिन में एंट्री
4-स्टारबक्स के ज़रिए रिटेल कॉफी मार्केट में धमक
5-फैशन ब्रैंड जूडियो की शुरुआत करना

4. परोपकार और सामाजिक दायित्व
1-देश के कई शहरों में कैंसर अस्पताल
2-टाटा मेमोरियल अस्पताल की स्थापना
3-नवी मुंबई में कुत्तों के लिए अस्पताल
4-टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेस की स्थापना
5-गरीबों के रोजगार के लिए कई योजनाएं
6-नैनो कार प्रोजेक्ट के केंद्र में आम आदमी ही था
7-कोरोना काल में 500 करोड़ की राशि दी

5. गरिमा
1-कामयाबी पर हल्ला नहीं करना
2-नाकामी से घबराना नहीं
3-शब्दों से कम और काम से ज्यादा बोलना
4-हमेशा सिद्धांतों पर चलना

6. सादगी
1-चकाचौंध से हमेशा दूर
2-सरल सोच और सादगीपूर्ण जीवन
3-हमेशा जिज्ञासु और नया जानने को उत्सुक
4-कंपनी के सामान्य कर्मचारियों से भी आत्मीय व्यवहार

7. देश के लिए समर्पण
1-देश की आर्थिक प्रगति में अहम योगदान
2-टाटा को ग्लोबल बनाकर देश का मान बढ़ाया
3-कानूनी दायरों का हमेशा सम्मान
4-बिजनेस में हमेशा नीति और सिद्धांत पर चलना

राष्ट्र निर्माण और वैश्विक पहचान 

टाटा केमिकल्स के पूर्व सीएफओ पीके घोष ने कहा, रतन टाटा जी के साथ मैं दोनों कंपनी टाटा स्टील और टाटा केमिकल्स में 25 साल इनवॉल्व्ड था. उन्हें हमेशा याद करेंगे लोग. इंस्टीट्यूशन बिल्डिंग का उनका मेन गोल था और इसके साथ नेशन बिल्डिंग का एक गोल था. यह सब उनकी लीडरशिप क्वालिटी थीं. दूसरी बात यह है कि जेआरडी टाटा के समय से वे एक स्टैप आगे बढ़े. उन्होंने देखा कि हमको इंडिया के शोर से बाहर जाना है, ग्लोबल फूटप्रिंट लाना है, टेक्नालॉजी लाना है. मैं आपको दो उदाहरण देता हूं. टाटा स्टील में एक कहानी चलती है कि एक जमाने में नाइंटीज में जब रतन टाटा ने चार्ज लिया था, तो उनका विचार था कि अगर आधुनिकरण नहीं किया गया तो इस कंपनी में हम लोग स्क्रैप बेचेंगे. उस दिन के बाद आधुनिकीकारण किया गया. दूसरी बात जो ग्लोबल फूटप्रिंट था उसका एक उदाहरण जगुआर लैंड रोवर है. यहां पर पूरी नई टेक्नालॉजी, नए टाइप की कारें सब लाई गईं.

मैं करके दिखाऊंगा…
द ब्रैंड कस्टोडियन के लेखक मुकुंद राजन ने रतन टाटा के साहसिक फैसलों को लेकर कहा कि, यह बोल्डनेस ऑफ विजन है उनका कि वे एक बहुत एंबीशन बना सकते थे और फिर सबको इंस्पायर करना कि ये एंबीशन हम डिलीवर कर सकते हैं. भले ही कुछ साल लग जाएं लेकिन हम उस मंजिल तक पहुंच सकते हैं, जो पहले कभी कोई कंपनी इंडिया में नहीं कर पाई. जैसे उन्होंने टाटा इंडिका का विजन बनाया, इंडिया की सबसे पहली डोमेस्टिकली मैन्युफैक्चर्ड पैसेंजर कार. जिस समय उन्होंने यह विजय बनाया, बहुत सारे लोग कहते थे कि इंडिया में तो कार नहीं बन सकती. वो विदेशी निर्माता आएंगे, वे बनाएंगे और वे सफल रहेंगे. तो उन्होंने इस पर कुछ कहा नहीं. उनकी एक कहावत थी क्वैश्चन या अनक्वैश्चन.. तो जो भी कोई कहता है कि ये नहीं हो सकता तो मिस्टर टाटा कहते हैं कि नहीं मैं करके दिखाऊंगा.

राजन ने कहा कि, उनका एक बोल्डनेस ऑफ विजन था लेकिन यही सब कुछ नहीं होता, उसके साथ अच्छे प्लान बनाने होते हैं, एक अच्छी टीम बनानी होती है. अगर बाहर से हमको टैलेंट की जरूरत है तो वह भी लाना होता है. टाटा इंडिका का उन्होंने एक इटालियन डिजाइन हाउस से डिजाइन वर्क करवाया जिसकी वजह से वह बहुत अटरैक्टिव प्रोडक्ट बनी. जहां से भी रिसोर्सेज मंगवा सकते थे वे मंगवाकर उन्होंने करके दिखाया.

और दुनिया में नंबर टू सोडा एश कंपनी बन गई..
समय के साथ टाटा ग्रुप ने अलग-अलग क्षेत्रों में विस्तार किया. उन्होंने प्रोडक्ट और सर्विसेज में बैलेंस बनाया. इसने टाटा ग्रुप को अलग पहचान दिलाई. इस बारे में पीके घोष ने कहा कि, पहले टाटा केमिकल्स एक कंपनी थी जो सोडा एश बनाती थी. साल्ट था उसका, फर्टिलाइजर था. 2001 में यह कंपनी प्राइजेस के कारण और दूसरे कारणों से काफी गिर गई थी. बोलते हैं ना घुटने में आ जाना, वहां पहुंच गई थी. उसके बाद बोल्डनेस दिखाई गई और हम लोगों ने एक के बाद एक एक्वीजीशन किए भारत में और बाहर. पहले हिंदुस्तान यूनी लीवर जो हिंदुस्तान लीवर का एक सबसाइडरी था हल्दिया में, वह फर्टिलाइजर कंपनी थी, हम लोग वहां गए. यूके में ब्रूनो मोंड एक सोडा एश कंपनी को लिया. उसके बाद गए केन्या में जहां हम लोगों ने एक और सोडा एश कंपनी ली. उसके बाद USA गए जहां हम लोगों ने जनरल केमिकल्स लिया. इसके बाद हमारा सोडा एश जो बनता है केन्या में और अमेरिका में नेचरल प्रोसेस में माइनिंग किया जाता है. और इससे इसकी क्वालिटी बहुत ज्यादा अच्छी होती है. हम लोग नंबर टू सोडा एश कंपनी इन द वर्ल्ड गए.

मालिक और मजदूर का कॉन्सेप्ट नहीं
रतन टाटा को उनके सामाजिक दायित्वों के निर्वहन और परोपकार के लिए भी जाना जाता है. कोरोना काल में उन्होंने 500 करोड़ रुपए का योगदान दिया. तब टाटा के कर्मचारियों के लिए उन्होंने क्या किया? इस सवाल पर टाटा वर्कर्स यूनियन के उपाध्यक्ष शाहनवाज आलम ने कहा कि, वे जब जमशेदपुर आते थे और हम लोगों से मिलते थे तो बोलते थे कि मालिक और टाटा में कोई मालिक और मजदूर का कॉन्सेप्ट नहीं है, सभी सहकर्मी हैं. सब एक साथ मिलकर काम करते हैं. सभी अपने हृदय से अपने दिल से, अपनी आत्मा से उनको अभिभावक ही मानते थे. कभी उनको मालिक के तौर पर नहीं देखा और वे भी कभी अपने मजदूरों को अपने नौकर की तरह नहीं समझते थे. टाटा ने भी अपनी जब शुरुआत की थी तो इसी टाटा स्टील कंपनी के लाइम प्लांट, जिसे चूना भट्टा बोलते हैं, से अपनी जिंदगी की शुरुआत की थी. तो उनको मालूम था कि मजदूर का दर्द क्या होता है. इसलिए उन्होंने अपनी पूरी उम्र में मजदूर की भलाई को बहुत सारी स्कीम लॉन्च कीं.

रतन टाटा के वो पाँच फ़ैसले, जिनका असर भारतीयों पर सीधा पड़ा
रतन टाटा
टाटा समूह के पूर्व चेयरमैन और मशहूर उद्योगपति रतन टाटा ने बुधवार की रात 86 साल की उम्र में आख़िरी सांस ली. मुंबई के ब्रीच कैंडी अस्पताल में उनका निधन हुआ.
पद्म विभूषण से सम्मानित रतन टाटा ने 21 साल तक टाटा समूह का नेतृत्व किया. जेआरडी टाटा ने उन्हें साल 1991 में टाटा इंडस्ट्रीज़ का प्रमुख बना दिया था. तब उदारीकरण शुरू हो रहा था और रतन टाटा ने दुनिया भर में पांव पसारने शुरू किए.
उनके नेतृत्व में टाटा समूह ने न सिर्फ़ भारत बल्कि वैश्विक स्तर पर पहचान बनाई.

अपने करियर के दौरान रतन टाटा ने कई ऐसे फ़ैसले लिए, जिन्होंने भारतीय उद्योग जगत को न सिर्फ़ मज़बूत किया बल्कि एक गहरी छाप भी छोड़ी.

टीसीएस
1- सूचना क्रांति
जब सूचना माध्यमों के प्रसार का युग आया तो जहांगीर रतन जी दादा भाई टाटा (जेआरडी टाटा) ने 1968 में टाटा कंसल्टेंसी सर्विस की स्थापना की. इसका मक़सद था कि कंपनी का पेपरवर्क कंप्यूटर के ज़रिए हो.

टीसीएस (टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज) की कहानी एक छोटे से बिज़नेस से शुरू हुई थी लेकिन आज की तारीख़ में यह 15 लाख करोड़ रुपये की कंपनी में बदल चुकी है.

टीसीएस एक भारतीय बहुराष्ट्रीय तकनीकी कंपनी है जो 54 देशों में आईटी सेवाएं देती है.

रतन टाटा के नेतृत्व में टीसीएस ने साल 2002 में जीई मेडिकल सिस्टम के साथ 10 करोड़ डॉलर का अनुबंध साइन किया. इससे पहले किसी भारतीय आईटी कंपनी ने इतना बड़ा अनुबंध नहीं किया था.

कंपनी ने साल 2004 में आईपीओ से क़रीब 100 करोड़ डॉलर जुटाए थे.

इस वक़्त टीसीएस का मार्केट कैप 15 लाख करोड़ रुपए से भी ज़्यादा का है और वह भारत में रिलायंस इंडस्ट्रीज के बाद भारत की दूसरी सबसे बड़ी कंपनी है.

2- भारत की पहली स्वदेशी कार
1998 में टाटा मोटर्स ने भारत की पहली स्वदेशी कार को लॉन्च किया
1998 में टाटा मोटर्स ने भारत की पहली स्वदेशी कार को लॉन्च किया. इस कार का नाम टाटा इंडिका था. यह ना केवल भारतीय कार थी बल्कि इसका पूरा डिजाइन और इसे बनाने का काम भी भारत में ही हुआ था.

टाटा इंडिका को लॉन्च करना रतन टाटा के लिए एक बड़ा फैसला था क्योंकि वे पहली बार इस सेक्टर में क़दम रख रहे थे.

शुरुआत में इसे अच्छी प्रतिक्रिया नहीं मिली और रतन टाटा ने इसे फ़ोर्ड मोटर कंपनी को बेचने का फ़ैसला किया.

लेकिन जब फ़ोर्ड मोटर्स ने टाटा पर यह ताना मारा कि अगर वो इंडिका को ख़रीदते हैं तो वो भारतीय कंपनी पर बड़ा उपकार करेंगे.

यह बात रतन टाटा को पसंद नहीं आई और उन्होंने अपने क़दम पीछे खींच लिए. एक दशक बाद हालात ऐसे बदले. 2008 में फ़ोर्ड कंपनी बड़े वित्तीय संकट में फंस गई.

इस समय रतन टाटा सामने आए और टाटा मोटर्स ने ब्रिटिश लग्जरी कार ब्रांड जगुआर और लैंड रोवर को फोर्ड से 2.3 अरब डॉलर में ख़रीद लिया.

3- टेटली और कोरस का अधिग्रहण

2000 में रतन टाटा ने टाटा से दोगुने बड़े ब्रिटिश समूह टेटली का अधिग्रहण कर सबको चौंका दिया था.

इसके बाद साल 2007 में रतन टाटा ने एक और बड़ा फैसला लिया. उन्होंने यूरोप की स्टील कंपनी कोरस का अधिग्रहण कर लिया.

क़रीब 13 अरब डॉलर की इस डील ने टाटा स्टील को दुनिया की पांचवी सबसे बड़ी स्टील निर्माता कंपनी बना दिया.

आलोचकों ने इस सौदे की समझदारी पर सवाल उठाए लेकिन टाटा समूह ने इस कंपनी को लेकर एक तरह से अपनी क्षमता का प्रमाण दिया.

यह पहली बार था, जब किसी भारतीय कंपनी ने इतना बड़ी विदेशी कंपनी का अधिग्रहण किया था. इस फ़ैसले से रतन टाटा ने बताया कि टाटा कंपनी अंतरराष्ट्रीय बाज़ारों में भी बड़ी डील कर सकती है.

4- नैनो: आम आदमी की कार
साल 2009 में रतन टाटा ने नैनो कार लॉन्च की
रतन टाटा का सबसे चर्चित और महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट टाटा नैनो था.

साल 2009 में उन्होंने यह कार लॉन्च की, जिसे दुनिया की सबसे सस्ती कार के तौर पर प्रचारित किया गया.

रतन टाटा का सपना था कि हर भारतीय परिवार जो मोटरसाइकिल पर सफ़र करता है, वह एक सुरक्षित और किफायती कार ख़रीद सके.

हालांकि इस कार को वो सफलता नहीं मिल पाई, जिसकी उम्मीद लगाई गई थी, लेकिन इसने भारतीय ऑटोमोबाइल बाजार में एक नई लक़ीर खींचने का काम किया.

नैनो को बनाने में भी रतन टाटा को मुश्किलों का सामना करना पड़ा. दरअसल 2006 में पश्चिम बंगाल के सिंगूर में टाटा नैनो का प्लांट तैयार हुआ.

इस प्लांट के लिए स्थानीय किसानों से ज़मीन ली गई लेकिन जल्द ही किसानों के प्रदर्शन एक बड़े आंदोलन में बदल गए और आख़िरकर 2008 में टाटा ने सिंगूर प्लांट बंद कर दिया.

उन्हें तब गुजरात के मुख्यमंत्री रहे नरेंद्र मोदी ने नैनो की फैक्ट्री गुजरात के साणंद में लगाने का ऑफर दिया.

5- टाटा एयरलाइंस से एयर इंडिया का सफ़र

टाटा ग्रुप के पूर्व चेयरमैन जेआरडी टाटा देश के पहले व्यक्ति थे, जिनके पास पायलट होने का लाइसेंस था. 24 साल की उम्र में ही उन्होंने इसे हासिल कर लिया था.

उन्होंने 1932 में टाटा एयरलाइन की शुरुआत की. दूसरे विश्व युद्ध के बाद जब विमान सेवाओं को बहाल किया गया तब 29 जुलाई 1946 को टाटा एयरलाइंस एक पब्लिक लिमिटेड कंपनी बन गई.

आज़ादी के बाद यानी साल 1947 में भारत सरकार ने टाटा एयरलाइंस का ही राष्ट्रीयकरण कर देश की आधिकारिक एयरलाइंस एयर इंडिया बना दिया.

लेकिन जनवरी, 2022 में एयर इंडिया की टाटा ग्रुप में सात दशक के बाद वापसी हुई. टाटा ने क़र्ज़ में डूबी एयर इंडिया की 100 फ़ीसदी हिस्सेदारी 18 हजार करोड़ रुपये में ख़रीद ली थी.

उस वक़्त रतन टाटा ने एयर इंडिया की ‘घर वापसी’ का स्वागत करते हुए कहा था, “टाटा समूह का एयर इंडिया की बोली जीतना एक बड़ी खबर है. एयर इंडिया को फिर से खड़ा करने के लिए हमें काफ़ी कोशिश करनी होगी.”

उनका कहना था, “भावनात्मक रूप से कहें तो जेआरडी टाटा के नेतृत्व में एयर इंडिया ने एक समय में दुनिया की सबसे प्रतिष्ठित एयरलाइंस में से एक का रुतबा हासिल किया था. शुरुआती सालों में एयर इंडिया की जो साख और सम्मान थे, टाटा समूह को उसे फिर से हासिल करने का एक मौक़ा मिला है.”

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