सुको शपथ पत्र में केंद्र की दो टूक: वैक्सीन दामों में न्यायिक हस्तक्षेप की है सीमा
कोरोना वैक्सीन के दाम पर केंद्र का सुप्रीम कोर्ट में शपथपत्र- ‘इसमें अदालती हस्तक्षेप की गुंजाइश सीमित’
सुप्रीम कोर्ट ने बीते सोमवार को 18-44 आयु समूह के लिए केंद्र को कोविड-19 वैक्सीन मूल्य नीति पर फिर से गौर करने का निर्देश देते हुए कहा था कि पहली नजर में यह जीवन के अधिकार के विपरीत है. कोर्ट आज इस मामले में फिर से सुनवाई करेगा.
नई दिल्ली 10 मई. केंद्र की मोदी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) में कहा है कि देश में वैक्सीनेशन (Vaccination In India) के लिए उसकी रणनीति सभी को समान रूप से टीका वितरित करने की है. सुप्रीम कोर्ट में केंद्र ने कहा कि महामारी के इस समय में इन मामलों में ‘न्यायिक हस्तक्षेप की गुंजाइश’ सीमित है. केंद्र ने वैक्सीन की समान कीमत को लेकर याचिका पर रविवार रात सौंपे गए शपथपत्र में कहा कि राज्यों के अनुरोध पर 18 वर्ष से 44 वर्ष के बीच टीकाकरण अभियान को मंजूरी दी गई थी. केंद्र ने टीका निर्माताओं को समान कीमतों पर राज्यों को टीके की आपूर्ति को राजी किया.
शपथपत्र में कहा गया है, ‘यह नीति ‘न्यायसंगत, भेदभाव रहित और दो आयु समूहों (45 से अधिक और नीचे के लोगों) पर आधारित है.’ केंद्र ने कहा कि इस नीति में न्यायालय के हस्तक्षेप की जरूरत नहीं है क्योंकि महामारी के दौरान कार्यपालिका इससे निपट रही है. उसके दायरे विस्तृत हैं.पिछले हफ्ते सुप्रीम कोर्ट के केंद्र को उसकी COVID-19 वैक्सीन मूल्य निर्धारण नीति को फिर से जारी करने के निर्देश के बाद यह शपथपत्र दायर किया गया. इस मामले में आज यानी सोमवार को सुनवाई होनी है.
केंद्र सरकार का क्या तर्क है?
केंद्र ने कहा कि वैक्सीन की कीमत का आम जनता पर कोई असर नहीं पड़ेगा, क्योंकि सभी राज्य सरकारों ने लोगों को मुफ्त वैक्सीन देने का ऐलान किया है. दरअसल सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से पूछा था कि वैक्सीन बनाने वाली दोनोें कंपनियां केंद्र सरकार को कम कीमत पर वैक्सीन दे रही हैं, जबकि राज्य सरकार को वही वैक्सीन ज्यादा कीमत पर बेची जा रही हैं.
इसके जवाब में केंद्र सरकार ने अपने शपथपत्र में कहा है कि केंद्र ज्यादा संख्या में वैक्सीन खरीद रही है,इसलिए उन्हें कम कीमत पर वैक्सीन मिल रही है.लेकिन केंद्र की नीति के मुताबिक हर राज्य को एक ही कीमत पर वैक्सीन बेची जाएगी. ऐसा नंही होगा कि किसी राज्य को ज्यादा और किसी को कम कीमत पर वैक्सीन मिले.
इसके साथ ही शपथपत्र में ये भी कहा गया है कि राज्यों को जो वैक्सीन कोटा अलॉट होगा उसमें से आधा उन्हें निजी कंपनी या निजी अस्पतालों को देना होगा. जो लोग कीमत चुका पाएंगे वो निजी अस्पताल में वैक्सिन लगवाएंगे. इससे राज्य सरकार पर बोझ कम हो जायेगा. केंद्र सरकार ने तर्क दिया है कि वैक्सीन बनाने वाली कंपनियों ने वैक्सीन बनाने में पैसा निवेश करने का रिस्क लिया है, इसलिए इस बात का ध्यान कीमत तय करने में रखना होगा.
सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा था?
सुप्रीम कोर्ट ने बीते सोमवार को 18-44 आयु समूह के लिए केंद्र को कोविड-19 मूल्य नीति पर फिर से गौर करने का निर्देश देते हुए कहा था कि पहली नजर में यह जीवन के अधिकार के विपरीत है और यह संविधान में प्रदत्त मौलिक अधिकार के विपरीत भी नजर आती है. जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़, जस्टिस एल नागेश्वर राव और जस्टिस एस रवींद्र भट्ट की पीठ ने संबंधित टीका नीति पर आपत्ति जताई थी, जिसमें 18-44 आयु समूह के टीकाकरण को राज्यों और निजी अस्पतालों को 50 प्रतिशत टीके खरीदने होंगे.
पीठ ने कहा कि राज्यों को सीधे विनिर्माताओं से बात करने के लिए छोड़ने से अफरातफरी और अनिश्चितता उत्पन्न होगी. इसने कहा कि आज की तारीख में विनिर्माताओं ने दो भिन्न मूल्यों का सुझाव दिया है. इसमें, केंद्र के लिए कम मूल्य और राज्य सरकारों को टीके की खरीद पर अधिक मूल्य चुकाना होगा. शीर्ष अदालत ने कहा कि राज्य सरकारों को प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा देने और नए निर्माताओं को आकर्षित करने के नाम पर विनिर्माताओं के साथ बातचीत के लिए बाध्य करने से टीकाकरण वाले 18 से 44 साल के आयु समूह के लोगों के लिए गंभीर परिणाम होंगे.
पीठ ने कहा कि आबादी के अन्य समूहों की तरह इस आयु वर्ग में भी वे लोग भी शामिल हैं जो बहुजन हैं या दलित और हाशिए के समूहों से संबंधित हैं.हो सकता है कि उनके पास भुगतान करने की क्षमता न हो.पीठ ने कहा, ‘आवश्यक टीके उनके लिए उपलब्ध होंगे या नहीं,यह प्रत्येक राज्य सरकार के निर्णय पर टिका होगा. राज्य सरकार का निर्णय उसकी आर्थिक स्थित तथा इस बात पर निर्भर होगा कि यह टीका मुफ्त में उपलब्ध कराया जाना चाहिए या नहीं और सब्सिडी दी जानी चाहिए या नहीं और दी जाए तो किस सीमा तक. इससे देश में असमानता पैदा होगी. नागरिकों का किया जा रहा टीकाकरण जनता की भलाई के लिए है.’