सुको की किसान आंदोलन पर कड़ी टिप्पणी: कोर्ट और प्रदर्शन में से एक चुन लो
किसान आंदोलन और सुप्रीम कोर्ट
‘लखीमपुर जैसी घटनाओं की जिम्मेदारी कोई नहीं लेता’: तीनों कानूनों पर रोक, मामला अदालत में तो फिर प्रदर्शन क्यों?’ SC की कड़ी टिप्पणी
किसान आंदोलन पर SC ने की कठोर टिप्पणी
नई दिल्ली 04 अक्टूबर। सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार (अक्टूबर 4, 2021) को किसान महापंचायत नाम के संगठन की अर्जी पर सुनवाई करते हुए कहा कि जब लखीमपुर खीरी जैसी घटनाएँ हो जाती हैं तो कोई जिम्मेदारी नहीं लेता। किसान महापंचायत ने शीर्ष अदालत से माँग की थी कि उसे दिल्ली के जंतर-मंतर पर सत्याग्रह करने की अनुमति दी जाए। इस अर्जी पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने यह टिप्पणी की है।
इसके साथ ही कोर्ट ने कहा कि वह इस बात की जाँच करेगा कि प्रदर्शन करने का हक मूल अधिकार है या नहीं। इसके साथ ही अदालत की बेंच ने किसानों के आंदोलन पर सवाल उठाते हुए पूछा कि जब कानून लागू ही नहीं हुए तो विरोध किस बात का।
जस्टिस एमएम खानविलकर की अध्यक्षता वाली बेंच ने कहा, “एक ओर आप कोर्ट में याचिका दायर कर इंसाफ माँगने आए हैं और दूसरी ओर विरोध प्रदर्शन भी जारी है। राजस्थान हाईकोर्ट में भी याचिका दायर कर रखी है आपने।” कोर्ट ने सवाल किया, “जब मामला अदालत में है तो आप प्रदर्शन क्यों कर रहे हैं?”
सुप्रीम कोर्ट ने कहा, “अगर याचिकाकर्ता की ओर से कानून को एक कोर्ट मे चुनौती दी गई है तो फिर क्या मामला अदालत में लंबित रहते हुए विरोध प्रदर्शन की इजाजत दी जा सकती है? प्रदर्शन की इजात माँगने का क्या औचित्य नहीं है?”
पीठ ने कहा, “अब आप एक रास्ता चुनें। कोर्ट का, संसद का या सड़क पर प्रदर्शन का।” इस पर अटॉर्नी जनरल ने कहा कि सरकार पहले ही साफ कर चुकी है कि वो कानून वापस नहीं लेगी। हालाँकि, उन्होंने ये भी कहा, “बातचीत के रास्ते खुले हैं। कोर्ट में याचिका भी है। अब इनको तय करना है कि इन्हें क्या करना है।”
आगे सुप्रीम कोर्ट ने कहा, “हमने तीनों कृषि कानूनों के लागू होने पर रोक लगा रखी है। कुछ भी लागू नहीं है। तो किसान किस बारे में विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं? अदालत के अलावा और कोई भी कानूनों की वैधता तय नहीं कर सकता। जब किसान अदालत में कानूनों को चुनौती दे रहे हैं तो सड़क पर प्रदर्शन क्यों?”
इसी सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट में लखीमपुर खीरी में हुई घटना का भी जिक्र हुआ। कोर्ट में अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने बताया कि लखीमपुर खीरी में हिंसा हुई, जिसमें 8 लोगों की मौत हो गई। इस तरह विरोध नहीं हो सकता। इस पर कोर्ट ने कहा, “जब आंदोलन के दौरान कोई हिंसा होती है। सार्वजनिक संपत्ति नष्ट होती है तो कोई जिम्मेदारी नहीं लेता। जान और माल की हानि होती है तो कोई जिम्मेदारी नहीं लेता।” इसके बाद सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा, “जब मामला पहले से ही अदालत में है तो लोग सड़कों पर नहीं उतर सकते।” इस मामले में अगली सुनवाई 21 अक्टूबर को होगी। इस बीच यूपी सरकार ने लखीमपुर खीरी में इंटरनेट सेवाओं को निलंबित कर दिया है।