तीस्ता सीतलवाड़ को अंतरिम जमानत को सुप्रीम कोर्ट बैठा रातों रात
तीस्ता सीतलवाड़ को SC से अंतरिम जमानत मिली:हाईकोर्ट के फैसले पर सात दिन का स्टे; गुजरात दंगों में झूठे सबूत गढ़ने का आरोप
सोशल एक्टिविस्ट तीस्ता सीतलवाड़ को सुप्रीम कोर्ट से अंतरिम जमानत मिल गई। शनिवार रात सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात हाईकोर्ट के फैसले पर सात दिन का स्टे दे दिया है।
हाईकोर्ट ने शनिवार को दिन में तीस्ता की जमानत याचिका खारिज करते हुए उन्हें तुरंत सरेंडर करने को कहा था। तीस्ता ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका लगाई थी। सुप्रीम कोर्ट में दो जजों जस्टिस अभय एस ओका और जस्टिस पीके मिश्रा की बेंच ने सुनवाई में अंतरिम जमानत विषय पर जजों में मतभेद हो गया। केस CJI को भेज दिया गया।
CJI ने केस सुनने को तीन जजों जस्टिस बीआर गवई, एबी बोपन्ना और दीपांकर दत्ता की बेंच बनाई जिसने रात में ही सुनवाई की।
तीस्ता सीतलवाड़ पर साल 2002 के गुजरात दंगों से जुड़े मामलों में निर्दोष लोगों को फंसाने के लिए फर्जी सबूत गढ़ने का आरोप है। वह पिछले साल 25 जून को गिरफ्तार हुई थी। उसे सात दिन पुलिस रिमांड में और 2 जुलाई को न्यायिक हिरासत में भेज गया था।
तब उसने गुजरात हाईकोर्ट में जमानत याचिका लगाई। याचिका पर सुनवाई में देरी पर सुप्रीम कोर्ट पहुंची, सितंबर 2022 में उसे अंतरिम जमानत मिल गई।
पिछले साल, 30 जुलाई को निचली अदालत ने तीस्ता सीतलवाड़ की जमानत याचिका निरस्त की थी।
Teesta Setalvad Interim Bail Case Supreme Court Said Will Sky Fall If Interim Protection Granted Know What Arguments Given
‘आसमान नहीं टूट पड़ेगा’, जमानत पर रात 10 बजे तक बैठा सुप्रीम कोर्ट, SC में दोनों ओर से क्या दी गईं दलीलें
हाइलाइट्स
तीस्ता सीतलवाड़ को रात 10 बजे सुप्रीम कोर्ट ने दी राहत
गुजरात हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ किया था शीर्ष न्यायालय का रुख
सुप्रीम कोर्ट ने कार्यकर्ता तीस्ता सीतलवाड़ की जमानत याचिका पर शनिवार सवा नौ बजे सुनवाई शुरू की। सीतलवाड़ ने गिरफ्तारी से अंतरिम राहत की गुहार लगाई थी। यह 2002 में गोधरा कांड के बाद दंगों में निर्दोष लोगों को फंसाने को साक्ष्य गढ़ने का मामला था। तीस्ता सीतलवाड़ आरोपित हैं। सीतलवाड़ को अंतरिम राहत पर दो न्यायाधीशों की अवकाश पीठ में मतभेद बाद तीन जजों न्यायमूर्ति बीआर गवई, न्यायमूर्ति ए एस बोपन्ना और न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता की पीठ ने विशेष बैठक में मामला सुना। रात 10 बजे सुप्रीम कोर्ट ने सीतलवाड़ की जमानत अर्जी मंजूर की। इसमें तीखी दलीलें चली। जानें कोर्ट में क्या-क्या हुआ।
तीस्ता की ओर से एडवोकेट सीयू सिंंह ने रखा पक्ष
तीस्ता की ओर से पेश सीनियर एडवोकेट सीयू सिंह तीन जजों की पीठ से बोले कि सुप्रीम कोर्ट ने पिछले साल सितंबर में सीतलवाड़ को अंतरिम जमानत दी । अंतरिम बेल की किसी भी शर्त का उल्लंघन नहीं हुआ। गुजरात हाईकोर्ट को उनकी जमानत याचिका पर फैसला लेना था। हाईकोर्ट ने सीतलवाड़ को तुरंत सरेंडर करने को कहा। साथ ही 30 दिन तक आदेश के अमल पर रोक के अनुरोध से भी मना किया। तीस्ता के वकील ने ज़ोर दिया कि केस में पिछले साल चार्जशीट दाखिल हुई लेकिन ट्रायल शुरू नहीं हुआ।
सॉलिसिटर जनरल ने जमानत का किया विरोध
गुजरात सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि सीतलवाड़ के साथ सामान्य नागरिक जैसा ही बर्ताव हो। जमानत याचिका को निरस्त होनी चाहिए।
क्या आसमान टूट पड़ेगा अगर कुछ दिनों के लिए…
गुजरात हाईकोर्ट ने सीतलवाड़ को जैसे तुरंत सरेंडर करने को कहा उस पर असहमति जताते जस्टिस गवई ने कहा- सीतलवाड़ को कस्टडी में लेने की इतनी अर्जेंसी क्या है? क्या आसमान टूट पड़ेगा अगर कुछ दिनों को अंतरित सुरक्षा दे दी जाएगी? हाईकोर्ट ने हमें चौंकाया है। ऐसी अर्जेंसी क्या है?
Teesta Setalvad Gets Interim Bail How Case Moves From Gujarat Hc To Supreme Court Whole Day Timeline
सुबह झटका रात राहत… हाईकोर्ट से सुप्रीम कोर्ट तक कैसे पूरे दिन घूमा तीस्ता सीतलवाड़ का केस
रात करीब 10 बजे तीस्ता सीतलवाड़ की जान में जान आई। सुप्रीम कोर्ट के तीन जजों की बेंच ने उन्हें राहत दी। सुबह गुजरात हाईकोर्ट ने सीतलवाड़ की जमानत याचिका खारिज कर दी थी। कोर्ट ने उन्हें तत्काल सरेंडर करने को कहा था। इसके खिलाफ उन्होंने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया ।
हाईकोर्ट से सुप्रीम कोर्ट तक दिनभर जैसे मामला घूमा, बहुत कम होता है
गुजरात हाईकोर्ट ने कहा- सरेंडर करो
यह मामला 2002 में गोधरा कांड के बाद हुए दंगों में निर्दोष लोगों को फंसाने साक्ष्य गढ़ने में सीतलवाड़ की नियमित जमानत याचिका निरस्त कर गुजरात हाईकोर्ट की न्यायमूर्ति निर्झर देसाई ने तुरंत आत्मसमर्पण को कहा था। पिछले साल सितंबर में शीर्ष अदालत से अंतरिम जमानत बाद सीतलवाड़ जेल से बाहर थीं। कोर्ट ने टिप्पणी की कि सीतलवाड़ ने लोकतांत्रिक सरकार अस्थिर करने और तत्कालीन मुख्यमंत्री और मौजूदा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की छवि धूमिल कर उन्हें जेल भिजवाने की कोशिश की। न्यायमूर्ति देसाई की अदालत ने 2002 के गोधरा कांड के बाद दंगों में ‘निर्दोष लोगों’ को फंसाने को साक्ष्य गढ़ने में सीतलवाड़ की जमानत निरस्त की कि उनकी रिहाई से गलत संदेश जाएगा। फैसला के बाद सीतलवाड़ के वकील की ओर से 30 दिन तक आदेश के अमल पर रोक लगाने के अनुरोध को मानने से इनकार कर दिया।
तीस्ता तीन सितंबर से जेल से बाहर थीं। 27 फरवरी 2002 को गोधरा के निकट साबरमती एक्सप्रेस का डिब्बा जलाए जाने में अयोध्या से लौटते 59 कारसेवक मारे गए थे। इसके बाद गुजरात में दंगे भड़क गए थे।
SC की टिप्पणी के बाद गुजरात पुलिस ने किया था गिरफ्तार
सुप्रीम कोर्ट ने 2002 के गुजरात दंगों के मामले में तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को क्लीन चिट देने वाली SIT रिपोर्ट के खिलाफ याचिका 24 जून, 2022 को निरस्त की थी। याचिका जकिया जाफरी ने दाखिल की थी। जकिया जाफरी के पति एहसान जाफरी की दंगों में मौत हुई थी।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जकिया की याचिका में मेरिट नहीं है। कोर्ट ने यह भी कहा कि मामले में को-पिटीशनर तीस्ता ने जकिया जाफरी की भावनाओं से खिलवाड़ किया। कोर्ट ने तीस्ता की भूमिका की जांच की बात कही थी। तब तीस्ता को मुंबई से गिरफ्तार किया गया।
नकली प्रपत्र बनाकर षड्यंत्र का आरोप
गुजरात दंगों के मामले में अहमदाबाद क्राइम ब्रांच ने तीस्ता सीतलवाड़, पूर्व IPS संजीव भट्ट और DGP आरबी श्रीकुमार के खिलाफ फर्जी दस्तावेज बनाकर षड्यंत्र रचने का मामला दर्ज किया था। संजीव भट्ट पहले से जेल में थे, जबकि तीस्ता और श्रीकुमार पिछले साल एक साथ गिरफ्तार हुए थे।
गुजरात में 2002 में हुई थी सांप्रदायिक हिंसा
27 फरवरी 2002 को गुजरात के गोधरा स्टेशन पर साबरमती एक्सप्रेस ट्रेन के S-6 डिब्बे में आग लगा दी गई थी। आग लगने से 59 लोग मारे गए थे। ये सभी कारसेवक थे, जो अयोध्या से लौट रहे थे। गोधरा कांड के बाद पूरे गुजरात में दंगे भड़क उठे। इन दंगों में 1,044 लोग मारे गए थे। उस समय नरेंद्र मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री थे।
गोधरा कांड के अगले दिन, यानी 28 फरवरी को अहमदाबाद की गुलबर्ग हाउसिंग सोसायटी में बेकाबू भीड़ ने 69 लोगों की हत्या कर दी थी। मरने वालों में कांग्रेस के पूर्व सांसद एहसान जाफरी भी थे, जो इसी सोसायटी में रहते थे। इन दंगों से राज्य में हालात इतने बिगड़ गए थे कि तीसरे दिन सेना उतारनी पड़ी थी।
जांच आयोग ने नरेंद्र मोदी को क्लीन चिट दी थी
गोधरा कांड की जांच को 6 मार्च 2002 को गुजरात सरकार ने नानावटी-शाह आयोग का गठन किया। हाईकोर्ट के रिटायर्ड जज केजी शाह और सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जज जीटी नानावटी सदस्य थे। आयोग की सितंबर 2008 को रिपोर्ट के पहले हिस्से में गोधरा कांड को सुनियोजित षड्यंत्र बताया। नरेंद्र मोदी, उनके मंत्रियों और वरिष्ठ अफसरों को क्लीन चिट थी।
2009 में जस्टिस केजी शाह दिवंगत हुए तो गुजरात हाईकोर्ट के रिटायर्ड जज जस्टिस अक्षय मेहता इसके सदस्य बने और नाम नानावटी-मेहता आयोग हो गया। दिसंबर 2019 में रिपोर्ट का दूसरा हिस्सा आया। इसमें भी वही बात दोहराई गई, जो रिपोर्ट के पहले हिस्से में कही गई थी।