सत्ता विरोधी जनभावना से निपटने को ताबड़तोड़ फैसले पलट रहे हैं तीरथ सिंह रावत

पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र के फैसले यूं ही नहीं पलट रहे हैं नए मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत
उत्तराखंड में अगले साल जनवरी में विधानसभा के सामान्य चुनाव होंगे. तो अपना टीम कप्तान बदलने के बाद भाजपा को चुनावी तैयारी को कुछ ही महीने बचे हैं.उसका बहुत कुछ दांव पर लगा है। मुख्यमंत्री तीरथसिंह रावत उस सत्ता विरोधी जनभावना ( एंटी-इनकंबेंसी फैक्टर ) को दूर करने की कोशिश में हैं जो पिछले मुखिया ने अपने इकतरफा निर्णयों से पैदा किए और अपनी असमय बिदाई की पटकथा लिख ली.सो उत्तराखंड के नए मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत पिछली सरकार के विवादास्पद फैसलों को ताबड़तोड़ पलट रहे हैं.
देहरादून. उत्तराखंड के नए मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत एक्शन मोड में है. पहले हफ्ते ही मुख्यमंत्री तीरथ सिंह ने जो फैसले लिए हैं, वह मीडिया की सुर्खियां बने हुए हैं. दरअसल, सुर्खियां बनने की वजह पिछली सरकार के वे विवादास्पद फैसले हैं जिनको तीरथ सिंह रावत पलट रहे हैं. सबसे बड़ा फैसला हरिद्वार कुंभ से जुड़ा हुआ है. एक अप्रैल से कुंभ मेले की विधिवत शुरुआत होगी. पिछली सरकार ने कोविड- 19 के दृष्टिगत यात्रियों के लिए जरूरी किया था कि वे कोविड-19 की निगटिव रिपोर्ट के साथ आएं. साथ ही हरिद्वार में यात्रियों की सीमित संख्या को लेकर भी निर्देश जारी हुए थे. मुख्यमंत्री तीरथ ने एक ही झटके में इन निर्देशों से किनारा करते हुए अधिकारियों को हर आगंतुक तीर्थ यात्री का स्वागत-सत्कार करने के निर्देश दिए जो गंगा स्नान का पुण्य कमाना चाहता है. इससे मुख्यमंत्री तीरथ की छवि साधु समाज में एक हीरो जैसी बनी है. वहीं दूसरी तरफ वर्षों से कुंभ में डुबकी लगाने का प्लान कर रहे लाखों तीर्थ यात्रियों में भी उम्मीद जगी है. मुख्यमंत्री ने पिछले स्नान के समय बसों की तंगी देख अफसरों को कुंभ के दौरान प्रतिदिन 500 बसों की व्यवस्था रखने को कहा है जो प्रमुख स्थानों के दिन 600 की जायेगी। सरकार स्पेशल कुंभ ट्रेनें और अन्य राज्यों से भी कुंभ को स्पेशल बसें चलाने का अनुरोध किया है। यहां तक कि उत्तराखंड पर्यटन विभाग ने देश की राजधानी में होर्डिंग लगा कर जनता को कुंभ में आमंत्रित करने का आक्रामक अभियान तक छेड़ दिया है। पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के कोरोना के देशभर में बढते मामलों के दृष्टिगत अतिउत्साह से बचने की सीख के पहले ही मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत ने अफसरों को सोशल डिस्टैंसिंग और मास्क आदि सावधानियां रखने को कहा हुआ है।

भारतीय जनता पार्टी की राजनीति के केंद्र में राम,हिंदू और गंगा प्रमुख कारक रहे हैं. कुंभ को नये मुख्यमंत्री के फैसले पार्टी लाइन के साथ जाते दिख रहे हैं. इसके अलावा, कोविड के दौरान नियमों का पालन ना करने के आरोप में जिन लोगों पर पिछली सरकार ने मुकदमे लगाए थे. उनको भी तीरथ रावत ने वापस लेने की घोषणा की है. इस दूसरे फैसले से कई लोग जो मुकदमे और कोर्ट, कचहरी की वजह से परेशान थे. वह खुश है और इस फैसले ने आम लोगों में तीरथ की उम्मीदें बढ़ाई हैं. मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत का कहना है कि उनके संज्ञान में लाया गया था कि कोविड काल में भोजन,दवा,पशु चारा और दूध बांटने वालों पर भी मुकदमें हो गये थे जबकि ये काम समाज और सरकार की भी मदद में किये गये थे। मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत के अनुसार सरकार जनता को सुविधायें देने को है, उसके लिए कठिनाइयां पैदा करने को नहीं।

देवस्थानम बोर्ड से जुड़े मसले पर भी तीरथ नरम

उत्तराखंड में सबसे विवादास्पद देवस्थानम बोर्ड से जुड़े फैसले पर भी तीरथ सिंह रावत ने सधी हुई नरमी दिखाई है। उन्होंने साफ कहा है कि बद्रीनाथ-केदारनाथ-यमुनोत्री और गंगोत्री समेत जो भी पौराणिक प्राचीन मंदिरदिर हैं, उन पर जो परंपरागत व्यवस्था चली आ रही थी, इस साल भी यथावत रहेगी. मुख्यमंत्री ने साफ किया है कि वह देवस्थानम बोर्ड के मसले को उलझाए नहीं रखना चाहते.ध्यान देने की बात है कि लोगों में बोर्ड की परिधि से हरिद्वार को बाहर रखने की चर्चाएं कर रहे थे तो भाजपा के ही सांसद सुब्रह्मण्यम स्वामी इसके खिलाफ हाईकोर्ट चले गए। वहां हारे तो सुप्रीम कोर्ट जा पहुंचे।

गैरसैण कमिश्नरी का छक्का कि हिट विकेट?

त्रिवेंद्र सिंह रावत गैरसैंण कमिश्नरी बनाने की घोषणा कर गए थे जिसे मीडिया के एक हिस्से ने राजनीतिक छक्का बता डाला था,वह भाजपा के ही कुमाऊं के नेताओं के गले नहीं उतर पाया था. उससे उपजी नाराजगी को भी नए मुख्यमंत्री ने दूर करने की कोशिश की है. उन्होंने कहा है कि वह इस मुद्दे पर जन भावनाओं के साथ हैं. एक और मजेदार तथ्य यह है कि पिछले मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत जहां नौकरशाहों पर बहुत विश्वास करते थे, वही तीरथ सिंह रावत ने साफ किया है कि वह नौकरशाहों से ज्यादा जनता, जनभावना और जनप्रतिनिधियों को महत्व देंगें. इस बात से उन्होंने ब्यूरोक्रेसी को स्पष्ट संदेश दे दिया है. वही अपने पार्टी कैडर को भी खुश किया है. इन सारी बातों के पीछे चुनावी राजनीति है.

विवादों से दूर रहने की कोशिश

नए मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत अपने को जनता से जुड़ा, पार्टी कार्यकर्ताओं के लिए सुलभ और नौकरशाहों के लिए कठोर मुख्यमंत्री के तौर पर छवि बनाने की कोशिश करते दिख रहे हैं. अपने मंत्रिमंडल के चयन में भी मुख्यमंत्री ने विवादों से दूर रहने की कोशिश की है. पिछली सरकार के साथ चेहरों को न सिर्फ अपनी कैबिनेट में लिया है बल्कि उनको वहीं विभाग दे दिए हैं जिसमें वह पिछली सरकार के रहते कंफर्टेबल थे. यानी ‘ना काहू से दोस्ती ना काहू से बैर’ की लाइन पर चलते हुए मुख्यमंत्री विवादों से दूर रहना चाहते दिख रहे हैं.

पार्टी को दोबारा सत्ता में वापस लाने की चुनौती

मुख्यमंत्री के करीबी लोगों का मानना है कि उनकी इमेज सरल व्यक्ति की रही है और इस छवि को वो तोड़ना भी नहीं चाहते. आरएसएस बैकग्राउंड से आए तीरथ को मुख्यमंत्री के तौर पर सरकार चलाने का एक बड़ा मौका मिला है. इस मौके को मुख्यमंत्री तीरथ चुनौती और अवसर के तौर पर भी देखते लग रहे हैं. चुनौती पार्टी को दोबारा सत्ता में वापस लाने की और अवसर यह कि अगर वह भाजपा को दोबारा सत्ता में लाने में कामयाब रहे तो छह साल तक मुख्यमंत्री बने रहने का एक नया कीर्तिमान बना सकते हैं. चुनौती और अवसर के बीच में समय बहुत बड़ा कारक है और ऐसा लगता है मुख्यमंत्री पिछली सरकार के हर उस लोकप्रिय फैसले से अपने आपको अलग रखना चाहते हैं जिससे पार्टी को निकट भविष्य में नुकसान हो सकता था.

*रवीन्द्र नाथ कौशिक

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