सुको में चार बाजियां जीतकर भी मुख्यमंत्री पर हारे उद्धव,बने रहेंगे शिंदे
विवेचन:जीतकर भी हार गए उद्धव ठाकरे:सुप्रीम कोर्ट में 5 में से 4 बाजियां जीते, फिर भी नहीं मिलेगी सत्ता
महाराष्ट्र की सत्ता शिंदे के पास रहेगी या उद्धव के पास लौटेगी, सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को ये विवाद निपटा दिया। CJI डीवाई चंद्रचूड़ वाली 5 जजों की संविधान पीठ ने फैसला सुना दिया कि शिंदे मुख्यमंत्री बने रहेंगे।
कोर्ट ने कहा कि उद्धव ठाकरे फ्लोर टेस्ट से पहले इस्तीफा न देते, तो उनकी सरकार को बहाल कर सकते थे। सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में 5 बड़े सवालों के जवाब दिए, इसमें 4 पॉइंट उद्धव ठाकरे के पक्ष में हैं। सिर्फ एक कारण से उद्धव को वापस सत्ता नहीं मिलेगी और शिंदे मुख्यमंत्री बने रहेंगे।
इस विवेचना में जानेंगे सुप्रीम कोर्ट में जीतकर भी कैसे हार गए उद्धव ठाकरे?
1. राज्यपाल का फ्लोर टेस्ट कराने का फैसला गलत था
महाराष्ट्र में शिवसेना, कांग्रेस और एनसीपी के गठबंधन वाली महाविकास आघाड़ी सरकार चल रही थी। तभी 21 जून 2022 को शिवसेना के ही एकनाथ शिंदे ने 15 विधायकों के साथ बगावत कर दी। यहींं से शुरू हुई पूरी कहानी।
एक हफ्ते बाद ही यानी 28 जून को राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी ने मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे से बहुमत साबित करने के लिए कहा। शिवसेना ने राज्यपाल के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी, जिसमें कोर्ट ने रोक लगाने से इनकार कर दिया। इसके बाद उद्धव ठाकरे ने फ्लोर टेस्ट से पहले ही मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया।
अब सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने राज्यपाल के फैसले पर क्या कहा…
महाराष्ट्र के राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी ने जून 2022 में महाराष्ट्र विधानसभा में फ्लोर टेस्ट का आदेश नियम मू नहीं दिया था।
विपक्षी दलों ने अविश्वास प्रस्ताव की कोई बात नहीं की। राज्यपाल के पास सरकार के विश्वास पर संदेह करने के लिए कोई ठोस जानकारी नहीं थी यानी न तो उनके पास कोई चिट्ठी थी न कोई ज्ञापन था।
यह भी संकेत नहीं थे विधायक समर्थन वापस लेना चाहते हैं। अगर यह मान भी लिया जाए कि विधायक सरकार से बाहर होना चाहते थे तब उन्होंने केवल एक गुट का गठन किया था।
ऐसे में फ्लोर टेस्ट का इस्तेमाल राजनीतिक पार्टी की आपसी कलह सुलझाने में नहीं किया जा सकता है। पीठ ने कहा कि न तो संविधान और न ही कानून राज्यपाल को राजनीतिक क्षेत्र में प्रवेश करने और पार्टी के अंदर होने वाले विवादों में भूमिका निभाने का अधिकार देता है।
राज्यपाल एक खास नतीजा निकलवाने को अपने पद का इस्तेमाल नहीं कर सकते।
2. चीफ व्हिप पार्टी नियुक्त करती है
सबसे पहले आसान भाषा में जानें कि चीफ व्हिप होता क्या है? दरअसल, किसी पार्टी के सिंबल पर जीतकर आया विधायक अपनी मर्जी से विधानसभा के भीतर फैसले नहीं ले सकता है। किसी मुद्दे या परिस्थिति में उसे क्या करना है ये उसकी पार्टी तय करती है। इसके लिए पार्टी औपचारिक रूप से आदेश जारी करती है जिसे व्हिप कहते हैं।
व्हिप क्या होगी, कब जारी किया जाएगा, किन मुद्दों पर जारी किया जाएगा। इसे तय करने के लिए पार्टी अपने विधायकों में से सीनियर विधायक को चीफ व्हिप नियुक्त करती है। पार्टी में दलबदल या फूट के समय इसकी महत्वपूर्ण भूमिका होती है। किसी भी पार्टी को विधानसभा के अंदर विधायक दल का नेता और चीफ व्हिप नियुक्त करना होता है।
महाराष्ट्र संकट के समय जब शिवसेना में फूट पड़ी तो शिवसेना ने व्हिप जारी कर सभी विधायकों को बैठक में पहुंचने का निर्देश दिया। इसके बाद बागी गुट के नेता एकनाथ शिंदे ने शिवसेना के चीफ व्हिप को अवैध बता दिया। शिंदे गुट राजनीतिक दल न होते हुए भी भरत गोगावले को चीफ व्हिप नियुक्त कर दिया।
सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में क्या कहा…
गोगावाले को शिवसेना पार्टी के चीफ व्हिप के रूप में नियुक्त करने का स्पीकर का फैसला अवैध था। व्हिप को पार्टी से अलग करना ठीक नहीं है। सिर्फ विधायक तय नहीं कर सकते कि पार्टी का चीफ व्हिप कौन होगा?
स्पीकर को 3 जुलाई 2022 को विधायक दल में दो गुटों के उभरने के बारे में पता था, जब उन्होंने एक नया व्हिप नियुक्त किया था।
स्पीकर ने यह पहचानने का प्रयास नहीं किया कि दो व्यक्तियों प्रभु या गोगावाले में से कौन सा राजनीतिक दल से ऑथराइज्ड व्हिप है। स्पीकर को सिर्फ राजनीतिक दल के नियुक्त व्हिप को ही मान्यता देनी चाहिए।
3. विधायकों के डिस्क्वालिफिकेशन पर फैसला स्पीकर करेंगे
इस पूरी कहानी की शुरुआत हुई थी एकनाथ शिंदे समेत 15 विधायकोंं की बगावत से। इनका फैसला होना फिलहाल बाकी है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वह शिंदे और 15 अन्य विधायकों को पिछले साल जून में तत्कालीन मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे के खिलाफ बगावत करने के लिए अयोग्य नहीं ठहरा सकता है।
यह अधिकार स्पीकर के पास तब तक रहेगा, जब तक कि सुप्रीम कोर्ट की बड़ी बेंच इस फैसला नहीं सुना देती। सुप्रीम कोर्ट ने एक समयसीमा के अंदर इसका निपटारा करने को कहा है।
महाराष्ट्र विधानसभा के मौजूदा स्पीकर भाजपा के राहुल नार्वेकर हैं। वो दो काम कर सकते हैं। या तो बागी विधायकों के डिस्क्वालिफेशन का मुद्दा लटकाए रखेंगे या इन विधायकों की सदस्यता बरकरार रखने का फैसला ले सकते हैं।
4. नबाम रेबिया मामले पर बड़ी बेंच करेगी सुनवाई
महाराष्ट्र में उद्धव सरकार गिरने के दौरान स्पीकर नहीं थे। कानून के मुताबिक, स्पीकर न होने पर उनके सभी संवैधानिक काम डिप्टी स्पीकर करता है। महाराष्ट्र में NCP के नरहरि जिरवाल डिप्टी स्पीकर थे।
राजनीतिक चलन के मुताबिक, आमतौर पर स्पीकर अपनी ही पार्टी को फायदा पहुंचाने वाले फैसले लेता है। महाराष्ट्र में यही आशंका थी। तभी एकनाथ शिंदे ने सुप्रीम कोर्ट के एक पुराने फैसले, नबाम रेबिया केस का सहारा लेकर स्पीकर के इस ताकत पर रोक लगा दी।
इसमें सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ फैसला दे चुकी है कि विधानसभा स्पीकर उस सूरत में विधायकों की अयोग्यता की याचिका पर आगे नहीं बढ़ सकते हैं, जबकि स्पीकर को हटाने की पूर्व सूचना सदन में लंबित है। यानी स्पीकर तब अयोग्यता की कार्यवाही को आगे नहीं बढ़ा सकते हैं, जब खुद उन्हें हटाने के लिए प्रस्ताव लंबित हो।
अब सुप्रीम कोर्ट ने नबाम रेबिया मामले को बड़ी बेंच को भेजते हुए क्या कहा…
नबाम रेबिया मामले को एक बड़ी बेंच को भेजा जाता है। ये बेंच रिव्यू करेगी कि अगर किसी स्पीकर को हटाने का प्रस्ताव पेश किया जाता है, तो क्या वो दलबदल कानून में विधायकों की अयोग्यता पर फैसला सभी मामलों में नहीं ले सकते।
5. एकनाथ शिंदे मुख्यमंत्री बने रहेंगे
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि उद्धव ठाकरे ने फ्लोर टेस्ट का सामना किए बिना ही इस्तीफा दे दिया। ऐसे में यथास्थिति यानी जून 2022 वाली स्थिति बहाल नहीं की जा सकती। इसलिए राज्यपाल की ओर से सबसे बड़ी पार्टी भाजपा के समर्थन से शिंदे को शपथ दिलाने का फैसला उचित था।