सूरत के पारसियों ने छोड़ी सदियों की परंपरा, कर रहे दाह संस्कार

सूरत का टावर आफ साइलेंस यानि पारसियों का अंतिम संस्कार स्थल। यहां शवों को पक्षियों का आहार बनाने को उन्हें गहरे गड्ढों में रख दिया जाता है। (फाइल फोटो)

कोरोना ने तोड़ी सदियों की परंपरा:सूरत का पारसी समाज अब कर रहा शवों का दाह संस्कार, परंपरा के अनुसार पहले पक्षियों के लिए गहरे गड्ढे में शव रख दिए जाते थे
सूरत 21 अप्रैल। कोरोना महामारी ने मानवीय जीवन के तौर-तरीकों के साथ सामाजिक रीति-रिवाजों तक में बदलाव कर दिया है। फिर चाहे वह शादी-ब्याह जैसा खुशी का पल हो या फिर अंतिम संस्कार। सबसे बड़ा बदलाव सूरत शहर में देखा जा सकता है, जहां पारसी समाज ने अंतिम संस्कार के पारंपरिक रिवाज में बदलाव कर लिया है। अब पारसी समुदाय के लोग मृतक शवों का अग्निदाह कर रहे हैं। राज्य सरकार की तरफ से जारी कोरोना गाइडलाइन के अनुसार संक्रमण न फैले इसलिए सभी मृतकों के देह को अंतिम संस्कार का निर्देश दिया गया है। इसी के चलते पारसी समाज ने शवों के अग्निदाह का फैसला किया है।

पारसी समाज में शव गिद्धों के लिए रख दिए जाते हैं

पारसी समाज में अंतिम संस्कार का नियम है। यहां पार्थिव देह को गिद्ध, चील, कौओं और अन्य पशु-पक्षियों के लिए आहार स्वरूप गहरे गड्ढे में रख दिया जाता है। दरअसल, पारसी पृथ्वी,जल और अग्नि को बहुत पवित्र मानते हैं, इसलिए समाज के किसी व्यक्ति के मर जाने पर उसकी देह को इन तीनों के हवाले नहीं करते। अपने इस रिवाज को पारसी समाज दुनिया के अन्य समुदाय के मुकाबले अधिक पर्यावरणलक्षी मानता है क्योंकि, इससे पर्यावरण को कोई नुकसान नहीं पहुंचता।

सूरत पारसी पंचायत के ट्रस्टी मशहूर नाट्यकार पद्मश्री यझदी करंजीया की फाइल फोटो।

ईरान से यहां आए हमारे पूर्वजों ने समाज के साथ चलने का संकल्प लिया था : यझदी

इस बारे में पारसी पंचायत के ट्रस्टी मशहूर नाट्यकार पद्मश्री यझदी करंजीया ने कहा – परंपराएं तो इंसानों की ही बनाई हुई हैं, लेकिन सच तो यही है कि हमें हमेशा कुदरत के अधीन ही रहना पड़ता है। इसलिए समय के अनुसार परम्पराओं में कुछ समय के बदलाव को लेकर आश्चर्यचकित नहीं होना चाहिए। यहां बात समाज की है और हमारे पूर्वज अब से करीब 3 हजार साल पहले ईरान से भारत आकर बसे थे। उसी समय उन्होंने ये संकल्प ले लिया था कि अब यही धरती हमारा घर है और इस देश के विकास में हमारा सहयोग रहेगा।

ऐसा कोई फैसला नहीं लेते, जिससे समाज को नुकसान हो
यझदी करंजीया आगे कहते हैं कि हम भले ही अलग समुदाय से हैं, लेकिन हमारे लिए पहली और आखिरी बात के मायने यही है कि हम इस समाज का हिस्सा हैं। इसलिए हम ऐसा कोई फैसला नहीं लेते, जिससे समाज को नुकसान हो। क्योंकि समाज का नुकसान भी तो हमारा ही नुकसान है। इसी के चलते हमने फैसला किया है कि जब तक महामारी खत्म नहीं हो जाती, तब तक हम शवों का अग्निदाह करें, जिससे संक्रमण फैलने से रोका जा सके

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