सीधी: पत्रकार ईमानदार कि बेइमान? बहस करें,पर पुलिस तो अमानवीय हैई है
सीधी मामलाः पत्रकार कनिष्क तिवारी को हमले की दी गई धमकी, सुरक्षा की लगाई गुहार, कहा- पुलिस मेरे खिलाफ फर्जी FIR की तैयारी कर रही
मामले में सफाई देते हुए सीधी थाना प्रभारी मनोज सोनी ने कहा कि कुछ दिन पहले थाने में एक आदमी के खिलाफ FIR दर्ज हुई थी। यह आदमी फर्जी ID बनाकर प्रतिष्ठित लोगों को अपशब्द बोलता था। आरोपी की तरफ से 25-30 लोगों ने थाने के सामने प्रदर्शन किया।
मध्य प्रदेश के सीधी थाने में पत्रकारों को अर्धनग्न किए जाने पर थाना प्रभारी समेत दो को निलंबित कर दिया गया है
निलंबित थाना प्रभारी सोनी ने कहा कि कोई व्यक्ति अपने कपड़ों से खुद को फांसी न लगा ले इसलिए कपड़े उतरवाए गए थे
पीड़ित पत्रकार कनिष्क तिवारी ने लोगों से मदद की गुहार लगाई है
सीधी 9 अप्रैल। मध्य प्रदेश के सीधी जिले के थाने में पत्रकार और रंगकर्मियों, सामाजिक कार्यकर्ताओं के कपड़े उतरवाने पर सीधी कोतवाली के थाना प्रभारी मनोज सोनी और एक उप निरीक्षक को निलंबित किया गया है। इस बीच प्रताड़ित पत्रकार कनिष्क तिवारी ने सोशल मीडिया पर लोगों और सरकार से मदद की गुहार लगाई है।
कनिष्क तिवारी ने वीडियो से दावा किया है कि पुलिस उन पर फर्जी एफआईआर की तैयारी में है। उन्हें और उनके परिवार पर हमले की धमकी भी दी गई है। कनिष्क तिवारी यूट्यूब पर बघेली चैनल चलाते हैं।
कनिष्क तिवारी के अनुसार पूरे दिन मुझे दिल्ली भोपाल से मीडियाकर्मियों के फोन आते रहे। मेरे द्वारा सभी सच्ची घटना अवगत करायी गई है। किंतु मेरे और मेरे परिवार को लगातार धमकी मिल रही है। और ये कहा जा रहा है कि बेवजह फर्जी मुकदमे में फंसा देंगे। तुम लोगों पर हमला करवा देंगे। पूरा परिवार हमारा डरा हुआ है। सभी से हाथ जोड़कर निवेदन है कि हमारे परिवार को सुरक्षा प्रदान की जाए। उनको फंसाने को फर्जी षड्यंत्र हो रहे हैं। मुझे एक पुलिस सूत्र ने बताया है कि पुलिस फर्जी एफआईआर से गिरफ्तार कर सकती है। यह पूरी तरह से फर्जी षड्यंत्र होगा। निवेदन है कि आवाज उठाइए। नहीं तो कभी कोई पत्रकार सच नहीं लिख पाएगा। कभी किसी दबे कुचले की आवाज कोई नहीं उठा पाएगा। मेरा साथ दें। मुझे और मेरे परिवार को सुरक्षा दें। और ये आप लोगों के हाथ में है। आप साथ देंगे तो हमें सुरक्षा जरूर मिलेगी।
IG रीवा ने कहा कि सीधी जिले से संबंधित एक फोटो सोशल मीडिया पर प्रसारित हुआ है। इसको गंभीरता से ले थाना प्रभारी कोतवाली सीधी एवं एक उप निरीक्षक को तत्काल हटा पुलिस लाइन संबद्ध किया है एवं प्रकरण की जांच अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक से कराने के निर्देश किए हैं।
वहीं मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने मामले को संज्ञान में लेते हुए रिपोर्ट मांगी है। गौरतलब है कि गुरुवार को सोशल मीडिया पर इस तस्वीर के वायरल होने पर मीडिया जगत से लेकर कला क्षेत्र और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने इसके खिलाफ लिखना बोलना शुरू किया। तस्वीर में पत्रकार समेत रंगकर्मी अर्धनग्न अवस्था में थे।
मामले के तूल पकड़ने पर थाना प्रभारी मनोज सोनी ने सफाई दी कि पकड़े हुए लोग पूरे नग्न नहीं थे। हम सुरक्षा की दृष्टि से उनको हवालात में अंडरवियर में रखते हैं जिससे कोई व्यक्ति अपने कपड़ों से खुद को फांसी न लगा ले। सुरक्षा की वजह से हम उनको ऐसे रखते हैं।
थाना प्रभारी ने कहा कि कुछ दिन पहले थाने में एक आदमी के खिलाफ FIR दर्ज हुई थी। यह आदमी फर्जी ID बना प्रतिष्ठित लोगों को अपशब्द बोलता था। आरोपित की तरफ से 25-30 लोगों ने थाने के सामने प्रदर्शन किया। इन लोगों को हवालात में डाल दिया। इनमें से एक ही पत्रकार है जो यूट्यूब पर काम करता है।
रिपोर्ट के मुताबिक, भाजपा विधायक केदारनाथ शुक्ला के खिलाफ खबरें चली थी। धरना प्रदर्शन कर रहे कुछ लोगों को पुलिस ने गिरफ्तार कर उनके कपड़े उतरवाकर थाने में जुलूस निकाला गया। स्थानीय पुलिस द्वारा गिरफ्तारी के बाद पत्रकार व अन्य के साथ दुर्व्यवहार किया। तस्वीर वायरल होने के बाद कांग्रेस ने इस मामले में पुलिस की कार्रवाई पर सवाल उठाए।
मत
पत्रकार ईमानदार थे या बेईमान, यह एक अलग विषय है, मानवाधिकारों का हनन हुआ है, मूल बात यह है।
पुलिस को सजा देने का अधिकार नहीं है, किसी के मान की हानि का अधिकार नहीं है. सवाल अहम यह है कि पुलिस की हिम्मत कैसे हुई कि पत्रकारों को नंगा कर सके?
हां, तो अब आप कहेंगे कि इसके लिए सत्ता और राजनीति जिम्मेदार है, लेकिन मैं कहूंगा कि इसके लिए पत्रकारिता के वे बड़े-बड़े मठाधीश जिम्मेदार हैं जिन्होंने संपादक की कुर्सी पर बैठकर अपनी हथेलियां गर्म की हैं और वेतन के नाम पर पत्रकारों का शोषण किया है.
शोषित पत्रकार पेट पालने के लिए दलाल बना है. दलाली में उसकी कमाई को देखकर कुकुरमुत्तों की तरह फर्जी पत्रकारों की पौध खड़ी हो गई है.
दूसरे राज्यों का नहीं पता, लेकिन छोटे-छोटे कस्बों, शहरों, गांवों में मीडिया संस्थानों द्वारा शोषित पत्रकार पेट पालने के लिए गलत काम करता है. दोष उसका नहीं, उसे अपना परिवार पालना है. 20 साल की नौकरी के बाद 25 हजार वेतन पाकर परिवार नहीं पलते.
हां, तो पत्रकारों का दलालीकरण किया पत्रकारिता के संपादक रूपी मठाधीशों ने.
इससे नुकसान यह हुआ कि पत्रकारों की छवि हुई खराब, अब पत्रकार असली हो या नकली, पुलिस और नेता उसे दलाल समझते हैं, बिकाऊ समझते हैं, पैसे ओर ईनाम के लिए ‘जी भाईसाहब-जी भाईसाहब’ कहने वाला पालतू समझते हैं.
अब इस सोच के बीच कोई पत्रकार ईमानदारी से काम करे तो नेता या पुलिस के लिए आसान हो जाता है उसे ब्लैकमेलर या दलाल बता देना.और इस संबंध में मैं कई बार पहले भी लिख चुका हूं.ऐसा इसलिए लिख रहा हूं क्योंकि बहुत करीब से देखा है यह सब कुछ. बहुत करीब से परखा है यह सब कुछ और पत्रकारों की इस छवि का खामियाजा मैंने भी भुगता है.
रिपोर्टिंग के दौरान मुझे खूब प्रलोभन मिले हैं और पत्रकारों की जमात के लिए अपशब्द भी सुनें है। स्थानीय स्तर का कोई पत्रकार समझकर कहते हैं कि बड़े-बड़े अखबार वाले इतना लेते हैं, तुम क्या लोगे?
खून खौलता है और गुस्सा आता है क्योंकि पत्रकारिता के पेशे की छवि ऐसी बना दी गई है कि हर कोई ऐरा-गैरा टुच्चा आदमी आकर पत्रकारों को दलाल समझ लेता है या बोल देता है. पुलिस या नेताओं में पत्रकारों की दहशत नहीं रहती है. वे हर पत्रकार को एक लाठी से हांकते हैं.
इसलिए मैं हमेशा कहता हूं कि जब पत्रकारिता संस्थान पत्रकारों को उनके हक़ का वेतन देने लगेंगे, उस दिन से बदलाव शुरू होगा. ऐसा बदलाव शुरू होगा कि नेता और पुलिस पत्रकार को हल्के में लेने से पहले थर-थर कांपेंगे.
हम पत्रकार हैं, हमें अपना खोया आदर-सम्मान पाने की लड़ाई खुद लड़नी होगी. अगर खुद को अच्छा वेतन मिल रहा है तो अपने साथी पत्रकार के शोषण पर चुप्पी मत साधा करें.
और जितने ये कथित वरिष्ठ पत्रकार कलम घिसकर सीधी के पत्रकारों के लिए न्याय मांग रहे हैं न तो इनकी जरा कुंडली खंगालिए कि कमबख्तों ने अपने नीचे काम करने वाले कितने पत्रकारों का शोषण करके उन्हें दलाल बनने को मजबूर किया है, जिसके चलते आज पत्रकार की छवि ऐसी बन गई है कि हर राह चलता टुच्चा आदमी भी उसे भ्रष्ट, दलाल और ब्लैकमेलर कह देता है.
यह छवि पत्रकारों के खिलाफ नेताओं और पुलिस का हथियार बनती है.
@दीपक गोस्वामी ‘ भडास फोर मीडिया में