सबसे घातक और शक्तिशाली पनडुब्बियों का मालिक है सोवियत रूस
किस देश के पास है दुनिया की सबसे घातक पनडुब्बी और क्या है खासियत
रूस की टायफून पनडुब्बी परमाणुशक्ति से लैस है
दूसरे विश्व युद्ध (second world war) के बाद तत्कालीन सोवियत संघ (Soviet Union) ने खुद को समुद्र में सबसे ताकतवर बनाने की दिशा में कदम बढ़ाया. अब भी सबसे शक्तिशाली पनडुब्बियों (most powerful submarines) की लिस्ट में रूसी सममरीन (Russian submarine) टॉप पर हैं.
चीन के बारे में लगातार ऐसी खबरें आ रही हैं कि वो अपनी सैन्य ताकत बढ़ाने के लिए कोई नया उपकरण या फिर फाइटन प्लेन बना रहा है. अब उसका सारा ध्यान समुद्र में सबसे ज्यादा ताकतवर होने पर है और वो लगातार परमाणुशक्ति संपन्न पनडुब्बियां बनाने की तैयारी में है. इधर दुनिया की सबसे ताकतवर पनडुब्बी का मालिक अब भी रूस है. रूस की टायफून (Typhoon) पनडुब्बी परमाणुशक्ति से लैस है और दुनियाभर के एक्सपर्ट इसे एकमत से ताकतवर मानते हैं.
टायफून के पास है सबसे शक्तिशाली होने का खिताब
दुनिया की सबसे ताकतवर पनडुब्बियों पर अमेरिकी रक्षा विशेषज्ञ एचआई सटन ने एक शोध किया, जिसे कोवर्ट शोर्स (Covert Shores) में कंपाइल किया गया. यहां उन सारी पनडुब्बियों की सूची दिखती है, जो काफी शक्तिशाली हैं और दुनिया में कहर बरपाने की क्षमता रखती हैं. इस लिस्ट में सबसे ऊपर रूस की टायफून क्लास पनडुब्बी है. ये बैलिस्टिक मिसाइलों से युक्त पनडुब्बी है, जिसे सबसे घातक माना जाता है.
टाइफून को तत्कालीन सोवियत संघ के दौर में बनाया गया
ये इतनी विशाल है कि इसमें क्रू के 160 लोग आराम से महीनों पानी में रह सकते हैं. अब आप अंदाजा लगा सकते हैं कि महीनों तक पानी में डेढ़ सौ से ज्यादा लोग यूं ही तो नहीं रह सकते, यानी जाहिर है कि महीनों के हिसाब से रसद और दूसरी चीजों के भंडारण की भी टायफून में व्यवस्था रहती है.
टाइफून को तत्कालीन सोवियत संघ के दौर में बनाया गया था
क्यों बनाया गया था
टाइफून को अमेरिका की ओहियो-क्लास पनडुब्बी के जवाब में बनाया गया था. साल 1974 में इसके आधिकारिक लॉन्च के दौरान कम्युनिस्ट पार्टी के तत्कालीन नेता Leonid Brezhnev ने इसे टायफून नाम दिया. बता दें कि भयंकर तूफान को टायफून कहा जाता है. बाद में एक के बाद एक 6 टायफून क्लास पनडुब्बियों का निर्माण हुआ, हालांकि अब ये जानकारी नहीं है कि इनमें से कितने की हालत सही है और कितनी को और रखरखाव की जरूरत है.
अमेरिका की ओहियो क्लास सबमरीन
अमेरिका की जिस पनडुब्बी की तोड़ पर रूस ने टायफून बनाया था,वो ओहियो क्लास सबमरीन भी बेजोड़ है.ये सभी पनडुब्बियां घातक एंटी शिप मिसाइलों से लैस हैं और इनमें दुश्मन की पनडुब्बियों से बचाव करने की भी सबसे आधुनिक तकनीक है.इसे बेहद ताकतवर बनाने के लिए अमेरिकी रक्षा विभाग ने इसपर परमाणु रिएक्टर भी लगाया है,जो लगातार इसके टर्बाइन्स को फ्यूल देता है.
टाइफून को अमेरिका की ओहियो-क्लास पनडुब्बी के जवाब में बनाया गया था।
ओहियो क्लास में टॉमहॉक क्रूज मिसाइलें हैं
यहां जान लें कि टॉमहॉक मिसाइल अमेरिका के सैन्य खजाने की कुछ बेहतरीन मिसाइलों में से एक मानी जाती है. ये इतनी कारगर है कि बड़े से बड़ा दुश्मन भी खौफ खाए. इसकी कई खासियतें हैं. जैसे ये लंबी दूरी की जमीन पर वार करने वाली मिसाइल है, जो बारिश या ठंड के मौसम में भी उतनी ही कुशलता से काम करती है. सबसे पहले ये सत्तर के दशक में बनी, जिसके बाद से अब तक इसे कई गुना ज्यादा मॉडर्न बनाया जा चुका है. फिलहाल टॉमहॉक मिसाइल के 7 अहम संस्करण हैं.
ये पांच पनडुब्बियां सबसे घातक
इसके अलावा नेवल टेक्नोलॉजी नामक वेबसाइट में भी दुनिया की सबसे घातक सबमरीन की सूची दी गई है,जिसमें पहले नंबर पर तो टायफून क्लास पनडुब्बी ही है लेकिन दूसरे नंबर पर भी रूस की ही पनडुब्बी है,जिसे बोरेई क्लास (Borei Class ) कहा जाता है. यहां तक कि तीसरा स्थान भी रूसी पनडुब्बी ऑस्कर सेंकड क्लास के पास है,जिसके बाद अमेरिका के ओहियो क्लास सबमरीन की बारी आती है. पांचवा नंबर एक बार फिर से रूस के सबमरीन के पास है. यहां के डेल्टा क्लास पनडुब्बी को दुनिया में पांचवे नंबर पर ताकतवर माना जाता है. साल 1976 में ये क्लास सर्विस में आई और फिलहाल रूस के पास इस श्रेणी की 11 पनडुब्बियां हैं.
देश ले रहा किराए पर
ये तो हुई सबसे ताकतवर पनडुब्बियों की बात, लेकिन इस मामले में भारत विकसित देशों से कुछ पीछे है. हमारी नौसेना रूस से 10 सालों के लिए किराए पर पनडुब्बी ले रही है. इस पर करोड़ों रुपये खर्च हो रहे हैं. वैसा ये अकेला भारत नहीं करता, बल्कि बहुतेरे विकसित देश भी मित्र देशों से सबमरीन किराए पर लेते रहे हैं.
पहली रूसी परमाणु संचालित पनडुब्बी आईएनएस चक्र को तीन साल की लीज पर 1988 में लेने की बात चली. ये चार्ली क्लास पनडुब्बी थी. हालांकि पहली न्यूक्लियर सबमरीन की ये डील जल्दी ही ट्रांसफर से जुड़ी जटिलताओं के कारण रद्द हो गई थी. दूसरी आईएनएस चक्र को लीज पर दस सालों की अवधि के लिए 2012 में हासिल किया गया था. इसके बाद देश से इंजीनियर और नाविकों को रूस भेजा गया ताकि वे सबमरीन को संचालित करने की ट्रेनिंग ले सकें.
अब हो रहा आत्मनिर्भर भारत
नौसेना अपने रक्षा उपकरण खुद बनाने की ओर कदम बढ़ा चुकी है. यूरेशियन टाइम्स की रिपोर्ट में इस बारे में सिलसिलेवार तरीके से बताया गया है. इसके अनुसार नौसेना अपने लिए परमाणु पनडुब्बियों का लगभग 60 प्रतिशत हिस्सा खुद बना रही है. जैसे अरिहंत को ही लें तो भारत की ये स्वदेशी पनडुब्बी है, जिसे बनाने में रूस ने लगभग 40 प्रतिशत योगदान ही दिया. आईएनएस अरिहंत बेहद एडवांस पनडुब्बी है और यह 700 किमी तक की रेंज में हमला कर सकती है. ये न केवल पानी से पानी में वार कर सकती है, बल्कि पानी के अंदर से किसी भी एयरक्राफ्ट को निशाना बनाने में सक्षम है.