कपिल सिब्बल फेल,सुको ने कहा-इलाहाबाद हाको परिसर से हटाओ मस्जिद वरना टूटेगी
इलाहाबाद HC के परिसर में मस्जिद, सुप्रीम कोर्ट ने कहा – 3 महीने में हटाओ, वरना तोड़ा जाएगा: काम नहीं आई कपिल सिब्बल की दलीलें
सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट परिसर में बनी मस्जिद को 3 महीने के अंदर हटाने का आदेश दिया है। साथ ही कहा है कि मस्जिद बनाने के लिए वक्फ बोर्ड राज्य सरकार राज्य सरकार से दूसरी जगह जमीन माँग सकता है। इससे पहले साल 2017 में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कोर्ट परिसर में बनी मस्जिद हटाने का आदेश दिया था।
सोमवार (13 मार्च 2023) को हुई सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस सीटी कुमार की बेंच ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के मस्जिद हटाने वाले फैसले के खिलाफ दायर सभी याचिकाओं को खारिज कर दिया। साथ ही कोर्ट ने मस्जिद हटाने के लिए 3 महीने का समय दिया है।
सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में कहा है कि यदि मस्जिद को 3 महीने के अंदर नहीं हटाया गया तो इलाहाबाद हाई कोर्ट समेत अन्य अधिकारी मस्जिद को तोड़ कर सकते हैं। इसके अलावा सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में कहा है कि याचिकाकर्ता चाहें तो मस्जिद बनाने के लिए राज्य सरकार से दूसरी जगह जमीन माँग सकते हैं।
मस्जिद हटाने का फैसला सुनाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा है कि मस्जिद एक सरकारी पट्टे (लीज) वाली जमीन में बनी है। इस लीज को साल 2002 में ही रद्द किया जा चुका है। इसके बाद साल 2012 में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि यह जमीन सरकारी है। इसलिए कोई भी इस जमीन को लेकर किसी भी प्रकार का दावा नहीं कर सकता।
मस्जिद की ओर से पेश हुए पूर्व कॉन्ग्रेस नेता और वकील कपिल सिब्बल ने कहा कि मस्जिद 1950 के दशक से बनी हुई है। इसलिए ऐसे ही हटाने के लिए नहीं कहा जा सकता। उन्होंने कहा, “साल 2017 में सरकार बदल गई और सब कुछ बदल गया। नई सरकार के गठन के 10 दिन बाद एक जनहित याचिका दायर की जाती है। दूसरी जमीन मिलने तक हमें मस्जिद कहीं शिफ्ट करने में समस्या होगा।”
वहीं इस मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता राकेश द्विवेदी ने कहा कि यह पूरी तरह धोखाधड़ी का मामला है। उन्होंने कहा, “नवीनीकरण के लिए दो बार आवेदन किए गए। लेकिन, इस बारे में नहीं बताया गया कि मस्जिद का निर्माण किया गया है और इसका इस्तेमाल जनता के लिए किया जा रहा है। बल्कि यह कहते हुए नवीनीकरण की माँग की गई थी कि आवासीय उद्देश्यों के लिए इसकी आवश्यकता है। सिर्फ यहाँ नमाज पढ़ने से यह जगह मस्जिद नहीं हो जाती। अगर सुप्रीम कोर्ट के बरामदे या हाई कोर्ट के बरामदे में, सुविधा के लिए नमाज की अनुमति दी जाती है, तो यह मस्जिद नहीं बन जाएगा।”