रणनीति: मुस्लिम बहुल मुजफ्फरनगर में सपा-रालोद से एक भी मुस्लिम को टिकट नहीं
समाजवादी पार्टी प्रमुख अखिलेश यादव और राष्ट्रीय लोकदल अध्यक्ष चौधरी जयंत सिंह
मुजफ्फर नगर की राजनीति के जानकारों का कहना है कि यहां समाजवादी पार्टी और राष्ट्रीय लोकदल ने टिकट बंटवारे में ध्रुवीकरण का ख़ास ध्यान रखा है. यहां साल 2013 में दंगे हुए थे, जिसके बाद 2014 और 2019 लोकसभा में मुज़फ़्फ़र नगर सीट पर बीजेपी ने जीत दर्ज की.
साल 2017 के विधानसभा चुनाव में भी बीजेपी ने इस ज़िले की सभी छह सीटों पर कब्ज़ा किया. इसलिए मुज़फ़्फ़र नगर में बीजेपी के विजय रथ को रोकने के लिए सपा और रालोद ने मिलकर नया समीकरण बनाया है जिसमें ज़िले की 5 विधानसभा सीटों पर एक भी मुस्लिम को टिकट नहीं दिया गया है, जबकि एक सीट पर उम्मीदवार का एलान होना अभी बाकी है.
मुज़फ़्फ़र नगर में बीजेपी की कितनी पकड़?
पश्चिमी उत्तर प्रदेश के मुज़फ़्फ़र नगर ज़िले में इस बार कांटे की टक्कर है. बीजेपी को मात देने के लिए समाजवादी पार्टी और राष्ट्रीय लोकदल ने इस बार काफी सोच समझकर उम्मीदवार उतारे हैं. इसके पीछे वजह है मुज़फ़्फ़र नगर में हुए दंगों के बाद मतदाताओं का सांप्रदायिक विभाजन. मुज़फ़्फ़र नगर ज़िले में क़रीब 40 प्रतिशत मुस्लिम आबादी है.
स्थानीय पत्रकार अर्जुन चौधरी के मुताबिक, “मुज़फ़्फ़र नगर दंगे के बाद हिंदू-मुसलमान समुदाय के बीच खाई बढ़ गई थी, साथ ही इसके बाद के चुनावों में वोटों का ध्रुवीकरण भी चरम पर पहुंच गया था. जो जाट कभी समाजवादी पार्टी और रालोद को वोट दिया करते थे उन्होंने दंगे के बाद एकमुश्त बीजेपी को वोट दिया.”
जाहिर है ,इसका फ़ायदा बीजेपी को पिछले दो लोकसभा और एक विधानसभा चुनाव में मिला भी.
इस चुनाव में भी बीजेपी जीत का सिलसिला दोहराना चाहती है और इसके लिए पांच सीटों पर उम्मीदवार घोषित भी कर कर दिये गये है. बीजेपी ने भी सभी पांच सीटों पर हिंदू उम्मीदवार उतारे हैं.
जिले में 6 विधानसभा सीट हैं जिनमें बुढ़ाना, चरथावल, पुरकाजी, मुज़फ़्फ़र नगर, खतौली और मीरापुर शामिल हैं. 2013 के मुज़फ़्फ़र नगर दंगे से पहले इन विधानसभा सीटों पर समाजवादी पार्टी और राष्ट्रीय लोकदल को मुसलमानों के साथ बड़ी संख्या में हिंदू वोट भी मिलते थे जिसमें जाट, गुर्जर के अलावा कई अन्य जातियां भी शामिल थीं.
2012 विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी के दो, राष्ट्रीय लोकदल के एक और बहुजन समाज पार्टी के तीन उम्मीदवार जीते थे. परिणामत:, बीजेपी का यहां साल 2012 में खाता भी नहीं खुला था. 2013 दंगे बाद स्थिति पलट गई. 2017 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने सभी पार्टियों का पत्ता साफ़ कर दिया. नतीजे से समाजवादी पार्टी और रालोद ने सबक लिया और बदले हुए हालात में अपनी रणनीति भी बदली.
स्थानीय वरिष्ठ पत्रकार अनिल रॉयल कहते हैं, “2013 में मुज़फ़्फ़र नगर दंगे के बाद खराब हुई स्थिति में किसान आंदोलन के बाद परिवर्तन आया है. हिंदू-मुसलमान के बीच बनी दूरियां कम हुई हैं. युवा जाटों में राष्ट्रीय लोकदल के प्रति आकर्षण बढ़ा है. जाटों में आधे-आधे का बंटवारा है. पेंशन, वेतन उठाने वाले ‘शहरी’ जाट बीजेपी के साथ हैं वहीं खेतीबाड़ी करने वाले जाट किसान आंदोलन के बाद सपा और रालोद के क़रीब आए है
सपा-रालोद की क्या है रणनीति?
सपा और रालोद गठबंधन की नज़र मुसलमान वोट पर तो है लेकिन वो ध्रुवीकरण के डर से कोई जोख़िम नहीं उठाना चाहतीं.
वरिष्ठ पत्रकार अनिल रॉयल बताते हैं, “ज़िले में मुस्लिम वोटर सपा-रालोद गठबंधन के साथ है. ज़िले की कोई भी सीट सिर्फ़ मुस्लिम वोटों से नहीं जीती जा सकती. ज़िले की कोई भी सीट जीतने को 15 से 20 हज़ार हिंदू वोट भी चाहिए. यही कारण है कि सपा-रालोद गठबंधन ने हिंदू प्रत्याशी मैदान में उतारे है ताकि वे मुस्लिम वोट के साथ हिंदू वोट भी अपनी तरफ़ खींच सकें”.
मीरापुर सीट का समीकरण
साल 2017 के विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी ने मीरापुर विधानसभा से लियाक़त अली को उम्मीदवार बनाया था. लियाकत अली बीजेपी के उम्मीदवार अवतार सिंह भड़ाना से सिर्फ़ 193 वोट से हारे थे. नज़दीकी हार के बाद भी लियाक़त अली को सपा-रालोद गठबंधन ने टिकट नहीं दिया.
जबकि लियाक़त अली इलाक़े के दमदार मुसलमान नेता हैं. लियाक़त अली के टिकट कटने की वजह साफ़ है. सपा-रालोद गठबंधन ने इस बार चंदन चौहान को मैदान में उतारा है. टिकट कटने से हताश लियाक़त अली लखनऊ पहुंच गए हैं.
लियाक़त अली के साथ लखनऊ में मौजूद उनके बेटे अंजुम कमाल ने बताया, “मीरापुर विधानसभा में क़रीब एक लाख 40 हज़ार मुस्लिम वोट हैं. हमने मेहनत से दस हज़ार नए मतदाता अपने पक्ष में तैयार किए थे. हमारे कार्यकर्ता बहुत गुस्से में हैं. हमारा टिकट कटने से मुस्लिम समाज में काफ़ी नाराज़गी है. गठबंधन ने जिस उम्मीदवार को टिकट दिया है वो पिछली बार खतौली से क़रीब 31 हज़ार वोट से हारा था.”
टिकट न मिलने से बौखलाए लियाक़त अली मीरापुर सीट से निर्दलीय चुनाव भी लड़ सकते हैं. उनके बेटे अंजुम कमाल का कहना है, “हमने निर्वाचन कार्यालय से पर्चा भी ख़रीद लिया है, हमारे रास्ते खुले हैं.”
लियाक़त अली की बग़ावत सपा-रालोद के सामने मुश्किल खड़ी कर सकती है.
लियाक़त अली ने कहा, “हमारे साथ ज़ुल्म हुआ है. मुज़फ़्फ़र नगर की हर सीट पर एक लाख के क़रीब मुसलमान हैं. क्या हमारा एक सीट पर भी हक़ नहीं बनता?”
मीरापुर विधानसभा सीट पर मुज़फ़्फ़र नगर दंगे के समय सांसद रहे क़ादिर राणा भी अपना दावा ठोक रहे थे.
क़ादिर राणा टिकट के चलते बहुजन समाज पार्टी छोड़कर समाजवादी पार्टी में आए थे. क़ादिर राणा ने बताया, “हमें आश्वासन दिया गया था.मीरापुर से उम्मीदवार बदल सकता है. हमें अभी रुकने के लिए कहा गया है.”
स्थानीय पत्रकार अर्जुन चौधरी बताते हैं, “क़ादिर राणा मुज़फ़्फ़र नगर में बड़े नेता माने जाते हैं. टिकट की उम्मीद में समाजवादी पार्टी ज्वाइन की थी,लेकिन टिकट नहीं मिला.”
चरथावल सीट पर मुसलमान वोट अहम
चरथावल विधानसभा सीट पर 2017 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी के विजय कुमार कश्यप ने सपा के मुकेश चौधरी को क़रीब 23 हज़ार मतों से हराया था.
इस बार इस सीट पर बीजेपी ने सपना कश्यप को उम्मीदवार बनाया है. वहीं सपा-रालोद गठबंधन से पंकज मलिक चुनाव मैदान में हैं.
वरिष्ठ पत्रकार अनिल रॉयल बताते हैं, “पंकज मलिक के पिता हरेंद्र मलिक सपा के पूर्व सांसद रहे हैं. जाटों के बड़े नेता हैं. यहां बहुजन समाज पार्टी कितने मुस्लिम वोट पाती है, उससे गठबंधन के उम्मीदवार की जीत-हार तय होगी.”
नूर सलीम राणा ने साल 2012 के विधानसभा चुनाव में बहुजन समाज पार्टी के टिकट पर क़रीब 52 हजार मतों से जीत दर्ज की थी.वे कुछ समय पहले टिकट की उम्मीद में बसपा छोड़कर राष्ट्रीय लोकदल में शामिल हुए थे.
चरथावल में मज़बूत मुसलमान नेता नूर सलीम को भी टिकट नहीं दिया गया.
नूर सलीम राणा ने बताया, “मैं चरथावल सीट से दावेदार था. जब मैं राष्ट्रीय लोकदल में शामिल हुआ था तो सौ प्रतिशत लग रहा था कि मुझे टिकट मिलेगा. मुझे टिकट नहीं मिलने से मुस्लिम समाज में नाराज़गी है. गठबंधन का धर्म निभाते हुए अपने समाज को मनाने की कोशिश में लगा हूं.”
खतौली सीट – सैनी बनाम सैनी
खतौली विधानसभा सीट पर भी समाजवादी पार्टी और राष्ट्रीय लोकदल के गठबंधन ने मुसलमान उम्मीदवार खड़ा नहीं किया. बीजेपी ने 2017 में जीतने वाले अपने विधायक विक्रम सैनी को फिर से टिकट दिया है, वहीं सपा-रालोद गठबंधन ने राजपाल सिंह सैनी को उम्मीदवार बनाया है. मुज़फ़्फ़र नगर ज़िले में इस सीट पर सबसे कम मुसलमान आबादी है. साल 2012 में इस सीट पर राष्ट्रीय लोकदल ने मुसलमान उम्मीदवार शाहनवाज़ राणा को टिकट दिया था.
स्थानीय पत्रकार अनिल रॉयल कहते हैं, “बीजेपी और सपा-रालोद गठबंधन, दोनों ने सैनी उम्मीदवार मैदान में उतारे हैं. सैनी समाज भी दो भागों में बंटा हुआ है. बीजेपी के विक्रम, भागीरथी सैनी हैं जबकि राजपाल, गोला सैनी हैं. सैनी समाज में भागीरथ सैनी का प्रभाव ज़्यादा है।
बुढ़ाना के समीकरण
बुढ़ाना विधानसभा सीट पर बीजेपी ने उमेश मलिक को फिर से टिकट दिया है. उमेश मलिक ने 2017 विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी के प्रमोद त्यागी को क़रीब 13 हज़ार मतों से हराया था. इस बार सपा-रालोद गठबंधन ने राजपाल बालियान को अपना चेहरा बनाया है.
स्थानीय पत्रकार अर्जुन चौधरी बताते हैं, “राजपाल बालियान का जाट और मुस्लिम समाज के अलावा अन्य जातियों में भी अच्छा प्रभाव है. राजपाल पहले भी विधायक रहे हैं. सपा-रालोद गठबंधन इस सीट पर मुस्लिम उम्मीदवार उतारकर चुनाव में ध्रुवीकरण से बचना चाहती है क्योंकि उसे पता है कि सिर्फ़ मुस्लिम वोट से ये सीट नहीं जीती जा सकती.”
वरिष्ठ पत्रकार अनिल रॉय कहते हैं, “बुढ़ाना विधानसभा सीट पर मुस्लिम मतदाता निर्णायक भूमिका में हैं.क़रीब एक लाख से ज़्यादा मुस्लिम वोटर हैं.”
साल 2012 में नवाज़िश आलम ख़ान समाजवादी पार्टी के टिकट पर 68 हज़ार मतों से जीते थे, फिर भी सपा-रालोद गठबंधन ने किसी भी मुसलमान उम्मीदवार को यहां से अपना उम्मीदवार नहीं बनाया.
पुरकाजी मुस्लिम बहुल सीट?
पुरकाजी मुसलमान बहुल विधानसभा सीट है जहां एक लाख से ज़्यादा मुसलमान वोटर हैं. इसके बावजूद सपा-रालोद गठबंधन ने इस सीट से अनिल कुमार को टिकट दिया है. बीजेपी ने प्रमोद उटवाल को फिर से मैदान में उतारा है. प्रमोद उटवाल पिछले विधानसभा चुनाव में 11 हज़ार मतों से जीते थे.
स्थानीय वरिष्ठ पत्रकार अनिल रॉयल बताते हैं, “दोनों नेता मज़बूत हैं. विधानसभा में मुस्लिम वोट जीत- हार तय करेंगे, मुस्लिम आबादी का झुकाव गठबंधन की तरफ़ ज़्यादा रहेगा.”
स्थानीय पत्रकार अर्जुन चौधरी बताते हैं, “मुस्लिम वोटर इस बार पार्टी देखकर वोट नहीं करेगा. इस बात का अंदाज़ा लगाकर वोट करेगा कि कौन उम्मीदवार बीजेपी को हरा पाएगा. अगर कोई निर्दलीय विधायक भी बीजेपी को हराता दिखेगा तो उसे एकमुश्त मुस्लिम वोट पड़ेंगे।
मुसलमान उम्मीदवारों को टिकट नहीं देने के सवाल पर राष्ट्रीय दल के प्रवक्ता संदीप चौधरी ने कहा, “बीजेपी सबका साथ, सबका विकास की बात करती है, बीजेपी ने कितने मुसलमानों को टिकट दिया है? हम ग़लतियां भूलकर आगे बढ़ना चाहते हैं. मुज़फ़्फ़र नगर में जाति या धर्म के आधार पर टिकट नहीं दिए गए हैं. हमने कई जगह से मुस्लिम उम्मीदवार मैदान में उतारे है.”
मुज़फ़्फ़र नगर के राजनीतिक समीकरण में बहुजन समाज पार्टी को नज़रअंदाज नहीं किया जा सकता.
बहुजन समाज पार्टी ने मुज़फ़्फ़र नगर की छह सीटों में चार बुढ़ाना, चरथावल, खतौली, मीरापुर विधानसभा सीट पर मुसलमान उम्मीदवार खड़े किए हैं. जानकारों का मानना है कि बसपा के उम्मीदवार सपा-रालोद गठबंधन के मुसलमान वोट बैंक में बड़ी सेंधमारी कर सकते हैं।
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