मुख्यमंत्री तीरथ के द्वार पहुंची फुलारी
उत्तराखंडः फूलदेई के पर्व पर मुख्यमंत्री तीरथ के घर पहुंचीं फुलारी, गाया पारंपरिक गीत, फूलों से सजा दी उनकी देहरी
देहरादून 14 मार्च।
मुख्यमंत्री आवास में मनाई गई फूलदेई
उत्तराखंड के पारंपरिक त्योहार फूलदेई रविवार को राज्यभर में मनाया गया। सूबे के नए मुखिया तीरथ सिंह रावत के घर पर भी यह त्योहार धूमधाम से मनाया गया। मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत के देहरादून स्थित आवास पर बच्चे फूलदेई मनाने के लिए पहुंचे। उन्होंने फूलदेई, छम्मा देई, दैणी द्वार, भर भकार… लोक गीत भी गया। फूलदेई का त्योहार का उत्तराखंड में विशेष महत्व रखता है। इस त्योहार में चैत की संक्रांति यानि फूल संक्रांति से शुरू होकर इस पूरे महीने घरों की देहरी पर फूल डाले जाते हैं। फूल डालने वाले बच्चों को फुलारी कहा जाता है। मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत और उनकी पत्नी डॉ. रश्मि त्यागी रावत ने भी बच्चों के साथ फूलदेई मनाया। मुख्यमंत्री ने अपने आवास पर आए बच्चों को उपहार भेंट किये। इस दौरान मुख्यमंत्री ने भगवान से कामना की कि वसंत ऋतु का यह पर्व सबके जीवन में सुख समृद्धि एवं खुशहाली लाए। फूलदेई त्योहार में बच्चे फ्यंली, बुरांश और बासिंग के पीले, लाल, सफेद फूल घर की देहरी पर सजाते हैं। रविवार को राज्यभर में फूलदेई का त्योहार मनाया गया। घर की छोटी-छोटी बच्चियों ने देहरी पूजन किया और संपन्न होने का आशीर्वाद दिया।
मुख्यमंत्री आवास में मनाई गई फूलदेई
मुख्यालय पौड़ी व आसपास के क्षेत्रों में बच्चों ने घरों व मंदिरों की देहरी पर रंग-बिरंगे फूल बिखेर फूलदेई पर्व मनाया। बच्चों को वर्षभर इस त्योहार का इंतजार रहता है।
मुख्यमंत्री आवास में मनाई गई फूलदेई
नई टिहरी फूलदेई संक्रांति पर नगर क्षेत्र और गांव-गांव में बच्चों ने सुबह उठकर खेत-खलिहानों के आसपास उगे हुए रंगीन फूल चुनकर लाए और सूर्योदय से पूर्व उन्हें अपने घर की देहरी में डाला।
उत्तराखंड में शुरू हुआ फूलदेई पर्व, ईश्वर को करते हैं इस तरह प्रसन्न
फुलदेई, छम्मा देईदैणी द्वार, भर भकारये देली स बारंबार नमस्कार…इसका अर्थ है कि ‘यह देहरी फूलों से भरपूर और मंगलकारी हो, सबकी रक्षा करे और घरों में अन्न के भंडार कभी खाली न होने दे’.
फूलदेई त्योहार की आज से शुरुआत हो गई है. देवभूमि में फूलदेई पर्व की खास मान्यता है. जहां कुमाऊं में इसे फूलदेई के रूप में मनाया जाता है. वहीं, गढ़वाल में फूल संक्राति के रूप में मनाया जाता है. ये उत्तराखंड के बाल पर्व के रुप में मनाया जाता है. बच्चों की आस्था और हर्षोल्लास का त्योहार फूलदेई आज देवभूमि में धूमधाम से मनाया जा रहा है. ग्रामीण इलाके आज भी पहाड़ की संस्कृति को संजोए हुए है.
उत्तराखंड में फूलदेई की धूम.देवभूमि में इस त्योहार को लेकर बच्चों में खासा उत्साह रहता है. इसके लिए बच्चे पूरे साल इस दिन का बेसब्री से इंतजार करते हैं. सुबह से ही बच्चे घर-घर जाकर लोगों की देहरी में फूल चढ़ा रहे हैं. उसके बदले में लोग इन नौनिहालों को श्रद्धा से गुड़-चावल प्रसाद के रूप में देते हैं. बच्चों की आस्था से जुड़े इस त्योहार में समाज की उन्नति और संपन्नता के लिए ईष्ट देवता से प्रार्थना की जाती है.
बच्चे त्योहार का उठा रहे लुत्फ.फूलदेई त्योहार का महत्वबसंत ऋतु के स्वागत के लिए इस पर्व को मनाया जाता है. चैत की संक्रांति यानी फूलदेई के दिन से प्रकृति का नजारा ही बदल जाता है. हर ओर फूल खिलने शुरू हो जाते हैं. फूलदेई के लिए बच्चे अपनी टोकरी में खेतों और जंगलों से रंग- बिरंगे फूल चुनकर लाते हैं और हर घर की देहरी पर चुनकर लाए इन फूलों चढ़ाते हैं.इस लोक पर्व के दौरान बच्चे लोकगीत भी गाते हैं. ‘फूलदेई छम्मा देई, दैणी द्वार, भर भकार, ये देली स बारंबार नमस्कार’ यानि भगवान देहरी के इन फूलों से सबकी रक्षा करें और घरों में अन्न के भंडार कभी खाली न होने दें.देवभूमि में फूलदेई पर्व की धूमपौराणिक मान्यताओं के अनुसार, फूलदेई त्योहार मनाने के पीछे एक रोचक कहानी भी है. ऐसा कहा जाता है कि भगवान शिव शीतकाल में अपनी तपस्या में लीन थे. ऋतु परिवर्तन के कई वर्ष बीत गए. लेकिन, शिव की तंद्रा नहीं टूटी. ऐसे में मां पार्वती भी नहीं बल्कि नंदी-शिवगण और संसार के कई वर्ष शिव के तंद्रालीन होने से वे मौसमी हो गए. आखिरकार, शिव की तंद्रा तोड़ने के लिए पार्वती ने युक्ति निकाली और शिव भक्तों को पीतांबरी वस्त्र पहनाकर उन्हें अबोध बच्चों का स्वरूप दे दिया. फिर सभी देव क्यारियों में ऐसे पुष्प चुनकर लाए, जिनकी खुशबू पूरे कैलाश में महक उठी. सबसे पहले शिव के तंद्रालीन मुद्रा को अर्पित किए गए, जिसे फूलदेई कहा गया.शिव की तंद्रा टूटी लेकिन, सामने बच्चों के वेश में शिवगणों को देखकर उनका क्रोध शांत हो गया.गौरतलब है कि पहाड़ की संस्कृति के अनुसार, इस दिन हिंदू नववर्ष की शुरूआत भी मानी जाती है. इस वक्त उत्तराखंड के पहाड़ों में अनेक प्रकार के सुंदर और रंग-बिरंगे फूल खिलते हैं. पूरे पहाड़ का आंचल रंग-बिरंगे फूलों से सजा होता है