मत: सार्वभौम है शिव,हर रात्रि बना हैरात, शिव शिबटा, तेल शिवा ,बीर शिवा,शैबा
महाशिवरात्रि
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किसी भी मास के कृष्णपक्ष की चतुर्दशी शिवरात्रि कही जाती है , किन्तु माघ ( फाल्गुन, पूर्णिमान्त ) की चतुर्दशी सबसे महत्वपूर्ण है और महाशिवरात्रि कहलाती है ।
गरुड (1/124) , स्कन्द (1/1/32) , पद्म (6/240), अग्नि (193) आदि पुराणों में इसका वर्णन है ।
कोई भी व्यक्ति इस दिन उपवास करके बिल्व-पत्तियों से शिव की पूजा करता है और रात्रि भर ‘जागर’ (जागरण) करता है, शिव उसे आनन्द एवं मोक्ष प्रदान करते हैं और व्यक्ति स्वयं शिव हो जाता है ।
स्वयम्भूलिंगमभ्यर्च्य सोपवास: सजागर: ||
ईशानाय नम: ||
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आद्यं पुरुषमीशानं पुरुहूतं पुरुष्टुतम् |
ऋतमेकाक्षरं ब्रह्म व्यक्ताव्यक्तं सनातनम् ||
असच्च सदसच्चैव यद् विश्वं सदसत्परम् |
परावराणां स्रष्टारं पुराणं परमव्ययम् ||
महाभारत आदिपर्व 1/22-23
महाशिवरात्रि अर्थात् अमान्त माघ मास की कृष्णपक्ष की चतुर्दशी तिथि या पूर्णिमान्त फाल्गुन मास की कृष्ण चतुर्दशी तिथि पर की जाने वाली पूजा, व्रत, उत्सव तथा जागरण।
शिवधर्म ग्रन्थ में शिवरात्रि पर रामलीला खेले जाने की भी बात कही गई है।
कश्मीर में शिवरात्रि हररात्रि है जो बिगड़कर हेरात कही जाती है, विगत वर्ष बंदीपुरा संबल में शिव मन्दिर की सफाई, जलाभिषेक तथा प्रसाद में अखरोट वितरण भी वहाँ के मुस्लिमों ने किया था।
कहते हैं कि भोलेनाथ और उमा पार्वती का विवाह इसी तिथि को हुआ था। खगोलीय दृष्टि से सूर्य एवं चन्द्रमा के मिलन की रात्रि है तथा संवत्सर की गणना का आधार माघ अमावस्या रही है, काल गणना के हेतु से यह त्योहार चतुर्दशी से तीन दिन पहले से लेकर दो दिन बाद प्रतिपदा तक चलता था।
भारतवर्ष में धनिष्ठा नक्षत्र में उत्तरायणारम्भ होने के समय कालगणना नियम बने थे, एक हजार वर्षों में अयन सरक कर श्रवण में जा पहुँचा था। यह एक बड़ा कारण ‘श्रवण’ का अनेक त्योहारों से जुड़े होने में है।
इस कारण महाशिवरात्रि को कुछ ग्रन्थ त्रयोदशी तिथि से संयुक्त प्रदोष व्यापिनी चतुर्दशी तिथि ग्रहण कर मनाये जाने की बात करते हैं, इसमें कारण ‘नक्षत्र का प्राधान्य’ है।
चूँकि तीज-त्योहारों के मनाये जाने सम्बन्धी नियम निर्देश बहुत पहले निश्चित किये गये थे इस कारण अब कालगणना सम्बन्ध नहीं रहा।
काल के भी ईश्वर महाकालेश्वर की जय बोलते हुये उत्सव मनाइये, आशुतोष तो अवढर दानी हैं ही किसी को भी निराश नहीं करते हैं। मन्दिरों में काँच न फैलायें और न बहुत अधिक फूल पत्तियाँ ले जाना आवश्यक है केवल जल चढ़ा देने से भी शिव उतने ही प्रसन्न होते हैं।
✍🏻अत्रि विक्रमार्क अन्तर्वेदी
कुछ प्राचीन शहर हैं इजराइल और यमन के।
कुछ खास इन सब में ??
खास है तभी पोस्ट कर रहा हूँ..!!
खास है इनके नाम।
पहला, दक्षिण इजराइल के प्राचीन शहर का.. नाम .. “शिवटा” (Shivta) !!
इसे बसाने वाले ‘नाबातियन’ ट्राइब के लोग।
ये शहर बसा है नेगेव मरुस्थल में।
इससे मात्र 43 किलोमीटर दूर और एक शहर है.. नाम है ‘तेल शिवा’ (Tel Sheva) या ‘बीर शिवा’ (Beer Sheva)।
बाइबल में एक राज्य का बड़ा नाम है.. बल्कि कई मर्तबा जिक्र भी हुआ है और वो यहूदी और इस्लाम में भी प्रचलित है।.. उस राज्य का नाम है ‘शेबा’ (Sheba) .. उसकी राजधानी यमन के प्राचीन शहर ‘शिभम’ (Shibham या Shibam) मानी जाती है, जरा नाम मे गौर करें।
ये सभी साइट्स यूनेस्को के वर्ल्ड हेरिटेज में शामिल हैं।
अरबी,हिब्रू में Sheba का मतलब टीला होता है.. लाइक शिवलिंग।
ये सभी शहर कालांतर में क्रिश्चन और इस्लामिक राज के तले आते गए और बहुत से ओरिजिनल स्ट्रक्चर समाप्त होते गए। जैसे कि हमलोग रिसेंट में अफगानिस्तान में बौद्ध स्तूप और मूर्तियों को ले कर देखे।
खैर आज जब इंडिया के मंदिरों के स्ट्रक्चर और इंजीनियरिंग की बात पुनः शुरू हुई तो हम जरा फॉरेन घूमना ही पसंद किए।.. आगे और भी है।😊
✍🏻गंगवा, खोपोली से।