वक्फ संशोधन के पक्ष में वनवासी भी सुको, हमारी भूमि भी वक्फ कब्जे में
वक्फ संशोधन कानून के समर्थन में सुप्रीम कोर्ट पहुंचे आदिवासी संगठन, कहा- ‘बोर्ड ने हमारी जमीनों पर कब्जा…’
Waqf Amendment Act, 2025: वक्फ संशोधन विधेयक पर राष्ट्रपति के हस्ताक्षर से कानून बनने के बाद कांग्रेस, सपा समेत कई राजनीतिक पार्टियां और अन्य धार्मिक संगठन इसके विरोध में सुप्रीम कोर्ट पहुंचे हैं.
वक्फ संशोधन कानून के समर्थन में सुप्रीम कोर्ट पहुंचे आदिवासी संगठन, कहा- ‘बोर्ड ने हमारी जमीनों पर कब्जा…’
वक्फ संशोधन कानून संबंधी याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट मे होगी सुनवाई
Tribal Organizations On Waqf Amendment Act
नई दिल्ली 15 अप्रैल 2025। सुप्रीम कोर्ट में वक्फ संशोधन मामले की सुनवाई से पहले नए कानून के समर्थन में लगातार आवेदन दाखिल हो रहे हैं. अब आदिवासी संगठनों ने भी इस कानून को आदिवासियों के हित की रक्षा करने वाला बताकर सुप्रीम कोर्ट में अपना पक्ष सुने जाने की मांग की है. जय ओमकार भीलाला समाज संगठन और आदिवासी सेवा मंडल नाम की संस्थाओं ने यह नए आवेदन दाखिल किए हैं.
नए वक्फ संशोधन कानून की धारा 3E अनुसूचित जनजाति के लोगों की जमीन को वक्फ की संपत्ति घोषित करने पर रोक लगाती है. आदिवासी संगठन इसे अपने समुदाय के हितों की रक्षा के लिए एक जरूरी प्रावधान मान रहे हैं. उनका कहना है कि संविधान निर्माताओं ने आदिवासियों की जमीनों को लेकर विशेष रूप से चिंतित रहे. इसका परिणाम है तमाम राज्यों के ऐसे कानून जो अनुसूचित जनजाति वर्ग के लोगों की जमीनों का ट्रांसफर गैर-आदिवासी को करने पर प्रतिबंध लगाते हैं.
लंबे समय से जरूरत की जा रही थी महसूस
आदिवासी संगठनों ने कहा है कि वक्फ कानून, 1995 में वक्फ बोर्ड को अनियंत्रित शक्ति दे दी गई थी. ऐसे तमाम उदाहरण हैं, जहां वक्फ बोर्ड ने आदिवासियों की जमीन को वक्फ बताकर उस पर कब्जा कर लिया. संसद से बना नया वक्फ संशोधन कानून आदिवासी समाज के हितों के प्रति केंद्र सरकार की वचनबद्धता को दिखाता है. लंबे समय से ऐसे कानून की जरूरत महसूस की जा रही थी.
नए वक्फ कानून के विरोध में 20 से ज्यादा याचिकाए दर्ज
उल्लेखनीय कि नए वक्फ कानून के विरोध में कांग्रेस, आरजेडी, एसपी, टीएमसी, डीएमके, AIMIM जैसे राजनीतिक दलों के नेताओं के अलावा ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड, जमीयत उलेमा-ए-हिंद के अध्यक्ष अरशद मदनी समेत कई संगठनों और लोगों ने याचिकाएं दाखिल की हैं. उन्होंने नए कानून को मुस्लिमों से भेदभाव करने वाला बताया है. इस तरह की 20 से ज़्यादा याचिकाएं दाखिल हुई हैं.
CJI की अध्यक्षता वाली बेंच याचिकाओं पर करेगी सुनवाई
16 अप्रैल को चीफ जस्टिस संजीव खन्ना की अध्यक्षता वाली 3 जजों की बेंच मामले को सुनेगी. उससे पहले नए कानून के समर्थन में भी याचिकाओं का दाखिल होना जारी है. 2 आदिवासी संगठनों के अलावा 7 राज्य सरकारों ने नए कानून को संविधान सम्मत और न्यायपूर्ण बताया है. इसके अलावा भी कई व्यक्तियों और संगठनों ने नए कानून को सही बताते हुए आवेदन दाखिल किए हैं. इस तरह कानून के पक्ष में भी 14-15 आवेदन दाखिल हो चुके हैं. केंद्र सरकार ने भी कैविएट दायर कर अपना पक्ष रखने की मांग की है.