विदेशों में दर्जनों बन चुकी ‘द केरला स्टोरी’ जैसी फिल्में
भारत ही नहीं, कई देशों में बन चुकी हैं The Kerala Story जैसी फिल्में, जानिए, क्या हुआ उनका हाल
देहरादून 11 मई । द केरल स्टोरी लगातार धूप-छांव झेल रही है. कई राज्य इसे बैन कर चुके, तो कुछ ने टैक्स-फ्री कर दिया. डायरेक्टर सुदीप्तो सेन की मूवी उन औरतों की कहानी है जिन्हें धर्मांतरण के बाद सीरिया ले जाकर इस्लामिक स्टेट (ISIS) का हिस्सा बना दिया गया. इसकी स्टोरी लाइन ही बवाल की असल वजह है. दुनिया के कई हिस्सों में इसी मसले पर फिल्में बनकर रिलीज भी हो चुकी और कोई हाय-तौबा नहीं मचा.
द केरला स्टोरी फिल्म पर राज्य अलग-अलग रिएक्शन दे रहे हैं.
पश्चिम बंगाल और तमिलनाडु में द केरल स्टोरी पर बैन लग चुका. राज्य सरकारों ने कथित तौर पर शांति बनाए रखने को फिल्म पर रोक लगाई. हो सकता है कि आने वाले दिनों में कई और राज्य भी इस पर रोक लगा दें. बैन के पीछे दलील दी जा रही है कि इसमें दिखाई गई बातें एक धर्म विशेष की इमेज खराब कर सकती हैं. वहीं फिल्म के डायरेक्टर सुदीप्तो सेन का कहना है कि मूवी मजहब नहीं, बल्कि चरमपंथी सोच के खिलाफ है. ये तो हुई द केरल स्टोरी की बात, लेकिन कई देश इसी मुद्दे पर फिल्में और डॉक्युमेंट्री बनाकर दिखा भी चुके हैं.
क्यों और कैसे पश्चिम की लड़कियों को टारगेट करता था ISIS
असल में ISIS सिर्फ हथियारों के दम पर सबसे क्रूर आतंकी गुट नहीं बना, बल्कि इसके पीछे उसकी खास रणनीति थी. वो अपने पुरुष जेहादियों को महिलाएं भी उपलब्ध कराते थे. ये सीरिया या इराक की औरतें तो होती ही थीं, साथ में वो खासतौर पर कम उम्र की पश्चिमी लड़कियों को टारगेट करता.
इनकी सोच ये थी कि कम उम्र लड़कियां ज्यादा से ज्यादा संतानें पैदा करेंगी जो जन्मजात जेहादी सोच लिए होंगी और ट्रेनिंग में खास मशक्कत नहीं करनी पड़ेगी. पश्चिम से इंपोर्ट ये औरतें या तो किसी मिलिटेंट की पत्नी बनाई जातीं, या यौन गुलाम की तरह जिंदगी जीती रहतीं।
दुनियाभर में क्यों बन रही हैं ‘द केरला स्टोरी’ जैसी फिल्में, जानें इस बारे में सब कुछ
द केरला स्टोरी लड़कियों के धर्मांतरण पर बनी दुनिया की पहली फिल्म नहीं है. दुनियाभर में ऐसी दर्जनों फिल्में और डॉक्यूमेंट्रीज बन चुकी हैं।
हाइलाइट्स
1-पश्चिमी देशों ने महिलाओं के आतंकी संगठनों में शामिल होने के कारण जानने के लिए कई शोध किए हैं.
2-स्वीडन से लेकर ब्रिटेन और अमेरिका से लेकर फ्रांस तक में इस विषय पर फिल्में व डॉक्यूमेंट्रीज बनी हैं.
‘द केरला स्टोरी’ फिल्म पर बंगाल और केरल में रोक लगाई गई तो मध्यप्रदेश, उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में कर मुक्त भी हुई। वहीं, दूसरी तरफ इसका बॉक्स ऑफिस कलेक्शन तेजी से बढ़ रहा है. ये फिल्म हिंदू, ईसाई या किसी दूसरे धर्म की लड़कियों का धर्मांतरण कर मुस्लिम बनाने और फिर आईएसआईएस जैसे आतंकी संगठनों के लिए काम करने को मजबूर करने के गंभीर विषय पर बनी है. ब्रिटेन में कहा जाता है कि इस्लामी चरमपंथी संगठनों का युवा लड़कियों को तैयार करना या केरल में प्रलोभन के जरिये लड़कियों को धर्मांतरण करने को तैयार करने में कई समानताएं हैं. ये ऐसा उग्र उपराध है, जो दुनिया के कई देशों में हो रहा है.
दुनियाभर में इस सब्जेक्ट पर बनी फिल्मों में इस्लाम को मानने वाले चरमपंथी संगठनों का एक ही लक्ष्य दिखाया गया है. अधिकांश फिल्मों या डॉक्यूमेंट्रीज में दिखाया गया है कि किशोर लड़कियों का ब्रेनवॉश कर उन्हें अपने धर्म से मुस्लिम बनाया जाता है. फिर कट्टरपंथी संगठन उन्हें टूल बना कर आतंकवाद बढ़ाते हैं. उन्हें उनके ही पुराने धर्म के खिलाफ इस्तेमाल किया जाता है. उदाहरण को, आईएसआईएस ने दुनियाभर में युवाओं को आतंकी संगठन में शामिल करने को ब्रेनवॉश किया. इसके बाद आईएसआईएस में भर्ती कर उनका आतंकवाद में इस्तेमाल किया.
क्या होता है चरमपंथी संगठनों का प्राथमिक उद्देश्य
दुनियाभर में इस विषय पर बनी फिल्मों की चर्चा हम करें इसके पहले जानते हैं कि इस सब्जेक्ट पर पश्चिमी देशों की रिसर्च क्या कहती हैं? पश्चिमी देशों की कई रिसर्च में कहा गया है कि इस्लामवादी चरमपंथी संगठनों का प्राथमिक उद्देश्य लोकतांत्रिक समाजों की ओर से मिली आजादी का इस्तेमाल कर उन्हें भीतर से नष्ट करना है. दरअसल, लोकतांत्रिक समाज धर्म का पालन करने और प्रचार की स्वतंत्रता देते हैं. अध्ययनों के मुताबिक, ये समाज शायद यह नहीं देख पाए कि लोकतांत्रिक स्वतंत्रता की आड़ में किसी जगह के धर्म, संस्कृति व जनसांख्यिकी को बदलने के प्रयास भी किए जा सकते हैं. अंत में युवा लड़कियां ही इन कट्टरपंथी एजेंडों का खामियाजा भुगतती हैं.
आईएसआईएस ने दुनियाभर में युवा महिलाओं को आतंकी संगठन में शामिल होने के लिए ब्रेनवॉश किया.
पहली बार किसने इस्तेमाल किया ‘लव जिहाद’ शब्द?
भारत में पहली बार केरल के ईसाई गिरिजाघरों ने ‘लव जिहाद’ शब्द गढ़ा था. चर्च का कहना था कि इस्लाम का विस्तार करने को कट्टरपंथी लोगों की कार्यप्रणाली में ‘लव जिहाद’ भी शामिल रहा है. समय के साथ इसका स्वरूप और नाम बदलते रहे हैं, लेकिन इसका अंतिम लक्ष्य धर्मांतरण ही रहा है. कट्टरपंथी इस्लाम का प्रसार और देसी संस्कृति का अंत ही इनका लक्ष्य रहा है. पश्चिमी देशों ने राजनीतिक रूप से सही होने की कोशिश किए बिना इस समस्या से निपटा. वहीं, भारत में इस समस्या को प्रेम विवाह और युवाओं की आजादी बताकर ढकने की कोशिश होती रही है. इसके उलट पश्चिमी समाजशास्त्री धर्म परिवर्तन के मुद्दे पर काफी स्पष्ट राय रखते हैं.
क्या कहता है मॉडर्न स्लेवरी एविडेंस यूनिट का लेख
फरवरी 2020 में मॉडर्न स्लेवरी एविडेंस यूनिट रिसर्च ब्रीफिंग ने आईएसआईएस दासता पर एक लेख प्रकाशित किया. इसमें बताया गया था कि कैसे आईएसआईएस धर्म, लिंग और उम्र के आधार पर गुलामों के बीच भेदभाव करता है. अधिकांश गैर-मुस्लिम पुरुषों को मारना और गैर-मुस्लिम महिलाओं व बच्चों को गुलाम बनाना आईएसआईएस का उद्देश्य था. साल 2014 और 2017 के बीच इस्लामिक स्टेट ने अपनी रणनीति के तौर पर कई देशों के नागरिकों को संस्थागत रूप से गुलाम बनाया. यही नहीं, आतंकी संगठन ने इन गुलामों का सैन्य अभियानों और अपना शासन स्थापित करने की कोशिश में इस्तेमाल किया।
कैंब्रिज ने किसे बताया था ISIS की सफलता
मॉडर्न स्लेवरी एविडेंस यूनिट रिसर्च ब्रीफिंग के लेख के मुताबिक, आईएसआईएस ने धार्मिक आधार पर सार्वजनिक रूप से गुलामी और यौन हिंसा को वैध बनाने का प्रयास किया. आतंकी संगठन ने उत्तरी इराक के धार्मिक अल्पसंख्यक समूह यज़ीदी आबादी को टारगेट बनाया. आईएसआईएस ने यज़ीदी पुरुषों की बड़े पैमाने पर हत्या कर महिलाओं व बच्चों को गुलाम बनाया. कैंब्रिज ने नवंबर, 2018 में ‘कैंब्रिज यूनिवर्सिटी प्रेस’ में ‘क्यों पश्चिम की महिलाएं आईएसआईएस में शामिल हो रही हैं’ शीर्षक से एक लेख प्रकाशित किया. इसमें कहा गया था कि पश्चिम की महिलाओं को आकर्षित करने में आईएसआईएस सफल रहा है, जो अब तक कोई दूसरा जिहादी संगठन नहीं कर पाया था.
महिलाएं आईएस में शामिल होने को प्रेरित क्यों?
कैंब्रिज यूनिवर्सिटी प्रेस का लेख बताता है कि महिलाओं को इस तरह के कुख्यात आतंकवादी समूह में शामिल होने के लिए आखिर क्या प्रोत्साहित करता है, जबकि ये संगठन अपनी हिंसा, दुर्व्यवहार और दासता के लिए पूरी दुनिया में बदनाम है. वेबसाइट कैंब्रिज डॉट ओआरजी पर प्रकाशित लेख के अनुसार इस्लामिक स्टेट ऑफ इराक एंड सीरिया में शामिल होने को 550 से अधिक पश्चिमी महिलाएं सीरिया व इराक चली गई हैं. ये उसकी बड़ी सफलता है. इस सफलता के कारण समझने को यह जानना जरूरी है कि आईएसआईएस पश्चिम की महिलाओं को कैसे लुभाता है? साथ ही ये जानना भी जरूरी है कि इस्लामिक स्टेट महिलाओं को क्या भूमिका देता है?
आईएसआईएस की युवाओं से क्या रही है अपील
सीएनएन के 25 फरवरी 2015 को ‘युवाओं के लिए आईएसआईएस की अपील क्या है’ शीर्षक से प्रकाशित लेख में बताया गया था कि कैसे आतंकी संगठन ने युवा महिलाओं को लुभाने के प्रयास तेज किए. कैसे संभव हुआ कि पश्चिमी देशों समेत दुनियाभर की लड़कियां आतंकी संगठन के क्रूर नियंत्रण वाले क्षेत्र सीरिया और इराक में उसके लड़ाकों के लिए दुल्हनें बन कर जाने को तैयार हो गईं. लेख के अनुसार लड़कियों को खलीफा की शेरनियां बताया जाता था. साथ ही उन्हें लड़ाकों की ड्रेस में हैंड टू हैंड कॉम्बेट की ट्रेनिंग लेती दूसरी लड़कियों की तस्वीरें दिखाई जाती हैं. इससे लड़कियां काफी प्रभावित हो जातीं और आईएस में शामिल होने के लिए प्रेरित होतीं.
क्या था ‘शहीद की पत्नी हैं तो…’ का मतलब
द गार्जियन ने 24 जून 2015 को ‘आइसिस ब्राइड्स की गुप्त दुनिया: अगर आप एक शहीद की पत्नी हैं तो आपको किसी चीज के लिए भुगतान नहीं देना होगा’ शीर्षक से लेख प्रकाशित किया. इसमें भी सवाल उठाया गया था कि इस्लामिक स्टेट के हिंसक जिहाद में शामिल होने को पश्चिमी देशों की महिलाओं को क्या आकर्षित करता है? नबीला जाफर ने इस लेख के लिए उन ब्रिटिश व अमेरिकी महिलाओं से महीनों बात की जिन्होंने आईएस में शामिल होने को सीरिया की यात्रा की. उन्होंने बताया कि पश्चिम की महिलाओं को भरोसा मिलता था कि अगर वे शहीद की विधवा होंगी तो उन्हें समाज में बेहतर दर्जा मिलेगा और उनका भविष्य सुरक्षित होगा. दुनियाभर में ऐसे दर्जनों लेख और शोध प्रकाशित हो चुके हैं।
ISIS की यह दुल्हन 100 इस्लामिक लड़ाकों की संतानों की मां बनना चाहती थीं
किस देश में इस विषय पर कौन सी फिल्म बनी
द केरला स्टोरी अपनी तरह की या इस विषय पर बनी इकलौती फिल्म नहीं है. लव जिहाद, धर्मांतरण, आतंकी संगठनों के दूसरे धर्म की महिलाओं का इस्तेमाल को लेकर दुनियाभर में दर्जनों फिल्में व डॉक्यूमेंट्रीज बनाई गई हैं. इन सभी फिल्मों और डॉक्यूमेंट्रीज में ये जानने की कोशिश की गई है कि कैसे पश्चिमी देशों की पढ़ी लिखी महिलाएं आतंकी और चरमपंथी संगठनों के झांसे में आकर अपनी जिंदगी बर्बाद कर लेती हैं.
नॉट विदआउट माई डॉटर
‘नॉट विदाउट माई डॉटर’1991 की अमेरिकी ड्रामा फिल्म है. ये फिल्म इसी नाम से छपी किताब पर आधारित है. ये फिल्म अमेरिकी नागरिक बेट्टी महमूदी और उसकी बेटी के ईरान में क्रूर पति से बचने की कहानी बयां करती है. इसमें एक सच्ची कहानी दिखाई गई थी. फिल्म को अच्छी प्रतिक्रिया मिली थी. किसी ने इस पर आपत्ति नहीं जताई थी।
स्वीडिश डॉक्यूमेंट्री ‘सबाया’
सबाया 2021 की एक स्वीडिश डॉक्यूमेंट्री फिल्म है. इसे होगीर हिरोरी ने डायरेक्ट, शूट और एडिट किया है. इसमें दिखाया गया कि इस्लामिक स्टेट ने 2014 में उत्तरी इराक के सिंजर प्रांत पर कब्जा करने के बाद हजारों कुर्द यज़ीदी पुरुषों का नरसंहार किया. यही नहीं, हजारों महिलाओं का अपहरण किया गया. इनसे आईएसआईएस आतंकियों ने बलात्कार किया और बाद में गुलामों की तरह बेच दिया. इसमें आईएसआईएस की बंदी महिलाओं की दुर्दशा दिखाई गई थी. डॉक्यूमेंट्री की सभी ने तारीफ की
वेब सीरीज ‘खलीफा’
खलीफा नेटफ्लिक्स पर 2020 में रिलीज हुई स्वीडिश वेब सीरीज है. कहानी तीन किशोरियों के वास्तविक जीवन पर आधारित है. इसमें दिखाया गया है कि लंदन की तीन किशोर लड़कियां फरवरी 2015 में अपने स्कूल में जिहाद को भर्ती करने वालों से मिलीं. फिर चरमपंथी संगठन के लड़के तीनों लड़कियों को प्यार के जाल में फंसाते हैं. फिर उन्हें भर्ती करके आईएस के लिए लड़ने को सीरिया जाने को मजबूर करते हैं. ये कहानी वास्तविक घटनाओं पर आधारित है और कई मायनों में द केरला स्टोरी की कहानी की तरह है.
फ्रांस की ‘हेवन विल वेट’
‘हेवन विल वेट’ फ्रांसीसी फिल्म है, जो दो मध्यवर्गीय लड़कियों को आईएसआईएस में भर्ती किए जाने की कहानी है. फिल्म में दिखाया गया है कि बाद में कैसे उन लड़कियों को जिहादी मंसूबे पूरा करने को काम करना पड़ता है. डच निर्देशक मिजके डी जोंग का नाटक ‘लायला एम’ एम्स्टर्डम में एक मोरक्कन परिवार की युवा मुस्लिम महिला के कट्टरपंथीकरण की कहानी के इर्दगिर्द बुना गया है. इस पर 2016 में फिल्म रिलीज हुई. फिल्म की समीक्षा करते हुए वैराइटी के स्कॉट टोबियास ने इसे ‘आतंकवादी भर्ती में प्रशंसनीय केस स्टडी’ कहा.
दर्दनाक ड्रामा ‘रसेबा: द डार्क विंड’
‘रसेबा: द डार्क विंड’ एक दर्दनाक ड्रामा था, जिसमें एक कुर्द यज़ीदी महिला की सच्ची कहानी दिखाई गई थी. यज़ीदी महिला को इराक में पकड़ लिया गया था. इसके बाद आईएसआईएस ने उसे गुलामी में नीलाम कर दिया था. बाद में सीरिया में उसके मंगेतर ने उसे बचाया. ‘डार्क विंड’ ने दुबई अंतरराष्ट्रीय फिल्म महोत्सव में शीर्ष पुरस्कार जीता. ब्रिटिश ब्रॉडकास्ट सर्विस चैनल ‘चैनल 4’ ने यूके और अन्य जगहों से आईएसआईएस में भर्ती होने को महिलाओं को लुभाने पर एक डॉक्यूमेंट्री प्रसारित की थी.
तरीना शकील का इंटरव्यू
ब्रिटेन में ‘दिस मॉर्निंग’ शो में अतिथि के तौर पर तरीना शकील को बुलाया गया था. वह आईएसआई में ‘द टोवी जिहादी’ नाम से भर्ती हुई थी. उसने इस्लामिक स्टेट में शामिल होने को बर्मिंघम से सीरिया तक की यात्रा की थी. वह आईएस के साथ तीन महीने बिताने के बाद ब्रिटेन लौटी तो 2016 में उसे जेल भेज दिया गया. शो में उसने बताया कि कैसे उसे ऑनलाइन तैयार किया गया और आईएसआईएस में शामिल होने को सीरिया पहुंचाया गया. किशोर लड़कियों हादा मुथाना और शमीमा बेगम ने आईएस में शामिल हो दुनियाभर में सुर्खियां बटोरी थीं. इनमें मुथाना अमेरिका और शमीमा ब्रिटेन से अपने घरों को छोड़कर सीरिया पहुंच गई थीं. ‘द रिटर्न: लाइफ आफ्टर आईएसआईएस’ में ऐसी ही पश्चिमी महिलाओं की कहानी है. इस फिल्म की किसी ने अलोचना नहीं की.
ब्रिटेन की शमीमा बेगम ने आईएस में शामिल होने के लिए दुनियाभर में सुर्खियां बटोरी थीं.
बीबीसी की ‘जिहादी ब्राइड्स’
बीबीसी की डॉक्यूमेंट्री ‘जिहादी ब्राइड्स’ बताती है कि कैसे 60 से ज्यादा युवा ब्रिटिश महिलाओं ने सीरिया में इस्लामिक स्टेट में शामिल होने को यात्रा की. इन महिलाओं को मार्केटिंग, सोशल मीडिया और धार्मिक उत्साह के बेहतरीन समन्वय से आकर्षित किया गया. जिहादी ब्राइड्स ने खुलासा किया कि कैसे आईएस की परिष्कृत भर्ती रणनीति ने कई जिंदगियां बर्बाद कर दी. मुर्तजा जाफरी निर्देशित ‘आईएसआईएस ब्राइड’ 2017 में रिलीज हुई थी. ये फिल्म एक गर्भवती महिला के बारे में है, जिसे आईएसआईएस के पुरुषों ने जबरन अपने साथ रखा. इसके बाद उसे बहुत प्रताड़ित किया गया और बलात्कार किया गया.
लव जिहाद पर क्या कहते हैं हसाम मुनीर
लव जिहाद की अवधारणा को लेकर 2009 तक दबी आवाज में बात की जाती थी. अब इस अवधारणा का हर जगह उल्लेख किया जाने लगा है. इस मुद्दे पर भारत समेत दुनियाभर में चर्चा होने लगी है. भारत के केरल में ईसाई चर्च लव-जिहाद को बड़ी साजिश का हिस्सा मानते हैं. हसाम मुनीर ने ‘हाउ इस्लाम स्प्रेड थ्रूआउट द वर्ल्ड’ शीर्षक अपने पेपर में इस विचार का विरोध किया है कि इस्लाम केवल तलवार के दम पर फैला. वह कहते हैं कि घरेलू और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अंतर-धार्मिक विवाह उन चार तरीकों में से एक था, जिसके जरिये इस्लाम का प्रसार हुआ.
केरल के पूर्व मुख्यमंत्री ने क्या कहा था
केरल के पूर्व मुख्यमंत्री एस अच्युतानंदन ने भी कहा था कि पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया ने पैसे और शादी के जरिये 20 साल में केरल का इस्लामीकरण करने की योजना बनाई है. केरल के तत्कालीन मुख्यमंत्री ओमन चांडी ने 2012 में कहा था कि 2009-12 के दौरान इस्लाम स्वीकार करने वालों में 2667 युवतियां थीं, जिनमें से 2195 हिंदू और 492 ईसाई थीं. भारतीय ईसाइयों की वैश्विक परिषद ने कहा था कि केरल में लव जिहाद वैश्विक इस्लामीकरण परियोजना का हिस्सा है. केरल कैथोलिक बिशप्स काउंसिल ने 2009 में कहा था कि 2600 से अधिक युवा ईसाई महिलाओं को 2006 से इस्लाम में परिवर्तित किया गया है. उनके सतर्कता आयोग ने ईसाइयों को ऐसी घटनाओं को लेकर सतर्क रहने को कहा था.