हिटलर तक को मूर्ख बनाने वाले भारतीय जासूस ‘सिल्वर ‘असल में थे भगत राम तलवार
Bhagat Ram Talwar: वो जासूसों के ‘बाप’ थे, हिटलर तक को बना दिया था मूर्ख.. कहानी सुपरस्टार स्पाई की
दुनिया में जासूसों के कई किस्से प्रचलित हैं। किसी ने देश के लिए अपनी जान दे दी तो किसी ने देश की आजादी के लिए सबकुछ झोंक दिया। एक ऐसे ही भारतीय जासूस थे भगत राम तलवार, जिन्होंने न केवल नाजियों को मूर्ख बनाया था बल्कि सुभाष चंद्र बोस को भारत से भागने में मदद भी की थी.
कहानी जासूसों के बाप भगत राम तलवार की
हाइलाइट्स
उन्हें जासूसों का बाप कहना गलत नहीं होगा, एक नहीं 5-5 देशों के लिए जासूसी
अपनी शातिराना चाल से हिटलर तक को उन्होंने मूर्ख बना दिया था
भगत राम तलवार की जासूसी की कहानी बड़ी ही रोचक है
नई दिल्ली तीन जनवरी: कोई धूम-धड़ाका नहीं, कोई मार-धाड़ नहीं। पर वो जासूसों का ‘बाप’ था। उसे पहचानना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन था। उसके 6 नाम थे। पर उसे अपने देश से बेइंतहा मोहब्बत थी। जासूसी तो वो 6 देशों की कर रहा था लेकिन दिल अपने देश के लिए धड़कता था। शातिर इतना था कि दायें हाथ को बायें का पता न चल पाए। द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान मित्र और धुरी देशों ने एक-दूसरे की जासूसी के लिए कई जासूस बनाए थे। दरअसल, उनका मकसद एक-दूसरे की खुफिया जानकारी हासिल करना था। एक ऐसे ही जासूस ब्रिटेन ने बनाया था। उस जासूस का खुफिया नाम ‘सिल्वर’ था। ये इतना तेज तर्रार था कि द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान इसने हिटलर तक को मूर्ख बना दिया था। आज एनबीटी सुपर हीरोज सीरीज में इस जोरदार जासूस की कहानी।
ये कहानी द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान की है। उस वक्त युद्ध ब्रिटिश राज और कॉमनवेल्थ के देशों और नाजी और उनके इटली साझेदार के बीच चल रही थी। इस दौरान रूस और अमेरिका इस युद्ध से दूर थे। ब्रिटिश मिलिटरी इंटेलिजेंस के लिए काम करने वाले पीटर फ्लेमिंग नामक शख्स ने ‘सिल्वर’ की नियुक्ति की थी। दरअसल, सिल्वर का असली नाम भगत राम तलवार था। गौरतलब है कि पीटर फ्लेमिंग के भाई इयान फ्लेमिंग ने ही दूसरे विश्वयुद्ध के दौरान जासूसों की कहानी को देखते हुए मशहूर किरदार ‘जेम्स बॉन्ड’ की रचना की थी। बाद में ही इसे 007 के नाम से जाना गया।
दरअसल, दूसरे विश्वयुद्ध के दौरान कई जासूस डबल, ट्रिबल एजेंट के रूप में काम कर रहे थे। मशहूर लेखक और पत्रकार मिहिर बोस ने अपनी किताब ‘Silver: The Spy Who Fooled the Nazis’ ने रहमत खान उर्फ भगत राम तलवार के बारे में खुलासा किया था। बोस ने लिखा है कि युद्ध के दौरान कई जासूस दोहरी भूमिका में थे और अलग-अलग देशों के लिए काम कर रहे थे। लेकिन भगत राम ऐसे जासूस थे जो दावा कर सकते थे कि उन्होंने 5 देशों के लिए काम किया था।
भगत राम ने सुभाष चंद्र बोस को पहुंचाया था बर्लिन
फरवरी 22, 1941 की बात है। एक क्लीन शेव शख्स काबुल में इटली दूतावास तक पहुंचता और वहां दरवाजा पर खड़े गार्ड से कहता है वह एक खानसामा है और उसे राजदूत के लिए काम करने को भेजा गया है। दरअसल, भगत राम को बोस को भारत से भगाने की जिम्मेदारी सौंपी गई थी और वह उसी को अंजाम देने के लिए लग गए थे। वेशभूषा से वह शख्स एकदम अफगान लग रहा था तो गार्डों को कोई शक भी नहीं हुआ। उसे अंदर जाने दिया गया। राजदूत उसे देखकर खुश तो नहीं हुआ लेकिन उससे पूछा कि उसे किसने भेजा है? उस शख्स ने बताया कि उसे अफगान में एक जर्मन कंपनी सिमंस के हेड हेर थॉमस ने भेजा है। इसपर राजदूत ने पूछा किसलिए? तब भगत राम ने कहा कि मुझे नहीं पता, मुझे बस आपको देखने के लिए भेजा गया है। इस जवाब के बाद इटली के राजदूत समझ गए कि ये कोई आम अफगान नहीं है। इसके बाद राजदूत ने वहां बैठे लोगों को जाने के लिए कहा और कहा कि मेरा नाम पीटर क्योरिनी है और मैं इटली का राजदूत हूं। जब उस व्यक्ति ने राजदूत को बताया कि उसका नाम रहमत खान है वह न तो कोई रसोइया है न अफगान है। बल्कि वह एक भारतीय है और वह सुभाष चंद्र बोस को काबुल लाना चाह रहे हैं। वह इसके लिए इटली की मदद चाह रहे थे। इसके बाद बोस रहमत खान की मदद से भारत से भागकर काबुल पहुंच गए। करीब एक महीने काबुल की सड़कों की खाक छानने के बाद इटली के राजदूत की मदद से अफगानिस्तान से निकलकर जर्मनी पहुंच गए। खैर ये तो बात हुई बोस के जर्मनी पहुंचने की लेकिन उस जासूस का क्या हुआ जिसने हिटलर तक को बेवकूफ बना दिया।
दरअसल, क्योरिनी से मीटिंग के बाद तलवार बहुत मशहूर हो गए थे और दूसरे विश्वयुद्ध के दौरान सबसे महंगे जासूसों में शुमार हो गए थे। 1945 तक उन्होंने इटली, जर्मनी, रूस, जापान और ब्रिटेन के लिए जासूसी की थी। लेकिन असल में वह कट्टर भारतीय थे देश के कम्युनिस्ट पार्टी के प्रति वफादार थे। कुछ महीने तक इटली के लिए काम करने के बाद भगत को जर्मनी भेजा गया था। नाजियों ने उन्हें जासूसी की ट्रेनिंग देकर फिर से काबुल भेज दिया था। 1941 से 1945 के बीच सिल्वर ने पैदल ही 12 बार काबुल की यात्राएं कीं। जर्मन ने उन्हें काबुल में एक किराए का फ्लैट दिला दिया था। उन्हें करीब 2.5 मिलियन भी दिए। जिसका इस्तेमाल भगत ने पैसे की तंगी से जूझ रहे कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया की मदद के लिए की। लेकिन दिल से कम्युनिस्ट सिल्वर यानी भगत की इच्छा नाजियों और इटली की मदद की कतई नहीं थी। तो उन्होंने हिटलर और इटली को झूठी जानकारियां देनी शुरू कर दी। उस दौरान इस तरह की जानकारी को चेक करने का कोई तरीका नहीं होता था। इस दौरान सिल्वर एक बार फिर अपने पुराने बॉस फ्लेमिंग से मिलते हैं। उन्होंने एक अफगान के मौत की शायद झूठी कहानी सुनाते हैं, जिसपर फ्लेमिंग विश्वास भी कर लेते हैं। इस यात्रा के दौरान सिल्वर ने अपने जर्मन रहनुमाओं को इस बात के लिए राजी कर लिया कि वह काबुल में रह रहे जापनी अताशे इनोयू से उन्हें मिलवाएं। जापानी अताशे ने भी क्यूरोनी की तरह ही भगत के झूठ को सच मान लिया। इस दौरान जापान भारत पर आक्रमण की योजना बना रहा था। इसी दौरान फ्लेमिंग ने सिल्वर को डबल एजेंट बनने के लिए राजी कर लिया था।
द्वितीय विश्वयुद्ध की समाप्ति के बाद सिल्वर गायब हो गए। इसके बाद 1947 में भारत भी आजाद हो गया। देश के बंटवारे के दौरान सिल्वर को ये अंदाजा था कि वह पाकिस्तान में एक हिंदू बनकर नहीं रह सकते इसलिए वह भारत आ गए। इस दौरान उन्होंने जासूसी के दौरान मिले करोड़ों रुपये लेकर भारत पहुंच गए। सिल्वर उर्फ भगत का 75 साल की उम्र में 1983 में निधन हो गया था।
The Untold Story Of Great Spy Bhagat Ram
नेताजी की खोज था दुनिया का ये सबसे बड़ा जासूस, 5 देशों के लिए जासूसी की लेकिन दिल से रहा इंडियन
नेताजी की खोज था दुनिया का ये सबसे बड़ा जासूस, 5 देशों के लिए जासूसी की लेकिन दिल से रहा इंडियन
देशभक्ति निभाने वालों को हमेशा सम्मान मिलता है. लोग उनकी वीरता की कहानियां आने वाली पीढ़ियों को सुनाते हैं, उन पर गर्व करते हैं. लेकिन इन्हीं वीर सपूतों में कुछ ऐसे भी होते हैं जिन पर देश को हमेशा गर्व तो रहता है लेकिन लोगों तक इनकी वीर गाथाएं पहुंच नहीं पातीं.
आज भी हमारे देश की सुरक्षा के लिए कई वीर सपूत अपना घर बार यहां तक की अपनी असली पहचान भूल कर ऐसी जगहों पर बैठे हैं जहां किसी भी वक्त उनकी मौत का फरमान सामने आ सकता है. आम भाषा में इन्हें जासूस कहा जाता है. आज एक ऐसे ही जासूस के बारे में हम आपको बताने जा रहे हैं जिन्होंने द्वितीय विश्व युद्ध के समय नाज़ी ताकत सहित कई अन्य देशों को बेवकूफ बना दिया:
कौन थे जासूस भगत राम तलवार?
Bhagat Ram Talwar
भगत राम तलवार का जन्म 1908 में एक संपन्न पंजाबी परिवार में हुआ था। इनके पिता गुरदास मल की ब्रिटिश राज के आला अफसरों से अच्छी दोस्ती थी लेकिन 1919 में अमृतसर के जलियांवाला बाग में हुए नरसंहार के बाद जब अंग्रेजों का अत्यंत क्रूर चेहरा दुनिया के सामने आया तब इनके पिता भी समझ गये कि ये गोरे कभी दोस्त नहीं हो सकते.
बचपन से ही भगत राम के मन में देशभक्ति की भावना जागृत हो चुकी थी. ये देशभक्ति केवल इनके अंदर ही नहीं बल्कि इनके अन्य दोनों भाइयों के अंदर भी कूट कूट कर भरी थी. इनके भाई हरिकिशन को 1930 में एक गवर्नर पर गोली चलाने के आरोप में गिरफ्तार किया गया तथा 9 जून 1931 में उन्हें फांसी दे दी गयी.
इसके बाद से तो भगत राम के अंदर देश सेवा की भावना और तेज हो गयी. उन्हें हमेशा से कुछ बड़ा करना था. आर्य समाज आंदोलन से लेकर कम्युनिस्ट पार्टी तक में भगत राम ने अपनी पहचान बनाई.
नेता जी की सबसे बड़ी खोज थे भगत राम
Bhagat Ram Talwar
सन था 1941 और दिन था 16 जनवरी. नेताजी सुभाष चंद्र बोस को हर हालत में सोवियत संघ पहुंचना था. लेकिन ये इतना आसान नहीं था. क्योंकि ब्रिटिश सैनिक हर जगह नेता जी की गंध सूंघने में लगे हुए थे. कहते हैं वेष बदलने में नेता जी का कोई सानी नहीं था. उनकी इस कला के सामने अच्छे अच्छे मात खा जाते थे. यही वो दिन था जब कलकत्ता में बैठे नेता जी को फ्रंटियर मेल से दिल्ली पहुंचना था.
सैनिकों से बचने को उन्होंने पठान का भेस बनाया हुआ था. इस समय उन्हें पहचाना लगभग नामुमकिन था लेकिन स्टेशन पर मौजूद एक आदमी ने इस नामुमकिन को मुमकिन करते हुए नेता जी को पहचान लिया. निश्चित ही इस समय नेता जी ने उस शख्स की पैनी नज़र की जम कर तारीफ की होगी. नेता जी को पहचानने वाला शख्स था रहमत खान, उर्फ़ सिल्वर उर्फ़ भगत राम तलवार. वह भगत राम ही थे जिन्हें नेता जी को काबुल से निकाल कर सोवियत संघ के रास्ते जर्मनी और फिर जापान पहुंचाने की जिम्मेदारी मिली थी लेकिन लेकिन उन्हें क्या पता था कि वह नेता जी के बहाने एक ऐसा इतिहास लिखने जा रहे हैं जो पहले किसी भारतीय ने नहीं लिखा था. भारत से पेशावर पहुंचने के बाद नेता जी और भगत राम ने काबुल पहुंचने के लिए 200 किमी का पैदल सफर तय किया.
यहां से भगत राम ने नेता जी के काबुल निकलने का रास्ता तैयार किया. नेता जी काबुल से मॉस्को तथा वहां बर्लिन और फिर जापान तक का सफर तय किया.
एक साथ 5 देशों को बनाया मूर्ख
नेता जी के जाने के बाद भगत राम भारत नहीं लौटे और काबुल में ही रहमत खान के नाम से रहने लगे. कोई जासूस किसी एक देश के लिए काम करता है लेकिन भगत राम ने नाज़ियों को भी विश्वास में लिया, रूस को बताया के वह उनके हैं, जापान से भी दोस्ती की. इटली के लिए वह खान जासूस बन गये. इसके कुछ ही महीनों बाद रहमत इटली के एक्सिस साथी जर्मनी का काम भी करने लगे.
लेकिन रहमत इन दोनों के नहीं हुए क्योंकि ये देश फांसीवाद के समर्थक थे और रहमत एक पक्के कम्युनिस्ट. दिखाने के लिए वह ब्रिटिश एजेंट भी बनें तथा यहीं उन्हें नया नाम मिला सिल्वर. सबसे रोचक बात तो ये थी कि उनके ब्रिटिश कंट्रोल ऑफिसर पीटर फ्लेमिंग जो कि जेम्स बांड के रचयिता कहे इयान फ्लेमिंग के भाई थे ने ही उन्हें सिल्वर नाम दिया.
इतना ही नहीं जर्मनी ने उन्हें आयरन क्रॉस से सम्मानित किया जो नाज़ियों का सर्वोच्च सैन्य सम्मान था. इसके साथ ही उन्हें आज की कीमत के हिसाब से 2.5 मिलियन यूरो का इनाम भी दिया गया. लेकिन इन सबके बाद भी भगत उर्फ रहमत ने सबको चकमा दिया. मिहिर बोस की किताब सिल्वर ‘द स्पाई हू फूल्ड द नाजीज़’ में लिखा है कि द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान भगत राम ने इटली, जर्मनी, फ्रांस, रूस, ब्रिटेन, जापान देशों के लिए एक एजेंट के तौर पर काम किया. लेकिन उनका लक्ष्य केवल भारत को आजादी दिलाने का था. वह इतने देशों के लिए डबल एजेंट की भूमिका निभाने वाले पहले जासूस थे.
भगत राम केवल दसवीं पास थे, उन्हें ठीक से अंग्रेजी भाषा का ज्ञान भी नहीं था, सबसे बड़ी बात थी कि भारतीय होने के नाते उनका रंग गेहुंआ था. फिर भी वह गोरे अंग्रेजों को मूर्ख बनाने में कामयाब रहे. कहा जाता है द्वितीय विश्व युद्ध के समाप्त होने के बाद के बाद भगत राम गायब हो गये और फिर भारत की आजादी के बाद वह अपने देश लौटे. 1983 में उत्तर प्रदेश के पीलीभीत में उनका निधन हो गया.