टिकैत के कहे लखीमपुर-खीरी से दूर रखे विपक्षी नेता, वरना मामला सुलझता ही नहीं

लखीमपुर खीरी कांड: राकेश टिकैत के कहने पर विपक्षियों को दूर रख रही योगी सरकार! किसानों को शांत कराने में मुश्किल का था डर; रात डेढ़ से दोपहर दो बजे तक चली थी बात; जुटी थी 25 हजार की भीड़
टिकैत द्वारा निभाई गई भूमिका महत्वपूर्ण है क्योंकि उन्हें यूपी में किसानों का चेहरा माना जाता है। चुनाव वाले राज्य में, तीन कृषि कानूनों का विरोध बड़े पैमाने पर पश्चिमी जिलों में केंद्रित हैं, जहां टिकैत लंबे समय से किसानों के लिए काम कर रहे हैं।

नई दिल्ली 06 अक्टूबर।उत्तर प्रदेश सरकार ने लखीमपुर खीरी कांड में हुए बवाल को और आगे बढ़ने से रोकने और हिंसा पर लगाम कसने के लिए जिस नेता की मदद ली, वे हैं भारतीय किसान यूनियन के अध्यक्ष राकेश टिकैत। उनकी सलाह पर ही विपक्षी नेताओं को घटनास्थल पर पहुंचने से रोका गया और उनकी मदद से ही 24 घंटे के अंदर ही वहां जुटी 25 हजार किसानों की भीड़ को मौके से हटाया जा सका। ऐसा नहीं करने पर हिंसा बढ़ सकती थी। राकेश टिकैत के साथ ही कई ऐसे वरिष्ठ अधिकारी भी बातचीत कर रहे थे, जिनके पास वर्षों तक पश्चिमी उत्तर प्रदेश में ऐसे हालातों को नियंत्रित करने का अनुभव था।

सूत्रों ने कहा कि इन अफसरों ने अन्य लोगों के साथ मध्यस्थता के लिए टिकैत से संपर्क किया और उन्हें जल्द से जल्द लखीमपुर खीरी ले आए। इसके बाद उनकी मध्यस्थता में बातचीत शुरू हुई, जो सोमवार रात लगभग 1.30 बजे शुरू हुई और करीब 12 घंटे बाद दोपहर 2 बजे समाप्त हुई। टिकैत ने लखनऊ से अपने साथ समन्वय कर रहे अधिकारियों से विपक्षी नेताओं को दूर रखने के लिए कहा था, क्योंकि उनकी वजह से किसानों को समझाने और शांत करने में मुश्किल होती।

योगी आदित्यनाथ सरकार ने सड़कों को अवरुद्ध कर दिया, विमान को उतरने से रोक दिया और नेताओं को हिरासत में ले लिया ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि विपक्षी नेता मंगलवार को भी मौके पर नहीं पहुंच सके। टिकैत द्वारा निभाई गई भूमिका महत्वपूर्ण है क्योंकि उन्हें यूपी में कृषि कानून विरोध का चेहरा माना जाता है। चुनाव वाले राज्य में, यह विरोध बड़े पैमाने पर पश्चिमी जिलों में केंद्रित हैं, जहां टिकैत लंबे समय से किसानों के लिए काम कर रहे हैं। यह उनके पिता महेंद्र सिंह टिकैत के समय से शुरू हुआ था।

मौके पर मौजूद एक अधिकारी ने कहा कि टिकैत ने कभी भी बातचीत में या किसानों को संबोधित करते हुए राज्य सरकार के प्रति कोई आक्रामकता या आलोचना नहीं की। प्रदर्शनकारियों के तितर-बितर होने के बाद ही वह लखीमपुर खीरी से निकले।

टिकैत की टीम ने तीन मांगें रखीं जिसमें केंद्रीय मंत्री अजय मिश्रा और उनके बेटे आशीष के खिलाफ हत्या का मामला दर्ज करना (किसानों ने आरोप लगाया है कि आशीष ही उस कार को चला रहे थे, जिससे कुचल कर चार प्रदर्शनकारियों की मौत हुई थी।); प्राथमिकी की प्रति तत्काल प्रस्तुत करना; प्रत्येक मृत किसान के परिजनों को एक-एक करोड़ रुपये का मुआवजा; और उनके पैतृक जिले में उनके परिवार के एक सदस्य को सरकारी नौकरी उपलब्ध कराना शामिल है।
अधिकारियों ने प्रतिनिधिमंडल को आश्वासन दिया कि मामला दर्ज किया जाएगा। हालांकि, मुआवजे को थोड़ा कम करने और सरकारी नौकरी पर जोर नहीं देने को कहा गया, लेकिन टिकैत के नेतृत्व वाला प्रतिनिधिमंडल इस पर राजी नहीं हुआ।
अधिकारियों ने स्वीकार किया कि इस दौरान कई बार तनाव बढ़ता दिखा, क्योंकि भीड़ मौके पर चारों ओर बढ़ती जा रही थी। उन्हें डर था कि किसी भी छोटी सी घटना से कथित तौर पर तलवारों, लाठियों और लाइसेंसी बंदूकों से लैस गुस्साए किसानों की मौके पर तैनात पुलिस, आरएएफ और एसएसबी के लोगों के साथ झड़प न हो जाए।

दोपहर करीब 1 बजे अपर मुख्य सचिव कृषि देवेश चतुर्वेदी, एडीजी लॉ एंड ऑर्डर प्रशांत कुमार और एडीजी लखनऊ जोन एसएन साबत कथित तौर पर लखनऊ से अंतिम मंजूरी के बाद आशीष के खिलाफ एफआईआर की कॉपी लेकर किसानों से बात करने पहुंचे। इस बैठक में मृतक किसानों के परिजन भी मौजूद थे। मृतकों के परिवारों के लिए मुआवजे की राशि 45 लाख रुपये और घायलों के लिए 10 लाख रुपये तय की गई थी। लखनऊ में शीर्ष अधिकारियों ने टिकैत और पंजाब के एक सिख किसान नेता से भी बात की।
कथित तौर पर वरिष्ठ अधिकारियों की टीम मीडिया से बात नहीं करना चाहती थी, लेकिन टिकैत ने इस पर जोर दिया। उन्होंने मीडिया को बताया कि रविवार की घटना को लेकर किसान अपना आंदोलन समाप्त कर रहे हैं। इसके बाद वे किसानों को संबोधित करने चले गए।

देवेश चतुर्वेदी और अंतिम वार्ता में शामिल अन्य अधिकारियों के अलावा अतिरिक्त मुख्य सचिव (गृह) अवनीश कुमार अवस्थी ने भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। सूत्रों ने बताया कि अवस्थी मौके पर मौजूद अधिकारियों और टिकैत के लगातार संपर्क में रहे।

सूत्रों के अनुसार, अवस्थी ने एक साल पहले शुरू हुए तीन कृषि कानूनों पर किसानों के आंदोलन के बाद से टिकैत के साथ बातचीत का एक रास्ता खुला रखा। और मेरठ में जब वे जिलाधिकारी थे,तब से टिकैत के पिता महेंद्र सिंह टिकैत के परिवार के साथ उनके अच्छे संबंध हैं। अधिकारियों का कहना है कि यही कारण है कि भारतीय किसान यूनियन ने उत्तर प्रदेश की सीमा के भीतर, खासकर लखनऊ के आसपास कोई बड़ा आंदोलन नहीं किया है।

बाकी अफसर भी टिकैत को अच्छी तरह जानते हैं। एडीजी प्रशांत कुमार ने लंबे समय तक एडीजी, मेरठ जोन के रूप में कार्य किया है, जबकि एडीजी एस एन साबत पहले पश्चिम यूपी में एसएसपी मुजफ्फरनगर रह चुके हैं। अपर मुख्य सचिव कृषि देवेश चतुर्वेदी अपनी आधिकारिक क्षमता में टिकैत के साथ कई बैठकों का हिस्सा रहे हैं।

दिल्ली में BJP के धुर विरोधी राकेश टिकैत कैसे बन गए सरकार के ‘संकट मोचक’

Lakhimpur Kheri Ruckus: यूपी सरकार (UP Government) की टीम के साथ संयुक्त प्रेस वार्ता करने के बाद सोमवार को राकेश टिकैत ने कहा था, ‘यूपी सरकार ने इतनी उच्च स्तरीय टीम भेजी, तो समझौता हो गया.
राकेश टिकैत ने सोमवार को यूपी सरकार की टीम के साथ संयुक्त प्रेस वार्ता की थी।
भारतीय जनता पार्टी (BJP) के खिलाफ बीते 10 महीनों से विरोध के सुर उठा रहे किसान नेता राकेश टिकैत (Rakesh Tikait) लखीमपुर खीरी मामले में उत्तर प्रदेश सरकार के ‘संकटमोचक’ बनकर सामने आए हैं. सोमवार को ही उन्होंने यूपी सरकार की टीम के साथ एक प्रेस कॉन्फ्रेंस की थी, जिसके बाद उन्होंने समझौते का श्रेय यूपी सरकार की तरफ से भेजी गई उच्च स्तरीय टीम को दिया था. किसान आंदोलन को लेकर टिकैत राजधानी दिल्ली की गाजीपुर सीमा के बड़े हिस्से को रोके हुए हैं. इतना ही नहीं उन्होंने चुनावी राज्यों में पहुंचकर बीजेपी के विरोध में प्रचार किया था. हालांकि, इस कांड में उनकी भूमिका से कई लोग हैरान हैं.

मंगलवार को टिकैत और सरकार के बीच समझौता तब टूटने की कगार पर पहुंच गया, जब मृतकों के परिवारों ने शवों का अंतिम संस्कार करने से इनकार कर दिया. वे टिकैत ही थे, जिन्होंने परिवारों से मुलाकात करने और उन्हें मनाने का जिम्मा उठाया. टिकैत के दखल के बाद किसान गुरविंदर सिंह को छोड़कर मंगलवार को अन्य तीनों किसानों का अंतिम संस्कार हो गया. सिंह के परिवार ने आशंका जताई है कि किसान को गोली मारी गई थी. इसके चलते अब दूसरी बार ऑटोप्सी की जानी है. टिकैत ने मारे गए पत्रकार रमन कश्यप के परिवार से भी मुलाकात की थी और कहा था कश्यम भी ‘किसान था.’ सोमवार को टिकैत ने यूपी के शीर्ष पुलिस अधिकारी प्रशांत कुमार के साथ संयुक्त प्रेस वार्ता की थी.

विपक्ष के एक नेता ने कहा, ‘टिकैत की तरफ से निभाई गई भूमिका अजीब है. यूपी सरकार की तरफ से केवल उन्हें ही लखीमपुर जाने दिया गया. यह बहुत चौंकाने वाली बात है कि परिवार 45 लाख रुपये के मुआवजे के लिए मान गए और केंद्रीय मंत्री के बेटे की गिरफ्तारी के लिए दबाव बनाए बगैर पोस्ट मॉर्टम की अनुमति दे दी. परिवारों के साथ हमारी बातचीत बताती है कि उन्होंने केवल टिकैत की बात सुनी है.’ एक अन्य विपक्षी नेता ने यूपी के ‘डायल 122’ में तैनात नोएडा के पूर्व एसएसपी और IPS अधिकारी अजय पाल शर्मा के ‘मध्यस्थ’ वाली भूमिका की ओर इशारा किया है. संपर्कों के मद्देनजर उन्हें लखीमपुर भेजा गया था.

सरकार की टीम के साथ संयुक्त प्रेस वार्ता करने के बाद सोमवार को टिकैत ने कहा था, ‘यूपी सरकार ने इतनी उच्च स्तरीय टीम भेजी, तो समझौता हो गया.’ इस प्रेस कॉन्फ्रेंस में टिकैत ने चार मृतक किसानों के परिवारों की तरफ से 45 लाख रुपये का मुआवजा, सरकारी नौकरी का वादा, उच्च स्तरीय जांच और आरोपित के खिलाफ FIR की मांग को स्वीकार कर लिया. इन मांगों को लेकर टिकैत, परिवारों और सरकार के बीच कई बार चर्चाएं हुई थी. परिवार इससे पहले मंत्री के बेटे की गिरफ्तारी और केंद्रीय मंत्री को निष्कासित करने की मांग कर रहे थे, लेकिन अंत में उन्होंने जोर नहीं दिया और ऑटोप्सी के लिए तैयार हो गए थे. जब सभी राजनेताओं को रोक दिया गया था, तब टिकैत को रविवार देर रात को लखीमपुर पहुंचने की अनुमति दी गई थी.

हालांकि, मंगलवार को जब परिवारों ने शवों का अंतिम संस्कार से इनकार कर दिया, तो समझौता टूटता हुआ नजर आने लगा था. इससे एक रात पहले RLD नेता जयंत चौधरी परिवारों से मुलाकात करने में सफल हो गए थे. जबकि, कहा जाता है कि प्रियंका गांधी वाड्रा और अखिलेश यादव ने परिवारों से फोन पर बात की थी. मंगलवार को परिवारों ने मांग की थी कि पहले मंत्री के बेटे को गिरफ्तार किया जाए और सभी शवों को दोबारा ऑटोप्सी कराई जाए, क्योंकि पहली ऑटोप्सी में उनके शरीर पर गोलियों के निशान नहीं दिख रहे थ. दोपहर तक सुष्मिता देव और डोला सेन का तृणमूल कांग्रेस का प्रतिनिधिमंडल भी परिवारों तक पहुंचा था.

यहां टिकैत की दोबारा एंट्री हुई. वे दिन में सभी चारों परिवारों से मिले और उनके साथ दोबारा बात की, जिसके बाद परिवार शाम को अंतिम संस्कार के लिए तैयार हो गए. सरकार के लिए यह बड़ी राहत की बात थी. गुरविंदर सिंह का परिवार पहले राजी नहीं हो रहा था, लेकिन टिकैत की दखल के बाद यह सुनिश्चित किया गया कि पीजीआई से डॉक्टरों की एक टीम बहराइच आएगी और शव की दूसरी बार ऑटोप्सी करेगी, क्योंकि परिवार ने गोली मारे जाने की आशंका जताई है. दो किसान परिवारों ने मंगलवार शाम को सरकारों से 45-45 लाख रुपये के चैक भी स्वीकार कर लिए हैं.
इधर, मंत्री के खिलाफ टिकैत के सुर बुलंद रहे और वे उनके और उनके बेटे के खिलाफ कार्रवाई की मांग कर रहे थे. उन्होंने यह भी कहा कि चार परिवारों का शोक पूरा होने के बाद किसान आंदोलन की नई रणनीति पर काम करेंगे. फिलहाल, लखीमपुर में टिकैत की भूमिका एक बहस का मुद्दा बना हुआ है.

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