भाई नरेश के स्टिंग से भड़के राकेश टिकैत की अब मीडिया को धमकी
भाई के स्टिंग से बौखलाए राकेश टिकैत, मीडिया को दी खुलेआम धमकी, कहा- ‘बचना है तो साथ दो नहीं तो आप भी गए
राकेश टिकैत ने मीडिया को दी खुलेआम धमकी, स्टिंग ऑपरेशन से बौखलाए (फोटो: इंडिया टीवी/ ट्विटर)
छत्तीसगढ़ के राजिम में मंगलवार (27 सितंबर 2021) को किसान महापंचायत में शामिल होने पहुँचे राकेश टिकैत ने मीडिया को लेकर बड़ा बयान दिया है। उन्होंने मीडिया को धमकाते हुए कहा, “सरकार का अगला टारगेट मीडिया है, आपको बचना है तो साथ दे दो नहीं तो आप भी गए।”
राकेश टिकैत का अगला टारगेट मीडिया हाउस हैं। @ZeeNews ने सच दिखाया तो ये धमकी ? नहीं तो ? pic.twitter.com/Wb8sEYWkHR
— Sudhir Chaudhary (@sudhirchaudhary) September 28, 2021
मीडिया से बातचीत में टिकैत ने कहा कि बीजेपी को बेचने की बीमारी है। कानून बनाकर आधा देश बेच दिया। इस दौरान पत्रकारों ने जब उनसे छत्तीसगढ़ की कॉन्ग्रेस सरकार को लेकर सवाल किया, तो उन्होंने नजरअंदाज कर दिया।
राकेश टिकैत ने महापंचायत सहित अन्य सवालों पर आगे कहा, ”इस समय सबसे बड़ी समस्या एमएसपी (MSP) की है, जो पूरे देश की है। ये लड़ाई दिल्ली से। छत्तीसगढ़ में कॉन्ग्रेस की सरकार है तो क्या हुआ? कुछ न कुछ तो यहाँ भी निकलेगा।” उन्होंने भारत बंद के दौरान लगे जाम को लेकर कहा कि दिल्ली और गुरुग्राम पुलिस ने जाम किया और दिखाया कि हमने जाम लगाया है।
दरअसल, बीकेयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष और तथाकथित किसान नेता राकेश टिकैत के भाई नरेश टिकैत, ज़ी न्यूज़ द्वारा किए गए एक स्टिंग ऑपरेशन में अपनी दोहरी नीतियों के कारण पकड़े गए हैं। इसमें उन्हें यह कहते हुए सुना जा सकता है कि विदेशी कंपनी को न्यूनतम बिक्री मूल्य (MSP) से कम कीमत पर गन्ना और फ़ैक्ट्री के लिए सस्ती जमीन भी दिला सकते हैं यदि नकद में भुगतान किया जाए। यह स्टिंग ऑपरेशन सामने आने के बाद से राकेश टिकैत बौखला गए हैं।
यही कारण है कि टिकैत सार्वजनिक रूप से मीडिया को धमकाते हुए नजर आ रहे हैं। उनका वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो गया है। इससे किसान नेता एक बार फिर सोशल मीडिया यूजर्स के निशाने पर आ गए हैं। एक यूजर ने लिखा, ”अब ये किसान से गुंडा बनने लग गया, खुले आम मीडिया को धमकी दे रहा है। साथ दे दो तो ठीक है नहीं तो गए। क्या मतलब है इस लाइन का।”
एक अन्य यूजर ने लिखा, “रहने दे तिहाड़ी। अक्खा पब्लिक जानती है तुम एक दलाल हो।”
राकेश टिकैत का अगला टारगेट मीडिया हाउस हैं। @ZeeNews ने सच दिखाया तो ये धमकी ? नहीं तो ? pic.twitter.com/Wb8sEYWkHR
— Sudhir Chaudhary (@sudhirchaudhary) September 28, 2021
गौरतलब है कि नरेश टिकैत को लगभग 7 मिनट 24 सेकंड के वीडियो में गुड़ फ़ैक्ट्री और उसी के लिए गन्ना खरीद के प्रस्ताव पर चर्चा करते देखा जा सकता है। एक रिपोर्टर, जो एक उद्योगपति व्यापारी बन नरेश टिकैत के सामने एक व्यापारिक सौदे का प्रस्ताव रख रहा है, को नरेश टिकैत से गुड़ की फैक्ट्री खोलने के बारे में बात करते हुए देखा जा सकता है और जब बातचीत आगे बढ़ते हुए गन्ने की कीमतें बढ़ीं तो… यहाँ पहुँची तो नरेश टिकैत को कहते हुए सुना जा सकता है, “बहुत अच्छा, हमारे यहाँ बड़ी मात्रा में गन्ना है, और ये गन्ने आपको सही दाम पर मिलेंगे, मिल भी इतना गन्ना नहीं ले सकती, बस भुगतान नकद में होना चाहिए, मिल में माँगे गए दर से भी कम कीमत पर आपको गन्ना मिलेगा, जैसा कि मिल की कीमत है, 325 रुपए प्रति क्विंटल है, जबकि क्रशर (कोल्हू) की कीमत 225 रुपए, 250 रुपए या 275 रुपए में मिल जाएगा आपको..”
आंदोलन वाले भ्रम का भंडाफोड़, भारतीय किसान यूनियन के अध्यक्ष नरेश टिकैत पर बड़ा खुलासा
किसान आंदोलन (Farmers Protest) के नाम पर भ्रम फैलाने वाले राकेश टिकैत (Rakesh Tikait) के भाई व भारतीय किसान यूनियन के अध्यक्ष नरेश टिकैत (Naresh Tikait) पर बड़ा खुलासा हुआ है. जो नरेश टिकैत किसानों को जमीन छिन जाने का डर दिखा रहे हैं वो अपनी जमीन मुनाफे के लिए लीज पर देने को तैयार हैं.
नवंबर 2020 से लगातार यानी 10 महीने से किसान आंदोलन चल रहा है. दिल्ली बॉर्डर को किसान संगठनों ने घेर रखा है लेकिन जिन किसान नेताओं के भरोसे भोले भाले किसान धूप, सर्दी और बारिश में सड़कों पर खड़े होआंदोलनरत हैं, उन नेताओं का असली चरित्र और चेहरा पता है? ऑपरेशन टिकैत में अन्नदाताओं से छल करने वाले किसान नेताओं का असली चेहरा दिख रहा है.
राजधानी की सीमाएं 10 महीने से बंद
आजादी के 75 साल में पहली बार देश की राजधानी की सीमाएं 10 महीने से बंद हैं. दिल्ली के बॉर्डर किसान आंदोलन के नाम पर बंधक. सैकड़ों फैक्ट्रियां, दुकान और दूसरे कारोबार बंद ,हजारों लोगों के घरों में बुझे चूल्हों की राख से भी किसानों को उकसाने की चिंगारी ढूंढ़ निकाली. किसानों की रहनुमाई का दावा करने वालों ने नेशनल हाईवे पर हठ के खूंटे गाड तंबू लगा दिए. रेल पटरियां आंदोलन का अखाड़ा बना दी ।26 जनवरी को दिल्ली में उपद्रव किया. लाल किले पर चढ़ गणतंत्र का अपमान किया. और ये सब कृषि कानूनों के विरोध के नाम पर, जिन्हें किसान विरोधी बता कर पूरे देश में आंदोलन खडा हुुआ । अन्नदाताओं को सरकार के खिलाफ एक करने की मुहिम चली । किसान आंदोलन के नाम पर देश को बदनाम करने की कोशिश तक हुई.
ये हैं अघोषित ब्रांड एम्बैसेडर
राकेश टिकैत इस आंदोलन का बड़ा चेहरा हैं।वेें भारतीय किसान यूनियन के प्रवक्ता हैं. राकेश टिकैत आंदोलन का ब्रांड एम्बैसेेेेडर हैं, वो कृषि कानून वापसी को सरकार को बेधड़क चेताते हैं. भारतीय किसान यूनियन किसान आंदोलन के संगठनों में प्रमुख है. टिकैत परिवार संगठन का सर्वेसर्वा है. राकेश के बड़े भाई नरेश टिकैत भारतीय किसान यूनियन के अध्यक्ष हैं. नरेश भी सरकार को कृषि कानून खत्म करने का अल्टीमेटम देते हैं. उनकी अगुवाई में भारतीय किसान यूनियन ने पांच सितंबर को मुजफ्फरनगर में कृषि कानून विरोध में बड़ी महापंचायत की.
खुल गया किसान आंदोलन के नाम भ्रम और सत्य का भेद
राकेश और नरेश टिकैत जैसे नेताओं का दावा है कि नए कृषि कानूनों से किसान बर्बाद होंगे और वो देश के अन्नदाताओं को बचाने की लड़ाई लड़ते हैं । क्या वाकई ऐसा है? सवाल है कि किसान हित का दम भर कृषि कानून विरोधी आंदोलन चलाने वाले टिकैत बंधु विचारों में कितने ईमानदार और प्रतिबद्ध हैं. जो जुबान पर है वो उनके दिल में भी है? स्टिंग ऑपरेशन में इन सभी सवालों के जवाब हैं. किसान आंदोलन के नाम पर चल रहे भ्रम और सत्य का भेद खुलकर सामने आ गया.
MSP पर प्रोटेस्ट दिखावा?
जी न्यूज की अंडरकवर टीम टिकैत परिवार के पैतृक गांव मुजफ्फरनगर के सिसौली पहुंची. राकेश टिकैत नहीं मिले. उनके बड़े भाई भारतीय किसान यूनियन के प्रमुख नरेश टिकैत मौजूद थे. नरेश टिकैत ने खुफिया कैमरे के सामने जो कहा, वो चौंकाने वाला था. टिकैत बंधु न्यूनतम समर्थन मूल्य के नाम पर कृषि कानून का विरोध कर किसानों को एमएसपी खत्म होने का डर दिखा सरकार के खिलाफ लामबंद करते हैं, वे अपने इलाके के किसानों का गन्ना सरकार द्वारा तय न्यूनतम कीमत से कम पर दिलवाने का ऑफर दे रहे थे.
ये है कथनी और करनी में फर्क
नरेश टिकैत गन्ने को कम दाम पर ही प्राइवेट कंपनी को बेचने को राजी हैं, ‘अजी, बढ़िया है यहां तो…यहां तो इतना गन्ना है…और गन्ना बहुत ही ठीक रेट में मिल जाएगा…इतना गन्ना है…मिल इतना गन्ना नहीं ले पाता…इतना गन्ना नहीं ले पाता मिल…बढ़िया है, अच्छा गन्ना लो…पेमेंट नगद करो…मिल से भी कम रेट में मिल जाएगा….जो मिल का रेट है, जो मिल का 325 रु. (प्रति क्विंटल) का रेट है…वो तो उसकी बात है…तो कोल्हू का रेट 225 रु. मिल जाए, 250रु. मिल जाए…275रु. मिल जाए… ऐसी कोई बात नहीं.’
किसानों को डरा रहे और खुद जमीन लीज पर देने को तैयार
आंदोलन के नाम पर किसानों को जमीन छिन जाने का डर दिखाने वाले नरेश टिकैत फायदे के लिए खुद की जमीन लीज पर देने को तैयार हो गए.
रिपोर्टर- सर, लीज मिनिमम (कम से कम) कितने साल का होगा?
नरेश टिकैत- लीज में थोड़ा सा ये हो जाता है कि आदमी डर रहे हैं. लोग डर रहे हैं कि उनकी जमीन चली जाएगी.
रिपोर्टर- अरे वो तो आप भी जानते हैं कि जमीन नहीं जाएगी.
रिपोर्टर- नहीं तो फिर उसका कुछ रास्ता निकालिए. क्योंकि इनका ये कहना है कि अगर डेढ़ करोड़ की फैक्ट्री डालें. 1.10 करोड़ रु. या 1.15 करोड़ रु. जो भी लगे….मान लीजिए 2 साल बाद बोले कि मेरा (जमीन) खाली करो…क्योंकि जो हम लागत लगाएंगे, उससे 4 साल लगेगा प्रॉफिट कमाने में.
नरेश टिकैत- अच्छा
रिपोर्टर- मार्केटिंग है उसकी, तामझाम है उसका
नरेश टिकैत- चलो, घर चलकर गौरव से करना बात…हमारे पास ही है जमीन. बेलूर गांव में है.
किसानों को डराने की मुहिम की असलियत उजागर
इस बातचीत से साफ है, भारतीय किसान यूनियन के अध्यक्ष नरेश टिकैत अपनी जमीन उस व्यक्ति को लीज पर देने को तैयार हैं, जिसे वो उद्योगपति समझ रहे हैं. बस उन्हें मनचाही कीमत चाहिए. टिकैत बंधु किसान आंदोलन के मंच से कहते हैं कि नए कृषि कानूनों में बड़े कारोबारी और उद्योगपति किसानों की जमीन हड़प लेंगे. हालांकि नए कृषि कानूनों में एक भी लाइन ऐसी नहीं है, जो किसानों को उनकी जमीन से बेदखल करती हो फिर भी टिकैत जैसे किसान नेता भोले भाले किसानों को डराने में जुटे हैं. लेकिन खुद नरेश टिकैत अपनी जमीन एक उद्योगपति को देने के लिए फटाफट राजी हो गए.
कैसे हुआ खुलासा?
असल में सिसौली पहुंचकर अंडरकवर रिपोर्टर्स ने नरेश टिकैत से मुलाकात की. नरेश टिकैत के साथ उनका एक सहयोगी भी था. अंडरकवर रिपोर्टर्स ने नरेश टिकैत से अपना परिचय उद्योगपतियों के रूप में दिया, जो पश्चिमी उत्तर प्रदेश में गुड़ की फैक्ट्री लगाना चाहते हैं. बातचीत ऐसे शुरू हुई-
नरेश टिकैत- चलो तुम बताओ अपना अब..
रिपोर्टर- ऐसा है ये जो हैं ना, ये जा रहे हैं सहारनपुर, ये बात किए हुए थे. संयोग से साथ में आए. किस्मत वाली बात है. मैंने कहा कि मैं जा रहा हूं, चलिए आपको उनसे मिलवाता हूं. आपका नाम सुनकर खुशी के मारे पागल हो गए. इनकी कहानी ये है कि इनका ढाई-तीन करोड़ का बजट है. ये गुड़ की फैक्ट्री डालना चाह रहे हैं. कोल्हू नहीं, फैक्ट्री डालेंगे. इसके लिए इनकी सिंगापुर की कंपनी से बात हुई है तो करीब एक से डेढ़ करोड़ बजट लगेगा फैक्ट्री डालने का. इनको एक से डेढ़ एकड़ जमीन चाहिए.
नरेश टिकैत- एकड़?
रिपोर्टर- हां, एक से डेढ़ एकड़
नरेश टिकैत- ठीक
रिपोर्टर- उसमें ये पूरी फैक्ट्री बिठाएंगे. उतनी जमीन तो खरीद नहीं सकते. इसीलिए ये सहारनपुर जा रहे हैं, जिससे इनकी बातचीत हुई है, वहां पर कोई बड़ा प्रॉपर्टी डीलर है. उसने कहा है जमीन दिलवाएगा. तो ये गुड़ बनाएंगे. इस पूरे इलाके में कोल्हू तो है, गन्ना भी है. सब यहीं है. पूरे देश को सप्लाई यहीं से जा रही है. पर व्यवस्थित सिस्टम नहीं है तो इनकी प्लानिंग ये है कि हम गुड़ बनाएंगे…उसको ढंग से पैक करेंगे और उसे सप्लाई करेंगे. यही इनकी प्लानिंग है…तो इनका ढाई से तीन करोड़ का बजट है…एक फैक्ट्री डालना है 20-25 लोगों को उस में रोजगार देना है.
नरेश टिकैत- अच्छा
रिपोर्टर – ये इनकी प्लानिंग है.
मौका पड़ने पर तुरंत बदल लिया रंग
कृषि कानूनों को लेकर सरकार पर हमलावर महापंचायत बुलाकर सरकार को चुनौती देने वाले नरेश टिकैत के साथ अंडरकवर रिपोर्टर्स की बातचीत खुफिया कैमरे में रिकॉर्ड हो रही थी. हम जानना चाहते थे कि टिकैत जैसे किसान नेता आंदोलन के मंच से बड़े बड़ी बातें करते हैं. कृषि कानून को लेकर जिस तरह के दावे करते हैं, क्या वो खुद उसे लेकर ईमानदार हैं, या मौका पड़ने पर वो रंग बदल लेते हैं. रिपोर्टर ने नरेश टिकैत से कहा कि गुड़ की ऑटोमेटिक फैक्ट्री लगाने को सिंगापुर की एक कंपनी के साथ हमारा करार है. इतना सुनते ही नरेश टिकैत ने इस प्रोजेक्ट में दिलचस्पी दिखानी शुरू कर दी.
नरेश टिकैत- बढ़िया… बहुत बढ़िया और जो बनी बनाई मिल जाए तो?
रिपोर्टर- नहीं, सिंगापुर की कंपनी से जो बात हुई है वो अपना पूरा सेटअप लाकर लगाएगा ना सर. पूरा अलग सेटअप लगेगा. फैक्ट्री लगेगी पूरी वो.. सब काम मशीन से होगा, हाथ से कुछ नहीं.
नरेश टिकैत का सहयोगी – कितने बीघा जमीन की बात कह रहे हैं?
रिपोर्टर- एक-डेढ़ एकड़. जैसे हमारे यहां एक एकड़ होता है साढ़े तीन-चार बीघे का यहां कितने का होता है?
नरेश टिकैत – हां, यहां भी वही है. साढ़े पांच बीघे का एकड़ है.
रिपोर्टर – सॉरी, हमने इनको बता दिया था कि 12 बीघे का एकड़ होता है यहां.
रिपोर्टर 2- दो एकड़ काफी है.
नरेश टिकैत- 10 बीघा
रिपोर्टर 2- हां, ये है कहानी.
नरेश टिकैत- तो जमीन का भी एग्रीमेंट होगा.
रिपोर्टर- तो इनको मैंने ये कहा है कि आप इतनी दूर क्यों जा रहे हैं सहारनपुर… यहां लगाओ, गन्ना बेल्ट तो ये है.
नरेश टिकैत- बहुत बढ़िया.. ठीक है.
रिपोर्टर- इसीलिए सोचा आप से मिलवा दूं एक बार. अगर लगता है ठीक है, अगर आपका आशीर्वाद हुआ तो कर लेंगे.
नरेश टिकैत- नहीं आशीर्वाद, कोई वो नहीं है… जो तय हो जाएगी.. जो जमीन की तय हो जाएगी कि भाई, इतना किराया दिया जाएगा..
रिपोर्टर- किराया तय हो जाए. पांच-पांच साल का लीज हो जाए.
नरेश टिकैत- ठीक है.
रिपोर्टर – तो मान लीजिए 2 एकड़ जमीन लेते हैं. तो कितना बजट आ जाएगा सर उसका लीज अगर करें?
नरेश टिकैत- नहीं, यहां तो (अपने सहयोगी से) मास्टर जी… यहां तो कम से कम दस हजार रु/बीघा मान कर चलो एक साल का. कम से कम है 10 हजार रुपये बीघा. नहीं, जो ठेके पर यहां (जमीन) देते हैं आदमी.. .नहीं, मैं कह रहा हूं, जो लोग ठेके पर देते हैं.
रिपोर्टर – मतलब कि अगर दस हजार रुपए बीघा हुआ तो 12 बीघा लेते हैं तो साल का एक लाख बीस हजार रु?
नरेश टिकैत- हां.
रिपोर्टर – मतलब कि एक लाख बीस हजार रु. एक साल का रेंट हो गया.
नरेश टिकैत का सहयोगी- हां, 1 साल का.
रिपोर्टर – उसमें ये है कि इनका जो फैक्ट्री का सेटअप लग रहा है 1.10 (करोड़ रु.) या 1.20 (करोड़ रु.)…कितना बताया था?
रिपोर्टर – 1.10 करोड़ (रु.) के आस-पास मान लीजिए
रिपोर्टर – एक करोड़ दस पंद्रह लाख रु. फैक्ट्री के सेटअप में लगेगा. मान लीजिए हम लगाएं सहारनपुर में… इसीलिए डर रहे हैं ये.. लगाएं मान लो अगला बोले कि भाई, खाली करो.
नरेश टिकैत – नहीं, ऐसी कुछ बात नहीं है. जो तय हो जाता है… तो ठीक है… महंगाई के हिसाब से साल भर में बढ़ता रहे… जो जमीन का किराया है वो बढ़ता रहे.
आखिर कौन सच्चा है?
बातचीत जानने के बाद हर किसी के मन में ये सवाल जरूर उठेगा कि आखिर कौन सच्चा है? क्या वो टिकैत बंधु सच्चे हैं जो किसान आंदोलन और महापंचायत के मंच से सरकार को ललकारते दावा करते हैं कि नए कृषि कानून किसानों के खिलाफ हैं और उद्योगपतियों की तिजोरी भरने को बनाए गए हैं. या फिर नरेश टिकैत सच्चे हैं जो अपनी जमीन लीज पर लेने वाले उद्योगपतियों के स्वागत को तैयार बैठे हैं.
खौफ की खेती सच आया सामने
इस खुलासे से साफ है कि डर के इस खेल में नरेश टिकैत जैसे किसान संगठनों के नेता रस्सी को सांप बता किसानों को डराते हैं. वो खौफ की खेती कर नेतागीरी की फसल काटते हैं. टिकैत भी इसे जानते और समझते हैं कि नए कृषि कानूनों से देश के करोड़ों अन्नदाताओं का फायदा होगा. किसानों की जमीन भी सुरक्षित रहेगी और उनकी आमदनी भी बढ़ेगी. लेकिन वो किसानों को उल्टा पाठ पढ़ा अपना उल्लू सीधा करना चाहते हैं. उन्हें लगता है कि किसान डरेगा तभी उनकी नेतागीरी चलेगी. इसलिए वो किसानों को जमीन खोने का भय दिखा किसानों को गुमराह कर सरकार के खिलाफ भड़काते हैं.
(नोट- हमारा उद्देश्य किसी भी संस्था या व्यक्ति का चरित्र हनन करना नहीं है। सिर्फ सच सामने लाना चाहते हैं और सच ये है कि भारतीय किसान यूनियन के प्रमुख नरेश टिकैत ने खुफिया कैमरे के सामने जो कहा, वो कानूनी तौर पर ठीक है क्योंकि कोई किसान नियमों और प्रक्रिया का पालन कर जमीन उद्योग लगाने को दे सकता है. इसमें कोई गलती नहीं है. नरेश टिकैत कानूनी तौर पर हैं लेकिन नैतिक रूप से नहीं. किसान आंदोलन के मंच से नरेश टिकैत और उनके भाई राकेश टिकैत डर दिखाते हैं कि नए कृषि कानून लागू हुए तो किसानों की जमीन उद्योगपति हड़प लेंगे लेकिन नरेश टिकैत खुद कारोबारी को जमीन लीज पर देने को तैयार हैं.)