‘स्किन टू स्किन’फैसले के साइड एफेक्ट: जज गनेडीवाला की नियुक्ति को अनुमोदन नहीं

 

बॉम्बे हाई कोर्ट की एडिशनल जज की नियुक्ति की मंजूरी वापस, SC के कॉलेजियम ने क्यों उठाया ये सख्त कदम?
Updated: 30 Jan 2021, 11:27:00 PM
एक सूत्र ने बताया कि ‘यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण (पॉक्सो)’ कानून के तहत यौन हमले की उनकी व्याख्या पर हुई आलोचनाओं के बाद यह फैसला लिया गया है।

नई दिल्ली 30 जनवरी। उच्चतम न्यायालय के कॉलेजियम ने बॉम्बे हाई कोर्ट की अतिरिक्त न्यायाधीश, न्यायमूर्ति पुष्पा वीरेंद्र गनेडीवाला की स्थायी न्यायाधीश के तौर पर नियुक्ति के प्रस्ताव की मंजूरी को यौन उत्पीड़न के कुछ मामलों में उनके विवादास्पद फैसलों के बाद वापस ले लिया है। एक सूत्र ने बताया कि ‘यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण (पॉक्सो)’ कानून के तहत यौन हमले की उनकी व्याख्या पर हुई आलोचनाओं के बाद यह फैसला लिया गया है

न्यायमूर्ति पुष्पा गनेडीवाला ने 12 वर्षीय एक लड़की के वक्षस्थल को छूने के आरोपी व्यक्ति को पिछले दिनों बरी कर दिया था और कहा था कि आरोपित ने त्वचा से त्वचा का संपर्क नहीं किया था। इससे कुछ दिन पहले उन्होंने व्यवस्था दी थी कि पांच साल की लड़की के हाथों को पकड़ना और ट्राउजर की जिप खोलना पॉक्सो कानून के तहत ‘यौन अपराध’ नहीं है। उच्चतम न्यायालय ने अटॉर्नी जनरल के के वेणुगोपाल की इस दलील के बाद बंबई उच्च न्यायालय के आदेश पर 27 जनवरी को रोक लगा दी थी कि इस फैसले से खतरनाक नजीर बन जाएगी।
प्रधान न्यायाधीश एस ए बोबडे की अध्यक्षता वाले कॉलेजियम ने 20 जनवरी को न्यायमूर्ति गनेडीवाला को स्थायी न्यायाधीश बनाने के प्रस्ताव पर मुहर लगाई थी। इस महीने दो अन्य फैसलों में न्यायमूर्ति गनेडीवाला ने नाबालिग बालिकाओं से बलात्कार के आरोपी दो लोगों को बरी कर दिया था और कहा था कि पीड़िताओं की गवाही आरोपियों पर आपराधिक जवाबदेही तय करने का भरोसा पैदा नहीं करती।
न्यायमूर्ति गनेडीवाला का जन्म महाराष्ट्र में अमरावती जिले के परतवाडा में तीन मार्च, 1969 को हुआ था। वह अनेक बैंकों और बीमा कंपनियों के पैनल में अधिवक्ता रही थीं। उन्हें 2007 में जिला न्यायाधीश के तौर पर सीधे नियुक्त किया गया था और 13 फरवरी, 2019 को बंबई उच्च न्यायालय की अतिरिक्त न्यायाधीश के तौर पर प्रोन्नत किया गया था। उच्चतम न्यायालय के तीन सदस्यीय कॉलेजियम में प्रधान न्यायाधीश के साथ ही न्यायमूर्ति एन वी रमन और न्यायमूर्ति आर एफ नरीमन भी शामिल हैं।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *