विशेष:क्यों और कैसे सुपर फूड मोटे अनाज की स्थापित हो रही महत्ता
Special Story Know Everything About Smart Grains Millets
विशेष: स्मार्ट अनाज ‘मिलेट्स’ (मोटे अनाज) से मिले विशेष लाभ, जानें सबकुछ
Importance Of Millets In India: आज से कई साल पहले गरीब और वनवासियों में ही इन मिलेट्स की खपत ज्यादा थी, लेकिन अब इसे अमीर भी बड़े चाव से खाते हैं। आज़ादी से पहले तक देश की थाली में मिलेट्स की मौजूदगी जहां 35 से 40 प्रतिशत थी, वहीं आज मात्र 6 प्रतिशत रह गई है। 60 के दशक में में आई हरित क्रांति ने चावल, गेहूं और मक्का का उत्पादन बढ़ाने पर जोर दिया। इन फसलों की सरकारी खरीद भी काफी बढ़ गई थी।
हाइलाइट्स
1-आज जिस मोटे अनाज की चर्चा हो रही है, वह भारत के लिए नया बिलकुल नहीं है
2-मोटे अनाज ज्वार के सबूत तो भारत में हड़प्पा सभ्यता के अवशेषों में भी मिले है।
प्रधानमंत्री मोदी ने भी मिलेट्स के गुणों का जिक्र किया है और श्रीअन्न भी कहा है
नई दिल्ली23 अप्रैल:मिलेट्स, नाम तो सुना होगा। आजकल खूब चर्चा में है। साल 2023 को यूएन ने ‘इंटरनैशनल ईयर ऑफ मिलेट्स’ घोषित किया है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भी मिलेट्स (खास तौर पर ज्वार, बाजरा और रागी) के गुणों का जिक्र कर इन्हें श्रीअन्न नाम दिया। आखिर ऐसा क्या है इस मिलेट्स यानी मोटे अनाज में जो इसे सुपरफूड की कैटिगरी में ला खड़ा करता है। पूरी जानकारी देश के बेहतरीन एक्सपर्ट्स से
7 खास बातें
मिलेट्स शरीर में ट्राइग्लिसराइड्स (खून में मौजूद फैट) और सी-रिऐक्टिव प्रोटीन कम करते हैं। इससे यह हार्ट से जुड़ी समस्याएं दूर करने में भी मददगार है।
इसमें फाइबर की मात्रा भरपूर है। फाइबर से शरीर को भोजन में से पानी ग्रहण करने को ज्यादा वक्त मिलता है। इसलिए यह पेट की समस्याएं दूर करने में भी सहायक है।
मिलेट्स से ग्लूटन या नॉन ग्लूटन एलर्जी की समस्या भी नहीं है। दरअसल, गेहूं में इस प्रोटीन या दूसरे तत्वों से एलर्जी की समस्या पैदा होती है।
रागी में दूसरे मिलेट्स, चावल, गेहूं आदि की तुलना में बहुत ज्यादा कैल्शियम है। इसलिए इसे दूध का विकल्प भी कहा जाता है। बाजरा में आयरन की अधिकता है।
मिलेट्स की खासियत है कि यह फैटी लिवर की परेशानी भी दूर करता है। चूंकि यह पचने में वक्त लगाता है। इसका ग्लाइसेमिक इंडेक्स कम है, इसलिए खाने के बाद शरीर में शुगर का स्तर धीरे-धीरे बढ़ता है यानी डायबीटीक मरीजों को भी बहुत उपयोगी है।
मिलेट्स अच्छे हैं, इसका मतलब यह कतई नहीं कि हम बाकी अनाज खाना छोड़ दें। चावल, गेहूं, मक्का सभी को अपनी थाली का हिस्सा बनाना चाहिए। अगर एक हफ्ते के 14 मील (एक दिन में 2 बार: लंच और डिनर) में से 4 से 5 मील में भी हमने मिलेट्स का सेवन किया तो हमारा काम चल सकता है। इसकी शुरुआत मल्टीग्रेन आटे के रूप में कर सकते हैं।
कुछ ऐसे लोग हो सकते हैं जिन्हें खाना पचाने में समस्या होती है। यह उनके पाचन तंत्र की खराबी से या फिर जेनेटिकल भी हो सकता है। ऐसे लोगों को सामान्य भोजन पचने में भी दूसरे लोगों की तुलना में दोगुना या उससे भी ज्यादा वक्त लग जाता है। ऐसे लोग मिलेट्स खाने से पहले किसी डायटिशन की सलाह लें।
5000 वर्षों से खा रहे हैं हम
आज जिस मोटे अनाज की चर्चा है, वह भारत के लिए नया बिलकुल नहीं है। ज्वार के सबूत तो भारत में हड़प्पा सभ्यता के अवशेषों में भी मिले। अपने देश में 3000 से 5000 साल पहले से इन मिलेट्स के खाए जाने के प्रमाण हैं। चूंकि ये हमारे लिए, हमारे पाचन तंत्र को, हमारी रगों में बहते खून को, हमारे एंजाइम्स और हार्मोंस को, हमारी जीभ को, सीधे कहें तो हमारे DNA के लिए नए नहीं। हमारा शरीर इन्हें अच्छी तरह पहचानता है। पहले मिलेट्स को कदन्न यानी गरीबों का अन्न कहते थे।
‘आयुर्वेद में भी मिलेट्स के गुण बताए गए हैं’
पिछले कुछ बरसों में आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति पर लोगों का भरोसा पहले से ज्यादा मज़बूत हुआ। आयुर्वेद का मिलेट्स के बारे में क्या कहना है और आजकल इसकी चर्चा की वजह क्या है?
ऐसे सवालों के जवाब हमने जाने केंद्रीय आयुष मंत्री सर्बानंद सोनोवाल से:
क्या आयुर्वेद में भी मिलेट्स की उपयोगिया के बारे में बताया गया है?
आयुर्वेद में मिलेट्स यानी मोटे अनाज को ‘तृणधान्ये’ कहा गया है यानी जो जल्दी तैयार होते हैं। आयुर्वेद में इन फसलों के गुणों के बारे में विस्तार से है। डायबीटीज जैसी कई लाइफस्टाइल की बीमारी को काबू रखने में भी उपयोगिता है।
ज्वार, बाजरा और रागी जैसे मिलेट्स को बढ़ावा देने के लिए आयुष मंत्रालय क्या कर रहा है?
हम इस पर काफी काम कर रहे हैं। आयुर्वेद के अनुसार इनकी रेसिपी मशहूर करने की कोशिश है ताकि लोग हर दिन की डाइट में इन्हें शामिल कर सकें।
क्या मिलेट्स अपने देश की जरूरतों को पूरी करने में सक्षम हैं?
ये फसलें कम समय में ही पककर तैयार होती हैं। इनमें पानी की जरूरत भी ज्यादा नहीं होती। इन्हें एक साल में कई बार उगा सकते हैं।
मिलेट्स तो पहले भी थे। फिर आजकल चर्चा की वजह क्या है?
पूरी दुनिया पिछले कुछ दशकों में लाइफस्टाइल से जुड़ी समस्या से दो-चार है। ये बीमारियां ज्यादातर हमारे गलत खानपान से हो रही हैं। हम जंक फूड (नूडल्स, पिज्जा, बर्गर आदि) का बहुत ज्यादा इस्तेमाल करते हैं। इनमें फाइबर की मात्रा बहुत ही कम है। मिलेट्स में अच्छे फाइबर की अधिकता है। इससे लाइफस्टाइल की परेशानी कम करने में काफी मदद मिलेगी।
डॉक्टर एस. के. मल्होत्रा
पूर्व कृषि आयुक्त, भारत सरकार
(सरकार की ओर से मिलेट्स पर यूएन में अपनी बात रखने वाले डॉक्टर एस. के. मल्होत्रा ही थे। इनके प्रयासों से ही 2023 को यूएन (यूनाइटेड नेशंस) ने ‘इंटरनैशनल मिलेट्स ईयर’ घोषित किया। उम्मीद है कि अगले साल से हर साल किसी खास तारीख को मिलेट्स डे मनाया जाएगा।)
डॉक्टर मल्होत्रा ने विस्तार से बताया कि किस तरह मिलेट्स चर्चा में दोबारा आया और मिलेट्स को थाली का हिस्सा बनाना क्यों जरूरी है:
डॉक्टर मल्होत्रा ने बताया कि भारत सरकार ने दुनियाभर में जागरूकता लाने को इसकी कोशिश 2018 से ही शुरू कर दी थी। साल 2018 भारत ने ‘मिलेट्स ऑफ द ईयर’ के रूप में मनाया। इसी साल भारत ने यूनाइटेड नेशंस के फोरम FAO (फूड एंड एग्रीकल्चर ऑर्गेनाइजेशन) के एग्रीकल्चर विभाग में जब इन मिलेट्स की खासियतें बताई तो वे भी प्रभावित हुए। इन्हें न्यूट्री-सीरियल्स (Nutri-Cereals) नाम दिया। FAO ने बताया कि हमने इन पर काफी रिसर्च की है। दरअसल, न्यूट्री-सीरियल्स का मतलब है कि ऐसे अनाज जिनमें पोषक तत्वों की भरमार हो।
इन वजहों से चलाया जा रहा है मिलेट्स का नया अभियान
अनाज का संकट
दुनियाभर दुनियाभर में बढ़ती जनसंख्या, झगड़े, सूखा, बाढ़ आदि से खाद्यान्न की कमी अब आम बात हो गई है। भारत इसमें मौका देखता है। भारत में मोटे अनाज का प्रोडक्शन बड़े पैमाने पर हो सकता है। इसमें सिंचाई की बहुत ज्यादा जरूरत नहीं होती। इसलिए यह खाद्य संकट का एक हल है।
पोषक तत्वों की कमी को दूर करने में:
चाहे मेजर मिलेट्स हों या फिर माइनर मिलेट, ये चावल या गेहूं से किसी भी मायने में कम नहीं हैं। इनमें कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, कैल्शियम और आयरन से लेकर तमाम तरह के पोषक तत्व मिलते हैं। सीधे कहें तो एक हेल्दी थाली बनाने में ये अहम भूमिका निभा सकते हैं। चूंकि इसमें कीड़े भी कम लगते हैं, इसलिए पेस्टिसाइड भी बहुत कम डाला जाता। साथ ही इसके लिए रासायनिक खाद आदि का इस्तेमाल भी कम करना पड़ता है। इस लिहाज से भी बेहतर है।
स्वास्थ्य की दृष्टि से भी बेहतर
चूंकि इनमें ग्लूटन नहीं होता यानी ऐसे लोग जिन्हें ग्लूटन पचाना मुश्किल होता है, उनके लिए मिलेट्स बेहतर हैं। दरअसल, ग्लूटन गेहूं और जौ में मौजूद ऐसा प्रोटीन है जिसे पचाना कुछ लोगों के लिए मुश्किल होता है। इस वजह से सिलियक नाम की बीमारी हो जाती है। इस बीमारी में पेट में बहुत छोटे-छोटे पोर्स होते हैं। इन वजहों से व्यक्ति को लगातार गैस, अपच, सिर दर्द आदि की परेशानी होती है। दूसरी तरफ मिलेट्स धीरे-धीरे पचते हैं। इसलिए इन्हें खाने के बाद शरीर में शुगर का स्तर अचानक नहीं बढ़ता। जबकि चावल और रोटी शरीर में पहुंचने के बाद शुगर लेवल बढ़ जाता है। मिलेट्स खाने के बाद लंबे समय तक पेट भरे रहने का आभास होता है। इसलिए मिलेट्स को शुगर के मरीज और जिन्हें अपना मोटापा कम करना हो, वे भी खा सकते हैं।
ग्लोबल वॉर्मिंग से लड़ाई में सहायक
चूंकि इन फसलों की बुआई, सिंचाई से लेकर पकने तक में ज्यादा पानी की जरूरत नहीं होती, इसलिए ये पानी की खपत भी कम करते हैं। वहीं, भारत जैसे देश के लिए यह ज्यादा लाभकारी इसलिए हो जाता है क्योंकि देश के कुल 140 मिलियन हेक्टेयर खेती लायक भूमि में से करीब 51 फीसदी यानी 72 मिलियन हेक्टेयर भूमि सीधे मॉनसून यानी वर्षा पर निर्भर है। कई बार मॉनसून समय पर रहता है तो कई बार नहीं। कई बार कई क्षेत्र सूखे रह जाते हैं। ऐसे में उन जगहों पर बाजरा, रागी और ज्वार की खेती की जा सकती है।
मिलेट्स हैं स्मार्ट अनाज
चूंकि ये शुष्क वातावरण में भी उग जाते हैं और मनमाफिक बारिश हो जाए तो बढ़िया फसल होती है, लेकिन उगते दोनों परिस्थितियों में हैं यानी मौसम के हिसाब से खुद को ढाल लेते हैं। इसलिए इन्हें स्मार्ट अनाज भी कहते हैं।
किसानों को फायदा
इनकी मांग काफी बढ़ रही है। किसानों की आर्थिक सेहत भी इससे सुधर रही है। इसलिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मिलेट्स को ‘श्रीअन्न’ कहा। सच तो यह है कि ये मिलेट्स कई तरह की समस्याओं का समाधान हैं।
सभी मिलेट्स पर लागू होती हैं कुछ बातें
मल्टीग्रेन या सिंगल आटा
मिलेट्स को आप आटे (सिंगल या मल्टीग्रेन) के रूप में या सीधे भूनकर भी खा सकते हैं। ये हर तरह से लाभकारी हैं। जब भी मल्टीग्रेन आटा तैयार करें तो कोशिश करें कि गेहूं, चना आदि के साथ एक ही मोटा अनाज मिलाएं। दरअसल, पेट को धीरे-धीरे मिलेट्स की आदत डलवाएंगे तो पाचन तंत्र पर न के बराबर असर पड़ेगा।
आटे को कैसे करें स्टोर?
जिस डब्बे में आटा रखें, वह पूरी तरह बंद हो। बारिश का मौसम है तो इसे 10 से 15 दिनों में खत्म करने की कोशिश करें। इससे ज्यादा समय तक रहने से ये वातावरण से नमी खींच लेते हैं। इससे आटा खराब हो सकता है। दरअसल, यह समस्या सभी तरह के आटे में है।
कितने दिनों के लिए
वातावरण में नमी कम है यानी 60 से 65 प्रतिशत की नमी तक ये 2 से 3 महीने तक चल जाते हैं, अगर सही पैकिंग हो। नमी का स्तर 80 प्रतिशत से ज्यादा हो तो इसे 15 दिनों में उपयोग कर लेना चाहिए।
पानी में डुबोना जरूरी
आप मिलेट्स को भून कर सीधे खाना चाहें तो कई बातों का ध्यान रखें। दरअसल, सारे मुख्य मिलेट्स मोटे अनाज नेक्ड सीड होते हैं यानी चावल या गेहूं की तरह इसके ऊपर छिलका नहीं होता जिसे हटाना हो। इनके बीज की स्किन कुछ ज्यादा मोटी होती है। सीधे खाने से ये पचाने में परेशानी पैदा कर सकते हैं। इसलिए इन्हें 12 से 24 घंटों को पानी (फिल्टर्ड वॉटर) में डुबोकर छोड़ दें। फिर सुखाकर भून लें। इससे इनकी स्किन सॉफ्ट हो जाती है। दरअसल, जो भी फसलें शुष्क प्रदेशों में पैदा होती हैं, उन्हें गर्मी के कोप से बचाने को कुदरत ने ही उनकी स्किन मोटी की है। इसके बाद इसे भून कर भी खा सकते हैं और आटे के रूप में भी।
FSSAI (फूड सेफ्टी एंड स्टैंडर्ड अथॉरिटी ऑफ इंडिया) ने मिलेट्स की पहचान के लिए कुछ गाइडलाइंस दी हैं:
1-अगर किसी मिलेट से बदबू आये या स्वाद कड़वा हो तो न खरीदें।
2-किसी मिलेट में मरे या जिंदा कीड़े दिखें तो न खरीदें।
3-पैक्ड मिलेट्स खरीदने की ही कोशिश करें।
4-पैकिंग पर AGMARK का सिंबल हो।
5-पैकिंग पर FSSAI का लाइसेंस नंबर भी होना चाहिए।
6-खरीदने से पहले उसकी मैन्युफैक्चरिंग और एक्सपायरी डेट जरूर चेक कर लें।
कितनी तरह के मिलेट्स
1. मेजर मिलेट्स
रागी, बाजरा और ज्वार शामिल हैं। इनके बीज का आकार माइनर मिलेट्स से बड़ा होता है। ये मिलेट्स हैं जो देश के कई हिस्सों में मिलते हैं। ये मिलेट्स दूसरे देशों अफ्रीकी देश और यूरोप के कुछ देशों में भी उगाये जाते हैं।
2. माइनर मिलेट्स
इसमें कुटकी, कोदो, कंगनी, सांवा, चेना आदि हैं। इनके बीज का आकार छोटा होता है। ये कुछ खास क्षेत्रों में ही उगाए जाते हैं ।
खास मिलेट्स: कैसे खाएं, कब खाएं, कितना खाएं
रागी (finger millet)
इसे बिहार, उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में मडुआ भी कहा जाता है। वैसे तो सभी मुख्य मिलेट्स अच्छे हैं, लेकिन रागी की बात ही कुछ और है। यह सामान्यतः मई के आखिर से जून तक बोया जाता है। मोटे तौर पर 65 से 70 दिनों में तैयार हो जाती है। मैदान के कम वर्षा वाले क्षेत्रों और पहाड़ों पर भी उगा सकते हैं।
सबसे ज्यादा उपज किन राज्यों में
वैसे सभी राज्यों की रागी अच्छी होती है, फिर भी कर्नाटक इस मामले में नंबर-1 है। इसके साथ ही उत्तराखंड की रागी भी अच्छी होती है।
मल्टीग्रेन में प्रतिशत
रागी को अगर मल्टीग्रेन आटे के रूप में खाना है तो इसे 20 से 30 प्रतिशत तक मिला सकते हैं।
कॉम्बिनेशन 10 किलोग्राम में
4 से 5 किलोग्राम गेहूं + 2 से 3 किलोग्राम सोक्ड और भुनी हुई रागी+ 2 किलोग्राम चना/मूंग + 1 किलोग्राम मक्का
कितना खाएं
अगर मल्टीग्रेन आटे के रूप में खा रहे हैं तो एक बार के भोजन में 3 से 4 रोटी अगर सिंगल आटे के रूप में तो एक से 2 रोटी।
किन तरीकों से खा सकते हैं
रागी के लड्डू, रागी के केक, बिस्कुट, डोसा, उपमा, इडली, हलवा, रागी आलू पराठे, खीर आदि बनते हैं।
किस मौसम में अच्छा है खाना?
बाकी मिलेट्स की तुलना में रागी को हर मौसम में खा और अच्छी तरह पचा सकते हैं।
किन सब्जियों के साथ मस्त कॉम्बिनेशन
बाजरा या ज्वार की तुलना में यह कम गर्म है। इसलिए इसे सभी तरह की सब्जियों के साथ खा सकते हैं।
साथ में कौन-सी दाल अच्छी?
इसके साथ मूंग या मसूर की दाल बेहतर है। वैसे किसी भी दाल के साथ खाने में समस्या नहीं है।
ये भी हो साथ तो मौज ही मौज
एक गिलास छाछ या एक गिलास लस्सी के साथ अगर मोटे अनाज का आनंद लें तो क्या कहने। अगर मोटे अनाज से पेट की गर्मी थोड़ी बढ़ भी जाएगी तो ये उसे बैलंस कर देंगे।
बाजरा (Pearl Millet)
सभी मोटे अनाज में ज्यादा मशहूर। ज्यादा क्षेत्र में उगने वाला। आयरन का बहुत अच्छा स्रोत। इसकी बुआई उत्तर भारत में मार्च से अप्रैल और दक्षिण भारत में अक्टूबर से नवंबर के बीच होती है। इसकी फसल 3 से साढे तीन महीने में तैयार हो जाती है।
किन राज्यों में सबसे ज्यादा पैदावार?
राजस्थान, महाराष्ट्र, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, बिहार, कर्नाटक आदि। वैसे सभी राज्यों में अच्छी क्वॉलिटी का बाजरा होता है, फिर भी राजस्थान, महाराष्ट्र, हरियाणा और उत्तर प्रदेश का बाजरा बढ़िया माना जाता है।
मल्टीग्रेन में प्रतिशत
बाजरे को 10 से 15 प्रतिशत तक मिला सकते हैं।
कॉम्बिनेशन 10 किलो में
5 से 6 किलो गेहूं+1 से डेढ़ किलो सोक्ड और भुना हुआ बाजरा+2 से ढाई किलो चना/मूंग+ आधा से 1 किलो मक्का
कितना खाएं?
अगर मल्टीग्रेन आटा के रूप में खा रहे हैं तो एक भोजन में 2 से 3 रोटी अगर सिंगल आटे के रूप में तो आधी से एक रोटी।
किन तरीकों से खा सकते?
बाजरे की खिचड़ी मूंगदाल वाली, डोसा, इडली, उत्तपम, पालक-बाजरे की रोटी, स्नैक्स आदि।
किस मौसम में बेहतर है खाना?
बाजरे का गुण रागी और ज्वार की तुलना में ज्यादा गर्म होता है। इसलिए ज्यादा गर्मी यानी मई से अगस्त तक कम खाएं। फिर भी मल्टीग्रेन के रूप में खा सकते हैं। हां, सिंगल आटे के रूप में खाने से बचना चाहिए।
किन सब्जियों के साथ मस्त संयोग?
चूंकि बाजरे की असर गर्म होता है, इसलिए गर्म असर वाली सब्जियों के साथ खाने से बचें। उदाहरण को शलजम, लहसुन आदि। बाकी सभी सब्जियों के साथ खाएं।
साथ में कौन-सी दाल बेहतर?
बाजरे के साथ कोशिश करें कि मूंग या फिर मसूर ही खाएं। अरहर के साथ खाने से बचें।
ये भी हो साथ तो मौज ही मौज
बाजरे की रोटी के साथ लस्सी और छाछ जरूर पिएं।
ज्वार (Sorghum)
यह प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट, फाइबर का अच्छा सोर्स है। इसकी बुवाई अप्रैल से मई के बीच होती है। जो लोग नॉनवेज नहीं खाते, उनके लिए प्रोटीन का यह एक अच्छा सोर्स हो सकता है।
किन राज्य में सबसे ज्यादा पैदावार?
महाराष्ट्र, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, मध्यप्रदेश, राजस्थान आदि। वैसे तो सभी राज्यों के ज्वार अच्छे हैं, फिर भी महाराष्ट्र का ज्वार बेहतर माना जाता है।
मल्टीग्रेन में प्रतिशत
इसे 15 से 20 % तक मिला सकते हैं।
कॉम्बिनेशन 10 किलो में
5 से 6 किलो गेहूं+डेढ से 2 किलो किलो सोक्ड और भुनी हुई ज्वार+2 से ढाई किलो चना/मूंग+आधा से एक किलो मक्का
कितना खाएं?
मल्टीग्रेन के रूप में 3 से 4 रोटी, सिंगल आटे के रूप में एक रोटी। अगर सर्दियों में खा रहे हैं तो डेढ से 2 रोटी खाने में कोई परेशानी नहीं है
किन तरीकों से खा सकते
गोभी ज्वार मुठिया, स्नैक्स, उपमा, खिचड़ी आदि।
किस मौसम में बेहतर है खाना
ज्वार को भी साल भर खा सकते हैं। यह बाजरे से कम गर्म है। फिर भी बहुत ज्यादा गर्मी हो तो खाने से बचें।
किन सब्जियों के साथ मस्त कॉम्बिनेशन
इसे भी हर तरह की सब्जी के साथ खा सकते हैं।
साथ में कौन-सी दाल बेहतर
इसे हर दाल के साथ खा सकते हैं पर मूंग, मसूर, कुलथी ज्यादा बेहतर।
ये भी हों साथ तो मौज ही मौज
इसे भी लस्सी या छाछ आदि के साथ खाएं तो बेहतर है। लस्सी और छाछ स्वाद के साथ अच्छा पाचक भी बन जाता है।
विशेष
मल्टीग्रेन तैयार करने का तरीका और उनमें मिलाने वाले अनाज अलग-अलग हो सकते हैं। चाहें तो इसके लिए किसी डायटिशन की मदद भी ले सकते हैं। ऊपर कई तरह की रेसिपी के नाम दिए गए हैं। इन्हें बनाने का तरीका सीखने के लिए यू-टयूब पर इनके नाम से सर्च करें, कई सारे विडियोज मिल जाएंगे।
एक्सपर्ट पैनल
डॉक्टर एस. के. सरीन, डायरेक्टर, ILBS
ईशी खोसला, सीनियर डायटिशन
परमीत कौर, चीफ डाइटिशन, AIIMS
नीलांजना सिंह, सीनियर डायटिशन