यूक्रेन-रुस युद्ध का भारत को सबक- रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता
जब तक करे पूता-पूता तब तक करे अपने बूता… यूक्रेन वॉर से भारत के लिए सबसे बड़ा सबक
यूक्रेन आज रूसी बमबारी का सामना कर रहा है। उसके लाखों नागरिकों ने पड़ोसी देशों में शरण ली है। लेकिन, यह भी कड़वा सच है कि उसकी तरफ से कोई रूस से लड़ने नहीं जा रहा है। एक खुशहाल देश बर्बादी की कगार पर खड़ा हो गया है। भारत को इस पूरे घटनाक्रम से एक बड़ा सबक लेना चाहिए
Lesson from Ukraine War: भविष्य में जंगों को जीतने के लिए उधार की ताकत पर निर्भर नहीं रहा जा सकता… चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (CDS) बिपिन रावत (Bipin Rawat) जब जीवित थे तब बार-बार यह बात दोहराते थे। वह जोर देकर कहते थे कि देश को स्वदेशी हथियारों और तकनीक की जरूरत है। यूक्रेन पर रूस के हमले (Russia-Ukraine War) ने इस अहमियत को बल दिया है। रक्षा बजट (Defence Budget) में कटौती की पैरवी करने वालों को भी अब यह समझ आ जाना चाहिए कि क्यों यह खतरे से खाली नहीं है। खासतौर से तब जब आपके पड़ोस में परमाणु हथियारों (Nuclear War Threat) का जखीरा लिए दुश्मन बैठे हों। जरूरी नहीं है कि हम अपनी गलतियों से ही सीखें। समझदारी तो यह है कि दूसरों की गलती से सबक लिया जाए। यूक्रेन हमारे सामने नमूना है।
रूसी बमबारी के बीच यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमिर जेलेंस्की की वो दिलेरी दुनिया को याद रहेगी। उन्हें अमेरिकी सरकार ने राजधानी कीव से निकलने का ऑफर दिया था। इस ऑफर को उन्होंने ठुकरा दिया था। उन्होंने कहा था कि युद्ध चल रहा है। मुझे गोला बारूद चाहिए, सवारी नहीं।
बेशक, वोलोदिमिर ने ऐसा कहकर अपने से कई गुना शक्तिशाली देश के सामने खड़े होने की हिम्मत दिखाई। लेकिन, यह भी सच है कि बड़ी-बड़ी बातों में आकर युद्ध की आग में कूद पड़ना भी समझदारी नहीं है। आज युद्ध को सिर्फ यूक्रेन और यूक्रेनवासी झेल रहे हैं। जरूर दुनिया रूस के कदम की निंदा कर रही है। उसके खिलाफ प्रतिबंधों की बौछार लगा दी गई है। लेकिन, यूक्रेन के लिए रूस से कोई भी देश भिड़ने नहीं जा रहा है।
‘यूक्ज्ना्न्ना््ना्न्ज्ना्न्ना््ना््ज्ना्न्ना््ना्न्ज्ना्न्ना््ना
अपने हित देखती है दुनिया
अपने हितों को देखते हुए ही दुनिया का सबसे शक्तिशाली देश अमेरिका तालिबान के हाथों में अफगानिस्तानियों का भविष्य छोड़ रातों-रात भाग खड़ा हुआ था। ऐसे में वह यूक्रेन के लिए रूस से दो-दो हाथ कर लेगा, इसके बारे में तो सोचा भी नहीं जा सकता है।
एक और बात है कि मजबूत सेना के लिए अर्थव्यवस्था का मजबूत होना भी जरूरी है। भूखी सेना युद्ध नहीं लड़ सकती है। एक अध्ययन के मुताबिक, रूस अपनी जीडीपी (सकल घरेलू उत्पाद) का 4.3 फीसदी रक्षा पर खर्च करता है। भारत का रक्षा बजट जीडीपी का 2.1 फीसदी है।
भारत अभी अपनी सैन्य जरूरतों के लिए रूस पर काफी ज्यादा निर्भर है। इस निर्भरता पर उसे ध्यान देना होगा। रूस पर अमेरिका और पश्चिमी देशों की त्योरियां जैसे चढ़ी हुई हैं, उससे प्रतिबंधों की आंच भारत तक भी पहुंच सकती है। गनीमत यह है कि भारत ने हाल के दिनों में रूस के साथ ही अमेरिका और पश्चिमी देशों के साथ अपने संबंधों को मजबूत किया है। इसके चलते वह सभी के साथ मोलतोल करने की हैसियत में है। यह निश्चित रूप से उसकी कूटनीतिक सफलता है।
आत्मनिर्भर भारत पर फोकस बढ़ाने का समय
हालांकि, यह आत्मनिर्भर भारत पर फोकस बढ़ाने का भी सही समय है। इसके लिए मैन्यूफैक्चरिंग सेक्टर को बढ़ावा देना होगा। सेक्टर के लिए तमाम तरह की टैक्स रियायतों की पोटली खोलनी होगी। किसी भी हाल में हमें चीन से ज्यादा प्रतिस्पर्धी बनना होगा। रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन सभी प्रतिबंधों के खतरों को धता बताते हुए अगर यूक्रेन पर चढ़ाई कर सके तो इसके पीछे मजबूत अर्थव्यवस्था थी।
सोचिए कल चीन और पाकिस्तान मिलकर भारत पर हमला बोलने की हिमाकत करते हैं तो क्या होगा। आज की स्थितियों को देखते हुए हमें इस मुगालते में नहीं रहना होगा कि कोई दूसरा हमें बचाने के लिए आ जाएगा। हमें जो कुछ करना है अपने बूते करना है। एक देसी कहावत भी है- ‘जब तक करे पूता-पूता तब तक करे अपने बूता’।
इसका लब्बोलुआब सिर्फ इतना है कि दूसरों की खुशामद करने से अच्छा है कि हम खुद खड़े हो जाएं। भारत ने ठीक ही किया है कि वह यूक्रेन युद्ध में न्यूट्रल है। किसी एक के सुर में सुर मिलाकर क्यों दूसरे को बैरी बनाया जाए।
यहां जनरल रावत की कही वो बात काफी प्रासंगिक हो जाती है। उन्होंने कहा था कि क्षेत्रीय शक्ति बनने की भारत की आकांक्षा उधार में ली गई ताकत पर निर्भर नहीं रह सकती है। भविष्य के युद्ध जीतने के लिए स्वदेशी हथियारों और तकनीक की जरूरत होगी। आगे का रास्ता स्वदेशीकरण का है। भारत को अपने युद्धों को भारतीय तरीकों से लड़ना होगा।
-अमित शुक्ल