शशि थरूर विदेश नीति की तारीफ कर रहे कि मोदी ?

शशि थरूर ने की मोदी की तारीफ़, कांग्रेस से अलग राह या निशाना कहीं और?
वरिष्ठ कांग्रेस नेता शशि थरूर
पूर्व राजनयिक, केरल के तिरुवनंतपुरम से सांसद और वरिष्ठ कांग्रेस नेता शशि थरूर ने एक बार फिर ऐसा बयान दिया है, जिसे उनकी पार्टी की लाइन के ख़िलाफ़ माना जा सकता है.

दिल्ली में एक परिचर्चा में रूस-यूक्रेन युद्ध और भारत की कूटनीति पर टिप्पणी करते हुए शशि थरूर ने कहा- “मुझे यह स्वीकार करना होगा कि 2022 में रूस-यूक्रेन युद्ध पर भारत के रुख़ की आलोचना करने पर मुझे शर्मिंदगी उठानी पड़ी. मोदी ने दो हफ्तों के अंतराल में यूक्रेन के राष्ट्रपति और रूस के राष्ट्रपति दोनों को गले लगाया और दोनों जगह उन्हें स्वीकार किया गया.”

शशि थरूर की इस टिप्पणी के बाद जहां भाजपा ने कहा कि ‘देर आए दुरुस्त आए’, वहीं कांग्रेस ने इस पर चुप्पी साध रखी है. कांग्रेस के किसी भी प्रवक्ता या नेता ने इसे लेकर सार्वजनिक टिप्पणी नहीं की है.

केरल से सांसद और राज्य में पार्टी के कार्यकारी अध्यक्ष कोड्डिकुन्नील सुरेश ने कहा, “पार्टी ना ही थरूर की इस टिप्पणी को महत्व दे रही है और ना ही इस पर टिप्पणी कर रही है.”

शशि थरूर के बयान पर केरल भाजपा अध्यक्ष के सुरेंद्रन की प्रतिक्रिया
हमने इस विषय पर और भी कांग्रेस नेताओं से बात करनी चाही, लेकिन कोई प्रतिक्रिया नहीं मिल सकी.

वहीं भाजपा राष्ट्रीय कार्यकारिणी सदस्य रवि शंकर प्रसाद ने मीडिया से कहा, “देर आए दुरुस्त आए… जैसे शशि थरूर ने स्वीकार किया है, कांग्रेस के दूसरे नेताओं को भी करना चाहिए.”

केरल भाजपा अध्यक्ष के सुरेंद्रन ने शशि थरूर के इस बयान का स्वागत किया है.

उन्होंने कहा, “शशि थरूर ने जो सच बोला है, उस पर कांग्रेस ख़ामोश है क्योंकि इस ने राहुल गांधी की पोल खोल दी है जो हमेशा कहते रहते हैं कि वैश्विक स्तर पर भारत का क़द घट रहा है.”

रूस-यूक्रेन युद्ध और भारत की तटस्थता

थरूर एक पूर्व राजनयिक और भारत के पूर्व विदेश राज्य मंत्री भी हैं
भारत ने फ़रवरी 2022 में रूस के यूक्रेन पर आक्रमण और इसके बाद से जारी युद्ध पर तटस्थ रुख़ अपनाया. दुनियाभर के देशों ने जब रूस की आक्रामकता की आलोचना की, भारत ऐसा करने से बचता रहा.

शशि थरूर ने अब स्वीकार किया है कि पहले उन्होंने भारत के दृष्टिकोण की आलोचना की थी, लेकिन अब उन्हें लगता है कि यही सही विदेश नीति थी जो प्रभावशाली रही. थरूर ने भारत की संतुलित विदेश नीति की तारीफ़ भी की.

अपनी टिप्पणी में थरूर ने ये भी कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी यूक्रेन गए और ज़ेलेंस्की से गले मिले और उससे पहले वो मॉस्को में पुतिन से गले मिले थे. थरूर ने कहा कि दोनों ही जगहों पर मोदी को स्वीकार किया गया.

शशि थरूर ने ये सुझाव भी दिया कि भारत ने जैसे इस संघर्ष से दूरी बनाई है, वह एक अच्छा मध्यस्थ हो सकता है और ज़रूरत पड़ने पर यूक्रेन में शांति बल भी भेज सकता है.

थरूर पूर्व राजनयिक और भारत के पूर्व विदेश राज्य मंत्री भी हैं. ऐसे में उनकी टिप्पणी मोदी सरकार की विदेश नीति पर मुहर मानी जा रही है.

भारत की विदेश नीति और कांग्रेस का रुख
कांग्रेस सांसद प्रियंका गांधी फ़लस्तीन के समर्थन में कई बार बोल चुकी हैं

हालांकि, विपक्षी कांग्रेस यूं तो विदेश नीति पर अक्सर ख़ामोश ही रहती है या सरकारी नीति का समर्थन करती है, लेकिन ग़ज़ा में संघर्ष पर कांग्रेस नेताओं ने खुलकर भारतीय नीति विरोधी रुख अपनाया है.

कांग्रेस सांसद प्रियंका गांधी फ़लस्तीन के समर्थन में कई बार बोल  इसराइल की आक्रमकता पर सवाल उठा चुकी हैं. यह भारत की इसराइल-फ़लस्तीनी संघर्ष को लेकर मौजूदा नीति के ख़िलाफ़ है.

मार्च 2022 में संयुक्त राष्ट्र में रूस-यूक्रेन युद्ध पर हुए मतदान से भारत दूर रहा था. इसके बाद एक भाषण में राहुल गांधी ने तर्क दिया था कि भारत की ख़ामोशी वैश्विक मामलों में उसकी नैतिक स्थिति कमज़ोर करती है.

कांग्रेस पार्टी भारत-चीन सीमा पर चीन की आक्रामकता को लेकर भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की विदेश नीति पर सवाल उठाती रही है.

दिसंबर 2024 में कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने कहा था कि भारत प्रतिक्रियावादी विदेश नीति पर चल रहा है और दक्षिण एशिया में भारत की विदेश नीति अपना प्रभाव खो रही है.

ऐसे में अब, शशि थरूर के खुलकर मोदी सरकार की विदेश नीति के समर्थन में आने से कांग्रेस को असहज स्थिति हो गई है.

शशि थरूर के बयान के क्या संकेत हैं?
शशि थरूर ने की प्रधानमंत्री  मोदी की तारीफ़
ये पहली बार नहीं जब थरूर ने मोदी सरकार की विदेश नीति की तारीफ़ की हो.

हालांकि, विश्लेषक इसे भारत की विदेश नीति की बजाय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तारीफ़ के रूप में देख रहे हैं.

वरिष्ठ पत्रकार विनोद शर्मा कहते हैं, “कोई भी राष्ट्र अपने हित सर्वोपरि रख विदेश नीति बनाता है. रूस-यूक्रेन युद्ध मामले में भारत ने भी ऐसा ही किया और अपने राष्ट्रीय हित ध्यान में रखते हुए एक तटस्थ नीति बनाई. इसमें कोई शक़ नहीं है कि इस नीति से भारत को फ़ायदा हुआ है. लेकिन थरूर ने भारत की विदेश नीति की तारीफ़ करते हुए ख़ासतौर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का नाम लिया. इससे तो यही लगता है कि वो भाजपा को संकेत दे रहे हैं.”

विनोद शर्मा कहते हैं, “शशि थरूर के बयान पर तो ये ही कहा जा सकता है कि बदले-बदले सरकार नज़र आते हैं. ”

थरूर का ये बयान जहां भाजपा के लिए कांग्रेस पर सवाल उठाने का मौक़ा है, वहीं कांग्रेस को एक बार फिर से अंदरूनी राजनीति को लेकर सवालों का सामना करना पड़ेगा.

केरल में यूडीएफ़ संयोजक एमएम हसन ने केरल कांग्रेस के नेतृत्व को इस बयान से दूर करते हुए मीडिया को बयान में कहा कि ये राष्ट्रीय नेतृत्व का विषय है.

केरल में अगले साल चुनाव
विश्लेषक मानते हैं कि शशि थरूर केरल में कांग्रेस का चेहरा बनना चाहते हैं
केरल में साल 2026 में विधानसभा चुनाव होने हैं. विश्लेषक मानते हैं कि शशि थरूर केरल में कांग्रेस का चेहरा बनना चाहते हैं.

वरिष्ठ पत्रकार विनोद शर्मा कहते हैं, “थरूर के बयान के पीछे राजनीतिक उद्देश्य दिख रहा है. वो सिर्फ़ विदेश नीति की तारीफ़ नहीं कर रहे हैं बल्कि ख़ासकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तारीफ़ कर रहे हैं. इसका अलग मतलब निकाला जा सकता है. केरल में चुनाव  हैं. थरूर की महत्वाकांक्षा रही है कि कांग्रेस उन्हें मुख्यमंत्री पद का चेहरा घोषित करे, जिसकी चुनाव से पहले संभावना नहीं है.थरूर ने ये भी कहा था कि अंदरूनी सर्वे में ये सामने आया है कि मैं मुख्यमंत्री पद का मज़बूत दावेदार हो सकता हूं. एक तरह से थरूर अपनी तारीफ़ स्वयं कर रहे हैं.”

शशि थरूर का लंबा राजनयिक करियर रहा है और वे साल 2009 से लगातार सांसद हैं. 2014 में जब भाजपा लहर थी, तब भी थरूर ऐसे कुछ कांग्रेसी नेताओं में थे जिन्होंने अपनी सीट बचाई थी. वे चार बार से लगातार अपनी सीट जीत रहे हैं.

विश्लेषक मानते हैं कि थरूर अपनी महत्वाकांक्षा ज़ाहिर कर रहे हैं, लेकिन उन्हें संभलकर चलना होगा.

विनोद शर्मा कहते हैं, “इसमें कोई दो राय नहीं है कि थरूर एक चर्चित और चमत्कारी नेता हैं और अगर कांग्रेस चुनाव जीतने पर उन्हें मुख्यमंत्री बनाती है, तो वो अच्छा विकल्प सिद्ध हो सकते हैं. लेकिन केरल में लंबे समय से कांग्रेस का स्थानीय नेतृत्व भी है, मुझे लगता है कि जैसी अंदरूनी राजनीति वो कर रहे हैं, वो ना ही कांग्रेस के लिए ठीक है और ना ही थरूर के लिए.”

क्या भाजपा में थरूर के लिए जगह है?
भाजपा को केरल में बड़े चेहरे की तलाश
विश्लेषक मानते हैं कि थरूर के बयान के दो स्पष्ट संकेत हैं- या तो वो पार्टी छोड़ने का मन बना चुके या फिर कांग्रेस नेतृत्व पर अपना क़द बढ़ाने को दबाव डाल रहे हैं.

लेकिन सवाल ये है कि क्या भाजपा में उनके लिए जगह होगी. विनोद शर्मा को लगता है कि अगर थरूर बीजेपी के साथ जाते हैं तो ये भाजपा के फ़ायदे की बात होगी.भाजपा उन्हें लेती है तो उसे केरल में एक बड़ा चेहरा मिल जाएगा. भाजपा को केरल में एक बड़े चेहरे की तलाश है. भाजपा ने राजीव चंद्रशेखर केरल में उतारे थे, कई और चेहरे लाये गये लेकिन केरल भाजपा की एक चमत्कारी चेहरे की तलाश अभी पूरी नहीं हुई है. अगर थरूर भाजपा जाते हैं तो राज्य में उसे बड़ा चेहरा मिल सकता है.”

लेकिन क्या भाजपा थरूर के स्वागत को तैयार है?  इस सवाल पर केरल भाजपा अध्यक्ष के सुरेंद्रन कहते हैं, “अभी ये अपरिपक्व सवाल है.हालांकि, सुरेंद्रन हंसते हुए ये ज़रूर कहते हैं, “ये थरूर पर निर्भर है कि वो क्या चाहते हैं, हम अभी से क्या कहें.”

 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *