ज्ञान:अभी छह कानून हैं हेट स्पीच के खिलाफ
हेट स्पीच पर सख्ती जरूरी?
7 वर्ष पहले
नई दिल्ली 28 अप्रैल. हाल ही में सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से हेट स्पीच (द्वेषपूर्ण भाषण) के मामलों में सख्ती बरतने की बात कही है। मामला बीजेपी नेता सुब्रह्मण्यम स्वामी पर हेट स्पीच से जुड़े कई केस का है।
एक ही बयान, किसी के लिए नफरत फैलाने वाली बात हो जाता है और किसी के लिए बोलने की आजादी। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार इसी उलझन में फंसा रहता है। अपनी बात कहने की आजादी से जुड़े कई कानून हमारे देश में मौजूद हैं और एकता व शांति भंग करने वाले बयानों पर पाबंदी भी है। इन कानूनों का उपयोग और दुरुपयोग दोनों की ही चर्चा होती रहती है। परिभाषा के मुताबिक किसी भी ऐसी बात, हरकत या भाव को, बोलकर, लिखकर या दृश्य माध्यम से प्रसारित करना, जिससे हिंसा भड़कने, धार्मिक भावना आहत होने या किसी समूह या समुदाय के बीच धर्म, नस्ल, जन्मस्थान और भाषा के आधार पर विद्वेष पैदा होने की आशंका हो, वह हेट स्पीच के अंतर्गत आती है। सहिष्णुता और असहिष्णुता के शोर के बीच यह मामला और महत्वपूर्ण हो जाता है क्योंकि समस्या के मूल में यही है कि जनता और नेता किसी की बात को सह पाते हैं या नहीं। क्या किसी की बात सहन न होने पर हिंसा भड़क सकती है, इसलिए बयानों पर कानून के जरिए सजा दिलवाकर लगाम लगाना जरूरी है। या फिर अपनी बात कहने की आजादी सभी को है, इस लिहाज से कानून की बंदिश नहीं होनी चाहिए।
कानून का होता है दुरुपयोग
स्वामी ने अपनी पिटीशन में आरोप लगाया है कि हेट स्पीच से जुड़े कानून अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के मौलिक अधिकारों में दखल देते हैं। इनका इस्तेमाल अपनी राय जाहिर करने वाले लोगों के खिलाफ हो रहा है। उनका यह भी कहना था कि वर्तमान कानूनों की वजह से कोई शख्स लोगों की सोच बदलने के लिए पब्लिक डिबेट नहीं कर सकता क्योंकि इन कानूनों से उसे चुप करा दिया जाएगा। स्वामी की बातों से कई लोग इत्तेफाक रखते हैं। ऐसा कई मौकों पर देखा भी गया है कि हेट स्पीच से जुड़े कानूनों काा बदला निकालने या किसी को नुकसान पहुंचाने के लिए इस्तेमाल होता है। उदाहरण को पिछले वर्ष मुंबई में फेसबुक पर स्वर्गीय बाल ठाकरे से जुड़ी टिप्पणी लिखने वाली लड़कियों को शिवसेना पार्टी की शिकायत के सेक्शन 66(ए) में गिरफ्तार कर लिया गया था। (बाद में यह कानून खत्म कर दिया गया) ऐसे और भी उदाहरण मौजूद हैं इसलिए अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता से जुड़े पुराने कानूनों में संशोधन की मांग होती रहती है।
इसलिए जरूरी कानून
हेट स्पीच से जुड़े कानूनों के सख्त पालन के पक्षधर मानते हैं कि कई मौकों पर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का दुरुपयोग होता है। ऐसे बयान दिए जाते हैं जिनसे आक्रोश बढ़ता है और फिर फ्री स्पीच के नाम पर इनसे कन्नी काट ली जाती है। ऐसे में हेट स्पीच पर सख्ती से लगाम लगाना जरूरी है। कानून अब भी मौजूद हैं, लेकिन कितनी बार उनका सख्ती से पालन हो पाता है? सुब्रह्मण्यम स्वामी के केस में भी सरकार ने अपने हलफनामे में कहा है कि हेट स्पीच से जुड़े कानून हमारे लिए जरूरी हैं। इसका सबसे बड़ा कारण यह है कि अगर लोग बिना किसी डर के ऐसे कार्य करेंगे या बातें फैलाएंगे जिससे जनता के बीच विद्वेष या नफरत बढ़ेगी तो समाज में आपसी टकराव बढ़ने की आशंका है। बात दंगों तक भी पहुंच सकती है, जिससे कानून और शांति को नुकसान पहुंचता है। इसलिए जो कानून हैं उनका सख्ती से पालन हो और अगर जरूरत हो तो नए कानून भी बनाए जाएं। इससे भड़काने वाले बयानों पर लगाम लग सकेगी और कानून व्यवस्था बनी रहेगी।
अभी हैं ये कानून
हमारे देश में अब भी ऐसे कई कानून हैं जिनका संबंध अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और हेट स्पीच से है। इन कानूनों का समय-समय पर विरोध होता रहता है। सुब्रह्मण्यम स्वामी के केस में भी इनमें से कुछ धाराओं का इस्तेमाल हुआ है।
> सेक्शन 295A
क्या है? :
लिखकर, बोलकर, सांकेतिक रूप से या अन्य माध्यम से किसी भी वर्ग के भारतीय नागरिकों की धार्मिक भावनाओं को भड़काने, धर्म को बेइज्जत करने या ऐसा करने की कोशिश करने का अपराध इस धारा के तहत आता है।
सजा : तीन साल तक की जेल या जुर्माना या फिर दोनों।
> सेक्शन 153A
क्या है? :
लिखित, मौखिक, सांकेतिक या अन्य माध्यमों से धर्म, नस्ल, जाति, जन्मस्थान, निवास स्थान, भाषा, संप्रदाय या अन्य किसी आधार पर नफरत की भावना को बढ़ावा देना या शांति व्यवस्था भंग करना इस धारा में आता है।
सजा : तीन साल तक की जेल या जुर्माना या फिर दोनों।
> सेक्शन 499
क्या है? :
यह आईपीसी की मानहानि से जुड़ी धारा है। इसके तहत लिखित, मौखिक, सांकेतिक या अन्य माध्यम से किसी व्यक्ति के बारे में ऐसी बात कहने का अपराध आता है, जिससे उसकी समाजिक प्रतिष्ठा या इज्जत को नुकसान पहुंचता हो।
सजा : दो साल तक की जेल या जुर्माना या फिर दोनों।
> सेक्शन 124A
क्या है? :
आईपीसी की यह धारा राजद्रोह से जुड़ी हुई है। इसमें उस व्यक्ति को सजा दी जा सकती है जो भारत सरकार के विरुद्ध नफरत फैलाने या सरकार के खिलाफ भड़काने की कोशिश करता है या सरकार की अवमानना करता है।
सजा : कुछ वर्षों की जेल से लेकर आजीवन कारावास तक हो सकता है।
> सेक्शन 505
क्या है? :
इस धारा में ऐसी अफवाह या खबरें फैलाना या छापना आता है, जिससे जनता में डर की भावना बढ़ती हो। इसमें किसी धर्म, जाति या भाषा के प्रति भड़काऊ बात करना भी आता है। वर्ष 1860 से चली आ रही यह धारा गैरजमानती है।
सजा : दो साल तक की जेल या भारी जुर्माना या फिर दोनों।
> कंटेंप्ट ऑफ कोर्ट एक्ट
क्या है? :
संविधान के मुताबिक कोर्ट के किसी फैसले की निंदा नहीं की जा सकती। विधि विशेषज्ञ केवल विभिन्न पहलुओं का विश्लेषण कर सकते हैं। फैसले से सहमत न हों तो उच्च अदालत में सिर्फ अपील की जा सकती है।
सजा : कोर्ट की अवमानना करने पर सजा कोर्ट ही तय करता है।