मंहगी पड़ रही चीन से तनातनी, इलैक्ट्रोनिक्स में 15 अरब डॉलर और एक लाख जॉब हानि

India-China Tenson 15 Billion Dollar Production Losses One Lakh Jobs
चीन से पंगा पड़ा महंगा! इलेक्ट्रॉनिक्स कंपनियों को $15 अरब का नुकसान, एक लाख नौकरियां साफ़
भारत और चीन के बीच पिछले कुछ साल से तनाव चल रहा है। इससे विशेषकर भारत की इलेक्ट्रॉनिक्स मैन्युफैक्चरिंग इंडस्ट्री को काफी हानि हुई है। इंडस्ट्री का कहना है कि भारत को 15 अरब डॉलर का प्रॉडक्शन लॉस हुआ है।

मुख्य बिंदु 

+भारत और चीन के बीच कुछ साल से तनाव चल रहा है
+भारत में चीन की कंपनियों के खिलाफ जांच चल रही है
+चीनी कंपनियों के निवेश प्रस्तावों की गहरी जांच हो रही है

नई दिल्ली 15 जून 2024: चीन से तनाव भारत की इलेक्ट्रॉनिक्स मैन्युफैक्चरिंग इंडस्ट्री को काफी महंगा पड़ रहा है। इससे पिछले चार साल में भारतीय इलेक्ट्रॉनिक्स कंपनियों को 15 अरब डॉलर का प्रॉडक्शन लॉस हुआ है। साथ ही इस दौरान करीब 100,000 नौकरियों का मौका भी हाथ से निकल गया। चीन के नागरिकों को वीजा जारी करने में देरी और भारत में कार्यरत चीनी कंपनियों की जांच से ऐसा हुआ है। विभिन्न मंत्रालयों को भेजे गए ज्ञापन में इलेक्ट्रॉनिक्स मैन्यूफैक्चरिंग इंडस्ट्री ने कहा कि भारत ने 2 अरब डॉलर के वैल्यू एडिशन नुकसान के अलावा 10 अरब डॉलर का निर्यात अवसर भी खोया है। इंडस्ट्री के अनुसार चीनी अधिकारियों के 4,000-5,000 वीजा आवेदन सरकारी स्वीकृति की प्रतीक्षा में  हैं। इससे देश में इलेक्ट्रॉनिक्स मैन्युफैक्चरिंग इंडस्ट्री की विस्तार योजनाओं में बाधा आ रही है। यह स्थिति तब है जब सरकार ने 10 दिन में बिजनेस वीजा आवेदन स्वीकृति को व्यवस्था बना रखी है।

इंडिया सेलुलर एंड इलेक्ट्रॉनिक्स एसोसिएशन (ICEA) और मैन्युफैक्चरर्स एसोसिएशन ऑफ इन्फॉर्मेशन टेक्नोलॉजी (MAIT) लॉबी ग्रुप ने केंद्र सरकार से चीनी अधिकारियों के लिए वीजा मंजूरी में तेजी लाने का अनुरोध किया है। अभी इसमें एक महीने से अधिक लगता है। चीनी अधिकारियों की जरूरत टेक और स्किल ट्रांसफर, मैन्युफैक्चरिंग यूनिट्स स्थापना और कमीशनिंग, एफिशियंसी प्रोसेसेज की स्थापना और मेंटनेंस को है। उन चीनी कंपनियों के अधिकारियों के वीजा आवेदन भी लंबित हैं, जिन्हें स्थानीय कंपनियों से पार्टनरशिप में मैन्युफैक्चरिंग बेस बनाने बुलाया गया है।

कैसे निकले समाधान
आईसीईए ने कहा कि हमारी घरेलू मूल्य संवर्धन (DVA) योजना पर गंभीर असर पड़ा है। जब मोबाइल पीएलआई योजना (2020-21 में) शुरू हुई तो आशा थी कि आपूर्ति श्रृंखला चीन से हट जाएगी। लेकिन इस गतिरोध और प्रेस नोट 3 (भारत से भूमि सीमा साझा करने वाले देशों से निवेश की अधिक अनिवार्य जांच) से सप्लाई चेन के ट्रांसफर में भारी कमी आई। एसोसिएशन ऐपल, ओप्पो, वीवो, डिक्सन टेक्नोलॉजीज और लावा जैसे टॉप मोबाइल ब्रांड्स और मैन्युफैक्चरर्स का प्रतिनिधित्व करती है। आईसीईए का अनुमान है कि अगर भारत और चीन में बिजनस एक्टिवीज सामान्य होती तो भारतीय कंपनियों का वैल्यू एडिशन वर्तमान 18% से बढ़कर 22-23% होता। इससे घरेलू मोबाइल फोन ईकोसिस्टम में वार्षिक 15,000 करोड़ रुपये का अतिरिक्त डीवीए योगदान होता।

आईसीईए के चेयरमैन पंकज मोहिंद्रू के अनुसार, ‘हमें उम्मीद है कि एक संतुलित समाधान निकलेगा। इससे उद्योग की चिंताएं दूर होंगी और साथ ही राष्ट्रीय सुरक्षा हितों में संतुलन बना रहेगा। इंडस्ट्री किसी भी देश के आगे झुकने को नहीं कह रहा है लेकिन हमें यह स्वीकार करना चाहिए कि आत्मनिर्भरता का रास्ता चीन के दबदबे वाली वैल्यू चेन पर निर्भर है। भारत ने काफी हद तक अपने नुकसान की भरपाई कर ली है और वह अधिक प्रतिस्पर्धी बन गया है। फिर भी भारत को वियतनाम, मलेशिया और मैक्सिको जैसे देशों के मुकाबले नए प्रकार का नुकसान उठाना पड़ रहा है, जिन्हें चीन से पूंजी, प्रौद्योगिकी और कौशल तक फ्री एक्सेस का फायदा मिल रहा है।
भारत की हानि किसी का लाभ 
उद्योग का कहना है कि चीनी नागरिक भी गिरफ्तारी और पूछताछ के डर से भारत आने से डरते हैं। एक अधिकारी ने कहा, ‘अगर किसी फैक्ट्री को स्थापित करने में मदद को 50 इंजीनियरों की जरूरत है, तो केवल 10 या उससे कम ही लोग आने को तैयार हैं।’ उन्होंने कहा कि 2020 से भारत-चीन संबंधों में कटुता से चीनी कंपनियों की गहरी जांच हो रही है। इससे इन कंपनियों ने भारत में आगे निवेश बंद कर दिया है। इससे सप्लाई चेन विकास बाधित हो रहा है। अगर ये कंपनियां भारत छोड़ने का फैसला करती हैं, तो इससे उत्पादन और सेवा  उपलब्धता प्रभावित होगी, रोजगार खत्म होगा और बड़ी संख्या में मैन्युफैक्चरिंग यूनिट्स बंद हो जाएंगी।
उदाहरण को एक बड़ी चीनी कंपनी ने ऐपल आईपैड बनाने को भारत में एक प्लांट स्थापित करने की प्रतिबद्धता जताई थी। लेकिन वह वियतनाम चली गई और वहां वार्षिक 8-10 अरब डॉलर मूल्य के आईपैड का उत्पादन करती है। इसी तरह चीन के स्मार्टफोन ब्रांड्स भी भारत की प्रमुख मोबाइल पीएलआई योजना में भाग लेने से कतराते हैं। एक सूत्र ने कहा कि यदि चीनी कंपनियों को मोबाइल पीएलआई में भाग लेने से नहीं रोका जाता, तो भारत 2020 से कम से कम 5-7 अरब डॉलर का अतिरिक्त एक्सपोर्ट रेवेन्यू कमाता । GTRI की रिपोर्ट के अनुसार, वित्त वर्ष 2024 में भारत का टेलीकॉम ,इलेक्ट्रॉनिक्स और इलेक्ट्रिकल उत्पादों का आयात बढ़कर 89.8 अरब डॉलर हो गया। इसमें 44% चीन से और 56% हांगकांग से आया.

Smartphone Manufacturing On China Support Loss Border Tension
चीन तय कर रहा भारत की चाल! क्या ड्रैगन बिना नहीं चलेगा स्मार्टफोन धंधा ?
भारत और चीन के बीच जारी तनाव का असर भारत पर देखने को मिल रहा है। ऐसा हम नहीं, बल्कि कई सारी रिपोर्ट्स कह रही हैं  है. इन रिपोर्ट्स में दावा किया गया है कि भारत और चीन में तनाव कम होता, तो भारत को काफी फायदा मिल सकता था.

भारत दुनिया के टॉप स्मार्टफोन मैन्युफैक्चरिंग देश की लिस्ट में शामिल हो चुका। यद्यपि सच यही है कि भारत चीनी स्मार्टफोन कंपनियों के दम पर स्मार्टफोन मैन्युफैक्चरिंग हब बना है। भारत में चाइनीज कंपनियां बड़े पैमाने पर स्मार्टफोन की मैन्युफैक्चरिंग करती है। साथ ही उन्हें दूसरे देशों को एक्सपोर्ट करती है।  भारत की टॉप स्मार्टफोन कंपनी Vivo  एक चाइनीज कंपनी है। टॉप 5 भारतीय स्मार्टफोन ब्रांड की बात करें, तो उसमें 3 से 4 ब्रांड चाइनीज देखने को मिल जाएंगे। ऐसे में सवाल है कि क्या चीन भारत की बैसाखी बन गया है। क्या बिना ड्रैगन के भारतीय स्मार्टफोन मार्केट नहीं चल सकती है?

भारत को उठाना पड़ा नुकसान

केंद्रीय मंत्रालयों की रिपोर्ट की मानें, तो भारत को चीन से तनाव का नुकसान उठाना पड़ा है। इससे भारत की स्मार्टफोन समेत इलेक्ट्रॉनिक्स मैन्यूफैक्चरिंग इंडस्ट्री को करीब 2 अरब डॉलर का नुकसान हुआ है। साथ ही इलेक्ट्रॉनिक गुड्स के निर्यात के मोर्च पर भी नुकसान का सामना करना पड़ा है।

मैन्यूफैक्चरिंग के लिए चीन पर निर्भर भारत
भारतीय टेक इंडस्ट्री पूरी तरह से प्रोडक्ट निर्माण को चीन पर निर्भर है।  भारत में निर्मित लैपटॉप, कंप्यूटर, मोबाइल और अन्य इलेक्ट्रॉनिक सामान के पार्ट्स चीन से आयात होते हैं।  89.8 बिलियन डॉलर के इलेक्ट्रॉनिक्स, टेलिकॉम प्रोडक्ट  वित्त वर्ष 2024 में चीन से मंगाये गये हैं, जो कुल पार्ट्स आयात का लगभग 44 प्रतिशत है। साल 2007 से 2019 के दौरान इंटीग्रेटेड सर्किट का इंपोर्ट 166 मिलियन डॉलर है, जो साल 2020 और 2022 में बढकर 4.2 बिलियन डॉलर हो गया है। इसी दौरान ट्रांजिस्टर और डायोड और सेमीकंडक्टर 133.3 मिलियन डॉलर से 2.3 बिलियन डॉलर हो गया है।

लोकल मैन्युफैक्चरिंग पर जोर

मोबाइल पीएलआई स्कीम साल 2020-21 में शुरू की गई थी, तब लोकल स्तर पर स्मार्टफोन मैन्युफैक्चरिंग पर जोर दिया गया था। ऐसे में उम्मीद थी कि चीन से प्रोडक्ट के साथ पार्ट सप्लाई में कमी होगी। हालांकि अभी भी चीन मैन्यूफैक्चरिंग पार्ट्स का बड़ा सप्लायर बना हुआ है। हालांकि भारत सरकार लंबे वक्त से लोकल स्तर पर पार्ट्स सप्लाई की योजना बना रही है। इसी योजना में भारत में लोकल स्तर पर सेमीकंडक्टर की मैन्युफैक्चरिंग प्रोत्साहित की जा रही है। साथ ही सरकार चाइनीज कंपनियों में भारतीय नागरिकों की तैनाती की तैयारी में है, जिससे भारत में चीन का हस्तक्षेप किया जा सके। इसी रणनीति में टाटा जैसी कंपनियां चाइनीज स्मार्टफोन ब्रांड वीवो में हिस्सेदारी खरीद रही हैं। साथ ही भारत सरकार स्मार्टफोन डिस्ट्रीब्यूशन में भी भारतीय कंपनियों को शामिल करना चाहती है।

भारत के सामने क्या हैं चुनौतियां?​

स्मार्टफोन समेत इलेक्ट्रॉनिक गुड्स मैन्युफैक्चरिंग में चीन के मुकाबले यूरोपीय देशों से सामान मंगाना महंगा पड़ता है। साथ ही स्किल्ड इंजीनियरिंग मामले में चीन सस्ता है। साधारण शब्दों में स्मार्टफोन या किसी अन्य प्रोडक्ट बनाने को भारी मशीनरी और इंजीनियरिंग लगती है। ऐसे में चीन से भारी मशीन और इंजीनियर सस्ते में आ जाते हैं। लेकिन भारत सरकार की ओर से चीनी नागरिकों को वीजा नहीं दिया जा रहा । साथ ही चाइनीज इंजीनियर भारत आने से डर रहे हैं, क्योंकि चीन कंपनियां सरकार के जांच के दायरे में हैं। रिपोर्ट में दावा किया गया कि चीन के प्रति नरमी बरती जाती, तो भारत में चीनी निवेश बढ़ सकता था, जिससे सरकार के साथ जनता को फायदा होता।

क्या चीन बिना नहीं चल पाएगा काम

ऐसा नहीं है कि चीन के बिना भारत का काम नहीं चल सकता है। हालांकि  चीन से मिलकर काम किया जाए, तो मैन्यूफैक्चरिंग की रफ्तार तेज की जा सकती है। साथ ही रोजगार के मोर्च पर फायदा मिल सकता है। ऐसा इंडिया सेलुलर एंड इलेक्ट्रॉनिक्स एसोसिएशन (ICEA) और मैन्युफैक्चरर्स एसोसिएशन ऑफ इन्फॉर्मेशन टेक्नोलॉजी (MAIT) कह रही है।

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