‘कुली बेगार आंदोलन: उत्तरांखड की रक्तहीन क्रांति’और ’75 उत्तरांखड स्वराज’ पुस्तकों का दून में हुआ विमोचन
देहरादून 05 सितंबर। दून लाइब्रेरी में देवभूमि विचार मंच ने “स्व” विषय पर एक विचारगोष्ठी का आयोजन किया गया जिसके आरम्भ में “कुली बेगार आंदोलन :उत्तराखंड की रक्तहीन क्रांति”, व “75 उत्तराखंड स्वराज” नामक दो पुस्तकों का विमोचन किया गया। पुस्तकों का विमोचन पद्मश्री से सम्मानित कल्याण सिंह रावत, मुख्य वक्ता विकास सारस्वत तथा प्रज्ञाप्रवाह के क्षेत्रीय समन्वयक भगवती प्रसाद राघव ने किया । “देवभूमि विचारमंच उत्तराखंड” के अंतर्गत आजादी के अमृत महोत्सव के अवसर पर प्रकाशित इन पुस्तकों का प्रकाशन किया गया है।
वर्ष 2015 में स्थापित देवभूमि विचारमंच उत्तराखंड राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अंतर्गत प्रज्ञा प्रवाह की उत्तराखंड इकाई के रूप में राष्ट्रीय चिंतन से जुड़े विचारवान लोगों का मंच है जो राष्ट्रीय चिंतन में जनभागीदारी को बढ़ाता है। स्वतत्रता आंदोलन के दौर में उत्तराखंड की रक्त हीन क्रांति के नाम से विख्यात “कुली बेगार आंदोलन” के 100 वर्ष पूर्ण होने पर उक्त आंदोलन से जुड़े तथ्यों को रवि कुमार जोशी व डॉक्टर अंजलि वर्मा के संपादन में तैयार किया गया है। वहीँ “75 उत्तराखंड स्वराज” पुस्तक का संपादन डॉक्टर रवि दीक्षित ने किया है। पुस्तक में तत्कालीन उत्तराखंड क्षेत्र से स्वतंत्रता आंदोलन में संघर्ष की भूमिका में रहे नायकों व उनके कार्यों का विभिन्न लेखकों ने लेखनीबद्ध किया है। दोनों पुस्तकों की प्रस्तावना राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अंतर्गत प्रज्ञा प्रवाह के अखिल भारतीय संयोजक प्रमुख जे नन्द कुमार ने लिखी है।
स्वतंत्रता संग्राम के दौरान जब वर्ष 1922 में असहयोग आंदोलन जैसा बड़ा आंदोलन आपने लक्ष्य को पाने में असफल साबित हुआ , उस दौरान सुदूर पर्वतीय क्षेत्र उत्तराखंड के जनसामान्य ने कुमायूं केसरी बदरी दत्त पांडे के नेतृत्व में “कुली बेगार” जैसी अमानवीय प्रथा के विरुद्ध संघर्ष कर 1929 में बागेश्वर में सरयू व गोमती के संगम पर ब्रिटिश शासकों के कुली बेगार से सम्बंधित रजिस्टरों को नदी में प्रवाहित कर इस कुप्रथा को सदा के लिये समाप्त कर दिया था। उत्तराखंड के आम जन के इस अहिंसक आंदोलन को महात्मा गाँधी ने यंग इण्डिया नामक पत्रिका में रक्तहीन क्रांति नाम दिया था।
“75 उत्तराखंड स्वराज ” पुस्तक स्वतंत्रता संग्राम को “स्व ” के दृष्टिकोण से समझाने का प्रयास करती है।
आंदोलन के दौरान औपनिवेशिक शक्तियों ने राजनीतिक, आर्थिक, व धार्मिक शोषण भारतीय स्व के विचार को कमजोर करने की दिशा में ही किये थे।
स्वतंत्रता के लिए चले लंबे संघर्ष के दौरान स्व के विचार की लड़ाई को भी लड़ा गया है। श्री अरविंद , महात्मा गांधी व अनेक महापुरुषों ने स्वधर्म,स्वराज व स्वदेशी इस सामाजिक दर्शन को भी देशवासियों के समक्ष प्रस्तुत किया।
देवभूमि विचारमंच के आयोजित व्याख्यान कार्यक्रम में मुख्य वक्ता विकास सारस्वत ने “स्व” से सम्बंधित विषय पर विचार रखते हुये कहा कि इस्लामी आक्रान्ता व यूरोपीय उपनिवेशवाद के कारण भारतीयता का प्रकटीकरण प्रभाव से प्रेरित हो गया। परन्तु वर्तमान में स्वतंत्रता के 75 वर्ष बाद जब चार पीढ़ियां जा चुकी है तब आवश्यकता है कि हम अपने स्वयं बोध या स्व भाव से साक्षात्कार करें। आज आवश्यकता है कि हम भारतीयता के उन मूल तत्व साधनवृत्ति, धर्मपरायणता, बहुलतावाद ,और उसी से जनित सहिष्णुता, सह अस्तित्व व बंधुत्व जैसी भारतीयता की विशिष्टताओं का महत्व समझ सके ।
अपने उद्धबोधन में पर्यावरण प्रेमी पदमश्री कल्याण सिंह रावत ने पराधीनता के दौर में उत्तराखंड में कुली बेगार प्रथा से जुड़े अनेक विषयों पर विस्तार से चर्चा रखते हुये वृक्षारोपण हेतु मैती आंदोलन को लोकपरम्परा के रूप में स्थापित करने के प्रयासों पर विचार रखे। साथ ही ग्लोबल वॉर्मिंग के दुष्प्रभावों पर भी प्रकाश डाला। वृक्षारोपण के माध्यम से ग्लोबल वार्मिंग के दुष्प्रभावों से पृथ्वी को कैसे बचाया जा सकता, पर भी विस्तार से अपनी बात रखी।
कार्यक्रम में डॉक्टर रवि शरण दीक्षित, डॉक्टर अंजलि वर्मा, रवि जोशी, कुलदीप सिंह राणा, डॉक्टर रीना कुलश्रेष्ठ, कृष्ण चंद्र मिश्रा आदि उपस्थित रहे।