संयुक्त राष्ट्र में भारत के स्टेंड से यूक्रेन में होने लगा भारतीयों से दुर्व्यवहार?

Indians in Ukraine: भारत के रुख से खफा है यूक्रेन! जंग में फंसे भारतीय छात्रों पर गुस्सा निकाल रहे यूक्रेनी सैनिक और नागरिक

Indian Students in Ukraine: रविवार को करीब 250 छात्र पोलैंड के चेकपॉइंट्स तक पहुंचे। इन्हें पोलैंड के एक होटल में ठहराया गया है। लेकिन सरकार अभी भी यूक्रेन में फंसे हजारों छात्रों के लिए चिंतित है।

हाइलाइट्स
UNSC में भारत के रुख से खफा यूक्रेन में भारतीयों के साथ हो रहा बुरा बर्ताव
बॉर्डर पर सैनिक भारतीय छात्रों को डराने के लिए चला रहे गोलियां, दे रहे गालियां
अब तक यूक्रेन युद्ध में फंसे हजारों भारतीय छात्रों को निकाल चुकी है भारत सरकार

यूक्रेन में फंसे भारत के कई मेडिकल छात्र

कीव 28फरवरी : यूक्रेन युद्ध में कई भारतीय छात्र फंसे हैं जिनकी निकासी के लिए भारत सरकार लगातार अभियान चला रही है। ये छात्र पोलैंड और रोमानिया के रास्ते अपने घर लौट रहे हैं। भारत सरकार यूक्रेन के राजदूत और अधिकारियों से लगातार संपर्क में है। लेकिन इसके बावजूद लोगों को वापस लौटने में कई तरह की मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है। कुछ मेडिकल छात्रों ने आरोप लगाया है कि यूक्रेन-पोलैंड बॉर्डर के चेकपॉइंट्स पर उन्हें प्रताड़ना का सामना करना पड़ा।

छात्रों ने कहा कि उन्हें कड़ाके की सर्दी में किसी कैदी की तरह रखा गया और खाना, पानी और शेल्टर के लिए मना कर दिया गया। उन्होंने दावा किया कि बॉर्डर गार्ड्स उन्हें गालियां दे रहे थे क्योंकि भारत ने UNSC में यूक्रेन पर रूसी हमले के खिलाफ निंदा प्रस्ताव पर वोटिंग में शामिल होने से इनकार कर दिया था। छात्रों ने कुछ वीडियो शेयर किए जिसमें यूक्रेनी सैनिक खौफ पैदा करने के लिए हवा में गोलियां चलाते और छात्रों को धक्का देते हुए नजर आ रहे हैं।

पैदल चलकर सीमा तक पहुंच रहे भारतीय छात्र

कुछ छात्रों का दावा है कि यूक्रेन के आम नागरिक भी उनसे बुरा बर्ताव कर रहे थे। कई भारतीय छात्र अपने घर लौट चुके हैं जबकि हजारों की संख्या में अभी भी पोलैंड की सीमा पर मौजूद हैं। ये छात्र ट्रेन, कार, बस या रात-रातभर पैदल चलकर यहां पहुंचे हैं। रविवार को करीब 250 छात्र पोलैंड के चेकपॉइंट्स तक पहुंचे। इन्हें पोलैंड के एक होटल में ठहराया गया है। लेकिन सरकार अभी भी यूक्रेन में फंसे हजारों छात्रों के लिए चिंतित है। कई छात्र कीव और लवीव में अपने कॉलेज हॉस्टल की ओर जा रहे हैं।

चेकपॉइंट पर सैनिकों ने रोका रास्ता

इसी तरह टेर्नोपिल शहर के छात्र रोमानिया बॉर्डर पर इकट्ठा हो रहे हैं जिसमें हरियाणा के हिसार और फतेहाबाद की कई लड़कियां शामिल हैं। दिल्ली की मेडिकल छात्र रंगोली राज ने हमारे सहयोगी अखबार टाइम्स ऑफ इंडिया से फोन पर बात करते हुए कहा कि जब हम यूक्रेन के एक चेकपॉइंट पर पहुंचे तो हमें यूक्रेन के कुछ बॉर्डर गार्ड्स ने रोक लिया और हमसे ‘हंटर-गेम’ खेलने के लिए कहा। रूस की सेना यूक्रेन के दूसरे सबसे बड़े शहर खारकीव में घुस चुकी है और राजधानी कीव में भीषण जंग जारी है।

यूक्रेन में फंसे भारतीय छात्रों को विमान से नई दिल्ली लाया जा रहा है.

यूक्रेन पर रूस के हमले के बाद वहां फंसे कुछ भारतीय मेडिकल छात्रों ने आरोप लगाया है कि पोलैंड से सटे यूक्रेनी चेकपोस्ट पर उनसे दुर्व्यवहार किया गया.

भारतीय छात्रों ने कहा कि उन्हें लगभग बंधकों जैसी स्थिति में रखा गया और जमा देने वाली ठंड में भी खाना और पानी तक के लिए तरसना पड़ा.

छात्रों का आरोप है कि उनके साथ ये बर्ताव इसलिए किया गया क्योंकि भारत ने यूक्रेन पर रूसी हमले के ख़िलाफ़ संयुक्त राष्ट्र में पेश किए गए प्रस्ताव पर वोटिंग से दूरी बनाई.

छात्रों ने ऐसे वीडियो भी शेयर किए हैं जिनमें सैनिकों को हवा में गोलियां चलाते और छात्रों को तितर-बितर करने के लिए बल प्रयोग करते देखा गया है.

यूक्रेन के नागरिकों में भी नाराज़गी

एक अन्य वीडियो क्लिप में एक यूक्रेनी गार्ड एक भारतीय लड़की को दूर धकेलता दिखता है. ये लड़की सैनिक के पैरों में गिरकर उनसे सीमा पार करने देने की गुहार लगा रही है. कुछ छात्रों का कहना है कि यूक्रेन के लोग भी अब उनके विरोधी हो गए हैं.

यूक्रेन में छिड़ी जंग के बाद सैकड़ों भारतीय छात्रों को वहां से निकाल कर भारत लाया गया है, लेकिन अभी भी वहां की अलग-अलग यूनिवर्सिटीज़ में पढ़ने गए हज़ारों छात्र पोलैंड से सटी सीमा पर फंसे हैं.

युद्ध से बचने के लिए बहुत से छात्र ट्रेन, गाड़ी या बस से वहां तक पहुंचे हैं. कुछ छात्र तो मीलों दूर पैदल सफ़र करते हुए बस इस आस में सीमा तक पहुंचे हैं कि किसी तरह उन्हें दूसरे देश में प्रवेश मिल जाए.

इंडो-पॉलिश चैंबर ऑफ़ कॉमर्स के उपाध्यक्ष अमित लाथ के मुताबिक़, रविवार दोपहर तक 250 से भी कम भारतीय छात्र यूक्रेन की सीमा पार कर पोलैंड पहुंच सके हैं. अमित लाथ पोलैंड में भारतीय दूतावास के साथ मिलकर भारतीय छात्रों के बचाव कार्य में जुटे हुए हैं. पोलैंड में इन छात्रों को होटल में रखा जा रहा है. अमित लाथ कहते हैं कि उन्हें अभी भी यूक्रेन में फंसे हज़ारों छात्रों की चिंता है.

रूस के हमले से यूक्रेन में फंसे अधिकांश भारतीय छात्र वहां मेडिकल की पढ़ाई करते हैं. यूक्रेन के साथ ही रोमानिया और बुल्गारिया जैसे अन्य पूर्वी यूरोपीय देश मेडिकल की पढ़ाई करने वाले भारतीय छात्रों की पसंदीदा जगहें हैं. प्रश्न है कि आख़िर छात्र मेडिकल की पढ़ाई के लिए इन देशों को क्यों चुनते हैं?

दरअसल, इन देशों के कॉलेजों में दाख़िले के लिए नियम काफ़ी आसान हैं. यहां भारत की तुलना में प्रतिस्पर्धा भी कम है और साथ में यूरोप में मेडिकल की पढ़ाई भारत से सस्ती पड़ती है.

हालांकि, इन देशों के कॉलेजों से मेडिकल की पढ़ाई करने के बाद भारत में प्रैक्टिस करना चुनौतीपूर्ण है.

विदेशी मेडिकल संस्थानों से स्नातक करने वाले सभी छात्रों को भारत में प्रैक्टिस करने या फिर आगे की पढ़ाई करने से पहले एक लाइसेंस परीक्षा देनी होती है. इस परीक्षा को फ़ॉरेन मेडिकल ग्रैजुएट एग्ज़ामिनेशन (FMGE) कहा जाता है और इसमें पास होने वालों की दर भी बेहद कम होती है.

जो लोग भारत में मेडिकल शिक्षण संस्थानों की निगरानी करने के लिए बनी एजेंसियों में काम करते हैं, उनका कहना है कि अंग्रेज़ी में विदेशी छात्रों को यूक्रेन में मेडिकल की पढ़ाई करवाने वाली यूनिवर्सिटी में दाख़िले के लिए कोई तय नियम नहीं है. साल 2018 के बाद से भारत ने एमबीबीएस की पढ़ाई के लिए विदेश जाने वाले छात्रों के लिए भी नीट-यूजी की परीक्षा को अनिवार्य कर दिया था.

भारत में मेडिकल शिक्षण संस्थानों की निगरानी करने वाली एजेंसी के साथ काम कर चुके एक वरिष्ठ डॉक्टर कहते हैं, “अगर आप पूर्वी यूरोपीय देशों, रूस या चीन जाने वाले छात्रों को देखेंगे तो उनमें से अधिकांश को नीट-यूजी में 20 प्रतिशत से भी कम अंक आते हैं. भारत में निजी कॉलेजों तक के लिए कट-ऑफ़ क़रीब 60 प्रतिशत के आसपास है.”

भारत में महंगी है मेडिकल की पढ़ाई

यूक्रेन में क़रीब छह साल की एमबीबीएस पढ़ाई पूरी करने में 15 से 20 लाख़ रुपये का ख़र्च आता है. वहीं, भारत में निजी कॉलेजों में मेडिकल की पढ़ाई के लिए 50 लाख से डेढ़ करोड़ रुपये तक ख़र्च करने पड़ते हैं. यहां ये पढ़ाई कम समय में पूरी होती है.

यूक्रेन की यूनिवर्सिटी चुनने के पीछे एक और कारण ये है कि यहां विश्वविद्यालय यूरोपियन क्रेडिट सिस्टम पर चलते हैं. इससे छात्रों के लिए कोर्स के दौरान यूरोप में अपने संस्थान बदलना आसान होता है.

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