टेक कंपनियों की सरकारों से टक्कर बढ़ती जा रही है दुनिया भर में
बढ़ सकती हैं फेसबुक की मुसीबतें, दुनिया की सरकारें हो रहीं लामबंद
आस्ट्रेलिया में हाल ही में जब गूगल खबरों के बदले पैसे देने के लिए राजी हुआ तो लगा कि वहां ऑस्ट्रेलिया और टेक कंपनियों के बीच चल रहा विवाद खत्म हो गया, लेकिन फेसबुक ने न्यूज और इमरजेंसी पोस्ट बंद करके नया हंगामा खड़ा कर दिया है। ऑस्ट्रेलिया में फेसबुक के यूजर्स फेसबुक पर कोई खबर शेयर तो कर सकते हैं लेकिन वह किसी को दिखेगा नहीं। ऑस्ट्रेलिया की सरकार के नए कानून से टेक कंपनियों को दिक्कत है और सरकार को टेक कंपनियों से समस्या है।
फेसबुक के न्यूज शेयरिंग ब्लॉक करने के फैसले पर ऑस्ट्रेलियाई सरकार ने कड़ी आपत्ति जताई है। प्रधानमंत्री स्कॉट मॉरिसन ने कहा है कि हम टेक कंपनियों की धमकी से डरने वाले हैं। खास बात यह है उन्होंने इस मुद्दे पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी समेत कनाडा, फ्रांस और ब्रिटेन के प्रधानमंत्रियों से भी बात की है। ऑस्ट्रेलिया में फेसबुक पर कानूनी कार्रवाई की तैयारी भी चल रही है।
फेसबुक के फैसले पर मॉरिसन ने कहा है कि फेसबुक का कदम साबित करता है कि बड़ी टेक कंपनियां खुद को सरकारों से बड़ी मानने लगी हैं। कंपनियां सोच रही हैं कि उनके ऊपर कोई कानून लागू नहीं होंगे और वही दुनिया को चलाएंगी।
जल्द ही लागू होगा नया कानून
खबरों के बदले समाचार संस्थान को पैसे देने का कानून ऑस्ट्रेलिया की संसद के निचले सदन में पारित हो गया है। अब सीनेट में पारित होते ही कानून बन जाएगा जिसके बाद टेक कंपनियों को समाचार के बदले समाचार संस्थाओं को पैसे देने होंगे। लंबी जद्दोजहद के बाद गूगल तो नए कानून के लिए राजी हो गया है लेकिन फेसबुक को आपत्ति है। फेसबुक के इस कदम के बाद कई अन्य देश भी ऑस्ट्रेलिया के समर्थन में आ गए हैं। ब्रिटेन के कई नेताओं ने फेसबुक एप डिलीट करने की भी मांग की है। इनमें फेसबुक ऑस्ट्रेलिया के सीईओ रह चुके स्टीफन चीलर भी शामिल हैं।
सरकारी पेज ब्लॉक, बाढ़-आग की सूचनाएं रोकी
फेसबुक के इस कदम के बाद कई सरकारी एजेंसियों के पेज भी ब्लॉक हुए जिससे कम्यूनिकेशन में बाधा पहुंची। बाढ़ और आग लगने जैसी आपात घटनाओं को लेकर भी लोगों तक सूचनाएं नहीं पहुंच पाईं। मौसम विभाग की भी सूचनाएं रोकी गईं। फेसबुक के इस फैसले का नुकसान जल्द शुरू होने वाले कोविड-19 टीकाकरण पर भी हुआ। यूजर्स ने इनकी खबरों के बड़ी संख्या में साझा पोस्ट ब्लॉक कर दिए। अंतरराष्ट्रीय समाचार एजेंसियों व संस्थानों के पेज भी ब्लॉक हुए।
गूगल और ऑस्ट्रेलिया का विवाद क्या है, भारत में क्या है स्थिति, विस्तार से समझें
गूगल और ऑस्ट्रेलिया का झगड़ा अब धमकियों में बदल गया है। पिछले साल ऑस्ट्रेलिया की सरकार ने कहा था कि गूगल और फेसबुक यदि अपने यूजर्स को अपने प्लेटफॉर्म पर न्यूज दिखाते हैं तो उन्हें न्यूज पब्लिशर्स को पैसे देने होंगे। वैसे तो यह विवाद पिछले साल से चल रहा है लेकिन मामला अब ज्यादा गर्म हो गया है। हाल ही में गूगल ने धमकी देते हुए कहा है कि यदि ऑस्ट्रेलिया की सरकार पैसे देने के लिए मजबूर करेगी तो वह सर्च में न्यूज दिखाना बंद करेगा। गूगल ने यहां तक कह दिया है कि यदि सरकार मजबूर करेगी तो वह ऑस्ट्रेलिया को अलविदा कह देगा।
गूगल के ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड के प्रबंध निदेशक, मेल सिल्वा ने पिछले सप्ताह एक संसदीय सुनवाई में कहा था कि प्रस्तावित कानून को यदि अमल में लाया जाता है तो उनके पास ऑस्ट्रेलिया छोड़ने के अलावा कोई अन्य रास्ता नहीं है। सिल्वा के जवाब में ऑस्ट्रेलियाई प्रधानमंत्री स्कॉट मॉरिसन ने कहा कि वे इस तरह की धमकियों पर टिप्पणी नहीं करते।
ऑस्ट्रेलियाई संसद में इस बात को लेकर लंबी बहस चल रही है कि गूगल और फेसबुक जैसी कंपनियों जब मीडिया हाउस के कंटेंट का इस्तेमाल कर रही हैं तो बदले में उन्हें मीडिया हाउस को पैसे देने चाहिए या नहीं। अब इंटरनेट कंपनियां सरकार के इस बहस के खिलाफ हैं। गूगल के अलावा फेसबुक ने भी कहा है कि वह ऑस्ट्रेलिया में न्यूज पब्लिशर्स को फेसबुक पर न्यूज शेयर करने से रोकेगा।
दक्षिण कोरिया में हो चुका है इस तरह का प्रयोग
ऐसा पहली बार नहीं हो रहा है जब किसी सर्च इंजन को न्यूज पब्लिशर्स को पैसे देने के लिए कहा जा रहा है। इससे पहले साल 2017 में दक्षिण कोरिया में गूगल से ज्यादा लोकप्रिय सर्च इंजन नैवर (Naver) ने इसी तरह का प्रयोग किया था। Naver ने समाचार के बदले 125 से अधिक पब्लिशर्स को पैसे दिए, हालांकि 500 मीडिया हाउस ऐसे भी थे जिन्हें पैसे नहीं मिले। कंपनी ने 2017 में कुल 40 मिलियन डॉलर का भुगतान किया, हालांकि पेमेंट को लेकर पब्लिशर्स खुश नहीं थे।
फेसबुक का न्यूज टैब जल्द होने वाला है लॉन्च
कुछ दिन पहले ही ब्लूमबर्ग की एक रिपोर्ट में कहा गया था कि फेसबुक जल्द ही न्यूज टैब नाम से एक फीचर लॉन्च करने वाला है। फेसबुक एप और वेबसाइट के न्यूज टैब में सिर्फ खबरें ही दिखेंगी। फेसबुक का न्यूज टैब फीचर साल 2019 से ही अमेरिका में उपलब्ध है लेकिन अब इसे ग्लोबली जारी करने की प्लानिंग हो रही है।
गूगल ने पिछले साल दिसंबर में गूगल ने कहा था कि वह जल्द ही लोगों से न्यूज के बदले पैसे लेना शुरू करेगा। गूगल ने कहा था कि इसके लिए वह न्यूज पब्लिशर्स के साथ साझेदारी करेगा। पिछले सप्ताह ही कहा था कि वह फ्रांस में न्यूज पब्लिशर्स को न्यूज के बदले पैसे देगा। बता दें कि इससे पहले गूगल स्पेन में ऐसे ही कानून के कारण अपनी न्यूज सर्विस को बंद कर दिया है।
समस्या कहां है?
न्यूज फीड के लिए मीडिया हाउस को पैसे देना गूगल जैसी टेक कंपनियों के लिए कोई बड़ी समस्या नहीं है। इसका प्रमाण हाल ही में देखने को मिला जब ऑस्ट्रेलिया में विवाद से कुछ घंटे पहले गूगल ने कहा था कि फ्रांस में न्यूज पब्लिशर्स को न्यूज के बदले पैसे देगा, लेकिन ऑस्ट्रेलिया का विवाद थोड़ा अलग है।
ऑस्ट्रेलिया का पूरा विवाद इस बात पर केंद्रित है कि पेमेंट सिस्टम पर इन कंपनियों का नियंत्रण कितना हो, जैसे- कितनी खबरों के लिए कितना पेमेंट होगा, खबरों के लिए पेमेंट होगा तो क्या सर्च में न्यूज के दिखने की संभावना ज्यादा होगी या कम होगी। ऑस्ट्रेलिया का झगड़ा प्रभुत्व को लेकर आगे बढ़ रहा है। यूरोपियन यूनियन ने बिना विवाद किए इस समस्या का समाधान कॉपीराइट से जोड़कर कर दिया है।
भारत में क्या है स्थिति?
FICCI-EY की रिपोर्ट के मुताबिक भारत में ऑनलाइन समाचार पढ़ने और मनोरंजन के लिए ऑनलाइन प्लेटफॉर्म का इस्तेमाल करने वाले यूजर्स की संख्या 300 मिलियन के करीब है। ये यूजर्स गूगल, फेसबुक और डेलीहंट जैसे एग्रिगेटर के जरिए खबरों को पढ़ते हैं। इनमें से 77 फीसदी यूजर्स स्मार्टफोन इस्तेमाल करते हैं। ये आंकड़े 2019-20 के हैं। 282 मिलियन यूनिक विजिटर्स के साथ भारत चीन के बाद सबसे ज्यादा ऑनलाइन न्यूज पढ़ने वाला दुनिया का दूसरा देश है।
साल 2019 में ऑनलाइन विज्ञापन में 24 फीसदी (27,900 रुपये) का इजाफा देखा गया था जिसे लेकर अनुमान है कि यह साल 2022 तक 51,340 करोड़ का हो जाएगा। डिजिटल विज्ञापन में गूगल और फेसबुक का संयुक्त रूप से 61 फीसदी कब्जा है।
भारत में Dailyhunt जैसे न्यूज एग्रिटर को गूगल, माइक्रोसॉफ्ट जैसी कंपनियों से फंडिंग प्राप्त है। वहीं InShorts को Tiger Global से फंडिंग मिलती है। जनवरी 2020 में आई हावर्ड यूनिवर्सिटी Nieman लैब की रिपोर्ट में कहा गया था कि डेलीहंट न्यूज पब्लिशर्स को हर महीने 5-6 लाख रुपये देता है, हालांकि भारत में गूगल और फेसबुक के साथ न्यूज को लेकर फिलहाल कोई बहस नहीं है।
फेसबुक के खिलाफ अकेला न नजर आए आस्ट्रेलिया
– स्कॉट मॉरीसन इस विषय पर विश्व के अनेक नेताओं को अपने साथ लाने की कवायद में हैं। भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से वह पहले ही बात कर चुके हैं ।
रिचर्ड ग्लोवर
ऑस्ट्रेलियाई सरकार और फेसबुक का टकराव अब अंतरराष्ट्रीय मीडिया की सुर्खियों में है। लोग और सरकारें आश्चर्य में हैं कि क्या विश्व ने अमरीका की दिग्गज इंटरनेट कंपनियों को इतना ताकतवर होने और दादागीरी करने की अनुमति दे दी है कि वे समाज और सरकारों की दिशा तय करें। अगर ये कंपनियां, लोकतांत्रिक तरीकों से निर्वाचित सरकारों के विरुद्ध इस ताकत का उपयोग करने लग जाएं तो क्या हो? इस हफ्ते यही हुआ। दरअसल, फेसबुक ऑस्ट्रेलिया के उस प्रस्तावित कानून से खफा है जिसके मुताबिक न्यूज कंटेंट शेयर करने पर उसे मीडिया कंपनियों को भुगतान करना होगा। फेसबुक ने उनके पेज से पूरा कंटेंट भी हटा दिया। इससे वैज्ञानिक संगठन और अस्पताल भी प्रभावित हुए। हालांकि, एक दिन बाद ही फेसबुक के एक अधिकारी ने माफी माफी मांगते हुए कहा कि यह अनजाने में हो गया था।
पश्चिमी ऑस्ट्रेलिया में आग और बाढ़ दोनों ही चिंता के विषय थे, पर आपातकालीन चेतावनी हटा दी गई थी। बेशक, यह चेतावनी हर कहीं उपलब्ध थी, पर समस्या यह है कि देश के कई नागरिक समाचार और सूचनाओं के लिए फेसबुक पर निर्भर रहने के आदी हो चुके हैं। शायद यह वेक-अप कॉल थी जिसकी हमें जरूरत थी – और दुनिया को भी। ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री स्कॉट मॉरीसन इस विषय पर विश्व के अनेक नेताओं को साथ लाने की कवायद में हैं। भारत के पीएम नरेन्द्र मोदी से वह पहले ही बात कर चुके हैं। वित्त मंत्री जोश फ्रिडनबर्ग ने भी कनाडा की उप प्रधानमंत्री और वित्तमंत्री क्रिस्टिया फ्रीलैंड से बात की है। मॉरीसन ने फेसबुक के इस कृत्य को अहंकारी और निराशाजनक बताते हुए लिखा कि वे केवल उन चिंताओं की पुष्टि कर रहे हैं जो इन दिग्गज इंटरनेट कंपनियों के बारे में अन्य देशों की हैं। ये कंपनियां सोचती हैं कि वे सरकारों से बड़ी हैं और उन पर कोई कानून लागू नहीं होते।
मुद्दा नए ‘बारगेनिंग कोड’ को लेकर है। गूगल ने, पहले तो ऑस्ट्रेलिया से अपने सर्च इंजन को हटाने की धमकी दी, पर बाद में कई सेवाप्रदाताओं के साथ समझौता करते हुए आत्मसमर्पण की मुद्रा में आ गया। कोई संदेह नहीं कि ऑस्ट्रेलिया के नए कानून को सभी देश अपना सकते हैं। सवाल यह है कि क्या फेसबुक की यह धमकी काम आएगी? संभवत: नहीं। जब ऐसी धमकियों के खिलाफ अडिग रहने की बात आती है तो ऑस्ट्रेलिया का अच्छा रेकॉर्ड है। चीन ऑस्ट्रेलिया का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है। इसके बावजूद ऑस्ट्रेलियाई निर्यात पर प्रतिबंधों के मामले में चीन के साथ विवाद जारी है। चीन हो या टेक कंपनिया ं, दोनों मामलों में विपक्षी लेबर पार्टी ने सरकार का समर्थन किया है। जहां तक विनियमन से जुड़े मामले हैं, फेसबुक बहुत ताकतवर है, हर जगह पहुंच है और जुझारू भी, ऐसे तर्क देने वाले लोगों को जकरबर्ग ने सही साबित किया है।
अब समय आ गया है जब बड़ी टेक कंपनियों को मानवीय इच्छा के आगे झुकना होगा। हमें अच्छाई अपनाने और बुराई दफन करने की जरूरत है। यह मांग करनी होगी कि ये कंपनियां अपने तौर-तरीके छोड़ें। पूरी दुनिया को भी तय करना होगा कि इस मुश्किल का सामना करता हुआ ऑस्ट्रेलिया अकेला न दिखाई दे।
(लेखक एबीसी रेडियो सिडनी के शो ‘ड्राइव’ के प्रस्तोता हैं)