ताजमहल पर तीन किताबें, महल-हवेली और मंदिर के दावे, कोई नहीं मानता मकबरा

Taj Mahal… दो किताबें, दो धारणाएं और एक बड़ा विवाद!

ताजमहल के इतिहास को लेकर एक बार फिर जंग छिड़ गई है. सबसे बड़ा सवाल तो ये उठ रहा है कि आखिर ये ताजमहल है या फिर तेजोमहालय? इतिहास के पन्ने खंगालने पर दो किताबें मिलती हैं जिनमें इस विवाद पर विस्तार से बात हुई है.

ताजमहल का इतिहास

हाइलाइट

2017 में केंद्र ने तेजो महालय दावे को बताया था मनगढ़ंत

ASI ने तब ताजमहल को मकबरा बताया, मंदिर नहीं

नई दिल्ली 12 मई।( सुुुुुधांशु माहेश्वरी)  दुनिया का सातवां अजूबा…प्यार की निशानी और अद्भुत कलाकारी…लोगों के मन में ताजमहल की यही अमिट छाप बैठी हुई है. 1632 में मुगल शासक शाहजहां ने इसे बनवाना शुरू किया था. बचपन से किताबों में पढ़ा है कि जब शाहजहां की बेगम मुमताज का निधन हो गया, तब उन्हीं की याद में ये ताजमहल बना.

लेकिन अब जो बात किताबों में लिखी है, उससे सभी को पढ़ाये गये को सीधी चुनौती दी जा रही है. कहा जा रहा है कि ताजमहल की जगह हजारों साल पहले एक शिव मंदिर था.  दावा है कि ताजमहल का असल नाम तो ‘तेजो महालय’ है.

हाल ही में इस विवाद को हवा मिली अयोध्या के बीजेपी मीडिया प्रभारी रजनीश सिंह से जिन्होंने हाई कोर्ट में याचिका दायर कर कहा कि ताजमहल के बंद पड़े 22 कमरों की जांच होनी चाहिए.

पीएन ओक और उनके तेजो महालय वाले दावे

अब याचिका जरूर बीजेपी नेता ने डाली है, लेकिन उनकी थ्योरी को सपोर्ट करते हुए कई साल पहले एक किताब भी लिखी गई थी. उसी किताब ने सबसे पहले ये दावा किया था कि आगरा में ताजमहल की जगह एक मंदिर हुआ करता था. लेखक थे पीएन ओक और उनकी किताब का नाम था ‘Taj Mahal: The True Story’. उस समय उस किताब को मराठी भाषा में लिखा गया था.

कहा जाता है कि सबसे पहले ताजमहल को लेकर मंदिर वाला दावा पीएन ओक ने ही अपनी किताब से किया था. उन्होंने अपनी किताब में कहा था कि ताजमहल वास्तव में तेजोमहालय है जिसका निर्माण 1155 में किया गया था. उनके मुताबिक तब वहां पर एक शिव मंदिर हुआ करता था. ओक के कथन के अनुसार मुगलों के भारत आने से पहले ही आगरा में एक भव्य स्मारक मौजूद था.

इसके अलावा पीएन ओक ने एक और महत्वपूर्ण काम किया था. उन्होंने उस बादशाहनामा के दो पन्नों का अंग्रेजी अनुवाद किया था जो शाहजहां की जिंदगी की पूरी क्रोनोलॉजी बताती है.

शाहजहां के दरबारी लेखक अब्दुल हमीद लाहौरी ने ही बादशाहनामा लिखी थी. लेकिन क्योंकि वो पूरी किताब फारसी भाषा में थी, ऐसे में लंबे समय तक कई लोगों के लिए उस किताब में लिखी बातें राज रहीं. फिर पीएन ओक ने बादशाहनामा के दो पन्ने 402 और 403 का अंग्रेजी अनुवाद करवाया था. उस अनुवाद के अनुसार 402 पन्ने पर लिखा था-

‘महान शहर आगरा (तब अकबराबाद) के दक्षिण में एक खूबसूरत और भव्य हवेली है. वो राजा मान सिंह की है. वर्तमान में उस हवेली का स्वामित्व मान सिंह के पोते जय सिंह के पास है. रानी के दफन के लिए इसी जगह को चुना गया. राजा जय सिंह ने अपनी इस पैतृक विरासत को काफी महत्व दिया. लेकिन फिर शासक शाहजहां को वो ये हवेली मुफ्त में देने को तैयार हो गया. लेकिन फिर भी ईमानदारी दिखाते हुए जय सिंह को उस भव्य हवेली के बदले में ‘शरीफाबाद’ दिया गया था.’

अब पीएन ओक ने इस अनुवाद के आधार पर ये बताने का प्रयास किया है कि शाहजहां ने असल में राजा मान सिंह के पोते जय सिंह से उनकी भव्य हवेली मांगी थी. ओक के मुताबिक पहले ऐसा दावा किया गया था कि शाहजहां ने राजा जय सिंह से एक जमीन मांगी थी. लेकिन बादशाहनामा का जो अनुवाद उन्होंने करवाया है, उसके मुताबिक एक जमीन नहीं बल्कि भव्य हवेली की मांग रखी गई थी.

उन्होंने कुछ फारसी शब्दों का जिक्र करते हुए भी अपनी बात को प्रमुखता से लिखा है. उदाहरण के लिए उन्होंने ‘Manzil-e-Rajah Mansingh bud wadari waqt ba Rajah Jaisingh’ का मतलब बताया है कि ये जो हवेली है ये राजा मान सिंह की है, जो अभी वर्तमान में राजा जय सिंह के स्वामित्व में है. आगे उन्होंने ये भी लिखा है कि ‘imarat-e-alishan’ का मतलब एक भव्य विशाल इमारत होता है.

पीएन ओक को क्यों लगा ताजमहल मंदिर?

वैसे 70 के दशक में पीएन ओक ने ताजमहल पर एक और किताब लिखी थी. उस किताब का नाम था The Taj Mahal Is A Temple Palace. अब अगर उन्होंने अपनी किताब ‘Taj Mahal: The True Story’ में तेजोमहालय और बाद में जय सिंह पर फोकस किया था, वहीं अपनी दूसरी किताब में उन्होंने कुछ ऐसे तर्क रखे थे जिसके आधार पर वे ताजमहल को एक मंदिर मान रहे थे. उनके सवाल एकदम स्पष्ट थे.

सवाल नंबर 1- ताजमहल संगमरमर की जाली में 108 कलश क्यों बने थे? (हिंदू मंदिरों में भी ऐसी परंपरा रहती है)

सवाल नंबर 2- मकबरे में जूते-चप्पल उतारने की मान्यता नहीं लेकिन संगमरमर की सीढ़ियों पर क्यों?

सवाल नंबर 3- ‘ताज’ और ‘महल’ संस्कृत शब्द, मकबरे को फिर संस्कृत नाम कैसे दिया गया?

अब पीएन ओक ने अपनी किताब और कुछ तथ्यों के आधार पर दो बातों पर जोर दिया था. पहला तो ये कि ताजमहल असल में तेजोमहालय था और दूसरा ये कि वहां पर एक शिव मंदिर था. लेकिन उनके इन्हीं तथ्यों को कोर्ट से कभी मान्यता नहीं मिली. साल 2000 में सुप्रीम कोर्ट ने पीएन ओक की उस मांग को खारिज कर दिया था जहां पर वे ताजमहल को एक हिंदू मंदिर घोषित करना चाहते थे.

पीएन ओक के दावों को चुनौती देने वाली किताब

वैसे ओक के बाद भी ताजमहल के इतिहास पर कई किताबें लिखी गई थीं. ऐसी ही एक किताब थी Taj Mahal: The Illumined Tomb जिसके लेखक थे बैगले और देसाई. उनकी वो किताब भी उन्हीं समान तथ्यों के साथ लिखी गई थी. बात उस किताब में भी राजा मान सिंह और राजा जय सिंह की थी. वहां भी ये बात कही गई है कि जय सिंह से ही शाहजहां ने एक हवेली ली थी. लेकिन इस किताब में तथ्यों को समझने का नजरिया अलग है.

इस किताब में बताया गया है कि ऐसे कोई भी सबूत या प्रमाण नहीं मिले हैं जो साबित करते हों कि कभी भी आगरा में ताजमहल की जगह कोई दूसरी धार्मिक इमारत थी. लेखक ने अपनी किताब में उस ‘फरमान’ की एक कॉपी भी पेश की है जो शाहजहां और जय सिंह के बीच हुआ था.

आसान शब्दों में इसे एक एग्रीमेंट कॉपी कह सकते हैं जो इस बात का प्रमाण देती है कि दोनों के बीच एक डील हुई थी. उस फरमान में स्पष्ट लिखा हुआ है कि जय सिंह ने अपनी इच्छा अनुसार ही अपनी हवेली को मुमताज महल बेगम के मकबरे के लिए दान कर दिया था. उसी फरमान में इस बात का भी जिक्र हुआ है कि इस हवेली के देने के बदले में जय सिंह को भी शाहजहां द्वारा 4 हवेलियां दी गई थीं.

अपनी किताब में बैगले और देसाई ने उस तारीख का भी जिक्र किया जब इस फरमान को मान्यता प्राप्त हुई थी. लेखकों के मुताबिक 28 दिसंबर 1633 को जय सिंह की हवेली को लेकर डील पक्की हुई थी. वहीं इस बात पर भी जोर रहा है कि उस जमाने में भी फरमान के अंदर लगातार ‘हवेली’ शब्द का इस्तेमाल हुआ. उनकी नजरों में ये इस बात को साबित करता है ताजमहल की जगह पहले कोई धार्मिक स्थल नहीं था.

लेखकों के ये कथन पीएन ओक के उस दावे के इतर हैं जहां कहा गया कि ताजमहल पहले तेजोमहालय था और उसका निर्माण मुगल शासकों के आने से कई साल पहले ही कर लिया गया था.

तेजोमहालय वाले दावे पर सरकार ने क्या कहा था?

वैसे ताजमहल को लेकर जो विवाद चलता आ रहा है, अब ये सिर्फ किताबों तक सीमित नहीं रह गया है. इन्हीं किताबों के आधार पर कोर्ट में केस लड़े जा रहे हैं. ऐसा ही एक मामला 2015 में भी सामने आया था जब 6 वकीलों ने आगरा कोर्ट में एक याचिका डाल अपील की थी कि उन्हें ताजमहल में दर्शन करने दिया जाए, पूजा की अनुमति मिले और वहां हो रही मुस्लिमों की नमाज पर रोक लगे.

अब इन वकीलों का तर्क था कि ताजमहल असल में तेजोमहालय है और शाहजहां ने इसे राजा जय सिंह से हड़प लिया था. लेकिन Bar&Bench की रिपोर्ट के मुताबिक 2017 में केंद्र ने ही कोर्ट में अपना जवाब दाखिल कर इन तमाम दावों को मनगढ़ंत और स्वयं निर्मित बता दिया था. उनकी नजरों में ऐसा कर भारत की छवि को धूमिल करने का प्रयास था. तब सरकार ने भी कोर्ट में ये माना था कि ताजमहल का निर्माण शाहजहां ने अपनी बेगम मुमताज की याद में करवाया था.

बाद में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग (ASI) ने भी आगरा कोर्ट में अपना जवाब दाखिल किया था. स्पष्ट कहा गया था कि ताजमहल एक मकबरा है, मंदिर नहीं.

अब एक बार फिर ताजमहल और तेजोमहालय के विवाद ने इस गुत्थी को उलझा दिया है. एक बार फिर मामला अदालत तक पहुंच गया है. फिर इतिहास के पन्नों को खंगाला जा रहा है, फिर अलग-अलग दावे हो रहे हैं, लेकिन असल सच क्या है, ये किसी को नहीं मालूम.

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