क्षैतिज आरक्षण पुनर्जीवन को राज्य आंदोलनकारी बैठे हैं अनशन पर
देहरादून 04 जनवरी। कांग्रेस शासन में उत्तराखंड आंदोलनकारियों को राज्य सेवाओं में 10% क्षैतिज आरक्षण को पुनर्जीवित करने को 10 दिन से चल रहा धरना और कोटद्वार के क्रांति कुकरेती की अनशन की चेतावनी चुनाव के दरवाजे पर खड़ी सरकार पर भी कोई प्रभाव डालता नहीं दिख रही है। इस आरक्षण को उत्तराखंड हाई कोर्ट ने रद्द कर दिया था जिसे राज्य सरकारों ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देनी थी लेकिन राज्य आंदोलनकारियों के बलिदानों के दम पर सत्ता सुख भोग रही सरकारों ने कोर्ट में इस आरक्षण की भावना की पैरवी करने की जरूरत नहीं समझी। अब आंदोलनकारियों ने आत्मदाह की चेतावनी दी तो मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने बातचीत का आश्वासन तो दिया है लेकिन क्या चुनाव आदर्श संहिता लागू होने के पहले कुछ हो पायेगा, इसमें संदेह है।
यहां जिलाधिकारी कार्यालय स्थित राज्य आंदोलनकारी बलिदान स्मारक पर अनशन पर बैठे क्रांति कुकरेती का आरोप तो यहां तक है कि राज्य का असंवेदनशील शासन तंत्र राज्य आंदोलनकारियों के हित रक्षण की तो छोड़िए, उसके विरोध में असंवैधानिक रूख बेखटके अपनाता रहा है और सरकार उस रवैए की ओर से आंखें मूंदे रही है। यहां तक कि आंदोलनकारियों के विरोध में जाने को नौकरशाही स्वायत्त आयोगों के कामकाज तक में हस्तक्षेप करती रही है और इसी से उन्हें अनशन जैसे अतिरेकी कदम उठाने पड़ रहे हैं। राज्य आंदोलनकारी परिषद के उपाध्यक्ष रहे कांग्रेस नेता धीरेन्द्र प्रताप का कहना है कि उन्होंने बिना किसी आंदोलन चिन्हित राज्य आंदोलनकारियों को राज्य सेवाओं में 10% आरक्षण दिलाया था लेकिन बाद में सरकारें राज्यांदोलनकारियों के हितों की रक्षा नहीं कर पाई।
आंदोलनकारियों की पीड़ा सुनिये,उन्ही के शब्दों में-
कुकरेती के साथ धरने पर कांग्रेस नेता वीरेंद्र पोखरियाल, मनीष नागपाल के अलावा चमोली से जगदीश चंद्र पंत, विकास रावत, वीरेन्द्र रावत, सूर्यकांत, मनोज कुमार, रामकिशन, गणेश शाह, सुरेश कुमार, स्वदेशी जागरण मंच के प्रांत संयोजक सुरेंद्र सिंह, प्रवीण पुरोहित, उत्तरकाशी से जयवीर रांघड, वीरेन्द्र सिंह रावत, कुलदीप रावत, वेदानंद कोठारी, विक्रम भंडारी आदि बैठे हैं।