एसकेएम ने पंजाब के किसानों को छोड़ा लावारिस
पंजाब के किसानों को अकेला छोड़ दिया टिकैत एंड कंपनी ने
संयुक्त किसान मोर्चा के नेता गण इन दिनों विश्राम की मुद्रा में हैं। मोर्चे की इस शांति के पीछे उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और पंजाब के विधानसभा चुनाव भी माने जा रहे हैं। किसान आन्दोलन की दिशा चूँकि भाजपा विरोधी हो गई थी इसलिए ये धारणा तेजी से फ़ैली कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश के जाट और उत्तराखंड के तराई वाले सिख बहुल इलाकों में किसान भाजपा को हरवाने के लिए कटिबद्ध हैं। हालाँकि राकेश टिकैत ने खुद चुनाव न लडऩे और मोर्चा द्वारा किसी पार्टी का समर्थन नहीं करने का ऐलान कर रखा है। इसके पीछे की सोच ये हो सकती है कि किसान आन्दोलन को चूंकि समूचे विपक्ष का समर्थन मिलता रहा इसलिए एक को समर्थन देकर किसान नेता बाकी को नाराज नहीं करना चाहते। लेकिन उनके सामने सबसे बड़ी दुविधा आ खड़ी हुई है पंजाब में। किसान आन्दोलन की शुरुआत इसी राज्य से हुई थी और पंजाब के किसानों ने ही दिल्ली में साल भर से ज्यादा चले धरने को सफल बनाया। लेकिन इतने लम्बे आन्दोलन के बाद भी पंजाब के किसानों की समस्या यथावत है। दिल्ली के मोर्चे से लौटने के बाद उनको ये महसूस हुआ कि संयुक्त किसान मोर्चा को ताकतवर बनाने के फेर में वे कमजोर हो गये और उनकी जो मांगें पंजाब सरकार के पास लंबित थीं वे जस की तस रह गईं। किसान आन्दोलन को प्रारम्भिक स्तर पर शक्ति और संसाधन उपलब्ध करवाने वाले कैप्टन अमरिंदर सिंह मुख्यमंत्री पद से हटा दिये गये और उसके बाद से सत्तारूढ़ कांग्रेस की अंतर्कलह से पंजाब में जबरदस्त राजनीतिक अनिश्चितता है। ऐसे में वहां के किसान अधीर हो उठे और बिना संयुक्त किसान मोर्चा के ही आन्दोलन करने लगे। रेल रोकने के साथ ही प्रशासनिक मुख्यालयों पर धरना भी दिया जा रहा है। आश्चर्य की बात ये है कि अभी तक किसी भी किसान नेता या राष्ट्रीय स्तर के संगठन ने पंजाब के किसान आन्दोलन को समर्थन देने की जरूरत नहीं समझी। टिकैत भी उससे दूरी बनाये हुए हैं। शायद इसका कारण ये है कि पंजाब में कांग्रेस की सरकार है जिसका विरोध करने से संयुक्त किसान मोर्चे पर कांग्रेस विरोधी होने की छाप लग जायेगी। दिल्ली में चले आन्दोलन को समर्थन देने वाले राहुल गांधी और प्रियंका वाड्रा ने अब तक पंजाब के किसानों के आन्दोलन पर एक शब्द भी नहीं कहा जबकि उसमें वही सब कुछ है जिसका वायदा कांग्रेस ने 2017 के चुनाव घोषणापत्र में किया था। ऐसे में राहुल और प्रियंका से अपेक्षा थी कि वे जिस तरह से दिल्ली के किसान आन्दोलन का समर्थन करते रहे वैसा ही किसान प्रेम पंजाब में आकर दिखाएं। इस राज्य के किसानों की मांगें भी लगभग वही हैं जिनकी चर्चा दिल्ली धरने के दौरान सुनाई देती रही।
पंजाब के किसानों ने घर लौटकर आन्दोलन शुरू किया तब उन्हें अकेला छोड़ देना एहसान फरामोशी के साथ ही किसान संगठनों की एकता पर भी सवाल खड़े करने के लिए पर्याप्त है। राहुल गांधी और प्रियंका वाड्रा दोनों केंद्र सरकार को किसान विरोधी ठहराने में आगे-आगे रहे लेकिन अब अपनी ही पार्टी की राज्य सरकार द्वारा किसानों से किये गये वायदे निभाने में की जा रही बेईमानी पर मौन धारण किये रहने से ये साफ़ हो गया है कि किसानों से उनकी सहानुभूति घडिय़ाली आंसू थे। पंजाब के किसान ये समझ रहे हैं कि चुनाव आचार संहिता लागू होने के पहले यदि उनके मांगें पूरी नहीं हुईं तो फिर वे खाली हाथ रह जायेंगे। लेकिन संयुक्त किसान मोर्चा द्वारा उन्हें जिस तरह अकेला छोड़ दिया गया उसके कारण किसान आन्दोलन में दरार आये बिना नहीं रहेगी। उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और हरियाणा में किसान पंचायतें करने वाली टिकैत एंड कम्पनी पंजाब के किसानों के पक्ष में आकर खड़े होने से पीछे क्यों हट रही है, ये बड़ा सवाल है।
-रवीन्द्र वाजपेयी
पंजाब में किसानों का आंदोलन जारी, लुधियाना में DC का दफ्तर किया बंद
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देवीदासपुर में किसान मजदूर संघर्ष समिति का ‘रेल रोको’ आंदोलन जारी
प्रदर्शनकारी किसान फसलों के लिए 50 हजार रुपये प्रति एकड़ मुआवजा, गन्ना फसलों का बकाया भुगतान जारी करने और ठेका व्यवस्था खत्म करने की भी मांग कर रहे हैं. किसान नेता सतनाम सिंह पन्नू ने कहा कि जब तक उनकी मांगें पूरी नहीं हो जाती, वे अपना धरना नहीं हटाएंगे. फिरोजपुर, तरनतारन, अमृतसर और होशियारपुर में इस समय किसान अलग-अलग जगहों पर रेलवे ट्रैक पर धरना दे रहे है।
कृषि कानून विरोधी आंदोलन (Anti Farm Laws) के दौरान मारे गए लोगों के परिजनों के लिये पूर्ण ऋण माफी और मुआवजे की मांग करते हुए, किसानों ने मंगलवार को दूसरे दिन भी विभिन्न स्थानों पर रेल पटरियों को अवरुद्ध कर दिया, जिससे राज्य में 156 ट्रेनों की आवाजाही प्रभावित हुई. उधर लुधियाना में किसानों की मांगों के विरोध में डीसी कार्यालय बंद कर दिया. मंगलवार को फिरोजपुर डिवीजन (Firozpur Division) के रेलवे अधिकारियों ने कहा, ’84 ट्रेनों को रद्द कर दिया गया, 47 को निर्धारित गंतव्य से पहले रोक दिया गया और 25 को निर्धारित से कम दूरी के बीच संचालित किया गया.’ किसान मजदूर संघर्ष समिति के झंडे तले किसानों ने सोमवार को आंदोलन शुरू कर कर्जमाफी के अलावा उन लोगों के परिवारों को मुआवजा देने की मांग की, जो साल भर से चल रहे कृषि विरोधी कानून आंदोलन के दौरान मारे गए थे और उनके खिलाफ दर्ज आपराधिक मामले रद्द किए जाने की मांग की गई है.
प्रदर्शनकारी किसान फसलों के लिए 50 हजार रुपये प्रति एकड़ मुआवजा, गन्ना फसलों का बकाया भुगतान जारी करने और ठेका व्यवस्था खत्म करने की भी मांग कर रहे हैं. किसान नेता सतनाम सिंह पन्नू ने कहा कि जब तक उनकी मांगें पूरी नहीं हो जाती, वे अपना धरना नहीं हटाएंगे.
आज से तीन और जगहों पर धरना
उन्होंने कहा, ’28 सितंबर को एक बैठक के दौरान, हमें मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी ने आश्वासन दिया था, लेकिन राज्य सरकार बाद में पीछे हट गई. चार जगहों के अलावा जहां किसान इस समय धरने पर बैठे हैं, हम बुधवार से पंजाब में तीन और जगहों पर धरना शुरु करेंगें।
फिरोजपुर, तरनतारन, अमृतसर और होशियारपुर में इस समय किसान अलग-अलग जगहों पर रेलवे ट्रैक पर धरना दे रहे हैं. एक किसान ने कहा- ‘हमने देवीदासपुरा ट्रैक को जाम कर दिया है। पंजाब सरकार और केंद्र दोनों हमारी मांगों को पूरा करें. हम यहां खराब मौसम में विरोध कर रहे हैं, उन्हें कुछ चिंता दिखानी चाहिए.’