यही है असल रंग:भारत विरोधी मिशेल बैश्लेट को ‘इंदिरा गांधी शांति पुरस्कार’
‘कॉन्ग्रेस का देश विरोधियों से प्यार काहे नहीं खत्म होता है बे’: जिन बैश्लेट ने CAA, मुस्लिमों पर हमले से लेकर J&K तक पर भारत का किया ‘अपमान’, उन्हीं को दिया इंदिरा गाँधी सम्मान
सोनिया गाँधी ने मिशेल बैश्लेट दिया ‘इंदिरा गाँधी पुरस्कार’ (फोटो: X/@NasirHussainINC)
एक कहावत है, ‘चोर चोरी से जाए, हेरा फेरी से न जाए’ यानी बुरी आदतों को कितना ही दबा-छिपा लिया जाए लेकिन वो बार-बार सामने आ ही जाती हैं। कॉन्ग्रेस से जुड़े इंदिरा गाँधी मेमोरियल ट्रस्ट द्वारा चिली की पूर्व राष्ट्रपति और पूर्व संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार प्रमुख मिशेल बैश्लेट को ‘इंदिरा गाँधी शांति, निरस्त्रीकरण और विकास पुरस्कार’ देने का फैसला इसी कहावत को चरितार्थ करता दिखता है।
कॉन्ग्रेस की पूर्व अध्यक्ष सोनिया गाँधी ने बुधवार (19 नवंबर 2025) को उन्हें खुद यह पुरस्कार दिया। इस दौरान सोनिया गाँधी ने मिशेल बैश्लेट के ‘विश्व शांति’ के लिए किए गए कामों को भी याद किया है। सोनिया ने उनकी तारीफ में खूब कशीदे पढ़े और देश को नया रूप देने के लिए उनकी जमकर तारीफ भी की। हालाँकि, असल कहानी इससे आगे है।
बैश्लेट को सोनिया बेशक दुनिया की शांति का मसीहा बना रहे हो लेकिन भारत के लिए उनकी सोच हमेशा से विरोधियों वाली ही रही है। चिली के लिए बेशक उन्होंने कुछ भी किया हो लेकिन भारत की छवि को वैश्विक पटल पर खराब करने में उन्होंने कोई कसर नहीं छोड़ी है। अब पश्चिमी जगत और चीन की तारीफ में कसीदे पढ़ने वाले राहुल गाँधी को हो सकता है कि भारत विरोधी मानसिकता वाली बैश्लेट में ही क्रांति का मसीहा नजर आ रहा हो।
जम्मू-कश्मीर पर विवादित टिप्पणियाँ
बैश्लेट ने जम्मू-कश्मीर के बहाने भारत पर हमला करने का कोई मौका नहीं छोड़ा, उन्होंने खूब कोशिश की कि किसी भी तरह भारत को दुनिया के सामने एक तानाशाह देश के रुप में पेश किया जा सके।
सितंबर 2020 में मानवाधिकार काउंसिल में बोलते हुए उन्होंने भारत विरोधी प्रोपेगेंडा फैलाया। उन्होंने कहा था, “भारत के कब्जे वाले कश्मीर में आम लोगों के खिलाफ मिलिट्री और पुलिस की हिंसा की घटनाएँ जारी हैं, जिसमें पेलेट गन का इस्तेमाल और मिलिटेंसी से जुड़ी घटनाएँ शामिल हैं। पॉलिटिकल बहस और पब्लिक पार्टिसिपेशन की जगह बहुत कम हो गई है।”
जिस भारत अनुच्छेद 370 जैसा बड़ा फैसला लेने के बाद भी जम्मू-कश्मीर में हिंसा नहीं होने दी, उसे लेकर इस तरह अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर बयानबाजी करना जाहिर तौर पर भारत के खिलाफ प्रोपेगेंडा का ही हिस्सा था।
सितंबर 2021 में एक बार फिर बैश्लेट ने भारत विरोधी मानवाधिकार काउंसिल में बोलते हुए भारत विरोधी प्रोपेगेंडा फैलाया। उन्होंने कहा, “जम्मू और कश्मीर में आम सभाओं पर अधिकारियों की रोक और समय-समय पर कम्युनिकेशन ब्लैकआउट जारी हैं जबकि सैकड़ों लोग अपनी बात कहने की आज़ादी के अधिकार का इस्तेमाल करने के लिए हिरासत में हैं। पत्रकारों पर दबाव है और UAPA का गलत इस्तेमाल हो रहा है।” भारत ने तब भी बैश्लेट के इस प्रोपेगेंडा की जमकर आलोचना की थी।
बैश्लेट जैसे कथित मानवाधिकार के चैंपियन असल में जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 के हटाए जाने से तड़प रहे थे और चाहते थे कि किसी भी तरह यह साबित किया जा सके कि भारत अपने राज्यों को नहीं संभाल पा रहा है। हालाँकि, उनकी यह मेहनत रंग नहीं लाई और भारत ने पूरी मजबूती के साथ जम्मू-कश्मीर को मुख्यधारा के साथ पूरी तरह से जोड़ने का काम कर दिखाया।
FCRA पर अलापा अपना राग
भारत ने जब देश में एमनेस्टी इंटरनैशनल पर विदेशी योगदान विनियमन अधिनियम (FCRA) के उल्लंघन को लेकर कार्रवाई की तो बैश्लेट को इसमें भी दिक्कतें नजर आई थीं। उन्होंने FCRA को ही गड़बड़ बता दिया। यानी उन्होंने भारत को ये नसीहत देने की कोशिश की कि उन्हें किस तरह अपने नियम बनाने चाहिए। भारत के आंतरिक मामलों में मानवाधिकार प्रमुख का दखल देना क्या खुद में एक बड़ा सवाल नहीं है?
भारत ने बैश्लेट की बयानबाजी को खारिज कर दिया और बताया कि भारत एक लोकतांत्रिक व्यवस्था है। भारत ने जोरदार विरोध दर्ज कराते हुए कहा, “कानून बनाने का अधिकार हमारा अपना है और मानवाधिकारों के नाम पर कानून के उल्लंघन को माफ नहीं किया जा सकता।”
CAA के खिलाफ कोर्ट में दी थी याचिका
भारत ने पड़ोसी देशों में प्रताड़ित अल्पसंख्यकों को भारत की नागरिकता देने के लिए नागरिकता संशोधन विधेयक (CAA) लाई लेकिन इसके खिलाफ देशभर में खूब प्रदर्शन हुए। लोगों को झूठ फैलाकर खूब बरगलाया गया कि भारत में मुस्लिमों की नागिरकता इससे छिन जाएगी। लोगों को बरगाने वालों में बैश्लेट जैसे लोग शामिल थे।
मार्च 2020 में बैश्लेट ने अपने अधिकारियों के जरिए CAA के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका तक डलवा दी थी। यह बैश्लेट जैसे कथित मानवाधिकार कार्यकर्ताओं की देश के आंतरिक मामलों में दखल देने की कोशिश ही थी। भारत ने तब भी बैश्लेट पर कड़ा पलटवार किया था। भारत ने कहा था, “CAA भारत का आंतरिक मामला है और भारतीय संसद के कानून बनाने के संप्रभु अधिकार से संबंधित है। हमारा विश्वास है कि भारत की संप्रभुता से जुड़े मुद्दों पर किसी भी विदेशी पक्ष का कोई अधिकार नहीं है।”
किसान आंदोलन के दौरान भी आग में डाला घी
बैश्लेट ने तीन कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों के प्रदर्शन के दौरान भी आग में घी डालने का काम किया था। आंदोलन को भड़काने की कोशिश के दौरान जब कथित एक्टिविस्ट के खिलाफ कार्रवाई हुई तो बैश्लेट ने भी अपने प्रोपेगेंडा शुरू कर दिया था। बैश्लेट ने भारत की कार्रवाई को मानवाधिकार के सिद्धांतों के खिलाफ बताया था।
किसान आंदोलन की आड़ में जब 26 जनवरी पर हिंसा की कोशिश की जा रही थी, किसान आंदोलन की आड़ में कुछ दंगाई देश को हिंसा की आग में झोंकना चाहते थे और भारत ने उस पर कार्रवाई की तो बैश्लेट जैसे लोगों को दर्द शुरू हो गया। भारत ने तब भी उनकी कड़ी आलोचना की थी।
मुस्लिमों पर हमले को लेकर फैलाया अंतर्राष्ट्रीय प्रोपेगेंडा
दुनिया का एक वर्ग में मुस्लिमों का हितेषी बनने और उन्हें भारत में पीड़ित दिखाने की चाह में मुस्लिमों पर कथित आक्रमण का एक झूठा प्रोपेगेंडा फैलाता है। ना केवल मुस्लिमों बल्कि बैश्लेट ने तो एक कदम आगे जाकर दलित और आदिवासियों पर हमलों का भी आरोप भारत में लगाया था।
बैश्लेट के ऐसे इन सबके अलावा भी कई उदाहरण आपको मिल जाएँगे। साफ है कि बैश्लेट का विरोध सराकर या संस्था से आगे बढ़कर भारत को निशाने पर लेने के लिए था। चूँकि यही सब मुद्दे या इनसे जुड़े मुद्दे ही कॉन्ग्रेस को भी भाते हैं तो उन्होंने बैश्लेट में अपना नया दोस्त नजर आया होगा।
कॉन्ग्रेस का ‘देश विरोधियों’ से प्यार क्यों नही होता खत्म?
भारत विरोधी मानसिकता रखने वाली मिशेल बैश्लेट के साथ कॉन्ग्रेस का इस तरह खुलकर खड़ा होना केवल एक संयोग नहीं बल्कि एक सुनियोजित राजनीतिक प्रयोग जैसा लगता है। कॉन्ग्रेस के लिए बैश्लेट कोई मानवाधिकारों की मसीहा नहीं हैं बल्कि वह एक ऐसा अंतरराष्ट्रीय चेहरा हैं जिनकी भारत-विरोधी टिप्पणियाँ मोदी सरकार को घेरने के लिए बार-बार इस्तेमाल की जाती रही हैं।
बैश्लेट को मंच देने का अर्थ यह भी है कि कॉन्ग्रेस अपनी राजनीतिक लड़ाई के लिए उन अंतरराष्ट्रीय आवाजों पर भरोसा करती है जिन्हें भारत विरोधी रुख के लिए जाना जाता है। कॉन्ग्रेस जिस बैश्लेट को शांति और निरस्त्रीकरण का सम्मान दे रही है, वही बैश्लेट भारत के आंतरिक और संवेदनशील मुद्दों को लेकर हमेशा एकतरफा टिप्पणियाँ करती रही हैं।
दिलचस्प यह है कि उनकी हर टिप्पणी ठीक उसी वक्त आई जब कॉन्ग्रेस और उसके सहयोगी दल मोदी सरकार पर हमला कर रहे थे। चाहे अनुच्छेद 370 हटाने की बात हो, CAA का विरोध हो या किसान आंदोलन की आग को भड़काने का दौर, मौके पर बैश्लेट ने वही कहा जो भारत के विपक्षी दल अंतरराष्ट्रीय मंचों से सुनना चाहते थे। जब कॉन्ग्रेस उन्हें सम्मानित करती है, तो उपलब्धियों के लिए नहीं बल्कि मोदी सरकार की नीतियों और भारत पर हमला करने वालों को पुरस्कार देने जैसा लगता है।
यह वही राजनीति है जिसमें देश की छवि से बढ़कर अपना ‘नैरेटिव’ दिखाई देता है। असल बात यह है कि कॉन्ग्रेस को बैश्लेट में वह ‘आवाज’ दिखती है जो उनकी विचारधारा के अनुरूप भारत को कमजोर, विभाजित और हमेशा लड़ता हुआ दिखाने की कोशिश करती है।
बैश्लेट की टिप्पणी, चाहे वे कितनी भी झूठी या आधी-अधूरी क्यों न हों, वो कॉन्ग्रेस के नैरेटिव को अंतरराष्ट्रीय वैधता प्रदान करती हैं। इसलिए उनका प्यार बैश्लेट जैसे भारत विरोधियों से कभी कम नहीं होता है।
कांग्रेस ने भारत की कट्टर आलोचक को सम्मानित किया: सोनिया गांधी ने सोरोस-प्रायोजित प्रोग्रेसिव एलायंस की सदस्य, वामपंथी और भारत-विरोधी संयुक्त राष्ट्र अधिकारी मिशेल बैश्लेट को इंदिरा गांधी शांति पुरस्कार प्रदान कियाएक ऐसे कदम ने भयंकर राजनीतिक और जन-आक्रोश को जन्म दिया है, जिसमें कांग्रेस पार्टी ने इंदिरा गांधी मेमोरियल ट्रस्ट के माध्यम से अपना प्रतिष्ठित इंदिरा गांधी शांति, निरस्त्रीकरण एवं विकास पुरस्कार चिली की पूर्व राष्ट्रपति मिशेल बैश्लेट को प्रदान किया है। बैश्लेट अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी कट्टर वामपंथी विचारधारा और कश्मीर में अलगाववादी कथानक के प्रति सहानुभूति दिखाने तथा भारत-विरोधी बयानबाजी के लिए जानी जाती हैं।यह पुरस्कार 19 नवंबर 2025 (बुधवार) को कांग्रेस संसदीय दल की अध्यक्ष सोनिया गांधी ने प्रदान किया, जो खुद इस ट्रस्ट की अध्यक्ष भी हैं। समारोह में कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे सहित शीर्ष कांग्रेस नेतृत्व उपस्थित था।कांग्रेस के लिए “परफेक्ट” चयन: भारतीय राज्य के खिलाफ वैचारिक सहयोगीराजनीतिक पर्यवेक्षकों का मानना है कि मिशेल बैश्लेट का चयन कोई संयोग नहीं, बल्कि कांग्रेस का एक सोचा-समझा वैचारिक संदेश है। बैश्लेट का प्रोफाइल पूरी तरह उस राजनीतिक कथानक से मेल खाता है जो राष्ट्रीय सुरक्षा और संप्रभुता के मामलों में भी वर्तमान भारतीय सरकार के खिलाफ खड़ा होता रहा है।1. कट्टर वामपंथी राजनीतिज्ञमिशेल बैश्लेट चिली की सोशलिस्ट पार्टी की आजीवन सदस्य हैं, जिसका इतिहास मार्क्सवादी विचारधारा और क्रांतिकारी परिवर्तन के घोषित लक्ष्य से जुड़ा है। उनका पूरा राजनीतिक करियर इसी कट्टर वामपंथी ढांचे में रहा है। ऐसे विचारधारा वाले व्यक्ति को सम्मानित करने से कांग्रेस की अपनी राजनीतिक दिशा और अंतरराष्ट्रीय सहयोगियों के चयन पर सवाल उठ रहे हैं।2. भारत-विरोधी और कश्मीर में अलगाववादी समर्थकसंयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार उच्चायुक्त रहते हुए बैश्लेट ने कूटनीतिक भाषा से परे जाकर भारत के संप्रभु फैसलों की सबसे कट्टर अंतरराष्ट्रीय आलोचना की। उनकी प्रमुख हरकतें:
- कश्मीर में हस्तक्षेप: अनुच्छेद 370 हटने के बाद 2019 में उन्होंने संयुक्त राष्ट्र मंच से कश्मीर की स्थिति पर “गहरी चिंता” जताई और अलगाववादी लॉबी के मुहावरे दोहराते हुए कहा कि “कश्मीर के लोगों को किसी भी निर्णय प्रक्रिया में परामर्श और शामिल किया जाना चाहिए”।
- झूठे आरोप: उनके कार्यकाल में OHCHR ने कश्मीर पर जो रिपोर्ट जारी की, उसे भारत सरकार ने “झूठी, प्रेरित और स्पष्ट पक्षपाती” बताकर खारिज कर दिया था।
- घरेलू नीतियों पर हमले: NRC, UAPA और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर बार-बार भारत को निशाना बनाया।
3. तथाकथित इस्लाम-परस्तउनकी आलोचना लगातार भारत को एकतरफा तरीके से मुस्लिम समुदाय पर अत्याचार करने वाला दिखाने की रही। कश्मीर और NRC के संदर्भ में “मुस्लिम अल्पसंख्यकों की चिंता” को बार-बार उछाला गया, जबकि सीमा-पार आतंकवाद और सुरक्षा चुनौतियों को लगभग नजरअंदाज किया गया। यही वजह है कि कई लोग उनकी स्थिति को पाकिस्तान-प्रायोजित तत्वों के प्रचार से मेल खाता हुआ मानते हैं।कांग्रेस और बैश्लेट: एक ही कथा?पुरस्कार वितरण भाषण में सोनिया गांधी ने बैश्लेट की चिली में लैंगिक समानता और सामाजिक सुधारों की प्रशंसा की, लेकिन उनके विवादास्पद UN कार्यकाल और भारत सरकार से सीधे टकराव का कोई जिक्र नहीं किया। आलोचकों का कहना है कि यह चुप्पी ही बैश्लेट के भारत-विरोधी रुख का अप्रत्यक्ष समर्थन है।भारत के सबसे प्रसिद्ध शांति पुरस्कार को एक ऐसे विदेशी अधिकारी को देकर, जिसने लगातार वैश्विक मंच पर भारत की स्थिति को कमजोर किया, कांग्रेस ने स्पष्ट संदेश दे दिया है। यह कदम अंतरराष्ट्रीय वाम-उदारवादी स्वीकृति और घरेलू विपक्षी राजनीति को राष्ट्रीय एकजुटता से ऊपर रखने का राजनीतिक दांव माना जा रहा है।कांग्रेस और चिली की सोशलिस्ट पार्टी दोनों सोरोस-प्रायोजित समूह की सदस्यभारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस प्रोग्रेसिव एलायंस की प्रमुख सदस्य है। मिशेल बैश्लेट की सोशलिस्ट पार्टी ऑफ चिली भी इसी प्रोग्रेसिव एलायंस की सदस्य है। राहुल गांधी ने अक्टूबर 2025 की शुरुआत में दक्षिण अमेरिका दौरे पर चिली का भी दौरा किया था।जॉर्ज सोरोस द्वारा वित्तपोषित यह प्रोग्रेसिव एलायंस वैश्विक वाम-उदारवादी अभिजात वर्ग का एक कार्टेल है, जो अपनी वैचारिक असफलताओं को “प्रगति” के नाम पर पुनः पैकेज करता है। मानवाधिकार और सहयोग की चमकदार बातों के पीछे यह घरेलू राजनीति में हस्तक्षेप करता है और राष्ट्रीय संप्रभुता को कमजोर करने वाली समन्वित कथाएँ चलाता है। यह कोई जन-आधारित आंदोलन नहीं, बल्कि अरबपति-प्रायोजित सक्रियता पर निर्भर एक क्लब है।(स्रोत: The Commune)
मिशेल बैश्लेट का कश्मीर विवाद: विस्तृत विश्लेषणमिशेल बैश्लेट (Michelle Bachelet), जो 2018 से 2022 तक संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार उच्चायुक्त (UN High Commissioner for Human Rights) रहीं, कश्मीर मुद्दे पर अपनी टिप्पणियों और रिपोर्टों के कारण भारत के साथ एक प्रमुख विवाद का केंद्र बनीं। भारत सरकार ने उनकी इन टिप्पणियों को “भारत-विरोधी”, “पक्षपाती” और “आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप” करार दिया। बैश्लेट ने अनुच्छेद 370 के निरस्तीकरण (5 अगस्त 2019) के बाद कश्मीर में कथित मानवाधिकार उल्लंघनों पर “गहरी चिंता” जताई, इंटरनेट ब्लैकआउट, राजनीतिक नेताओं की गिरफ्तारी और सैन्य कार्रवाइयों की आलोचना की। यह विवाद अंतरराष्ट्रीय राजनीति, पाकिस्तान की भूमिका और भारत की संप्रभुता से जुड़ा है। नीचे विस्तार से समझाया गया है:1. विवाद का पृष्ठभूमि और बैश्लेट का प्रवेश (2018)
- बैश्लेट ने सितंबर 2018 में UNHRC सत्र में अपना पहला भाषण दिया, जहाँ उन्होंने अपने पूर्ववर्ती ज़ीड रा’अद अल-हुसैन की जून 2018 की कश्मीर रिपोर्ट का समर्थन किया। रिपोर्ट (जुलाई 2016 से अप्रैल 2018 तक) ने भारतीय सुरक्षा बलों पर “अत्यधिक बल प्रयोग” और “नागरिक हताहतों” के आरोप लगाए। बैश्लेट ने कहा: “हमारी हालिया रिपोर्ट पर कोई सार्थक सुधार या गंभीर चर्चा नहीं हुई।”
- भारत ने तुरंत प्रतिक्रिया दी: “हम इस संदर्भ पर खेद व्यक्त करते हैं। कश्मीर भारत का आंतरिक मामला है, और हमारी राय काउंसिल में स्पष्ट है।” भारत ने आतंकवाद को मानवाधिकारों का सबसे बड़ा उल्लंघन बताया।
- पाकिस्तान ने बैश्लेट की “चिंता” का समर्थन किया, जिससे विवाद अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उभरा।
2. अनुच्छेद 370 निरस्तीकरण के बाद प्रमुख विवाद (2019-2020)
- सितंबर 2019 का UNHRC भाषण: अनुच्छेद 370 के निरस्तीकरण के एक महीने बाद (5 अगस्त 2019), बैश्लेट ने 42वें सत्र में कहा: “मैं भारत सरकार के हालिया कदमों से कश्मीरियों के मानवाधिकारों पर प्रभाव को लेकर गहरी चिंता में हूँ, जिसमें इंटरनेट संचार पर प्रतिबंध, शांतिपूर्ण सभा पर रोक और स्थानीय राजनीतिक नेताओं व कार्यकर्ताओं की गिरफ्तारी शामिल है।” उन्होंने कर्फ्यू हटाने, बुनियादी सेवाओं तक पहुँच सुनिश्चित करने और नियंत्रण रेखा (LoC) दोनों तरफ पहुँच की मांग की। साथ ही, “कश्मीर के लोगों को उनके भविष्य प्रभावित करने वाले किसी भी निर्णय में परामर्श और शामिल किया जाना चाहिए।”
- भारत की प्रतिक्रिया: भारत ने इसे “आंतरिक मामला” बताया और पाकिस्तान की “अनिरोधी बयानबाजी” की आलोचना की। विदेश मंत्रालय ने कहा कि बैश्लेट की टिप्पणियाँ “अनुपयुक्त” हैं और जमीनी हकीकत को नजरअंदाज करती है।
- OHCHR रिपोर्ट (2020): बैश्लेट के नेतृत्व में UNHRC ने मई 2020 में कश्मीर पर रिपोर्ट जारी की, जिसमें 2019 के कदमों को “अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार कानून का उल्लंघन” बताया गया। रिपोर्ट में पेलेट गन का उपयोग, गिरफ्तारियाँ (जैसे उमर अब्दुल्ला, महबूबा मुफ्ती) और संचार ब्लैकआउट की आलोचना की गई। भारत ने रिपोर्ट को “झूठी, प्रेरित और पक्षपाती” कहकर खारिज किया।
- सितंबर 2020 का अपडेट: बैश्लेट ने कहा कि कश्मीर में “सैन्य और पुलिस हिंसा जारी है, जिसमें पेलेट गन का उपयोग और उग्रवाद से जुड़ी घटनाएँ शामिल हैं।” उन्होंने राजनीतिक नेताओं की रिहाई और संचार बहाली की मांग की।
3. अन्य संबंधित विवाद और आलोचनाएँ
- मुस्लिम अल्पसंख्यकों पर फोकस: बैश्लेट ने कश्मीर को मुस्लिम समुदायों पर “हमले” के रूप में चित्रित किया, NRC (नागरिकता रजिस्टर) और CAA (नागरिकता संशोधन अधिनियम) पर भी सवाल उठाए। भारत ने इसे “चुनिंदा आक्रोश” और पाकिस्तान-प्रायोजित प्रचार बताया।
- पाकिस्तान और OIC का समर्थन: पाकिस्तान के विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी ने बैश्लेट से बात की और कश्मीर को “अंतरराष्ट्रीय मुद्दा” बताया। तुर्की और OIC ने भी बैश्लेट की चिंताओं का समर्थन किया, जिसे भारत ने “घोर हस्तक्षेप” कहा।
- अंतरराष्ट्रीय प्रतिक्रियाएँ: अमेरिकी कांग्रेस रिपोर्ट (CRS) ने बैश्लेट की चिंताओं का उल्लेख किया, लेकिन UNSC में कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई (केवल चीन ने समर्थन दिया)।
4. विवाद का वर्तमान संदर्भ (2025)
- हाल ही में (19 नवंबर 2025) कांग्रेस द्वारा बैश्लेट को इंदिरा गांधी शांति पुरस्कार देने से विवाद ने नई जान फूँकी। BJP और सोशल मीडिया पर इसे “भारत-विरोधी” को सम्मानित करने का आरोप लगाया गया। उदाहरण: “बैश्लेट ने कश्मीर पर पाकिस्तान का समर्थन किया और भारत को निशाना बनाया। क्या सोरोस ही कांग्रेस का असली अध्यक्ष है?”
- आलोचक कहते हैं कि यह पुरस्कार बैश्लेट की “अलगाववादी सहानुभूति” को वैधता देता है।
5. दोनों पक्षों की दृष्टि: संतुलित नजरिया
- बैश्लेट/UNHRC पक्ष: कश्मीर में मानवाधिकारों की रक्षा अंतरराष्ट्रीय दायित्व है। रिपोर्टें “नागरिकों की चिंताओं” पर आधारित हैं, न कि राजनीतिक।
- भारत पक्ष: कश्मीर आंतरिक मामला है; बैश्लेट की टिप्पणियाँ आतंकवाद को नजरअंदाज करती हैं और पाकिस्तान की साजिश का हिस्सा हैं। भारत ने UNHRC को “पक्षपाती” कहा।
- तटस्थ विश्लेषण: विवाद भारत-पाक तनाव को दर्शाता है। बैश्लेट की वामपंथी पृष्ठभूमि (चिली की सोशलिस्ट पार्टी) ने आलोचनाओं को बढ़ाया, लेकिन UNHRC की रिपोर्टें अक्सर विवादास्पद रही हैं।
प्रोग्रेसिव एलायंस की भूमिका: विस्तृत विश्लेषणप्रोग्रेसिव एलायंस (Progressive Alliance – PA) एक अंतरराष्ट्रीय राजनीतिक संगठन है, जो सामाजिक लोकतांत्रिक (सोशल डेमोक्रेटिक), प्रगतिशील और समाजवादी दलों का वैश्विक नेटवर्क है। यह 22 मई 2013 को जर्मनी के लाइपजिग में स्थापित हुआ था, और इसका मुख्यालय बर्लिन में है। PA का उद्देश्य लोकतांत्रिक मूल्यों, सामाजिक न्याय, मानवाधिकारों और पर्यावरणीय स्थिरता को बढ़ावा देना है। यह सोशलिस्ट इंटरनेशनल (SI) का एक वैकल्पिक मंच है, क्योंकि कई सदस्य दलों ने SI की नीतियों (जैसे गैर-लोकतांत्रिक दलों को शामिल करने) की आलोचना की थी।
नीचे PA की भूमिका को उसके इतिहास, उद्देश्यों, गतिविधियों, सदस्य दलों, भारतीय संदर्भ और विवादों के आधार पर विस्तार से समझाया गया है।1. इतिहास और स्थापना
- उद्भव: PA की नींव 2012 में पड़ी, जब जर्मनी की सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी (SPD) के चेयरमैन सिगमार गैब्रियल ने SI की सदस्यता शुल्क (वार्षिक £100,000) बंद करने का फैसला किया। उन्होंने SI को “गैर-लोकतांत्रिक आंदोलनों” को शामिल करने के लिए आलोचना की।
- प्रथम सम्मेलन: दिसंबर 2012 में रोम (इटली) में 42 दलों के प्रतिनिधियों ने भाग लिया, जिसमें इटली की डेमोक्रेटिक पार्टी, फ्रांस की सोशलिस्ट पार्टी और अर्जेंटीना की सोशलिस्ट पार्टी शामिल थीं। फरवरी 2013 में पुर्तगाल के कास्काइस में 50 दलों ने PA की स्थापना की घोषणा की।
- विकास: 2013 से PA ने क्षेत्रीय संगठनों (जैसे अफ्रीका, एशिया, लैटिन अमेरिका) की स्थापना की। 2025 तक, यह 130 से अधिक दलों का नेटवर्क बन चुका है, जो वैश्विक चुनौतियों (जैसे जलवायु परिवर्तन, असमानता) पर समन्वय करता है।
2. मुख्य उद्देश्य और भूमिकाPA की भूमिका वैश्विक प्रगतिशील आंदोलन को मजबूत करना है। यह “लोकतांत्रिक, सामाजिक-लोकतांत्रिक और समाजवादी आंदोलन” का वैश्विक नेटवर्क बनने का दावा करता है।
प्रमुख भूमिकाएँ:
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भूमिका का क्षेत्र
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विवरण
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उदाहरण
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सामाजिक न्याय और समानता
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असमानता कम करना, लिंग समानता, बेरोजगारी उन्मूलन और सामाजिक कल्याण को बढ़ावा।
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जेंडर इक्वालिटी एक्शन प्लान; महिलाओं के लिए वैश्विक सम्मेलन (2025 में ल्यूसर्न, स्विट्जरलैंड)। grokipedia.com
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पर्यावरण और स्थिरता
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जलवायु परिवर्तन पर नीतियाँ, वित्तीय बाजारों का नियमन।
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वैश्विक अभियान: “क्लाइमेट चेंज कंट्रोल”। progressive-alliance.info
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लोकतंत्र और मानवाधिकार
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तानाशाही, दक्षिणपंथी पॉपुलिज्म और फेक न्यूज के खिलाफ लड़ाई।
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मीडिया स्वतंत्रता अभियान; मानवाधिकारों को “वैश्विक सार्वजनिक संपत्ति” मानना। progressive-alliance.info
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अंतरराष्ट्रीय एकजुटता
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क्षेत्रीय आदान-प्रदान, चुनावी रणनीतियाँ और नीति विकास।
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वार्षिक सम्मेलन: युवा संलग्नता, बहुपक्षीयता (2025 में अंतरराष्ट्रीय हाइलाइट्स)। progressive-alliance.info
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PA का दर्शन: “शांति, न्याय और स्वतंत्रता” पर आधारित। यह बाजार अर्थव्यवस्था को राज्य नियमन से संतुलित करने का समर्थन करता है, न कि पूंजीवाद का पूर्ण उन्मूलन।
3. सदस्य दल और वैश्विक नेटवर्क
- PA में 130+ दल शामिल हैं, जिनमें यूरोपीय संसद की प्रोग्रेसिव एलायंस ऑफ सोशलिस्ट्स एंड डेमोक्रेट्स (S&D) ग्रुप भी है (136 सीटें, 2024 चुनावों में)।
- प्रमुख सदस्य: जर्मनी की SPD, इटली की डेमोक्रेटिक पार्टी, स्पेन की PSOE, ऑस्ट्रेलिया की लेबर पार्टी, अर्जेंटीना की सोशलिस्ट पार्टी।
- भारतीय संदर्भ: भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (INC) PA का प्रमुख सदस्य है। चिली की सोशलिस्ट पार्टी (SPC) भी सदस्य है, जिससे मिशेल बैश्लेट का कनेक्शन जुड़ता है। राहुल गांधी ने अक्टूबर 2025 में दक्षिण अमेरिका दौरे पर चिली का दौरा किया, जो PA के माध्यम से सहयोग को मजबूत करता है।
PA भारतीय राजनीति में INC को वैश्विक प्रगतिशील मंच प्रदान करता है, लेकिन प्रत्यक्ष हस्तक्षेप सीमित है। INC की PA सदस्यता 2013 से है, जो सोशल डेमोक्रेटिक मूल्यों (सामाजिक समावेश, धर्मनिरपेक्षता) से मेल खाती है
4. विवाद और आलोचनाएँ
- सोरोस फंडिंग का आरोप: PA को जॉर्ज सोरोस के ओपन सोसाइटी फाउंडेशन (OSF) से वित्तपोषित “वैश्विक कार्टेल” कहा जाता है, जो वाम-उदारवादी एजेंडा (मानवाधिकार, सहयोग) के पीछे घरेलू राजनीति में हस्तक्षेप करता है। सोरोस ने OSF के माध्यम से $32 बिलियन+ दान दिए, जिसमें प्रगतिशील संगठनों (जैसे सेंटर फॉर अमेरिकन प्रोग्रेस) को फंडिंग शामिल है। हालांकि, PA की आधिकारिक वेबसाइट पर सोरोस फंडिंग का कोई उल्लेख नहीं; आलोचक इसे “अरबपति-प्रायोजित सक्रियता” मानते हैं, जो राष्ट्रीय संप्रभुता को कमजोर करती है।
- राजनीतिक पूर्वाग्रह: PA को “वामपंथी अभिजात वर्ग” का क्लब कहा जाता है, जो “प्रगति” के नाम पर वैचारिक असफलताओं को बढ़ावा देता है। भारतीय संदर्भ में, INC-PA कनेक्शन को BJP द्वारा “भारत-विरोधी” एजेंडा (जैसे कश्मीर पर बैश्लेट की आलोचना) से जोड़ा जाता है।
- अन्य: PA को SI से अलग होने पर “विभाजनकारी” कहा गया, लेकिन यह लोकतांत्रिक मानदंडों (जैसे चुनावी लोकतंत्र, मानवाधिकार) पर जोर देकर खुद को अलग करता है।
सोरोस की फंडिंग मुख्य रूप से लोकतंत्र, मानवाधिकार, सामाजिक न्याय और प्रगतिशील (प्रोग्रेसिव) आंदोलनों पर केंद्रित है। वे “ओपन सोसाइटी” के सिद्धांत पर काम करते हैं, जो कार्ल पॉपर के दर्शन से प्रेरित है। हालांकि, उनकी फंडिंग को अक्सर विवादास्पद माना जाता है, क्योंकि इसे “राजनीतिक हस्तक्षेप” या “राष्ट्रीय संप्रभुता के खिलाफ” कहा जाता है।
नीचे सोरोस की फंडिंग के प्रमुख पहलुओं को विस्तार से समझाया गया है, जिसमें प्रोग्रेसिव एलायंस (PA) का कनेक्शन, अमेरिकी और वैश्विक प्रभाव, तथा भारतीय संदर्भ शामिल हैं। जानकारी सार्वजनिक दस्तावेजों, टैक्स फाइलिंग्स और रिपोर्ट्स पर आधारित है।1. ओपन सोसाइटी फाउंडेशन्स (OSF): फंडिंग का मुख्य माध्यम
- OSF दुनिया की सबसे बड़ी निजी परोपकारी संस्था है, जो 120+ देशों में काम करती है। 2021 में OSF ने 140 मिलियन डॉलर राजनीतिक कारणों को और 60 मिलियन डॉलर समान विचारधारा वाली चैरिटीज को दान किए।
- कुल दान: 1984 से अब तक 32 बिलियन+ डॉलर। फोकस क्षेत्र: मानवाधिकार, लोकतंत्र, शिक्षा, स्वास्थ्य और आपराधिक न्याय सुधार।
- प्रोग्रेसिव फंडिंग: OSF प्रगतिशील संगठनों को फंड करती है, जैसे सेंटर फॉर अमेरिकन प्रोग्रेस (CAP) को प्रारंभिक दान।
2016 चुनाव चक्र में सोरोस ने रेडी फॉर हिलेरी (सुपर PAC) को 50,000 डॉलर और हिलेरी विक्टरी फंड को 343,400 डॉलर दिए
2. प्रोग्रेसिव एलायंस (PA) से कनेक्शन
- PA एक अंतरराष्ट्रीय नेटवर्क है (130+ प्रगतिशील दलों का), जिसकी स्थापना 2013 में हुई। सोरोस PA के संस्थापक सदस्य नहीं हैं, लेकिन उनकी OSF डेमोक्रेसी एलायंस (DA) को फंड करती है, जो PA से जुड़ी प्रगतिशील फंडिंग को निर्देशित करती है।
- DA का रोल: 2005 में सोरोस ने DA की सह-स्थापना की, जो प्रगतिशील संगठनों को 1 बिलियन+ डॉलर वितरित कर चुकी है। DA में सोरोस के साथ टॉम स्टेयर जैसे दानदाता हैं।
- फंडिंग उदाहरण: 2022 मिडटर्म्स में सोरोस ने डेमोक्रेसी PAC (सुपर PAC) को 125 मिलियन डॉलर दिए, जो वर्किंग फैमिलीज पार्टी जैसे प्रगतिशील समूहों को समर्थन देता है।
- X पर चर्चा: हालिया पोस्ट्स में PA को “सोरोस-नियंत्रित ग्लोबल लेफ्ट इकोसिस्टम” कहा गया, लेकिन कोई प्रत्यक्ष प्रमाण नहीं मिला। एक फैक्ट-चेक पोस्ट ने इसे “हाफ-ट्रुथ” बताया, क्योंकि PA खुली संगठन है।
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संगठन
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सोरोस/OSF फंडिंग (उदाहरण)
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उद्देश्य
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डेमोक्रेसी एलायंस (DA)
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500 मिलियन+ (2005-2014)
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प्रगतिशील एनजीओ को कोऑर्डिनेट
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सिक्सटीन थर्टी फंड
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23.9 मिलियन (2021)
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डेमोक्रेटिक पार्टी को सपोर्ट
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इंडिविजिबल
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7.6 मिलियन (2017-2023)
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एंटी-ट्रंप प्रोटेस्ट्स
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सेंटर फॉर अमेरिकन प्रोग्रेस
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प्रारंभिक दान + निरंतर
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नीति थिंक टैंक
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3. अमेरिकी राजनीति में फंडिंग
- सोरोस प्रगतिशील अभियानों के प्रमुख फंडर हैं: 2004 में जॉर्ज डब्ल्यू. बुश के खिलाफ 27 मिलियन डॉलर।
- आपराधिक न्याय सुधार: 2016 में फ्लोरिडा, इलिनॉइस आदि में डिस्ट्रिक्ट अटॉर्नी चुनावों के लिए “सेफ्टी एंड जस्टिस” PAC के माध्यम से लाखों डॉलर।
फिलाडेल्फिया में 1.7 मिलियन डॉलर।
- 2022 मिडटर्म्स: 170 मिलियन डॉलर डेमोक्रेटिक उम्मीदवारों को।
2021 में 140 मिलियन डॉलर राजनीतिक कारणों को।
- अन्य: ड्रग पॉलिसी एलायंस को 4 मिलियन डॉलर सालाना; ACLU और मैरिजुआना पॉलिसी प्रोजेक्ट को समर्थन।
4. वैश्विक फंडिंग और विवाद
- यूरोप और पूर्व सोवियत ब्लॉक: साम्यवाद के बाद सिविल सोसाइटी प्रोजेक्ट्स को फंड। हंगरी ने OSF पर प्रतिबंध लगाया।
- डार्क मनी: फंड्स अक्सर एक एनजीओ से दूसरे में बहते हैं, जिससे ट्रैकिंग मुश्किल।
X पर इसे “स्टीलबैकिंग” कहा गया।
- अन्य विवाद: प्रोग्रेसिव प्रॉसीक्यूटर्स को फंड (जैसे अल्विन ब्रैग, चेसी बौडिन)।
2025 में स्विस बिलियनेयर हैंसजॉर्ग विस के साथ अप्रत्यक्ष लिंक PA के माध्यम से।
@Croquignol2A
5. भारतीय संदर्भ: कांग्रेस और BJP का विवाद
- आरोप: BJP ने सोरोस को “भारत-विरोधी” कहा, दावा किया कि OSF कांग्रेस से जुड़े संगठनों (जैसे राजीव गांधी फाउंडेशन) को फंड करती है।
सोनिया गांधी को FDL-AP (सोरोस-फंडेड) से जोड़ा। राहुल गांधी पर “सोरोस के एजेंडे” को आगे बढ़ाने का आरोप।
- विशेष: 2021 में भारत में 4 लाख डॉलर+ खर्च। OCCRP (सोरोस-फंडेड) को अदाणी रिपोर्ट के लिए फंडिंग।
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