श्रावणी है गुरुकुल प्रवेश और यज्ञोपवीत का दिन

श्रावणी क्या है? रक्षा बंधन पर क्यों है ब्राह्मण के लिए जरूरी

रक्षाबंधन का पर्व एक ओर जहां भाई-बहन के अटूट रिश्ते को राखी की डोर में बांधता है, वहीं यह वैदिक ब्राह्मणों को वर्षभर में आत्मशुद्धि का अवसर भी प्रदान करता है। वैदिक परंपरा अनुसार वेदपाठी ब्राह्मणों के लिए श्रावण मास की पूर्णिमा सबसे बड़ा त्योहार है।

इस दिन को श्रावणी उपाकर्म के रूप में मनाते हैं और यजमानों के लिए कर्मकांड यज्ञ, हवन आदि करने की जगह खुद अपनी आत्मशुद्धि के लिए अभिषेक और हवन करते हैं। ओझल होते संस्कारों के इस कठिन समय में हमने 4 बिंदुओं से जानना चाहा है श्रावणी उपाकर्म पर्व का महत्व-

1 – सनातन धर्म में दशहरा क्षत्रियों का प्रमुख पर्व है। दीपावली वेश्यों व होली अन्य जनों के लिए विशिष्ट महत्व का पर्व है। रक्षाबंधन अर्थात श्रावण शुक्ल पूर्णिमा को मनाया जाने वाला श्रावणी उपाकर्म ब्राह्मणों व द्विजों का सबसे बड़ा पर्व है।

2- वैदिककाल से द्विज जाति पवित्र नदियों व तीर्थ के तट पर आत्मशुद्धि का यह उत्सव मनाती आ रही है, पर वर्तमान समय में ब्राह्मण व वैदिक श्रावणी की परंपरा को भूलते जा रहे हैं। इस कर्म में आंतरिक व बाह्य शुद्धि गोबर, मिट्टी, भस्म, अपामार्ग, दूर्बा, कुशा एवं मंत्रों द्वारा की जाती है।

3- पंचगव्य महाऔषधि है। श्रावणी में दूध, दही, घृत, गोबर, गोमूत्र प्राशनकर शरीर के अंतःकरण को शुद्ध किया जाता है।

4- यह उपाकर्म व्यक्ति के शरीर, मन और आत्मा के साथ संस्कारों की शुद्धि करता है।

Importance Of Shrawan Purnima For Guru And Shishya
गुरुओं के प्रति कृतज्ञता जताने का अवसर है श्रावणी पर्व
यह श्रावणी पर्व वेदों के रक्षक ऋषियों को समर्पित है जिन्होंने मानव मात्र के कल्याण के लिए विश्व की इस उन्नत चिंतन और ज्ञान की धरोहर को सुरक्षित रखा। महर्षि दयानंद सरस्वती ने कहा था- वेद सब सत्य विद्याओं की पुस्तक है। वेद का पढ़ना-पढ़ाना और सुनना-सुनाना सब आर्यों का परम धर्म है।

आचार्य दीप चन्द भारद्वाज

वैदिक ग्रंथ आध्यात्मिक ज्ञान का भंडार माने गए हैं। वैदिक ग्रंथों के चिंतन-मनन और उनके श्रेष्ठ आदर्शों को जीवन में आत्मसात करने से मनुष्य भौतिक और आध्यात्मिक उन्नति को प्राप्त करता है। ज्योतिष के अनुसार इस दिन श्रवण नक्षत्र होता है जिससे पूर्णिमा का संयोग होने से इसे श्रावणी कहा जाता है। सनातन संस्कृति की स्वर्णिम पर्वों और उत्सवों की परंपरा भारतीय समाज में जीवंतता और जागृति का समावेश करती है। सावन की पूर्णिमा को ज्ञान की साधना का पर्व माना गया है। यह आध्यात्मिक ऊर्जा को जागृत करने का पावन उत्सव है।

मनुस्मृति में इस दिन को उपाकर्म का दिन कहा गया है। श्रावणी पूर्णिमा एक महीने के आध्यात्मिक ज्ञान रूपी यज्ञ की पूर्णाहुति है। श्रावणी उपाकर्म में वेदों के श्रवण-मनन का विशेष महत्व है। श्रावण मास वर्षा ऋतु का समय होता है। इस महीने में देश के अधिकतर भागों में बारिश होती है। प्राचीन काल में लोग श्रावण मास में वर्षा के कारण अवकाश रखते थे और घरों पर रहकर वैदिक शास्त्रों का श्रवण किया करते थे, अपने आध्यात्मिक ज्ञान को बढ़ाते थे। प्राचीन काल में आज की तरह सभी ग्रंथ मुद्रित रूप में सबको सुलभ नहीं थे। इसलिए निकटवर्ती आश्रमों में जाकर रहते थे और वहां वैदिक विद्वानों से वेद के उपदेशों का श्रवण करते थे।

ऋषि, मुनियों, योगियों के सानिंध्य में रहकर उनके मुखारविंद से आध्यात्मिक शास्त्रों के गूढ़ तत्वों का श्रवण करना इस श्रावणी पर्व का मुख्य ध्येय होता था। इसे ऋषि तर्पण का नाम भी दिया जाता है। तर्पण का अर्थ है ज्ञान और सत्य विद्या के मर्मज्ञ ऋषियों को संतुष्ट करना, जिनसे हमें वैदिक रहस्य को जानने और समझने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। प्राचीन काल में गुरुकुलों में इसी दिन से शिक्षण सत्र का आरंभ होता था। इस दिन छात्र गुरुकुल में प्रवेश लेते थे। जिनका यज्ञोपवीत नहीं हुआ, उनका यज्ञोपवीत किया जाता था। इस श्रावणी उपक्रम के अंतर्गत वेदों के श्रवण का विशेष महत्व है।

ज्ञान का प्रकाश करने वाले दिव्य गुरुओं के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने का समय है जो हमें श्रावण मास की पूर्णिमा को रक्षा सूत्र देकर आशीर्वाद प्रदान करते हैं। आशीर्वाद के रूप में गुरु शिष्यों को रक्षा कवच के रूप में सूत्र बांधते हैं। श्रावणी पर रक्षाबंधन बड़ा ही हृदयग्राही है। इस दिन बहन अपने भाई की कलाई पर रक्षा सूत्र बांधती है और भाई भी उसकी रक्षा के लिए संकल्प लेता है। नारी के प्रति पवित्रता का भाव रखने और सदैव उसकी रक्षा करने का संदेश इस पर्व में निहित है। पत्नी युद्ध में जाते समय पति को रक्षा सूत्र बांधती है। आचार्य शिष्यों को रक्षा सूत्र बांधता है। पुरोहित यजमान को रक्षा सूत्र बांधता है। श्रावणी धार्मिक स्वाध्याय के प्रचार का वैदिक पर्व है। प्राचीन काल में ऋषि-मुनि इसी दिन से वेद पारायण आरंभ करते थे। वेद का अर्थ है सद्ज्ञान और ऋषि का तात्पर्य है वह महामानव जिनकी अपार करुणा के फलस्वरुप वह ज्ञान सुलभ हो सका। वेद मंत्रों का अपनी आध्यात्मिक साधना, तप, त्याग के बल पर साक्षात्कार करने वाले ऋषियों के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने का यह पर्व है।

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