मणिपुर हिंसा पर दो मत: महिलाएं ढाल और हथियार क्यों? मैतेई को आरक्षण आसान नहीं
पढ़े, मणिपुर की स्थिति पर दो विशेषज्ञ मत,एक बतलाता है कि कैसे मैतेई समुदाय को ST में शामिल करना आसान नहीं। दूसरा यह कि हिंसा की आग में महिलाएं को क्यों और कैसे निशाना बनाया जा रहा है।
मुख्य बिंदु
1-दो समुदायों के संघर्ष में मई से हिंसा की आग में जल रहा मणिपुर
2-मैतेई समुदाय को अनुसूचित जनजाति में शामिल करने पर हुआ विवाद
3-मणिपुर हाई कोर्ट के आदेश की पूर्व IAS की समीक्षा
4-भीड़ कैसे और क्यों महिलाओं को निशाना बना रही है, वजह समझें
नई दिल्ली 26 जुलाई: मणिपुर में महिलाओं के साथ बर्बरता का वीडियो देखकर देश कांप उठा। बेकाबू भीड़ ने महिलाओं को नग्न अवस्था में परेड करवाई। उनका सरेआम कैमरे पर यौन शोषण हुआ। वीडियो वायरल होने के बाद लोगों को मणिपुर की भयावह स्थिति का अंदाजा हुआ। लोग कहने लगे कि राज्य की कानून और व्यवस्था पंगु हो चुकी है। वीडियो से एक बात फिर साबित हुई। हिंसा कहीं भी हो, महिलाओं का इस्तेमाल ताकत दिखाने को होता है। महिलाओं के शरीर को शक्ति-प्रदर्शन का जरिया बना लिया जाता है। ‘द टाइम्स ऑफ इंडिया’ ने संपादकीय पेज पर मणिपुर से जुड़े दो विश्लेषण छापे हैं। हैदराबाद यूनिवर्सिटी में समाजशास्त्र की असिस्टेंट प्रोफेसर होइनिलिंग सिटलहौ (Hoineilhing Sitlhou) ने हिंसा में महिलाओं को निशाना बनाए जाने के कारण समझाए हैं। वहीं, राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग के पूर्व सचिव राघव चंद्रा बताते हैं कि मैतेई समुदाय को ST में शामिल करने के पक्ष क्या हैं। मणिपुर हिंसा के कारणों में विस्तार में जाते TOI के इन दो विश्लेषणों का सार हिंदी में पढ़िए।
मणिपुर हिंसा: क्या महिलाओं को न्याय दिलवा सकेगा भावनाओं का यह उबाल?
होइनिलिंग लिखती हैं कि मणिपुर की हिंसा में महिलाओं के शरीर का खूब इस्तेमाल हुआ। कभी दुश्मन को सुरक्षा के लिए खतरा बताने को, कभी किसी ‘अपने’ और ‘बाहरी’ के लिए राजनीतिक हदें तय करने को, कभी भारतीय सेना या पैरामिलिट्री फोर्सेज का हस्तक्षेप रोकने को महिलाओं को ढाल बनाया गया। असिस्टेंट प्रोफसर ने विभिन्न घटनाओं का संदर्भ दिया है। नगा वुमन यूनियन का आरोप है कि 24 मई को चार महिलाएं एक गाड़ी से जबरन उतारी गई। उनके कपड़े फाड़ दिए गए और सामान नष्ट कर दिया। लेख में वह कहती हैं कि महिलाओं के खिलाफ अलग-अलग अपराधों में प्रतिक्रिया अलग-अलग रही। इसीसे मणिपुर में कुछ लोगों का राज्य सरकार पर से भरोसा उठ चुका है कि वह न्याय करेगी।
होइनिलिंग के अनुसार मणिपुर के पुलिस थानों में महिलाओं पर अत्याचार के कई और मामले लंबित हैं। बहुत सारी पीड़िताएं तो अभी FIR दर्ज कराने की हिम्मत भी नहीं जुटा पा रहीं। मणिपुर के वीडियो पर जो भावुकता का उबाल आया है, उससे पीड़िताओं को न्याय दिलाने की दिशा में ठोस कानूनी कार्रवाई होनी चाहिए। उससे लोकतांत्रिक व्यवस्था में विश्वास बहाल होगा।
क्या मैतेई को ST में शामिल करना भूल?
पूर्व IAS राघव चंद्रा लिखते हैं कि मैतेई को जनजातीय दर्जा देने वाले मणिपुर हाई कोर्ट के फैसले को कानूनी कसौटी पर परखना चाहिए। उन्होंने लेख में कहा कि HC के चीफ जस्टिस ने यह बात नजरअंदाज कर दी कि ST या जातियों में किसी को मान्यता देना या हटाना काफी संवेदनशील है। वह सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला देते हुए कहते हैं कि अदालतें इस मामले पर फैसला करने की अधिकारी नहीं, कम से कम जब तक बाकी प्रक्रिया पूरी न हो चुकी हो।
कैसे मिलता है समुदाय को जनजाति का दर्जा
चंद्रा के अनुसार, संविधान ने अनुसूचित जनजातियों की सूची में बदलाव का कोई पैमाना नहीं तय किया। ऐसे में अनुसूचित जातियों, जनजातियों और अल्पसंख्यकों की श्रेणी केंद्रीय कैबिनेट समिति पर निर्भर है। 2002 में तय हुआ कि बिना राज्य सरकार या केंद्र शासित प्रदेश की स्पष्ट अनुशंसा के ऐसा कोई प्रस्ताव समिति के सामने नहीं रखा जाएगा। मणिपुर मामले में राज्य सरकार को संविधान के अनुच्छेद 371 (C) का पालन करते हुए हिल्स एरिया कमिटी से भी मंजूरी लेनी होगी। राज्य सरकार की सिफारिश के बाद भारत के रजिस्ट्रार जनरल (RGI) और जनगणना आयुक्त प्रस्ताव की जांच करते हैं। दोनों की मंजूरी के बाद इसे वनवासी मामलों के मंत्रालय को भेजा जाता है। फिर अनुसूचित जनजातियों के लिए बना राष्ट्रीय आयोग (NCST) प्रस्ताव के तकनीकी पहलुओं पर विचार करता है। अगर NCST प्रस्ताव निरस्त करता है तो प्रक्रिया वहीं खत्म हो जाती है। NCST के सिफारिशें मान लेने पर ही प्रस्ताव कैबिनेट के सामने जाता है। वहां से मंजूरी पर संसद में संशोधन प्रस्ताव लाया जाता है।
भारत में आखिरी बार अनुसूचित जातियों और जनजातियों की सूची में बदलाव 1965 में जस्टिस बीएन लोकुर की अध्यक्षता में बनी समिति से हुआ था। मणिपुर के लिए लोकुर समिति ने खोनजाई (कुकी, उनकी 17 उप-जनजातियों सहित), नागा (उनकी छह उप-जनजातियों सहित), मारिंग्स और मिजोस को अनुसूचित जनजाति में शामिल करने की अनुशंसा की थी। मणिपुर या किसी अन्य राज्य में मैतेई का उल्लेख अनुसूचित जनजाति के रूप में नहीं किया गया था।
ST का दर्जा मिलना क्यों महत्वपूर्ण
अनुसूचित जनजाति का दर्जा मिलने से एक समुदाय को नौकरियों में आरक्षण के अलावा कई अधिकार मिलते हैं। मणिपुर में, जनजातीय भूमि के हस्तांतरण को रोकने को विशेष कानून बनाकर गैर-वनवासी समुदायों के भूमि की खरीद हतोत्साहित की जाती है। अत्याचार निवारण अधिनियम लागू करने की क्षमता एक और अधिकार है। मणिपुर की अनुसूचित जनजातियों को वहां कमाई आय के लिए आयकर अधिनियम की धारा 10 (26) में छूट भी मिलती है। लेकिन लोकुर समिति की टिप्पणियों के अनुसार, ‘जिन जनजातियों के सदस्य सामान्य जन के साथ घुलमिल गए हैं, वे अनुसूचित जनजातियों की सूची में शामिल होने के योग्य नहीं हैं… प्रत्येक जनजाति को खास महत्व की जरूरत नहीं समझी जाती।
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